प्रेम बनाम सरताज सिंहासन / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 25 फरवरी 2014
आज माधुरी दीक्षित नेने और जूही चावला मेहता न केवल एक फिल्म में काम कर रही हैं, वरन् व्यक्तिगत स्तर पर एक दूसरे की करीबी दोस्त हो रही हैं। दोनों अपने शिखर दिनों में गहरी प्रतिद्वंद्वी रही हैं और यश चोपड़ा की फिल्म 'दिल तो पागल है' में जूही ने दूसरी नायिका की उस भूमिका के लिए मना कर दिया था जिसका निर्वाह करके करिश्मा कपूर को अभिनय का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। जूही यश चोपड़ा की 'डर' की नायिका रही थी और माधुरी से कमतर भूमिका वे नहीं करना चाहती थीं।
उम्र बढऩे के साथ अहंकार कम हो जाता है और स्वार्थ तथा प्राथमिकताएं भी बदल जाती है। माधुरी और जूही के बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते हैं, अत: युवा अवस्था में जिन बातों को लेकर कड़वाहट थी, वे अब नहीं रही और संभवत: उम्र की ऊंचाई पर जाते समय स्वभाव का बहुत सा अतिरिक्त लगेज पीछे छोडऩा पड़ता है। जवानी में यह लगेज (भार) वैनिटी बैग की तरह था जिसकी अब जरूरत नहीं है। लंबी यात्राओं पर कम बोझ लेकर चलना आसान होता है और जीवन यात्रा के आखिरी पड़ाव पर तो कुछ भी साथ नहीं आता।
जूही चावला को दक्षिण की दो फिल्मों के बाद आमिर अभिनीत 'कयामत से कयामत तक' ने सितारा हैसियत दी तो लगभग उसी काल खंड में 'तेजाब' और 'राम लखन' ने माधुरी को सितारा बनाया। माधुरी को सूरज की फिल्म ने शिखर सितारा बनाया, उधर जूही ने उभरते हुए शाहरुख खान के साथ सईद मिर्जा की फिल्में कीं। माधुरी अनेक वर्ष सरताज सितारा रहीं तो जूही चावला ने भी अपना स्थान दो नंबर पर बनाए रखा। आज उन दोनों को विगत प्रतिद्वंद्वता के दिनों का अपना व्यवहार और सीमित दृष्टिकोण बचकाना लगता है और उनके पास अपने लड़कपन पर आज हंसने का माद्दा भी है। आज दीपिका पादुकोण सरताज सितारा है तो उनकी गर्दन पर सबसे नजदीकी प्रतिद्वन्दी कटरीना कैफ की गरम सांसें भी वह महसूस करती हैं और मजे की बात यह है कि रनवीर कपूर के जीवन में जो स्थान दीपिका का था, अब वह कटरीना कैफ के पास है तथा कटरीना कैफ का सरताज पद दीपिका को प्राप्त है। अगर दोनों से पूछा जाए कि उन्हें सरताज सिंहासन और प्रेम के स्थान में से एक चुनना हो तो उनकी प्राथमिकता क्या होगी? आज बाजार द्वारा स्थापित मानदंड व मूल्य में संभवत: दोनों ही सरताज सिंहासन के लिए लालायित होंगी। जीवन में प्राथमिकता का यह परिवर्तन केवल फिल्म तक सीमित नहीं है, हर क्षेत्र में यही हो रहा है। आज कोई भी नेता महात्मा गांधी की तरह सारे मोह नहीं छोड़ सकता, सबको सत्ता का सिंहासन चाहिए। आज कोई भीष्म पितामह नहीं है जो केवल उस सिंहासन की रक्षा का उतरदायित्व ले जिस पर वह सहज ही आसीन हो सकता था परंतु उसने पिता के हित में उसका त्याग किया।
वेदव्यास ने यह कही नहीं लिखा है कि अपने पुत्रों और वंश को ही सिंहासन दिलाने की जिद के बारे में अपने टूटते परिवार की पीड़ा ने सत्यवती को कैसा पश्चाताप दिया होगा? दरअसल जीवन में हर दौर में आपकी प्राथमिकता बदलती है, एक दौर में चांद को पाए बिना दूध नहीं पीने वाले जिद्दी बच्चे को चतुर मां पानी के थाल में चांद की छवि दिखाकर दूध पिलाती है तो उसी बच्चे को जवानी के निष्फल प्रेम के समय चांद से घृणा हो जाती है और चांदनी आग लगाती है। जीवन की सारी इच्छाएं पानी के थाल में चांद की छवि की तरह रह जाती है। शैलेन्द्र का 'चोरी चोरी' के लिए लिखा अंतरा 'इठलाता हुआ नीलम सा गगन, कलियों पर बेहोशी सी नमी बेचैन है दिल, जीवन में न जाने क्या है कमी' एक सतत कमी हमेशा बनी रहती है जिसका कारण स्वयं को नहीं पहचान पाना है।