प्रेम की बारहखड़ी : 'का' और 'की' / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :29 मार्च 2016
फिल्मकार आर. बाल्की की पत्नी गौरी शिंदे भी फिल्मकार हैं और उन्होंने श्रीदेवी अभिनीत 'इंग्लिश विंग्लिश' बनाई थी। इन दोनों के जीवन का आज़ाद नज़रिया इस बात से भी स्पष्ट होता है कि आर. बाल्की ने कभी यह नहीं चाहा कि उनकी पत्नी स्वयं को गौरी बाल्की कहें। प्राय: पति का सरनेम पत्नी के नाम के साथ लगाया जाता है। आर. बाल्की सर ने यह भी नहीं किया कि वे स्वयं को आर. शिंदे कहें या दोनों सरनेम का प्रयोग श्रीमतीजी करें अौर लिखें 'गौरी शिंदे बाल्की।' विवाह के लिए एकमात्र आवश्यकता प्रेम है और जो लोग विवाह में किसी व्यक्ति के जीवन पर अपना अधिकार जमाना चाहते हैं तो यह प्रेम नहीं है वरन् संपत्ति पर अधिकार का मामला बन जाता है, जिसके लिए स्टैंप लगाकर करारनामा होता है।
दाम्पत्य जीवन में शंका या अन्य किसी नकारात्मकता के लिए कोई स्थान नहीं है और हमारी अधिकांश सामाजिक बीमारियां प्रेमविहीन विवाह के गर्भ से जन्मती हंै। विवाह को ढोते-ढोते लोगों की उम्र गुजर जाती है। मन में नफरत लिए हमबिस्तर लोग मानसिक रूप से रुग्ण संतान ही पैदा कर सकते हैं। मानसिक रूप से बीमार होने का यह एकमात्र कारण नहीं है परंतु इसको कमतर आंकना गलत होगा। प्रेम के दो संबल हैं- विश्वास और सम्मान। दाम्पत्य जीवन प्राय: गुरिल्ला युद्ध में बदल जाता है और पति-पत्नी अवसर बनाकर एक-दूसरे पर आक्रमण करके अपनी-अपनी कमजोरियों के टीलों के पीछे छुप जाते हैं। यह आक्रमण प्राय: मानसिक स्तर पर होता है और शरीर द्वारा कम अभिव्यक्त होता है। इस तरह दाम्पत्य में प्रेम का स्थान हिंसा ले लेती है। इस युद्ध में खून से अधिक आंसू बहाए जाते हैं।
आज बरबस स्मरण आता है कि जब शशि कपूर और जेनीफर केंडल का प्रेम विवाह हुआ तब उन्होंने तय किया कि वैचारिक मतभेद से उनके बीच कभी झगड़ा भी हो तो वे एक-दूसरे की ओर पीठ करके नहीं सोएंगे वरन् चेहरे आमने-सामने होंगे ताकि स्पर्श और चुंबन के लिए गुंजाइश हो! प्राय: दाम्पत्य के द्वंद्व तीव्रतर शारीरिक मिलन में समाप्त होते हैं, क्योंकि प्रेम और हिंसा एक-दूसरे में अंतरंगता से समाए होते हैं। पानी की निर्माण प्रक्रिया से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग-अलग नहीं किया जा सकता और दाम्पत्य के द्वंद्व और प्रेम की पुन: स्थापना भी ऐसा ही तरल अनुभव होता है। प्राय: दाम्पत्य का रिश्ता उन दो पड़ोसी देशों की तरह होता है, जिनकी सरहदों को सुलगते रखा जाता है ताकि घर का तंदूर दहकता रहे।
बिच्छू के प्रेम आलिंगन का नतीजा नर बिच्छू की मृत्यु में होता है। याद आता है राम गोपाल वर्मा की फिल्म 'रंगीला' में नायक और नायिका एक-दूसरे के गिर्द बिच्छुओं की तरह नृत्य करते हैं. बिच्छुओं की प्रेम प्रक्रिया में प्राय: नर बिच्छू ही मारा जाता है, क्योंकि वह कमतर होता है। स्त्री-पुरुष समानता का आग्रह मात्र अंतिम बहाना है, यह स्वीकार करने का कि प्रकृति ने स्त्री को अधिक शक्ति दी है। इस इनकार का इतिहास मनुष्य जीवन की तरह पुरातन है। बहरहाल, आर. बाल्की सर की करीना और अर्जुन अभिनीत 'का' और 'की' अत्यंत मनोरंजक फिल्म साबित हो सकती है, क्योंकि आर. बाल्की सर के सिनेमा में हास्य की चाशनी में लपेटकर ही कुनैन दी जाती है, जिसका यह अर्थ नहीं कि प्रेम मलेरिया है परंतु दोनों में ही शरीर उत्तेजना से कंपन करने लगता है। अभिनय के मामले में तो करीना कपूर कमोबेश 'स्वयंसिद्धा' है परंतु अर्जुन के भीतर छुपी अभिनय संभावना को आर. बाल्की ही टटोल सकते हैं, क्योंकि 'गुंडे' से कॅरिअर प्रारंभ करने वाले का प्रेम की पटरी पर लौटना आसान नहीं होता। आज के हिंसामय फिल्मों के दौर में यह अपेक्षा करना ही गलत है कि कोई नवोदित प्रेम कहानी से कॅरिअर का श्रीगणेश करेगा। मुख्य सितारा सर आर. बाल्की हैं, जो विज्ञापन फिल्मों से कथा फिल्मों में आए हैं। विज्ञापन फिल्मों में कम समय में अधिक बात व्यक्त करनी होती है और ये बिहारी के दोहों की तरह आकार में लघु होते हुए भी बड़ी गहरी मार करते हैं।