प्रेम या वासना? / अलका सैनी
अवंतिका को लेडी डाक्टर ने उसकी माँ की रिपोर्ट दिखाते हुए कहा, “अवंतिका, तुम्हारी माँ के पेट में रसोली है जिसकी वजह से ही उनके पेट में दर्द रहता है। जल्द ही यदि इनका आपरेशन न किया गया तो यह कैंसर का रूप धारण कर सकता है“
डाक्टर की बातें सुनकर अवंतिका एक बार तो बहुत घबरा गई पर फिर उसने खुद को संभालते हुए डाक्टर से पूछा “डाक्टर साहिबा, ये रसोली किस वजह से बन गई है और आपरेशन के लिए कब का समय ठीक रहेगा। “
लेडी डाक्टर ने अवंतिका की बात के जवाब में कहा, “देखो रसोली होना भारतीय महिलाओं में काफ़ी आम है। वैसे तो इसमें कोई घबराने की बात नहीं होती पर समय से इसका इलाज करवाना जरुरी होता है। मासिक धर्म के दौरान गर्भाशय में एकत्रित खून कई बार पूरी तरह से बाहर नहीं आ पाता और अन्दर ही इकट्ठा होता रहता है और रसोली का रूप धारण कर लेता है। यह सब अंदरूनी कमजोरी की वजह से होता है। रसोली जब बड़ी होती जाती है तो इसे आपरेशन से बाहर निकालना जरुरी हो जाता है। भारतीय औरते खुद तो अपने स्वास्थ्य के प्रति बहुत लापरवाह रहती ही है और औरत के स्वास्थ्य को लेकर आदमी भी कई बातों से अनभिज्ञ रहते है। औरत एक माँ है इसलिए दोनों पति-पत्नी की बराबर की जिम्मेवारी होनी चाहिए तांकि भावी पीड़ी स्वस्थ रह सके। आपरेशन के लिए तुम आज शाम को अपनी माँ को दाखिल करवा दो और आपरेशन हम सुबह सात बजे करेंगे। बाकी सारी जानकारी तुम्हे काउंटर से मिल जाएगी।”
अवंतिका घर में बड़ी थी और कोई भाई न होने के कारण पिता जी के साथ हर छोटे-मोटे बाहर के कामो में हाथ बँटाती आई थी। जब फोन पर अवंतिका की बहिन अंकिता ने माँ की तकलीफ के बारे में बताया तो उससे रहा नहीं गया और अगली ही सुबह अपनी पांच वर्ष की बेटी को अपने पति प्रभाकर के पास छोड़कर मायके चली आई थी। प्रभाकर भी बहुत समझदार इंसान था और उसने अवंतिका के मन की हालत समझते हुए कहा था, “वहाँ तुम अपनी माँ को संभालोगी या फिर मेघा को इसलिए अच्छा होगा अगर इसे यहाँ मेरे पास छोड़ जाओ और जरुरत समझोगी तो मुझे फोन कर देना मै भी वहाँ आ जाऊँगा “
प्रभाकर की बातें सुनकर अवंतिका को बहुत तसल्ली मिली थी।
अवंतिका ने प्राइवेट नर्सिंग होम में अपनी माँ को आपरेशन के लिए दाखिल करवाने के लिए सारी औपचारिकताएँ पूरी की और अपनी बहिन अंकिता को वहाँ छोड़ कर जरुरी काम निबटाने के लिए बाजार चली गई।उसकी माँ ने उसे रोकते हुए कहा भी था, “अवंतिका, तुम अकेली क्या कुछ करती रहोगी, अंकिता को भी तो बाहर के कामो की जिम्मेवारी उठाने दिया करो "
अवंतिका कहने लगी, “नहीं माँ, कोई बात नहीं मै कर लूंगी और वैसे भी तुम्हारे पास बैठने को भी तो कोई होना चाहिए। और मै बाजार से सामान लेकर घर से होते हुए रात तक आ जाउंगी “
“नहीं अवंतिका। अब तुम रात को मत आना। घर पर ही पिताजी के पास रुक जाना। अंकिता तो है ही मेरे पास सुबह आ जाना। तुम भी थक गई होगी जब से आई हो भाग दौड़ में लगी हुई हो इसलिए घर पर आराम करना “
अवंतिका अपनी माँ को कहने लगी, “नहीं माँ, रात को मै ही तुम्हारे पास रुकूँगी, अगर किसी चीज की अचानक जरुरत पड़ी तो तुम्हे दिक्कत हो जाएगी और अंकिता घर पर पिताजी के पास चली जाएगी।”
