प्रेम नायक फैशन की नई पेशकश / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 18 अप्रैल 2014
करण जौहर और साजिद नाडियादवाला के सहयोग से बनी 'टू स्टेट्स' के निर्देशक युवा अभिषेक वरमन है जिनके पिता सातवें व आठवें दशक के अत्यंत सफल कला निर्देशक थे। प्राय: कला निर्देशक को सेट बनाने के लिए आवश्यक लकड़ी, लोहा, रंग इत्यादि के सप्लायर तीस प्रतिशत कमीशन देते हैं परंतु आर. वरमन कमीशन के बदले निर्माता का बिल कम करा देते थे और उनकी इस ईमानदारी के कारण उन्हें बहुत काम मिलता था। उनका सीधा गणित था कि कमीशन की रिश्वत को ठुकराने से अधिक फिल्में मिलती हैं और अंततोगत्वा ईमानदारी की राह पर चलने में ही ज्यादा लाभ मिलता है अर्थात अच्छे काम का बायप्रोडक्ट है धन। सारांश यह कि केजरीवाल के पहले ही अनेक क्षेत्रों में केजरीवाल जैसे लोग सक्रिय रहे हैं।
इस फिल्म के अर्जुन कपूर और आलिया भट्ट यथार्थ जीवन में एक दूसरे से प्रेम करते हैं और यही रसायन परदे पर उभर कर आता है। आलिया भट्ट तो इम्तियाज अली की 'हाइवे' की आत्मा थी और इस फिल्म में भी वही मुख्य आकर्षण है। अर्जुन कपूर ने अपने आपको 'इश्कजादे' और 'औरंगजेब' से मुक्त करके कुछ कमल हासन से प्रेरित अभिनय किया है और कुछ दृश्यों में ऐसा आभास होता है मानो कमल हासन ने 'डब' किया है। दरअसल फिल्म उद्योग में जन्में अर्जुन कपूर ने 'टू स्टेट्स' करने के पहले कमल हासन एवं रति अग्निहोत्री अभिनीत 'एक दूजे के लिए' का भी गहरा अध्ययन किया होगा। आठवें दशक में प्रदर्शित इस फिल्म में दक्षिण भारत का नायक है और उत्तर भारत की नायिका है परंतु मौजूदा फिल्म में पंजाबी मुंडा है और कन्या तमिलियन है जैसा हम 'चेन्नई एक्सप्रेस' में देख चुके हैं। भारत पाकिस्तान प्रेम कहानियों में भी नायक भारतीय है, नायिका पाकिस्तान की है जैसे हम 'गदर' और 'हिना' में देख चुके हैं तथा इसी थीम पर पाकिस्तान में बनने वाली फिल्मों में नायक पाकिस्तान का होता है और नायिका भारत की। फिल्में भी देशज पूर्वग्रह से मुक्त नहीं होती।
'एक दूजे के लिए' में आनंद बक्षी और लक्ष्मी-प्यारे ने अभूतपूर्व माधुर्य रचा था जो आज मुमकिन नहीं है। इस तरह की फिल्मों में पहले नायक दूसरे प्रांत के माता-पिता के सामने अपनी अच्छाई साबित करता है, फिर यही काम नायक के घर जाकर नायिका करती है तथा अंत में प्रादेशिकता से ग्रसित माता-पिता को एक जगह इकट्ठा किया जाता है जहां संस्कृति की भिन्नता के नाम पर कलह मचती है और अंत में दोनों के माता-पिता युवा प्रेमियों की भावना को पूरी तरह समझ लेते हैं। प्रेम संकीर्ण क्षेत्रीयता पर भारी पड़ता है लेकिन यही बात राजनीति के क्षेत्र में नहीं हो पाती क्योंकि सब प्रकार की सताए प्रेम के विरुद्ध है। तमाम खाप पंचायतें भी अपने कबीले में प्रेम नहीं पनपने देतीं। कबीला शब्द का प्रयोग ही इसलिए किया है कि ये जहालत वैसी ही है। बहरहाल प्रेम का विरोध केवल इसलिए किया जाता है कि प्रेम स्वतंत्र विचार प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है और तमाम संगठनों को इस स्वतंत्र विचार से डर लगता है क्योंकि अंधकार का साम्राज्य टिका ही है रेजिमेंटेशन के कारण। यह पुराना द्वन्द है कि कुछ संगठन चाहते हैं कि सभी लोग एक सा सोचें क्योंकि व्यक्तिगत विचार रेजिमेंटेशन के षड्यंत्र को तोड़ देता है।
इस फिल्म में नायक के पिता को शराबी और तानाशाह दिखाया गया है परंतु उसके नैराश्य का कारण नहीं बताया गया, इसलिए पिता-पुत्र द्वन्द नकली नजर आता है। युवा प्रेम-कथाएं पलायनवादी होती है और आजकल युवा वर्ग प्रेम-कथाएं देखना पसंद करता है क्योंकि बाजार ने उसके सोच को इस ढांचे में ढाल दिया है कि अगर आप प्रेम नहीं कर रहे है तो आप युवा नहीं है। प्रेम नामक फैशन की यह नई पेशकश है।