प्रेरक प्रसंग-7 / महात्मा गांधी
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रात बहुत काली थी और मोहन डरा हुआ था. हमेशा से ही उसे भूतों से डर लगता था. वह जब भी अँधेरे में अकेला होता उसे लगता की कोई भूत आसा-पास है और कभी भी उसपे झपट पड़ेगा. और आज तो इतना अँधेरा था कि कुछ भी स्पष्ठ नहीं दिख रहा था , ऐसे में मोहन को एक कमरे से दूसरे कमरे में जाना था.
वह हिम्मत कर के कमरे से निकला ,पर उसका दिल जोर-जोर से धडकने लगा और चेहरे पर डर के भाव आ गए. घर में काम करने वाली रम्भा वहीँ दरवाजे पर खड़ी यह सब देख रही थी.
” क्या हुआ बेटा?” , उसने हँसते हुए पूछा.
” मुझे डर लग रहा है दाई,” मोहन ने उत्तर दिया.
” डर, बेटा किस चीज का डर ?”
” देखिये कितना अँधेरा है ! मुझे भूतों से डर लग रहा है!” मोहन सहमते हुए बोला.
रम्भा ने प्यार से मोहन का सर सहलाते हुए कहा, ” जो कोई भी अँधेरे से डरता है वो मेरी बात सुने: राम जी के बारे में सोचो और कोई भूत तुम्हारे निकट आने की हिम्मत नहीं करेगा. कोई तुम्हारे सर का बाल तक नहीं छू पायेगा. राम जी तुम्हारी रक्षा करेंगे.”
रम्भा के शब्दों ने मोहन को हिम्मत दी. राम नाम लेते हुए वो कमरे से निकला, और उस दिन से मोहन ने कभी खुद को अकेला नहीं समझा और भयभीत नहीं हुआ. उसका विश्वास था कि जब तक राम उसके साथ हैं उसे डरने की कोई ज़रुरत नहीं.
इस विश्वास ने गाँधी जी को जीवन भर शक्ति दी, और मरते वक़्त भी उनके मुख से राम नाम ही निकला.