यह कहते हुए अवंतिका बाहर निकल गई।
अवंतिका जब घर का सामान खरीद रही थी तो अचानक उसकी निगाह नरेन् पर पड़ी तो वह कुछ घबरा सी गई। पर उसे वह अनदेखा कर सामान खरीदने में व्यस्त रही। जैसे ही वह बिल देकर दुकान से बाहर निकल रही थी तो नरेन् पहले से ही बाहर खड़ा था। ऐसा लग रहा था जैसे वह उसका ही इन्तजार कर रहा था। वह ऊपर देखे बिना एक तरफ से तेजी से निकालने लगी तो नरेन् बिल्कुल उसके सामने आ गया। अवंतिका एक बार तो बिल्कुल झेंप सी गई कि क्या करे। वह सामने आ कर कहने लगा, “क्या बात अवंतिका बात नहीं करोगी मुझसे। कैसी हो और आजकल कहाँ पर हो “
अवंतिका उसकी किसी बात का उत्तर नहीं देना चाहती थी। नरेन् तो जैसे उसके पीछे ही पड़ गया मानो वो पहले से ही सोच कर आया था। वह बार-बार उससे आग्रह करने लगा। आखिर अवंतिका को अपना मुँह खोलना ही पड़ा।, ”नरेन्, प्लीज मुझे परेशान मत करो और मुझे तुमसे कोई भी बात नहीं करनी। खामख्वाह तमाशा मत करो, सब लोग देख रहे है “
“मुझे पता है अवंतिका कि तुम मुझसे नफरत करती हो और क्यों ना करो, पर इंसानियत के नाते ही क्या मुझे अपनी बात कहने का मौका भी नहीं दोगी। प्लीज अवंतिका मुझे एक मौका देदो वरना मै चैन से जी नहीं पाऊंगा “
अवंतिका अब थोड़ा नर्म पड़ गई थी, “नरेन्, मेरी माँ का कल आपरेशन है इसलिए मै काफी व्यस्त हूँ“
“अवंतिका, मै तुम्हारे सिर्फ दस मिनट लूँगा और तुम्हे कोई परेशानी नहीं होगी। मै भी तुम्हारे साथ तुम्हारी माँ से मिलने चलूँगा और तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ दूंगा “
पता नहीं फिर अवंतिका चाह कर भी नरेन् का कहा टाल नहीं सकी।
“चलो अवंतिका वहाँ पास में ही पार्क है, वहाँ चल कर बैठते है “
अवंतिका नरेन् से पहली बार उनकी कालोनी के एक प्रोग्राम में मिली थी। नरेन् वहाँ पर राजनैतिक तौर पर काफी सक्रिय था। वह उनकी कालोनी में होने वाले आजादी के दिवस के कार्यक्रम में बतौर मुख्य मेहमान शामिल होने आया था। अवंतिका शुरू से ही इस तरह के कार्यक्रमों में बढ-चढ़ कर हिस्सा लेती थी।बचपन से ही उसे नाचने का बहुत शौक था। छोटी-छोटी लड़कियों के प्रोग्राम तैयार करवाना और उन्हें सजाना-संवारना उसे बहुत पसंद था।
नरेन् उस क्षेत्र का जाना-माना नाम था। छोटी सी उम्र में ही उसने अपनी काबलियत के दम पर काफी सफलता हासिल कर ली थी। क्षेत्रीय चुनावों में तो हर बार उसकी जीत का परचम लहराता था। बड़े-बड़े नेताओं के साथ उसकी काफी घनिष्ठता थी।अवंतिका अपनी पढाई पूरी करने के बाद ही वहीँ पर ही एक बैंक की क्रैडिट कार्ड की शाखा में लग गई थी।
अवंतिका और नरेन् इस तरह के कई कार्यक्रमों में एक दूसरे को अक्सर मिलते रहते थे।नरेन् एक आकर्षक व्यक्तित्व वाला इंसान था। अवंतिका के मन में उसे देखकर एक अजीब सी कशिश पैदा होती थी। परन्तु घर की जिम्मेवारियों के चलते उसने अपने सामने भी अपनी भावनाओं को कभी उजागर होने का मौका नहीं दिया था। नरेन् के लिए उसके मन में जो भी भावना उठती वह उसे भीतर ही भीतर दबा देती। उधर नरेन् ने भी कभी औपचारिक बातों के अलावा अवंतिका से कोई और बात करने की कभी कोई कौशिश नहीं की थी। बेशक वे एक दूसरे से कभी ख़ास बात नहीं करते थे पर दोनों की नजरें एक दूसरे को ढूँढ़ते-ढूंढते हर बार आपस में जरुर टकरा जाती थी।
