प्रेरणा / अमित कुमार पाण्डेय
मैं छत से नीचे आया और बोला माँ सामान पैक हो गया है। माँ ने कहा, -"विनय बेटा सब रख दिया है। तुम्हारे कपड़े, रोजमर्रा की चीजें, घी अचार"।
मैं बोला, -"अरे माँ तुम ने घी, अचार यह सब क्यों पैक कर दिया"।
माँ ने जवाब दिया, -"कोई बात नहीं बेटा लेते जाओ"।
"अरे माँ तुम्हें पता नहीं है बेंगलुरु में इन चीजों की ज़रूरत नहीं पड़ेगी"।
मां ने प्यार से सर पर हाथ फेरते हुए कहा, -"कोई बात नहीं बेटा जब तुम खाने के साथ इन सब चीजो को रखोगे तो मेरी याद आ जाएगी"। इतना कहते ही माँ की आँख में आंसू आ गए.
मैं बोला, -"माँ तुम क्या बात करती हो। तुम्हें याद करने के लिए मुझे इन सब चीजों का सहारा नहीं लेना पड़ेगा"।
माँ चिंतित स्वर में बोली, -"बेटा तुम पहली बार बनारस से बेंगलुरु नौकरी के लिए जा रहे। इतना बड़ा शहर है। पता नहीं तुम कैसे रहोगे"।
मैंने कहा, -"हां मुझे पता है क्लास फ़र्स्ट से इंजीनियरिंग तक की पढ़ाई मैंने बनारस में रहकर पूरी की है और माँ आज तक मैं तुम लोगों के बिना न रहा हूँ ना ही कहीं गया हूँ। पर माँ नौकरी लिए तो हमें शहर से बाहर निकलना ही पड़ेगा"।
सर पर हाथ फेरते हुए माँ ने कहा, -"हां बेटा पता है बेंगलुरु में अपना ख्याल रखना"।
"ठीक है माँ"। ये कह कर मैं अपने मित्रो से मिलने बाहर चला गया। रात को खाना खाने के बाद विनय ने अपना सामान चैक किया और जाकर अपने कमरे में बेड पर लेट गया। जैसे ही उसने आँखें मूँदी बचपन से लेकर आज तक का समय उसके मानस पटल पर अंकित हो गया। बचपन से लेकर आज तक माँ ने अपनी ममता और पिता ने अपना कर्तव्य मेरे प्रति बखूबी निभाया है। उसे बैंग्लोर में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने के लिए जाना पड़ रहा है। पता नहीं कैसी जगह होगी। मैं ठीक ढंग से अपनी नौकरी कर पाऊंगा की नहीं। वहाँ का रहन सहन कैसा होगा। वहाँ का खाना पीना कैसा होगा। बस इसी कसमकस में उसे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। रोज की तरह सुबह मा ने आवाज दी बेटा सो कर उठ जाओ. बेंगलुरु जाना है। मैं तुरंत ही बिस्तर पर से उठ गया।
पापा मम्मी ने मुझे बनारस एयरपोर्ट तक विदा किया। शाम को बेंगलुरु एयरपोर्ट से मैंने होटल के लिए एक टैक्सी ली। होटल में मुझे 50 और लड़के लड़कियां भी मिले। जो मेरी ही तरह जॉब करने उसी कंपनी में आए थे। दूसरे दिन जब वह सब कंपनी में पहुंचे तो उनका स्वागत हुआ और सभी ने अपनी-अपनी नौकरी की शुरुआत की। कह सकते हैं कि सभी ने अपनी दूसरी यात्रा आरंभ की। सभी के मन में नौकरी को लेकर एक नया उत्साह था पर किसी को नहीं पता था कि इस यात्रा का अंत कहाँ है। दूसरे दिन सुबह से मेरी ऑफिस की 6 महीने की ट्रेनिंग शुरू हो गई. मैंने कंपनी में अपने ही साथ काम करने वाले एक लड़के सुधीर के साथ रूम शेयर करना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे ऑफिस का काम बदस्तूर चलने लगा। एक दिन मैं बैठा अपने केबिन में काम कर रहा था तभी अचानक पीछे से एक लड़की ने आवाज़ दी। मैं झटके से मुड़ा तो देखा मेरे साथ काम करने वाली एक लड़की मोनिका खड़ी थी। मैंने ने कहा, -"हाँ, बोलो क्या बात है"।
