प्रीत बचपन की पचपन से परे तक / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :21 अप्रैल 2018
आज अपने सत्तरवें जन्मदिन पर बबीता अपने पिता हरि शिवदसानी या पति रणधीर कपूर के नाम से नहीं वरन् अपनी बेटियों करिश्मा और करीना की मां के रूप में जानी जाती हैं। इसका 'बेटी बचाओ' प्रचार से कोई संबंध नहीं है। दरअसल, इस प्रचार में ही उनकी असली नीयत प्रगट हो गई। एक पेशेवर नारेबाज का कहना था कि बेटी नहीं बचाओगे तो रोटी कौन बेलेगा? इससे अधिक अपमानजनक क्या हो सकता है कि मात्र रोटियां बेलने के लिए उन्हें बचाया जाए। रोटी बनाने की मशीन का ईजाद अरसे पहले हो चुका है। दरअसल, अपने भाषण को रोचक और प्रभावोत्पादक बनाने के लिए तुक मिलाने या अनुप्रास का प्रयोग जबरन किया जाता है। पंडित जवाहर लाल नेहरू के भाषण कुछ देशों ने अपने स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किए हैं।
बबीता शिवदसानी की पहली फिल्म 'राज' राजेश खन्ना के साथ थी परंतु यह 'आराधना' के पांच वर्ष पूर्व की बात है और उस समय तक 'काका' राजेश खन्ना बॉक्स ऑफिस के 'आका' नहीं बन पाए थे। राजेश खन्ना सचिन देव बर्मन के माधुर्य के सहारे 'आराधना' से सितारा बने परंतु इस धूमकेतु की चमक केवल चार वर्ष रही। सलीम जावेद की लिखी, प्रकाश मेहरा की 'जंजीर' ने पूरा खेल ही बदल दिया। बहरहाल, बबीता अभिनीत अधिकांश फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल रहीं परंतु वे अभिनय में अपनी चचेरी बहन साधना के समकक्ष नहीं थीं। हरि शिवदसानी के सगे भाई की सुपुत्री साधना का जीवन सिन्ड्रेला की तरह रहा। जूनियर कलाकार से प्रारंभ करके वे सुपर सितारा बनीं और रामानंद सागर की 'आरजू' के लिए उन्होंने नायक से अधिक मेहनताना लिया। उस फिल्म में सबसे अधिक धन संगीतकार शंकर-जयकिशन को दिया गया, क्योंकि उनके नाम से वितरक फिल्म खरीद लेते थे। शंकर जयकिशन ने 'आरजू' इसलिए भी स्वीकार की, क्योंकि रामानंद सागर ने राज कपूर की 'बरसात' की कथा लिखी थी और 1949 से 1970 तक शंकर-जयकिशन का एकछत्र राज रहा। उनकी एकमात्र कुंडली है, जिसमें इक्कीस वर्ष तक ग्रह नहीं बदले।
बबीता कपूर की मां फ्रांस की रहने वाली थीं और हरि शिवदसानी टेनिस अच्छा खेलते थे। इस गेम के अंक इस तरह गिने जाते हैं- लव फिफ्टीन, लव थर्टी इत्यादि। जाने मुहब्बत से क्या रिश्ता है इस खेल का? बहरहाल, बबीता की पुत्रियां करिश्मा व करीना बहुत सुंदर हैं। उनकी नानी फ्रेन्च थीं तो दादी कृष्णा राज कपूर भी अत्यंत गरिमामय हैं। अपनी बेटियों के सितारा बन जाने के बाद बबीता पुणे के अपने बंगले में रहने चली गई थीं, जहां से आचार्य रजनीश का आश्रम कुछ ही गज की दूरी पर स्थित है। इसका कोई संबंध अध्यात्म से नहीं है।
राज कपूर के ज्येष्ठ पुत्र रणधीर का बबीता से प्रेम हो गया था। राज कपूर के मिजाज में महीन-सा रेशा सामंतवाद का भी रहा है। वे हैरान थे कि उनका एक सामान्य दरबारी उनका समधी हो जाएगा। पर उन्होंने कोई विरोध भी नहीं किया। विवाह शान-शौकत से संपन्न हुआ। इसके पूर्व इक्कीस वर्षीय रणधीर कपूर ने अपनी पहली फिल्म 'कल आज और कल' में बबीता को अनुबंधित किया था। शंकर-जयकिशन ने एक गीत बनाया 'जब हम होंगे साठ साल के और तुम होगी पचपन की, बोलो क्या प्रीत निभाओगी तब भी अपने बचपन की'।
आज बबीता सत्तर वर्ष पूरे कर रही हैं और उनके पति रणधीर कपूर आश्चर्य करते होंगे कि 'पचपन बचपन' का गीत कैसे बनाया गया? यह सच है कि रणधीर और उनकी पत्नी अलग-अलग रहते हैं परंतु वे दोनों अपनी बेटियों के साथ खाना खाने जाते हैं और संपर्क निरंतर बना रहता है। साथ रहकर लोगों के बीच वैचारिक दूरियां बन जाती हैं और अलग-अलग रहते हुए भी प्रेम बना रह सकता है। मलिक मोहम्मद जायसी का एक पद है 'रीत प्रीत की अटपटी जनै परे न सूल, छाती पर परबत फिरै, नैनन फिरे ना फूल'। अमीर खुसरो लिखते हैं 'खुसरो दरिया प्रेम का, बाकी उल्टी धार, जो उबरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार'।
एक दौर में अभिषेक बच्चन करिश्मा कपूर से बेहद प्रेम करते थे परंतु बात नहीं बनी। इसका ठीकरा बबीता के सिर फोड़ा गया, जबकि उनका कोई दोष नहीं है। कुछ समय बाद करिश्मा का विवाह हो रहा था तब जाने क्या हुआ कि अमर सिंह ने प्रयास किया कि बिगड़ी बात बन जाए परंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अगर करिश्मा के विवाह के समय अमिताभ बच्चन वहां आ जाते तो मीडिया दूल्हा-दूल्हन को अनदेखा करके उन्हें घेर लेते, उनकी पगड़ी में एक कलगी और लग जाती।
महात्मा गांधी ने कहा था कि विवाह दो आत्माओं का मिलन है, शरीर के माध्यम से। उनकी यह बात सर रिचर्ड बर्टन के उपन्यास 'बॉडी एंड सोल' में दी गई है। बहरहाल, रणधीर और बबीता का प्रेम और विवाह परिभाषाओं के परे जाता है। वे आज भी बचपन की प्रीत को अपने अनोखे ढंग से निभाए जा रहे हैं।