एक बार एक प्रोग्राम के बाद अवंतिका ने अपने बैकं के काम के सिलसिले में नरेन् से उसका फोन नंबर माँगा और कहने लगी कि वह आफ़िस से उसे फोन करेगी। मार्च का महीना लगभग आधा बीत चुका था। अवंतिका को अपना विदित टार्गेट पूरा करना था, इसलिए उसने सोचा कि नरेन् की तो काफी जान पहचान है तो क्यों ना उससे मदद ले ले।
अवंतिका नरेन् से फोन पर बात करते हुए काफी झेंप रही थी कि नरेन् पता नहीं उसके बारे में क्या सोचेगा, फिर भी उसने हिम्मत करके उसे फोन किया और अपने क्रेडिट कार्ड के टार्गेट के बारे में बताया तो नरेन् झट से आगे से बोला, “अवंतिका, मुझे तुम्हारे आफ़िस के पास ही कुछ देर में किसी जरुरी काम से आना है, तुम अपने आफ़िस का पूरा पता बता दो, मै समय निकाल कर तुमसे मिलने आता हूँ “
इस तरह नरेन् ने उसके काम में ना सिर्फ उसकी मदद की बल्कि जब भी समय मिलता वह उसके आफ़िस उससे मिलने पहुँच जाता। अवंतिका के मन में नरेन् के लिए ख़ास जगह बन गई थी। वह इतना रुतबे वाला होने के बावजूद भी बहुत ही साधारण तरीके से रहता था। कभी भी उसने और लोगों की तरह फ़ालतू या बेहूदा बात नहीं की थी।
एक बार अवंतिका ने जब कुछ पूछने के लिए नरेन् को फोन किया तो वह कहने लगा, “अवंतिका तुम्हारे आफ़िस में बहुत भीड़ रहती है और सब लोग अजीब तरीके से देखने लगते है इसलिए अगर तुम्हे ऐतराज ना हो तो आज कहीं बाहर बैठकर काफी पीतें हैं। तुम्हारे आफ़िस के पास ही एक महफ़िल रेस्टोरेंट है, क्यों ना वहाँ चल कर बैठे। अगर तुम ठीक समझो तभी “
अवंतिका उसका कहना ना टाल सकी और उसने हामी भर दी। जब अवंतिका वहाँ पहुँची तो देखा नरेन् पहले से ही उसका इन्तजार कर रहा था। दोनों जब बैठे तो बातों में उन्हें पता ही ना चला कि कब तीन घंटे बीत गए। अवंतिका को अपने आफ़िस में कुछ देर का काम था सो मजबूरन उसे वहाँ से ना चाहते हुए उठना पड़ा।
उस दिन के बाद तो जैसे दोनों अपने आप को रोक ना पाए और मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया। अगली बार तो नरेन् अपनी नई कार में अवंतिका को खुद उसके आफ़िस लेने के लिए पहुँच गया। अवंतिका ने नरेन् को खुद कभी कार चलाते हुए नहीं देखा था। उसके पास हर समय सरकारी गाडी और ड्राइवर रहते थे।
अवंतिका इससे पहले कभी किसी के साथ इस तरह गाडी में नहीं बैठी थी। नरेन् अवंतिका के गाडी में बैठते ही कहने लगा, “अवंतिका आज बहुत समय बाद सिर्फ तुम्हारी खातिर कार चलाई है और ड्राइवर को बहाना बना कर छोड़ कर आया हूँ “
दोनों कुछ दूरी पर ही एक पार्क में चल कर बैठ गए।। नरेन् ने अपना फोन वहाँ कार में ही छोड़ दिया क्योंकि वह अक्सर फोन पर बहुत व्यस्त रहता था। वे दोनों एक कोने में घने पेड़ों के नीचे हरी घास में चल कर बैठ गए। कुछ देर तो दोनों प्राकृतिक माहौल में अपने विचारों के साथ ताल मेल बिठाते हुए खामोश बैठे रहे। अवंतिका तो बहुत असहज महसूस कर रही थी। फिर नरेन् ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा, “अवंतिका क्या सोच रही हो। इतना घबरा क्यों रही हो। तुम मुझे पहले दिन से ही बहुत अच्छी लगती थी पर कभी कह ना सका कि ना जाने तुम क्या सोच बैठो। एक तो राजनीति के कारण मै काफी व्यस्त रहता हूँ चाह कर भी समय निकालना मुश्किल हो जाता है।”
