प्रेम और दर्शन से ओतप्रोत 'मंत्रमुग्धा' / उपमा शर्मा
जब हृदय में संवेदनाओं के तार झंकृत होते हैं, तब कवि या कवयित्री की बेचैनी पृष्ठों पर उतरने को आतुर हो जाती है। कविता कभी लिखी नहीं जाती, हृदय की संवेदना उसे स्वत: ही पृष्ठों पर उतार देती है। मन के भावों को कागज़ पर उतरने की अद्भुत क्षमता है कविता।
'मंत्रमुग्धा' काव्य-संग्रह की एक-एक कविता भावों के प्रबल आवेग से गुँथी हुई है। प्रथम पृष्ठ से लेकर अंतिम पृष्ठ तक भावनाओं का प्रबल आवेग एक-एक पंक्ति में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।
समकालीन कविता में डॉक्टर कविता भट्ट 'शैलपुत्री' एक महत्त्वपूर्ण नाम है। उनका नव काव्य-संग्रह प्रेम और दर्शन से परिपूर्ण है। प्रेम जब अपनी उत्कृष्टता के सर्वोच्च शिखर को छूता है, तब अध्यात्म के दर्शन होते हैं। कविता भट्ट के काव्य संग्रह में यह स्वत: ही उभर कर आता है। कहीं-कहीं इन कविताओं में मीरा, रसखान, सूर सामने आ खड़े हो जाते हैं। प्रेम और अध्यात्म का ऐसा सुंदर समन्वय पढ़कर कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाएगा। इस दृष्टि से इस संग्रह का शीर्षक बहुत ही सटीक और सार्थक है।
अपनी पहली ही कविता से कवयित्री अपने भावों के मोहपाश में ऐसा बाँधती हैं कि पाठक के मन पर एक अमिट छाप छूटती है और पाठक मानवीय संवेदनाओं के ज्वार में ऐसा डूबता-उतराता है कि कुछ देर उसे कुछ सुधि ही नहीं रहती। कवयित्री स्पष्ट कहती हैं-
स्मृतियों की पैजनियाँ पहनकर / बजाती हूँ तर्कों के घुँघरू / रचती हूँ आदर्शों के गीत / ...अब भी मोहपाश नामक साथी ने / मेरी उँगली नहीं छोड़ी / न जाने क्यों? / विचरती हूँ-स्मृतियों की पैजनियाँ पहनकर...
कवयित्री की काव्यानुभूति मानवीय उष्मा की तीव्रता है, जहाँ मानवीय भावबोध का आवेग अनायास ही काव्यबोध में रूपान्तरित हुआ है। इन कविताओं में मानवीय धरातल का यह भावबोध निरंतर सक्रिय रहा है। कविता में अवतरित भाषा और भावों का आवेग, उसका प्रबल प्रवाह ही उसकी शक्ति है। कविता भट्ट में यह शक्ति अकूत है। उनकी अभिव्यक्ति के भाव-सागर के ज्वार की तरह तीव्रता से आते हैं और उनके संवेदनाओं का गहरा संस्पर्श देर तक महसूस होता रहता है।
'प्रेम' कविता को पढ़कर मुझे मेरा ही दोहा याद आ गया।
सुंदरता पर नित नए, गढ़ डाले प्रतिमान।
नारी मन को मीत तुम, क्या पाए पहचान!