मोनिका ने कहा, -"आज मेरा जन्मदिन है"।
मैंने ने कहा, -"जन्मदिन मुबारक हो"। मोनिका ने नाराजगी जाहिर करते हुए बोला, -"ऐसे ही मुबारकबाद देते हैं किसी को"।
मुझे उसकी बात समझ में नहीं आई. "अरे यार कम से कम हाथ मिलाकर मुबारकबाद देते"।
शर्माते हुए मैंने ने हाथ मिलाया और बोला, -"मोनिका जन्मदिन मुबारक हो"।
"धन्यवाद" । फिर मोनिका बोली, -"मैं तुमको आज शाम की पार्टी के लिए निमंत्रण देने आई हूँ। मैंने एक छोटी-सी पार्टी का आयोजन किया है। तुम सादर आमंत्रित हो"।
मैंने बोला, -"अच्छा ठीक है"।
इसके बाद मोनिका एक मुस्कुराहट बिखेर कर वहाँ से चली गई. उसके जाने के बाद कुछ समय के लिए मेरा मन मोनिका की तरफ चला गया। मोनिका एक धनी परिवार से ताल्लुक रखती है और दिल्ली की रहने वाली थी। उस समय वह शुद्ध भारतीय परिवेश में थी और बहुत खूबसूरत और शालीन लग रही थी। ऑफिस में काम करने वाली और लड़कियों से बिल्कुल अलग। इसलिए शायद मेरा ध्यान बार-बार उसकी तरफ चला जाता था। मैंने ने अब तक लड़कियों से कोई खास मेलजोल नहीं बनाई थी। पर हर लड़के की किसी लड़की को लेकर एक खास कल्पना होती है। मैं मोनिका को काफी हद तक अपनी कल्पना के रूप में देखता था। वो भारतीय परिवेश का पहनावा, वो चेहरे पर लटके खुले बाल, वो दिल को सुकून पहुचाने वाली वह मुस्कुराहट। तभी वेटर ने आकर मेज पर चाय रख दी और मेरा ध्यान मोनिका से वापस-वापस आ गया।
जब विनय और सुधीर मोनिका की पार्टी की तरफ चले वह तो शायद सबसे पहले ही पहुंचे थे। अभी मोनिका भी नहीं आई थी। धीरे-धीरे पार्टी में सारे लोग इकट्ठे होने लगे। अचानक मोनिका ने होटल में प्रवेश किया। मोनिका बिल्कुल अलग लग रही थी। जैसे विनय के मन में उसकी छवि थी उसके बिल्कुल विपरीत। उसने वेस्टर्न स्टाइल का ड्रेस पहना हुआ था और चेहरे पर भारी मेकअप था। उसने प्रवेश करते ही सब का अभिवादन किया।
अब सब एक बड़े मेज के इर्द-गिर्द बैठे गए. केक काटने की प्रक्रिया के बाद वेटर ने ड्रिंक सर्व करना शुरू किया। विनय ने महसूस किया कि उसे छोड़कर कोई और सॉफ्टड्रिंक का ग्लास नहीं पकड़ा है।
मोनिका मेरे पास आई उसके हाथ में भी हार्ड ड्रिंक का क्लास था। उसने मुझसे कहा तुम कुछ क्यों नहीं ले रहे हो। मैंने कहा नहीं मैं हार्ड ड्रिंक नहीं पीता।
मोनिका ने हंसते हुए कहा कोई भी आदमी कोई भी चीज पहली बार करता है। वो मेरे पास से चली गई. मुझे थोड़ी-सी शर्मिंदगी महसूस हुई.