“अवंतिका हरा रंग तुम पर कितना खिल रहा है। तुम वाकई कितनी खूबसूरत हो। तुम्हारे लम्बे घने बाल, सिर पैर तक तुम खूबसूरती की मूरत हो। मै जीवन भर तुम्हारा साथ निभाना चाहता हूँ "
अवंतिका नरेन् की बातें सुनकर मन ही मन सिमट रही थी और जैसे उसकी जुबान को ताला लग गया हो। वह शर्म से लाल हो रही थी और उसकी सांस इतनी तेज चल रही थी कि उसकी आवाज साफ़ सुनाई दे रही थी।
अचानक नरेन् ने अवंतिका का हाथ अपने हाथ में ले लिया तो उसकी सांस तेज चलते-चलते जैसे एक दम से थम गई हो। अभी वह संभल भी नहीं पाई थी कि नरेन् ने धीरे-धीरे उसके पास सरकते-सरकते उसके गालों को चूम लिया। अवंतिका को ऐसे लग रहा था कि वह जैसे एक नदी की तरह बहती जा रही है। फिर अचानक उसके दिमाग में हरकत सी हुई तो उसने खुद को संभाला और इस डर से कि कहीं वह खो न जाए, वह एकदम से उठ खड़ी हुई यह कहते हुए, “नरेन्, बस अब चलते हैं काफ़ी देर हो गई है, घर पर सब इन्तजार कर रहे होंगे “
नरेन् अवंतिका को घबराया हुआ देख कर उसे हौंसला देते हुए बोला, “अरे, डरो मत मै तुम्हे तुम्हारे घर तक छोड़ दूँगा “
उसके बाद कार में पूरे रास्ते अवंतिका नरेन् से नजरे न मिला पाई और उसकी किसी भी बात के जवाब में बस सर हिला देती। उसे लग रहा था कि जैसे उसका पूरा बदन अभी तक काँप रहा हो।
अवंतिका ने डर के मारे नरेन् को घर से दूर ही उतार देने को कहा और जैसे-तैसे वह अपने कांपते क़दमों को घसीटते-घसीटते अपने घर तक पहुंची। घर पर भी किसी से बात करने का उसका मन नहीं हो रहा था। अपनी माँ के पूछने पर अवंतिका कहने लगी, “कुछ नहीं माँ, सिर में दर्द है थोड़ी देर आराम कर लूँ फिर ठीक हो जाएगा“
यह कहकर वह अपने कमरे में जाते ही बिस्तर पर औंधे मुँह गिर पड़ी और रह-रहकर नरेन् के साथ बीते पल उसके मन पटल पर घूम रहे थे। जैसे ही वह उस क्षण के बारे में सोचती एक अजीब सी सिरहन उसके पूरे बदन में उठती थी।
इस तरह लाख कोशिशों के बावजूद भी वह खुद को नरेन् के प्यार की गिरफ्त में पढने से रोक न पाई। अब तो हर समय सोते-जागते, उठते-बैठते बस नरेन् का ख्याल उसके मन में घूमता रहता। नरेन् तो जैसे अब उसकी जिन्दगी बन गया था। वे दोनों अब कभी पार्क में कभी रेस्टोरेंट में मिलने लगे। हालंकि नरेन् काफ़ी व्यस्त रहता था पर फिर भी वह अवंतिका को मिलने को व्याकुल रहता। बेशक वह अवंतिका को ज्यादा समय के लिए नहीं मिल पाता था। अवंतिका हर समय नरेन् को मिलने को बेचैन रहती।
नरेन् की शहर में काफ़ी जान पहचान थी इस लिए नरेन् ने एक बार अवंतिका से कहा कि इस तरह खुले आम मिलना काफ़ी खतरे से भरा है कि कहीं कोई मुसीबत न खड़ी हो जाए। अवंतिका खुद भी तो हर समय डरती रहती थी कि कहीं उसे नरेन् से साथ कोई जान पहचान वाला न देख ले। फिर नरेन् ने एक दिन अवंतिका से कहा, “मेरे एक दोस्त का फ़्लैट खाली पड़ा है मै उसकी चाबी ले लेता हूँ वहां पर किसी का डर नहीं होगा। मै तुम्हे वहाँ का पता बता देता हूँ तुम सीधे वहाँ पहुँच जाना।"
