प्रेम का भोजन-1 / ओशो

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प्रवचनमाला

जैसा जीवन है…मैंने इसे तीन भागों में विभाजित किया है: नाश्ता, दोपहर का भोजन, दिन का अंतिम भोजन। बचपन है नाश्ते का समय । और ऐसा होता है यदि तुम्हें आज तुम्हारा नाश्ता नहीं दिया गया है, तुम दोपहर के खाने पर बहुत ज्यादा, सभी अनुपात के बाहर भूख महसूस करोगे।

और यदि दोपहर का भोजन भी छूट गया है, तब रात के भोजन के वक्त तुम लगभग पागल हो जाओगे। प्रेम भोजन है – इसीलिए मैने जीवन को तीन भागों में विभाजित किया है: नाश्ता, दोपहर का भोजन, दिन का अंतिम भोजन।

प्रेम भोजन है: आत्मा का भोजन। जब कोई बच्चा पहली बार अपनी मां के स्तन को चूसता है, वह दो चीजें पा रहा, केवल दूध नहीं। दूध उसके शरीर में जा रहा है और प्रेम उसकी आत्मा में जा रहा है। प्रेम अदृश्य है, जैसे कि आत्मा अदृश्य है; दूध दिखता है जैसे कि शरीर दिखता है। यदि तुम्हारे पास देखने के लिए आखें हैं, तो तुम दोनों चीजों को एक साथ मां के स्तन से बच्चे के अंतरतम में जाता देख सकते हो। दूध सिर्फ प्रेम का दिखने वाला भाग है; प्रेम दूध का अदृश्य भाग है – ममता, प्रेम, करुणा, आशीर्वाद।

यदि बच्चे से उसका नाश्ता छूट गया है, तब जब वह जवान होगा उसे प्रेम की बहुत ज्यादा जरुरत होगी…और वह मुसीबत पैदा करती है। तब वह प्रेम के लिए बहुत अधीर होगा…वह मुसीबत पैदा करता है। तब वह प्रेम के लिए बहुत जल्दी में होगा…जो कि मुश्किल पैदा करती है क्योंकि प्रेम बहुत धीरे-धीरे बढ़ता है, यह धैर्य चाहता है। और जितने ज्यादा आप जल्दी में हैं, ज्यादा ही संभावना है कि तुम खो दोगे।

क्या तुमने यह खुद में और दूसरों में देखा है? जिन्हें प्रेम की बहुत ज्यादा जरुरत होती है वे हमेशा परेशान होते हैं, क्योंकि वे हमेशा महसूस करते हैं कि कोई उनकी जरुरतें पूरी नहीं कर रहा। वास्तव में, कोई दोबारा उनकी मां बनने नहीं जा रहा है। मां–बच्चे के रिश्ते में, बच्चे से कोई उम्मीद नहीं की जाती थी। एक बच्चा क्या कर सकता है? वह असहाय है। वह कुछ भी वापस नहीं कर सकता। ज्यादा से ज्यादा वह मुस्कुरा सकता है, यही सब कुछ है, या अपनी आंखों से देखता है कि मां कहां जा रही है, यही सब कुछ है।

छोटी, खूबसूरत भावभंगिमाएं लेकिन इससे ज्यादा वह क्या कर सकता है। मां को देना है, बच्चे को लेना है।

यदि नाश्ते के समय तुमने यह खो दिया है, तब तुम एक ऐसी स्त्री को ढूंढ़ रहे होंगे जोकि तुम्हारी मां बन सके। अब, एक स्त्री प्रेमी ढूंढ़ रही है, ना कि पुत्र; वहां परेशानी होनी ही है। शायद किसी मौके से, या दुर्घटना से, तुम किसी ऐसी स्त्री को मिल सकते हो जो पुत्र ढूंढ़ रही है। तब बात बन जाएगी; तब दो बीमारियां एक दूसरे मे मिल जाएंगी।


(सौजन्‍य से: ओशो न्‍यूज लेटर)