प्रेरक प्रसंग-1 / दीनबंधु एंड्रयूज
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दीनबंधु एंड्रयूज
रविवार का दिन था। सवेरे-सवेरे एक ईसाई सज्जन दीनबंधु एंड्रयूज से मिलने आए। बातें होने लगीं और इस तरह 9 बज गए। दीनबंधु ने घड़ी देखी और हड़बड़ाकर कहा-माफ कीजिए, मुझे चर्च जाना है। उस सज्जन ने कहा- चर्च तो मुझे भी जाना है। चलिए मैं भी आपके साथ चलता हूं। रास्ते में और बातें होंगी। इस पर
दीनबंधु बोले-लेकिन मैं आपके वाले चर्च में नहीं जा रहा।
सज्जन ने आश्चर्य से पूछा-तो फिर आप प्रार्थना कहां करेंगे?
दीनबंधु मुस्कराए फिर उन्होंने पूछा- क्या आप भी वहां चलेंगे जहां मैं प्रार्थना करता हूं?
सज्जन ने सहमति जताई तो दीनबंधु उन्हें अपने साथ ले चले। वह उन्हें शहर की गलियों से दूर गरीबों की एक बस्ती में ले गए। वहां चारों ओर झोपडि़यां थीं। दीनबंधु भी एक झोपड़ी में घुस गए। वह सज्जन भी थोड़े संकोच के साथ उसमें दाखिल हुए। उसमें एक बूढ़ा खाट पर लेटे 10-12 साल के बच्चे को पंखा झल रहा था। दीनबंधु ने बूढ़े के हाथ से पंखा ले लिया और कहा-बाबा, अब आप जाओ। बूढ़े के जाने के बाद
दीनबंधु उस सज्जन से बोले-यह बच्चा अनाथ है। इसे टीबी हो गई है। पड़ोस के ये बुजुर्ग ही इसकी देखभाल करते हैं। लेकिन उन्हें 10 से 2 बजे के बीच काम पर जाना होता है। इस बीच मैं इसके साथ रहता हूं। इसकी सेवा करता हूं। चार घंटे बाद वह बुजुर्ग वापस आ जाते हैं और मैं चला जाता हूं। यही मेरी प्रार्थना है और यह झोपड़ी ही मेरा चर्च है। वह सज्जन अवाक रह गए।