प्रेरक प्रसंग-13 / बुद्ध

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जिसकी जैसी भावना
प्रेरक प्रसंग

एक बार बुद्ध कहीं प्रवचन दे रहे थे | अपनी देशना ख़त्म करते हुए उन्होंने आखिर में कहा, जागो, समय हाथ से निकला जा रहा है| सभा विसर्जित होने के बाद उन्होंने अपने प्रिय शिष्य आनंद से कहा, चलो थोड़ी दूर घूम कर आते हैं| आनंद बुद्ध के साथ चल दिए| अभी वे विहार के मुख्य द्वार तक ही पहुंचे थे कि एक किनारे रुक कर खड़े हो गये| प्रवचन सुनने ए लोग एक एक कर बाहर निकल रहे थे, इसलिए भीड़ सी हो गई थी| अचानक उसमे से निकल कर एक स्त्री गौतम बुद्ध से मिलने आयी| उसने कहा तथागत मै नर्तकी हूँ| आज नगर के श्रेष्ठी के घर मेरे नृत्य का कार्यक्रम पहले से तय था, लेकिन मै उसके बारे में भूल चुकी थी| आपने कहा, समय निकला जा रहा है तो मुझे तुरंत इस बात की याद आई | धन्यवाद तथागत !


उसके बाद एक डकैत बुद्ध की ओर आया| उसने कहा, तथागत मै आपसे कोई बात छिपाऊंगा नहीं| मै भूल गया था कि आज मुझे एक जगह डाका डालने जाना था कि आज उपदेश सुनते ही मुझे अपनी योजना याद आ गई| बहुत बहुत धन्यवाद!


उसके जाने के बाद धीरे धीरे चलता हुआ एक बूढ़ा व्यक्ति बुद्ध के पास आया| वृद्ध ने कहा, तथागत! जिन्दगी भर दुनियावी चीजों के पीछे भागता रहा| अब मौत का सामना करने का दिन नजदीक अत जा रहा है, तब मुझे लगता है कि सारी जिन्दगी यूँ ही बेकार हो गई| आपकी बातों से आज मेरी ऑंखें खुल गईं| आज से मै अपने सरे दुनियावी मोह छोड़कर निर्वाण के लिए कोशिश करना चाहता हूँ| जब सब लोग चले गये तो बुद्ध ने कहा, देखो आनंद! प्रवचन मैंने एक ही दिया, लेकिन उसका हार किसी ने अलग अलग मतलब निकाला| जिसकी जितनी झोली होती है, उतना ही दान वह समेत पाता है| निर्वाण प्राप्ति के लिए भी मन की झोली को उसके लायक होना होता है | इसके लिए मन का शुद्ध होना बहुत जरुरी है|