मैं सबको घूर रहा था और इस टाइप की पार्टी का अनुभव कर रहा था। जैसे-जैसे समय बढ़ता जा रहा था सब पर नशा हावी होता जा रहा था। सभी लड़के लड़कियां अपने आप में मस्त होकर पार्टी का इंजॉय कर रहे थे सिवाय मेरे। मैं चुपचाप लोगों को देख रहा था और अंततः पार्टी रात के डिनर के साथ समाप्त हुई. सब अपने-अपने घर को जाने लगे किसी से भी ढंग से चला नहीं जा रहा था। पर सभी सब प्रकार की चिंताओं से मुक्त लग रहे थे।
परे जैसे ही मैं चलने को हुआ मोनिका ने नशे में मेरा हाथ पकड़ा और बोली, -"विनय इस वक्त मैं बहुत नशे में हूँ कृपया मुझे मेरे घर तक छोड़ दोगे"।
एक बार को तो मैं थोड़ा साहिचकिचाया पर फिर मैंने कहा, -"अच्छा चलो"।
मैंने महसूस किया कि मोनिका से नशे की वजह से नहीं चला जा रहा था। मैंने होटल के बाहर एक कार हायर की और ड्राइवर को मोनिका के पते पर कार ले चलने के लिए कहा।
मोनिका ने नशे की हालत में कहा, -" लगता है तुम्हें मेरी पार्टी पसंद नहीं आयी।
मैंने कहा, -" नहीं ऐसी बात नहीं है ऐसी ही बात है। इस तरह की पार्टी मैंने कभी ज़िन्दगी में देखी नहीं तो मैं आनंद कैसे लेता। इसके बाद मोनिका अपना सर मेरे कंधे पर रख कर सो गई थी। मैंने मोनिका को उसके घर छोड़ा और अपने घर वापस आ गया। मैं बेड पर लेट गया और सोचने लगा पार्टी के बारे में। जमाना तेजी से भाग रहा है पता नहीं इस प्रकार की संस्कृति में रह पाऊँगा या छोड़कर भाग जाऊंगा। पर इतना अवश्य था कि मेरे मन में मोनिका को ले करके जो अब तक की छवि थी उससे मुझे बहुत धक्का लगा था। पर इसमे मोनिका की कोई गलती नहीं है। शायद गलती मेरी है मैं आज के समाज के हिसाब से बहुत धीमा हो। इसी कसमकस में मुझे कब आँख कब लग गई मुझे पता ही नहीं लगा। दूसरे दिन शाम को मोनिका का फोन आया।
मैंने मजाक में कहा नशा उतरा की नहीं मोनिका ने भी मजाक में कहा मेरा-मेरा तो नशा उतर गया पर कभी-कभी तुम भी नशे में आना सीख लो। उसने मुझे कल रात के लिए धन्यवाद दिया।
मैंने कहा, -"हा अब मुझे लग रहा है तुम्हारा नशा उतर गया"।
समय बीतने लगा हम लोग ऑफिस में परमानेंट इंप्लाई की तरह काम करने लगे पर इस दौरान मोनिका से मेरी बातचीत में काफी इजाफा हुआ। पर हमारी सारी बातचीत ऑफिस में खाली समय में मिलने तक ही सीमित थी। इस दौरान मैंने महसूस किया कि मोनिका का व्यवहार मेरे प्रति काफी दोस्तना हो आया। धीरे-धीरे 1 साल बीत गया इधर बीच मेरी सैलरी में काफी इजाफा हुआ तो मैंने उसी पैसे से बाइक खरीद ली या पैसे बढ़ने के साथ मेरी ज़रूरतें भी बढ़ने लगी। घर से ऑफिस मैं बाइक से आने जाने ला। इसका मुझे फायदा यह मिला की मैं कभी-कभी शाम को लौटते वक्त मोनिका को उसके घर तक छोड़ देता था।
एक दिन ऑफिस में काफी लेट हो गई.