अवंतिका इतने समय में इतनी दूर निकल आई थी कि उसे खुद से ज्यादा नरेन् पर भरोसा हो गया था, इसलिए वह बिना हिचकिचाए नरेन् को मिलने वहाँ पहुँच गई। फ़्लैट में जब दोनों एक दूसरे के एक दम बेहद करीब बिलकुल अकेले थे तो किस तरह अपनी भावनाओं पर काबू रख सकते थे और इस तरह अवंतिका अपना सब कुछ नरेन् के सपुर्द कर बैठी।
अवंतिका ने जिस बात की कभी कल्पना भी नहीं की थी उस दिन के बाद नरेन् अवंतिका से कतराने लगा। खुद फोन तो क्या उसने अवंतिका के किसी भी फोन या मेसेज का जवाब तक देना बंद कर दिया। नरेन् ने तो जैसे न बोलने की कसम ही खा ली थी। अवंतिका के किसी भी सवाल का वह जवाब न देता। अवंतिका तो जैसे पागल सी होने को हो गई। भोली-भाली अवंतिका की समझ में कुछ न आता कि ऐसी क्या वजह या मजबूरी हो गई कि नरेन् ने एक दम चुप्पी धारण कर ली।कम से कम वह कोई कारण तो उसे बताता तो वह खुद ही उसके रास्ते से हट जाती।दिन रात उसको यही बात अन्दर ही अन्दर खाती रहती। उसको मन ही मन खुद से भी नफरत होने लगी कि क्या नरेन् का मकसद सिर्फ उसके जिस्म को पाना ही था। क्या नरेन् पर विश्वास करने का उसे ये सिला मिला कि वह किस तरह उसे इस्तेमाल करके बेवकूफ बना कर फैंक कर चला गया।
अवंतिका एक दम से चुप-चाप रहने लगी। अब किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेना तो दूर की बात वह अब कहीं न जाती। बस घर से आफिस और सारा दिन मन ही मन घुटते रहना यही उसकी दिनचर्या बन कर रह गई थी। वह तो जैसे एक जिंदा लाश सी बन गई थी। इतना सब कुछ होने पर भी उसे नरेन् का इन्तजार रहता कि शायद वह उसके पास लौट आए। पूरा एक वर्ष लगा उसे नरेन् की यादों से खुद को बाहर निकालने में।
फिर प्रभाकर से उसकी शादी हो गई और उसने खुद को पूरी तरह अपनी घर गृहस्थी के हवाले कर दिया।प्रभाकर ने भी अवंतिका को कभी किसी तरह की कोई कमी महसूस न होने दी थी।अवंतिका अपने सब फर्ज पूरा करती पर किसी से भी न कोई उम्मीद करती न ही किसी से कोई शिकायत करती।
आज नरेन् फिर से इतने वर्षों बाद उसके सामने आकर खड़ा हो गया था। उसके मन मस्तिष्क पर नरेन् को देखकर पुरानी यादें फिर से उमड़ने लगी।
पार्क में एक तरफ वे दोनों एक बैंच पर जाकर बैठ गए। अवंतिका काफ़ी परेशान हो रही थी कि नरेन् जल्दी से जो कहना है वह कह डाले। कुछ देर जब नरेन् कुछ न बोला तो अवंतिका को ही आखिर बोलना पड़ा, “देखो नरेन् मेरे पास न तो ज्यादा वक्त है न ही मेरी कोई दिलचस्पी है तुम्हारी बातें सुनने में, क्योंकि बीती बातें उखेड़ने से अब क्या लाभ? "
नरेन् मन ही मन काफ़ी बेचैन सा लग रहा था पर जैसे उसने मन में ठान रखा हो कि अपनी बात कहकर ही मानेगा, नरेन् ने कहना शुरू किया, “अवंतिका मुझे पता है तुम मुझसे नफरत करती हो और क्यों न करो मै तुम्हारा गुनाहगार हूँ। मै तो तुम्हारी माफ़ी का भी हकदार नहीं हूँ। मैंने जो तुम्हारे साथ किया था तुमने तो कभी मुड़कर मुझसे कोई शिकायत नहीं की थी पर मुझे मेरे किए की सजा भगवान् ने दे दी है, “नरेन् अच्छा होगा तुम ज्यादा पहेलियाँ मत बुझाओ क्योंकि मुझे मेरी माँ के पास जल्द पहुँचना है, अच्छा होगा तुम जल्दी अपनी बात समाप्त कर दो “
