प्रेम : अदावत और अदालत / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :19 मार्च 2016
खबर है कि ऋतिक रोशन और कंगना रनोट ने एक-दूसरे को कानूनी नोटिस दिए हैं। यह फिल्म उद्योग में पहली बार नहीं हो रहा है। दशकों पूर्व बलदेवराज चोपड़ा की 'नया दौर' में अभिनय के लिए अनुबंधित होने के बावजूद मधुबाला ने काम करने से इनकार कर दिया था, तो चोपड़ा ने अदालत में मुकदमा दायर किया और दिलीप कुमार ने मधुबाला के खिलाफ अदालत में गवाही दी थी। ज्ञातव्य है कि मधुबाला से दिलीप कुमार बेइंतहा प्यार करते थे और आग दोनों तरफ बराबर लगी थी। उस दौर में इस प्रेम प्रकरण के टूटने का दोष मधुबाला के पिता के सिर मढ़ दिया गया परंतु हकीकत यह है कि अभिनेता प्रेमनाथ भी मधुबाला से प्यार करते थे और जब उन्हें निराशा हाथ लगी तो उन्होंने दिलीप कुमार के कान भरे कि मधुबाला एक ही समय में दोनों से रिश्ता बनाए हुए हैं, जबकि यह सरासर झूठ था परंतु अनेक महान लोगों की तरह अभिनय सम्राट दिलीप कुमार भी कान के कच्चे थे। जाने ये क्यों होता है कि लोकप्रिय और शक्तिशाली लोग कान और लंगोट के कच्चे होते हैं। संभवत: सफलता से जन्मी शक्ति पहले मनुष्य की जांघों में प्रवेश करती है और फिर दिमाग में जाती है। सफल व्यक्ति कितनी भी मजबूत किलेबंदी करे, किसी चोर दरवाजे से अहंकार उनके अवचेतन में पैठ ही जाता है।
मधुबाला और दिलीप कुमार को इस बात का श्रेय दिया जाता है कि व्यक्तिगत जीवन में कड़वाहट और अबोला होने के बावजूद दोनों ने 'मुगल-ए-आज़म' के प्रेम दृश्य अनुभूति की तीव्रता से अभिनीत किए। क्या इस तरह के दृश्यों को अभिनीत करते समय, मन के किसी कोने में बहुत कुछ खो देने का विचार नहीं आता या पुराना इश्क नई हिलोरे नहीं लेता? फिल्म की शूटिंग लगभग सौ यूनिट सदस्यों के बीच होती है और वे सांस रोककर फिल्मांकन का अपना काम करते हैं। अत: इतनी भीड़ की मौजूदगी में प्रेम दृश्य अभिनीत किया जाता है और गैर की मौजूदगी ही कलाकार को संयत बने रहने के लिए विवश करता है। साहिर ने एक फिल्म गीत में लिखा है, 'तुम मुझे न चाहो तो कोई बात नहीं, तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी।' यह गीत राज कपूर अभिनीत 'दिल ही तो है' का है और ऋतिक के दादा रोशन साहब की धुन है। बाद के समय में मधुबाला ने अपने बंगले की तल मंजिल में छोटा-सा सिनेमाघर बनाया था और अपनी तथा दिलीप अभिनीत फिल्मों को वे निरंतर देखती थीं। उन्होंने अनेक फिल्मों के दृश्य काटकर कुछ ही रीलों में जोड़ दिए थे और यादों की इस जुगाली की गिज़ा पर ही वे जानलेवा बीमारी के बावजूद अपने वजू़द को कायम रख सकीं। गौरतलब है कि जानवर हकाले जाने के डर से उपलब्ध भोजन डकार लेते हैं और फिर सुरक्षित जगह पर बैठकर उस भोजन को मुंह में खींचकर उसे मजे से चबाते हैं। इस प्रक्रिया को जुगाली कहते हैं। बुढ़ापे में यादों की जुगाली से ही जीवन ऊर्जा प्राप्त होती है। मनुष्य खाए हुए अन्न की जुगाली नहीं कर सकता, परंतु यादों की जुगाली उसका संबल बन जाती है।
इस तथ्य का यह भी पहलू है कि प्राय: मनुष्य भविष्य की आशंका और भूतकाल की यादों के बीच उलझा रहता है और वर्तमान उसके हाथ से फिसल जाता है। हम वर्तमान के वेग को यादों और भविष्य के निर्मम पाटों में पिसने देते हैं। वर्तमान को इतनी सार्थकता से जिएं कि भविष्य में यादों की जुगाली की सामग्री जुट जाए। ऋतिक रोशन और कंगना प्रतिभाशाली कलाकार हैं परंतु उनके पास अपेक्षाकृत कम फिल्में हैं। ऋतिक रोशन का शरीर सौष्ठव मौजूदा सब कलाकारों से बेहतर है परंतु उसे अपनी प्रतिभा के अनुरूप सफलता नहीं मिली है, जिसका कारण कुछ एक्सीडेंट और बीमारियां रही हैं। कंगना का स्वभाव भी अजीब-सा है, जिस कारण उसके पास भी फिल्मों का अभाव है। इन दोनों पर एक समान अभियोग यह है कि इन्होंने अपनी प्रतिभा का यथेष्ठ उपयोग नहीं किया। ऋतिक की आशुतोष गोवारीकर की फिल्म 'मोहनजोदड़ो' अभी तक अधूरी है। एक पीरियड फिल्म को बनाने में बहुत साधन लगते हैं। इसी तरह कंगना और आनंद राय में संभवत: कोई मनमुटाव है और उसके साथ भी कंगना की कोई फिल्म नही है। एक सफल और लंबी पारी के लिए प्रतिभा और परिश्रम के साथ ही अनुशासन लगता है, जिसके अभाव में कॅरिअर सिमट जाता है। किसी नामी निर्माण संस्था ने अभी तक कंगना रनोट के साथ फिल्म नहीं की है। इसी तरह ऋतिक ने अपने पिता राकेश रोशन के निर्देशन में लंबे समय से कोई फिल्म नहीं की है। इसी तरह भारत में भी प्तिभा का अकाल नहीं है, व्यवस्था का चक्रव्यूह प्रतिभा का दोहन नहीं करने देता।