उस दिन मोनिका ने मुझसे कहा, -"विनय रात को काम खत्म होने के बाद इकट्ठे ऑफिस से निकलते हैं"। मैंने कहा ठीक है मैं तुम्हें ड्रॉप कर दूँगा"। मैंने मोनिका को उसके घर ड्रॉप किया।
मोनिका ने कहा, -"विनय आज रात का खाना बाहर से मंगा लेते हैं। तुम भी खाना मेरे साथ खाने के बाद अपने घर चले जाना। मोनिका ने खाने का आर्डर कर दिया। उसने मुझसे मुस्कुराकर कहा। –" विनय अभी खाना आने में एक घंटा लग जाएगा तब तक तुम कुछ लेना पसंद करोगे। ऐसा करती हूँ तुम्हारे लिए जूस लातीं हूँ"।
पता नहीं क्या बात थी मुझे भी तो ताव आ गया।
मैंने भी जोश के साथ कहा, -"आज मैं वही लूंगा जो तुम लोगी"। बस फिर क्या था हार्ड ड्रिंक की महफिल जम गई. धीरे-धीरे हम दोनों पर नशा हावी होता गया। खाना खाने के बाद रात में मैं मोनिका के ही घर सो गया। सुबह जब नींद खुली तो मेरा सर बहुत भारी था मैंने अपनी ज़िन्दगी में पहली बार हार्ड ड्रिंक का सेवन किया था। थोड़ी देर बाद मोनिका मेरे लिए सुबह की चाय लेकर आई तो मैंने औपचारिकता बस कहा मुझे माफ कर दो कल रात मुझ पर नशा इतना हावी हो गया था कि मैं उठकर अपने घर तक नहीं जा पाया।
मोनिका ने कहा माफी किस बात की मुझे कोई आपत्ति नहीं है बस फिर क्या था यह सिलसिला आगे बढ़ता ही चला गया। हर वीकेंड पर मैं और मोनिका साथ ही शाम को आने लगे और मैं भी धीरे-धीरे बनारस की आबोहवा को भूलकर बेंगलुरु की आबोहवा में घुलने लगा। एक दिन नशे में मैंने मोनिका से कहा मोनिका मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और शादी करना चाहता हूँ।
मोनिका ने कहा, -"मुझसे प्यार करते हो यह बात तो समझ में आती है लेकिन इसमें शादी की बात कहाँ से आ गई अभी हम नशे में हैं। कल बात करते हैं"।
मैंने कहा जैसी तुम्हारी मर्जी. दूसरे दिन उसके घर से निकलते ही मैंने उसके सामने यह बात दोबारा दोहराई.
उसने कहा विनय मैं अभी शादी नहीं करना चाहती हूँ। अगर तुम चाहो तो हम लिव इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं। मैंने कहा अच्छा ठीक है आज शाम को सोच कर बताता हूँ। मैंने इस बारे में बहुत विचार किया कि किसी लड़की के साथ रहना है वह भी बिना शादी के. घर में पता लगेगा तो वह क्या सोचेंगे मेरे बारे में। पर पता कैसे लगेगा। मोनिका के प्रति मेरी चाहत इतनी ज़्यादा थी कि मैं इस अवसर को मना नहीं कर पाया। मैं और मोनिका एक साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगे।
धीरे-धीरे समय बीतता गया इधर बीच मेरी मेहनत की वजह से मेरी सैलरी में काफी इजाफा हुआ। इसी बीच मैंने बैंक से लोन लेकर एक बड़ी कार खरीद ली। अब मैं और मोनिका उसी कार से ऑफिस आने जाने लगे। एक दिन मोनिका ने मुझसे कहा विनय अब हम लोगों को लिव इन रिलेशनशिप में रहते काफी दिन हो गए हैं अब हम लोगों को शादी के बारे में सोचना चाहिए. पर हम लोग शादी से पहले एक घर खरीद लें तो कैसा रहेगा। मैंने बिना सोचे समझे कहा मोनिका तुम चिंता मत करो। घर के बारे में पता करता हूँ। बस फिर क्या था थोड़े ही समय में भारी ब्याज पर बैंक से लोन ले लिया और घर खरीद लिया। थोड़े ही समय में हम लोग अपने घर में शिफ्ट हो गए अब हमने जल्दी ही शादी करने का फैसला किया। मुझे अभी यह महसूस होने लगा था कि सब कुछ ठीक हो गया है पर मेरी सोच ग़लत थी।
