प्रेम का वेताल / एक्वेरियम / ममता व्यास
प्रेम भी एक भ्रम ही है। कब आये, कब जाये, कब आपकी पीठ पर उसके होने का अहसास हो और अगले ही पल आपकी पीठ खाली। हम जीवनभर प्रेम को नए-नए नामों से पुकारते रहते हैं, वह कहीं चला ना जाये इस लिए उसे रिश्तों-बन्धनों में बांधने की कोशिश करते हैं। रिवाजों की जंजीरों में बांध कर चैन की नींद सोते हैं।
हाँ, अब सब ठीक है। अब कहीं नहीं जा सकता ये। फूल तोड़ कर डाली से उसे गुलदानों में सजा कर आंखों के सामने रख देते हैं और एक रात अनजानी-अनदेखी आवाजों की पुकार पर उन फूलों से निकल कर प्रेम की खुशबू फिजाओं में बिखर जाती है और प्रेम कहता है मुझे कौन बांध सका है भला। ये फूल जिन्दगीभर इन गुलदानों की शोभा बढ़ाएंगे लेकिन मैं?
कभी-कभी प्रेम वेताल की तरह आपसे प्रश्न पूछता है, जबकि वह जानता है कि उन सवालों के जवाब कभी बने ही नहीं। जैसे-प्रेम आप से पूछता है, वह एक ही क्यों पूरी दनिया में? कब से प्रेम है उससे? कैसे हुआ? और सबसे दिलचस्प सवाल कि कितना प्रेम है? अब विक्रम की सौ पुश्तें भी ये नहीं बता सकतीं कि कितना प्रेम है। अगला प्रश्न कब तक रहेगा मुझसे प्रेम? और इससे भी कठिन सवाल साबित कीजिये कि प्रेम है।
आप, जवाब नहीं देंगे तो आपको वह रोज तोड़ेगा, काटेगा, छलनी कर देगा।
क्यों पूछे जायें सवाल। प्रेम हुआ नहीं कि वजह तलाशने लगे, संदेह करने लगे। क्यों पूछना? जिस दिन सवाल पूछेंगे वह जड़ हो जायेगा। फूल से कहोगे इतने सुन्दर क्यों हो, इतनी खुशबू कहाँ से लाये, वह उसी क्षण मर जायेगा। सवाल मत करना, किसी किताब में मत खोजना, कहीं मत भटकना, कोई जवाब मत देना, वेताल को। वह जानता है जिसने जवाब दे दिया उसने प्रेम अनुभव ही नहीं किया। प्रेम जिसने किया उसके पास कोई उत्तर नहीं होता। कभी नहीं होता।
विक्रम अगर तुम प्रेम के वेताल के सवालों से परेशान हो और अबकी वह तुमसे फिर कोई प्रश्न करे तो उसे कहना वेताल मेरे सर को फोड़ दो और मेरे मन को तोड़ कर देखो मेरी देह के टुकड़े-टुकड़े कर दो और देखो मुझे सिर्फ़ तुमसे ही प्रेम है, बस तुमसे ही। सवाल वही करते हैं जिनके जीवन में प्रेम नहीं। प्रेम है तो कोई सवाल ही नहीं। कोई नहीं, कोई भी नहीं।