प्रेम का ढाई आखर और पड़ोसन, काबुलीवाला / जयप्रकाश चौकसे

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प्रेम का ढाई आखर और पड़ोसन, काबुलीवाला
प्रकाशन तिथि :25 सितम्बर 2015


आजकल एपिक चैनल पर अनुराग बसु रवींद्रनाथ टैगोर की कहानियां प्रस्तुत कर रहे हैं और बखूबी अपना काम कर रहे हैं। आश्चर्य यह है कि इन कहानियों में अभिनय करने वाले सक्षम कलाकार हमने दूसरी किसी सीरियल या फिल्म में नहीं देखे और यह तथ्य रेखांकित करता है कि हमारे देश में प्रतिभा की कमी नहीं है। रवींद्रनाथ टैगोर ने कला और संगीत क्षेत्र में इतना काम किया है कि सौ कलाकारों का कुल जमा कार्य इतना नहीं हो सकता। ये महान 'गुरु' कभी अपने जीवन में पारंपरिक पाठशाला में नहीं पढ़े। उनकी शिक्षा घर में ही संपन्न हुई परंतु उन्होंने शांति निकेतन नामक महान शिक्षा संस्थान को स्थापित किया जहां सत्यजीत राय जैसे महान फिल्मकार भी शिक्षित हुए और कुछ समय के लिए इंदिरा गांधी भी वहां रही हैं। बहरहाल, उनकी कथाओं को बिना किसी परिवर्तन के अनुराग बसु ने निहायत ही सिनेमाई ईमानदारी से प्रस्तुत किया है। यह कितना आश्चर्यजनक है कि एक सदी पूर्व रचे टैगोर के नारी पात्र आज की आधुनिकाओं से अधिक साहसी रहे हैं।

उनकी एक कथा का मूल नाम नहीं मालूम परंतु उसे 'ढाई आखर प्रेम का' के नाम से प्रस्तुत किया गया। उस कथा का आधार एक युवा मित्रमंडल है, जो अपनी गोष्ठियों में प्राय: स्थापित विचारों का मखौल उड़ाते हैं और प्रेम के वे विशेषज्ञ अपनी व्यक्तिगत प्रेम-कथाओं में असफल हैं। बहरहाल, इस मित्र-मंडली का आपसी हास्य कमाल का है और अब लगता है कि किशोर कुमार, सुनील दत्त और सायरा अभिनीत 'पड़ोसन' की मित्र-मंडली की प्रेरणा टैगोर की इस कथा से संभवत: मिली होगी। याद कीजिए आरडी बर्मन का गीत 'मेरे सामने वाली खिड़की में एक चांद का टुकड़ा रहता है' और मित्र-मंडली पर इसका मजेदार फिल्मांकन। ज्ञातव्य है कि एक गीत किशोर कुमार और मन्ना डे ने गाया है तथा मन्ना डे, मेहमूद के लिए गाते हैं, जबकि किशोर कुमार, नायक सुनील दत्त के लिए गाते हैं। इसीलिए प्रतिद्वंद्विता के गीत में किशोर को विजयी बताना कथा की आवश्यकता थी, जिसे समझते हुए मन्ना डे ने इसे गाया परंतु उन्हें मलाल था कि शास्त्रीय संगीत में वर्षों रियाज करके पारंगत हुए मन्ना डे को शास्त्रीय संगीत से अनभिज्ञ किशोर के सामने हारना पड़ा। जीवन में कई स्थानों पर शास्त्रीय ज्ञान काम नहीं आता परंतु इससे उसके स्थायी मूल्य में अंतर नहीं आता! सच तो यह है कि मन्ना डे के साथ न्याय नहीं हुआ, क्योंकि उन दिनों यह लोकप्रिय धारणा थी कि रफी, दिलीप कुमार के लिए और मुकेश, राज कपूर के लिए पार्श्वगायन करें तो वह स्वाभाविक लगता है, जबकि मन्नाडे के राज कपूर के लिए गाए 'श्री 420' और 'चोरी चोरी' के गीत श्रेष्ठ हैं। इसी तरह मुकेश का फिल्म 'यहूदी' के लिए 'ये मेरा दीवानापन है या मोहब्बत का कसूर' गाना दिलीप कुमार पर फिल्मांकित किया गया और इसी तरह 'मधुमति' का 'ये सुहाना सफर और मौसम हसीं' भी मुकेश का गाया हुआ ही है।

अरसे पहले मुखर्जी की 'शागिर्द' फिल्म में जॉय मुखर्जी तथा आईएस जौहर ने अभिनय किया था। इस फिल्म की कथा का आधार भी यही था कि 'लव गुरु' जौहर युवा लोगों को प्रेम और विवाह से बचाने के विशेषज्ञ माने जाते हैं परंतु वे स्वयं प्रेम में पड़ते हैं तो कथा रोचक हो जाती है। 'शागिर्द' का यह आधार भी टैगोर की 'प्रेम का ढाई आखर' ही है। टैगोर की 'चारुलता' से प्रेरित सत्यजीत राय की इसी नाम की उनकी फिल्म, उनकी सबसे अधिक प्रिय फिल्म रही है। इसी तरह तपन सिन्हा ने बंगाली भाषा में 'काबुलीवाला' बनाई थी, जिसे हिंदुस्तानी में बलराज साहनी के साथ बनाया गया था। इस फिल्म में मन्ना डे का गाया गीत अमर है- 'ऐ मेरे प्यारे वतन, तुझ पर जां कुर्बां।' 'काबुलीवाला' में अफगानिस्तान का एक पिश्ता-बादाम बेचने वाला एक छोटी भारतीय बच्ची में अपनी बेटी की झलक देखता है और उस बच्ची को जी-जान से चाहता है। एक अपराध में फंसाए जाने पर वह लंबी सजा काटकर अपने वतन अफगानिस्तान जाने के पहले उस बच्ची से मिलने जाता है। उस दिन अब युवा हुई बच्ची का विवाह हो रहा है। पाकिस्तान की एक लेखिका ने रवींद्रनाथ टैगोर की 'काबुलीवाला' का अगला काल्पनिक भाग नाटक रूप में लिखा कि दशकों बाद उसी कन्या की पोती डॉक्टर है और कोलकाता मं सफल जीवन जी रही है। अफगानिस्तान में अमेरिका के तांडव और प्रतिक्रिया स्वरूप तालीबानी बर्बरता से अफगानिस्तान में बहुत लोग बीमार हैं और रेड क्रास संस्था डॉक्टरों से अपील जारी करती है तो वही डॉक्टर पोती अपना सफल कॅरिअर छोड़कर अफगानिस्तान इस क्षीण-सी उम्मीद के साथ जाती है कि संभव है उस 'काबुलीवाले' का कोई वंशज आज बीमार हो तो वह उसकी सेवा करके अपनी दादी को मिले प्यार का कुछ कर्ज चुका सके। ज्ञातव्य है कि पाकिस्तान में लिखे इसी नाटक को रमेश तलवार ने मुंबई में मंचित किया था। भावना संसार सारे युद्ध और बर्बरता के बावजूद कोमल प्रेम और वात्सल्य इत्यादि भावनाओं का अक्षुण्ण रखता है।