एक दिन जब हम ऑफिस पहुंचे तो ऑफिस के हेड ने हम सब की एक तुरंत मीटिंग बुलाई और कहाँ इस समय मार्केट की स्थिति ठीक नहीं है। हमारे आर्डर कैंसिल हो रहे हैं अतः कंपनी ने यह फैसला किया है कि कुछ इंपलाई नौकरी से निकाले जाएंगे। शुक्रवार को निकाले गए इंपलाई की लिस्ट लगा दी जाएगी। उन्हें 2 महीने की सेलरी एडवांस में दी जाएगी इसके बाद उन्हें ऑफिस आने की ज़रूरत नहीं है। यह सुनकर सारे इंप्लाई के चेहरे उतर गए. मेरी तो जैसे दिल की धड़कन बढ़ गई. मैं और मोनिका एक दूसरे को देखने लगे। मीटिंग बर्खास्त हुई. मैं सीट पर जाकर बैठ गया। मैंने सोचा अगर मेरा नाम लिस्ट में हुआ तो नौकरी तो आज नहीं कल दूसरी मिल जाएगी पर बैंक का लोन मैं कैसे चुकता करूंगा। कैसे मेरा गुजारा बेंगलुरु में होगा। ऐसे में तो शादी का ख्याल मेरे जेहन से उतर ही गया।
तभी पीछे से आकर मोनिका ने आवाज दी, -"विनय क्या हुआ?"। मैंने कहा, -"मैं सोच रहा हूँ अगर लिस्ट में मेरा नाम हुआ तो क्या होगा"।
मोनिका बोली, -"अरे घबराते क्यों हो। मेरे पास अभी काफी सेविंग है अगर हम दोनों में से एक की भी नौकरी बच गई तो बेंगलुरु में रहने की समस्या हल हो जाएगी"।
मोनिका की बातों से मुझे काफी बल मिला पर चिंता से काफी व्यग्रता थी और मैं शुक्रवार को आने वाली लिस्ट का इंतजार करने लगा। फिर वह मनहूस दिन आ गया मेरा नाम लिस्ट में था। पर मोनिका कि नौकरी बच गई थी। 2 महीने की अग्रिम सैलरी के साथ मैं भारी मन से ऑफिस से घर को लौट आया।
थोड़ी देर बाद मोनिका घर आयी और बोली, -"विनय चलो आज कहीं बाहर चलते हैं तुम्हारा मन थोड़ा हल्का हो जाएगा और हां तुझे चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। तुम्हें अच्छी नौकरी मिल जाएगी और सब ठीक हो जाएगा"।
मैं जानता था इतना आसान नहीं है। दूसरे दिन मैंने अपने बायोडाटा प्लेसमेंट एजेंसी को फारवर्ड कर दिया पर किसी भी प्लेसमेंट एजेंसी से मुझे अच्छा रिस्पांस नहीं मिला। सबने यही कहा इस वक्त मार्केट बहुत खराब है। आपको ठीक नौकरी मिलने में समय लग सकता है। मेरी नौकरी जाने की चिंता ऊपर से बैंक की भारी ब्याज दर मैं उदास मन से घर लौट आया।
धीरे-धीरे एक महीना बीत गया मुझे नौकरी के लिए कहीं से भी कॉल नहीं आई. मोनिका सुबह ऑफिस चली जाती थी और मैं घर में बैठे-बैठे इंटरव्यू की कॉल आने का इंतजार करता रहता था। समय के साथ मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। जो मेरी थोड़ी-सी शेविंग बची थी वह बैंक की किस्त में जा रही थी। अब हालत यह हो गई कि मैं मोनिका के पैसे पर निर्भर रहने लगा।
एक दिन मैंने मोनिका से कहा हो सकता है मुझे अच्छी जॉब मिलने में कुछ और समय लग जाए. ऐसा करते हैं कार और घर बेच देते हैं। मोनिका ने तुरंत कहा कि सच पूछो तो मेरे मन में यह बात पहले से ही आ रही थी।
मैंने कहा कि लेकिन हम रहेंगे कहां। ऐसा करते हैं एक साथ किराए का मकान ले लेते हैं।