प्रेम समर्पण का दूसरा नाम है। प्रेम अन्तरात्मा की एक अद्भुत अभिव्यक्ति है। इसे परमात्मा का दूसरा रूप कहा जाता है। प्रेम और दर्शन चेतना के दो पंख हैं। इन दो पंखों के बिना जीवन असंभव है। 'प्रेम' कविता में चाँद और झील के बिम्ब से कवयित्री ने इस भाव को भलीभाँति उकेरा है। चाँद झील से कहता है तुम कितनी सुंदर हो और झील कहती है-मुझे निहारना सामान्य बात है, विशेष है मुझमें उतरना और मेरे प्रेम में ख़ुद को समर्पित करना।
इसी कड़ी में वे अपनी एक दूसरी रचना में कहती हैं-प्रेम दुनिया का सबसे ख़ूबसूरत भाव है। सच ही है प्रेम बड़ी ख़ूबसूरत शय होती है। प्रेम की शक्ति अलौकिक होती है। प्रेम व्यक्ति को निखार देता है; किंतु दुनिया के इस सबसे ख़ूबसूरत भाव का आज के युग में नितांत अभाव है। वे लिखती हैं-
' किन्तु है न आश्चर्य कि प्रेमियों के घर नहीं होते
आकाश में ही जीवंत हेवीवेट हैं-कलाकृतियाँ
नीचे हस्ताक्षर में लिखा होता है-
दुस्साहस और अनैतिकता॥'
जिस प्रकार एक मछली सागर से ही जीवन दान लेती है, इसी में रहकर इसके विशाल-विराट स्वरूप में ही घूमती-फिरती व आनंद लेती है, लेकिन यदि कोई उसे कहे कि वह सागर की गहराई विशालता व आनंद को शब्दों में व्यक्त करे, तो ऐसा करना उसके लिए कठिन व असंभव है। प्रेम व दर्शन भी गूँगे का गुड़ ही होते हैं। कवयित्री ने पुस्तक को ब्रह्म का पर्याय कहा है। वे कहती हैं-पुस्तक में उल्लिखित अक्षर और अक्षरों से निर्मित शब्द ब्रह्म अर्थात् परम चेतना हैं। सच ही प्राण हैं यह पुस्तक।
सृजक का तात्कालिक रिश्ता प्रकट रूप से समाज से ही होता है और उसकी झलक उसके लेखन में परिलक्षित होती है। कविता भट्ट के सृजित समाज का फलक भी विस्तृत है। अधिकतर कविताएँ प्रेम और दर्शन को समर्पित हैं; लेकिन पूरे संग्रह के कैनवास पर विषयों के विविध रंग सृजित हुए हैं। प्रकृति से लेकर विभिन्न विषय साथ ही ईश्वर का होना भी एक सोच के रूप में रचनाओं में विद्यमान है। लेखन वही सफल होता है, जो आम जन के अनुभवों से बुना जाए।
कवयित्री ने परकाया प्रवेश कर आम जन के भाव संगृहीत करने में पूर्ण सफलता पाई है। परपीड़ा को महसूस करते हुए कवयित्री लिखती हैं
" नैनों की भाषा लिपि में बदल न सकी
वह पीड़ा कभी शब्दों में ढल न सकी। "
इसी भाव की बानगी इस कविता में भी नज़र आती है।
" विषाद मन का, डूबते दिन सा,
लेखनी असहयोग कर बैठी। "
कवयित्री की यह पीड़ा अनायास ही कई कविताओं में मुखर हो उठी है कि आज समाज में इतना अनाचार फैला है कि मेरी कलम उसे शब्दों में ढाल ही नहीं पा रही। किसी के हिस्से में आने वाले दु: ख, परेशानियाँ, आँसू इतने उद्वेलित करते हैं कि उन्हें शब्दों में ढाला ही नहीं जा सकता।
अहा संवेदना की ऐसी पराकाष्ठा। एक-एक पंक्ति पढ़ते हुए पाठक इन रचनाओं से ख़ुद को अनायास ही जुड़ा हुआ पाता है।
भारतीय वाड्मय में नारी के लिए अनेक नाम प्रचलित हैं, जिसके माध्यम से हमें नारी के विभिन्न पक्षों का बोध होता है। नारी शब्द में ही शक्ति, सौंदर्य एवं शालीनता तत्व समाहित होते हैं। पुरुष की समग्रता की सूचक नारी जीवन के हर क्षेत्र में समान रूप से कार्य सक्षम होने के कारण सर्वत्र पुरुष के तुल्य की अधिकारिणी है; परन्तु मानव के राग-जगत् ने उसे सर्वत्र आलंबन तत्त्व तक ही सीमित रखा है। कवयित्री नारी की तुलना समुद्र से करती है, जो अपने में सुख-दु: ख को लहरों की भाँति समेटे पुरुष के अस्तित्व को कायम रखती है। पुरुष उसे जीव मात्र समझता है, फिर भी वह क्षमा दान दे उसे अपने आँचल में समेट लेती है।
कवयित्री की कविताओं की नारी आत्मसम्मान से भरपूर, दृढ़ निश्चयी, जीवन रण में परिस्थितियों से न हारने वाली है। सुं दर प्रतीक बिंबों से सजी कविताओं, क्षणिकाओं, हाइकु, ताँका और चोका से सजा काव्य-संग्रह " मंत्रमुग्धा' सच में ही पाठक को मंत्रमुग्ध कर देता है। सहजता, कोमलता के रेशमी एहसासों से गुँथा यह संग्रह पाठकों के मन पर निश्चय ही अपना प्रभाव छोड़ेगा, यह मेरा ध्रुव विश्वास है। -0-