“अवंतिका तुम्हे क्या पता मै कितने समय से तुम्हारा इन्तजार कर रहा था। मेरे दिल पर कब से एक बोझ था, हर समय, हर जगह मेरी नजरें तुम्हे तलाशती रहती थी। हर रोज सुबह उठकर भगवान् से यही प्रार्थना करता था कि काश तुमसे मुलाक़ात हो जाए और आज भगवान् ने मेरी सुनली “
अवंतिका ने उसे बीच में टोकते हुए कहा, “नरेन् अब इन बातों का क्या फायदा मै बहुत पहले सब बातों को भूल चुकी हूँ और साथ में बीता हुआ समय तो दोबारा वापिस आने से रहा “
“नहीं अवंतिका, अगर आज मै अपना मन हल्का न कर पाया तो तमाम उम्र सकून से जी नहीं पाऊंगा। प्लीस, मुझे रोको मत, मै उस समय अपने पद और रुतबे के नशे में अँधा हो गया था। मुझे अपनी कुर्सी से बहुत प्यार था और उसी कुर्सी के लालच ने मुझे सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया, हमारे क्षेत्र के मंत्री जी मेरे काफ़ी करीब थे उन्होंने एक दिन अपनी बेटी के लिए मेरा हाथ मांग लिया और यह सोचकर मै इन्कार न कर सका कि इतने बड़े नेता का दामाद बनना तो बहुत सौभाग्य की बात है।। मेरी पत्नी मंजुला विदेश में ही बचपन से पली-बढ़ी थी इसलिए उसके रंग-ढंग भी पूरे विदेशी ही थे।
मंत्री जी को मैंने दामाद का फर्ज निभाते हुए चुनावों में भारी विजय दिलवाई थी।उनके लिए मैंने रात-दिन एक कर दिया था। मंजुला के रंग-ढंग तो बस मेरी बर्दाश्त के बाहर होने लगे पर मेरी फिर भी क्या मजाल थी कि मंत्री की बेटी से कुछ कहता। वह ज्यादा समय तो विदेश में ही रहती और पूरी तरह अपनी मन मानी करती। जब इस बारे में मैंने अपने ससुर से बात करनी चाही तो उन्होंने जैसा कि उम्मीद थी अपनी बेटी की ही हिमायत की। मंजुला को मेरा कोई भी बात कहना बिलकुल बर्दाश्त नहीं था। बाप-बेटी दोनों मुझे अपने इशारों पर नचाना चाहते थे। जब मैंने जरा सा विरोध किया तो मंत्री ने दूध में से मक्खी की तरह मुझे बाहर निकाल फैंका।जो इज्जत, पैसा, शोहरत मैंने अपने बलबूते पर कमाए थे वो भी ख़ाक हो गए। बस उस मंत्री ने मुझे सड़क पर लाकर बैठा दिया, मुझे उस समय तुम्हारी याद आई कि जो मैंने तुम्हारे साथ किया भगवान् ने मुझे उसका फल दे दिया "
"अवंतिका, मुझे अपने किए पर बहुत पछतावा है इसलिए मै पश्चाताप करना चाहता हूँ “
नरेन् की बातें सुनकर अवंतिका भी भावुक हो गई और कहने लगी, “नरेन् मैंने तुम्हे सच्चे दिल से प्यार किया था और तुम्हे भुलाने में मुझे बहुत वक्त लगा था पर आज मेरी अलग दुनिया है। मेरी एक बेटी है और बहुत प्यार करने वाले पति है। रही बात माफ़ी की तो तुम्हारा प्रायश्चित ही तुम्हारी माफ़ी है।"
नरेन् के बस आंसू नहीं निकले पर वह बहुत ज्यादा भावुक हो रहा था यह कहते-कहते "अवंतिका, तुम्हे खो देना मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी इसलिए मै आजकल तुम्हारे वाले बैंक में ही नौकरी करने लगा हूँ। वहाँ पर काम करने से मुझे अजीब सा सकून मिलता है। अब तो तुम्हारे साथ बिताए वो हसीन पल ही मेरे जीने का सहारा है और तुम्हारी यादें मेरे साथ मरते दम तक रहेगी "
इतने में अवंतिका उठ खड़ी हुई ये कहते हुए, “अच्छा नरेन् मेरे हिसाब से अब मुझे चलना चाहिए, वक्त काफ़ी बीत चुका है "