मोनिका ने कहा, -" अब हम अलग-अलग पेइंग गेस्ट की तरह रहेंगे। तुम पैसे की चिंता मत करो। मैं तुम्हारा पेइंग गेस्ट का खर्चा उठा लूंगी। मुझे मोनिका की यह बात बड़ी अजीब-सी लगी। पर मेरे पास इस समय मोनिका के पैसों पर निर्भर रहने के अलावा कोई चारा नहीं था। नौकरी जाने के बात मुझे अपने घर बताने में डर लग रहा था।
धीरे धीरे 6 महीने बीत गए इस दौरान मैने काफी कंपनीस के इंटरव्यू दिए पर मुझे कहीं से कोई रिस्पांस नहीं मिला। एक दिन मोनिका ने मुझसे कहा, -"विनय तुम्हें अब अपना कोई और इंतजाम करना होगा। क्योंकि मेरा परिवार बेंगलुरु में शिफ्ट हो रहा है। और धीरे-धीरे मेरे अपने खर्चे भी बढ़ते जा रहे हैं। मैं अधिक से अधिक एक महीने तक तुम्हारा खर्चा उठा सकती हूँ"।
मुझे लगा शायद मोनिका ने ठीक ही कहा। उस दिन शाम को मैं एक कंप्यूटर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में टीचर की हैसियत से इंटरव्यू देने के लिए गया। मुझे 10000 / -प्रतिमाह पर कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में इंस्ट्रक्टर की नौकरी मिल गई. कहाँ इतना हैवी सैलरी पैकेज और कहाँ 10000 / -पर माह। पर मुझे रहने करने के लिए कुछ तो करना ही था। मैंने बेंगलुरु में एक छोटा-सा रूम किराए पर लिया और अपना जीवन बसर करने लगा। पर इस बीच मैं लगातार इंटरव्यू देता रहा। पर मुझे कोई उत्तर नहीं मिला। धीरे-धीरे 1 साल बीत गया। इस बीच मोनिका से मेरी बातचीत बहुत कम हो गयी। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि समय के साथ मोनिका इतनी बदल जाएगी।
थोड़ी-सी सफलता ने मेरा दिमाग खराब कर दिया था। मैं शायद ज़िन्दगी जीने के मायने भूल गया था। एक शाम ऐसे ही मैं कंप्यूटर इंस्टिट्यूट से आकर घर पर लेटा था तभी दरवाजे पर हल्की-सी दस्तक हुई. मैंने उठकर दरवाजा खोला तो पाया मोनिका खड़ी थी। मैंने उसे अंदर बुलाया।
उसने आते ही पूछा कि अभी कोई नौकरी मिली की नहीं कहां। मैंने कहा, -"अभी नहीं संघर्ष जारी है"।
मोनिका ने कहा यही ज़िन्दगी है अगर तुम रूक जाते हो तो तुमको छोड़कर सब आगे चले जाते हैं। कोई तुम्हारा रुककर इंतज़ार नहीं करेगा।
मैंने कहा शायद तुम ठीक कह रही हो।
मोनिका ने अपने बैग से एक कार्ड निकाला और मुझे देते हुए बोली मेरी शादी का कार्ड है। अगले महीने मैं और सुधीर शादी करने जा रहे हैं। इतना कहकर बिना कोई उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना वह कमरे से बाहर निकल गई. मुझे यह अफसोस नहीं हो रहा था कि मोनिका शादी कर रही है मुझे यह खराब लग रहा था कि सुधीरके साथ। उस दिन मुझे एहसास हुआ शायद वाकई मैं इस जमाने के लायक नहीं। लोग भाग रहें है और मैं काफी पीछे रह गया हूँ। उस दिन मेरा हौसला इतना टूट गया की मैं मोनिका और सुधीर की शादी के अगले दिन अपना सामान पैक करके सदा-सदा के लिए बेंगलुरु से बनारस को रवाना हो गया।
मैं बनारस लौट कर बड़ा गुमसुम रहने लगा। मम्मी ने हमसे कुछ नहीं पूछा। एक दिन जब मैं छत पर टहल रहा था तो पापा पीछे से आए और प्यार से मेरे कंधे पर हाथ रख दिया और पूछा बेटा क्या बात है। जब से बेंगलुरु से आए हो काफी उदास हो बस इतनी-सी बात थी कि मैं रो पड़ा।
मैंने कहा, -"पापा नौकरी छूट गई"। पापा ने कहा इसमें परेशान होने वाली क्या बात है मैं जिंदा हूँ। तुम्हें हमें पहले बताना चाहिए था और अब तुम्हें घबराने की ज़रूरत नहीं है। तुम्हें किसी से परेशान होने की भी ज़रूरत नहीं है कि लोग क्या कहेंगे। बेटा ज़िन्दगी में ऐसे उतार चढ़ाव आते रहते हैं। मैं तो खुश हूँ तुम्हें इसका अनुभव बहुत जल्द हो गया। अब तुम हायर एजुकेशन की तैयारी करो। मैंने कहा कि पापा मैं अब एमबीए की तैयारी करना चाहता हूँ। पापा ने कहा कि बिल्कुल ठीक तक जब तक चाहो तब तक तैयारी कर सकते हो।
मुझे इस सदमे से उबरने में थोड़ा वक्त लग गया। कड़ी मेहनत के बाद मेरा सलेक्शन आईआईएम अहमदाबाद में हो गया। मैंने एमबीए की डिग्री वहाँ से हासिल की और मुझे दिल्ली में एक बहुत अच्छी नौकरी मिल गई. पर इस बार मेरे व्यवहार में काफी परिवर्तन आ गया था। मैंने अपनी नौकरी में कड़ी मेहनत की और लगभग 10 साल बाद उस कंपनी का सीईओ नियुक्त हुआ।
विनय की खुशी का ठिकाना नहीं था। एक दिन मैंने अपने सेक्रेटरी मलिक को बुलाया और कहा मलिक तुम्हें पता है बेंगलुरु की दो कंपनी को हमारी कंपनी ने टेकओवर कर लिया है। मैं चाहता हूँ कि उनमें से हम कुछ इंप्लाई को रखकर बाकी सब को नौकरी से निकाल देते हैं। इसलिए मैं उस कंपनी के इंप्लाई के साथ एक फ़ाइनल मीटिंग करना चाहता हूँ।
मलिक ने कहा कि ठीक है सर कल हम बेंगलुरु के लिए रवाना हो जाएंगे। मैं कंपनी को सूचना भिजवा देता हूँ। दूसरे दिन जैसे ही विनय ने उस कंपनी के कांफ्रेंस रूम में प्रवेश किया उसके प्रवेश करते ही सारे एम्प्लोयी खड़े हो गए. विनय कुर्सी पर बैठ गया। सबसे पहले उसकी नजर सुधीर और मोनिका से जा मिली। नजर मिलते ही सुधीर और मोनिका ने अपने चेहरे को नीचा कर लिया। विनय ने कहा आप सब को तो पता है कि आपकी कंपनी को हमारी कंपनी ने टेकओवर कर लिया है। अब हमें सारे एम्प्लोयी की ज़रूरत नहीं है। नौकरी से निकाले गए एम्प्लोयी की लिस्ट आपके कंपनी के गेट पर शुक्रवार को चिपका दी जाएगी 2 महीने की सैलरी के एडवांस के साथ। अब आपको कंपनी में आने की ज़रूरत नहीं है।
मैं और मलिक वापस दिल्ली लौट आते हैं। मलिक विनय के साथ मिलकर लिस्ट फाइनल कर रहा होता है।
मलिक कहता है मैंने सारे एम्प्लोयी का इंटरव्यू लिया है इनमें से दो एम्प्लोयी सुधीर और मोनिका पति पत्नी है। मेरे सुझाव से दोनों में से एक को ही नौकरी से निकाल देना चाहिए.
मैंने ने कहा मलिक तुम ठीक कह रहे हो। तुम्हें कौन सही लग रहा है। मलिक बोला कि मोनिका को नौकरी पर रख लेना चाहिए सुधीर को निकालते हैं। मोनिका औरत है अब इस उम्र में कहाँ नौकरी के लिए दौड़ेगी भागेगी। सुधीर मर्द है दूसरी नौकरी उसे आसानी से मिल जाएगी। विनय ने अपनी आंखें मूंद ली और बोला मलिक ऐसा करो मोनिका को नौकरी से निकाल दो। मलिक बोला क्यों सर क्या आप सुधीर को जानते हैं। विनय बोला नहीं मैं मोनिका को पहचानता हूँ। विनय ने मन ही मन सोचा कि मैं चाहता तो दोनों को नौकरी से निकाल देता पर मैं ऐसा नहीं कर रहा हूँ क्योंकि एक समय मोनिका और सुधीर की वजह से मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली थी।