प्रेशराइज़्ड ऑक्सीजन कक्ष से जुड़े सवाल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :28 जुलाई 2015
विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी ने जीवन और सोच में परिवर्तन ला दिया है। सदियों से कुछ लोगों ने अपने जीवन को लंबा करने के लिए भांति-भांति के जतन किए हैं और उम्र के खूंखार शेर से बचने के सारे संभव प्रयास किए जाते हैं। हमारी शिखर महिला सितारे प्रेशराइज़्ड ऑक्सीजन लेते हैं, जिसके विशेष कक्ष होते हैं। इस ऑक्सीजन से त्वचा में चमक बनी रहती है और फेफड़ों को राहत मिलती है। इस प्रेशराइज़्ड ऑक्सीजन कक्ष में एक घंटा बैठने के लिए 20 हजार रुपए देने होते हैं। करोड़ों कमाने वाले सितारों के लिए यह कोई बड़ी कीमत नहीं है। फिल्म के ही नहीं, वरन धनाढ्य परिवारों के लिए भी यह रकम खास मायने नहीं रखती। हमारे देश में अमीर और गरीब के बीच बहुत बड़ी खाई है। कुछ जनजातियों की वार्षिक आय ही सौ रुपए से अधिक नहीं है। अनेक दशक पूर्व अमेरिका से एक समाजशास्त्री बस्तर के आदिवासियों के अर्थ-जीवन के अध्ययन के लिए भारत आए थे और हमारे महान लेखक गुलशेर खान शानी उनके दुभाषिये एवं गाइड थे। ये एन्थ्रापॉलाजिस्ट कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एडवर्ड जे.जे. थे, जो सपत्नीक ग्राम ओरछा में लगभग दो वर्ष रहे। यह जगह बस्तर के अबूझमाड़ में है। शानी ने अपने इन्हीं अनुभवों के आधार पर 'शालवानों के द्वीप' लिखी। महान शानी का समग्र लेखन छह खंडों में शिल्पायन में प्रकाशित किया है। मनुष्य में रुचि रखने वालों के लिए यह शानी समग्र अनमोल उपहार है।
बहरहाल, विगत तीन दशकों में सौंदर्य संरक्षण की अनेक संस्थाएं कार्यरत हैं और सौंदर्य शल्य चिकित्सा भी लोकप्रिय हुई है। इसके तहत नाक, कान, होंठ, त्वचा इत्यादि मनचाहे बनाए जा सकते हैं। वक्ष भी इसी शल्य चिकित्सा के दायरे में आता है। गोरे रंग के प्रति हमारे राष्ट्रीय मोह ने एक बड़े उद्योग को जन्म दिया है और इस खेल में ठगी भी बहुत होती है। कबीर खान की बजरंगी भाईजान का नायक भी कहता है कि वह गौर वर्ण के कारण मुन्नी को बामन की छोरी समझकर घर ले आया। चेहरे की शल्य चिकित्सा के आधार पर अंग्रेजी में 'फेस ऑफ' नामक अत्यंत रोचक एवं सफल फिल्म बनी है। हॉलीवुड की इसी विषय से जुड़ी 'प्रॉमिस' के आधार पर रमेश बहल ने भी एक फिल्म फिल्म बनाई थी 'ये वादा रहा', जिसमें टीना मुनीम और पूनम ढिल्लो ने एक ही पात्र की सर्जरी के पहले और बाद की भूमिकाएं निभाई थीं और दोनों की आवाज जया बच्चन ने डब की थी।
बहरहाल, मूल बात की जड़ में मनुष्य की समय को पराजित करने की अदम्य इच्छा है। वह हमेशा जवान बने रहना चाहता है। हमारे पुराणों में भी इस तरह की कथाएं हैं। उम्रदराज ययाति को एक षोडसी से प्रेम हो गया और उसने पुन: जवानी पाने के लिए शिव की आराधना की, जिन्होंने कहा कि जवानी का डोनर ले आइए, अत: राजा ययाति के जवान पुत्र पुरु ने पिता का बुढ़ापा ग्रहण किया और अपनी जवानी पिता को भेंट की। भीष्म को भी अपने पिता की ऐसी इच्छा के कारण आमरण कुंआरे रहने की शपथ लेनी पड़ी, जो कुरुक्षेत्र में विराट नरसंहार का एक कारण है। दरअसल, महान वेद व्यास ने अमरत्व को भी भ्रामक ही माना, इसीलिए खलनायक अश्वत्थामा को द्रोपदी के श्राप के कारण कभी न मर पाने की यंत्रणा भुगतना पड़ी। महान योद्धाओं के बीच एक कापुरुष ही हमेशा जीवित रहा - यही संकेत है अमरत्व के भ्रम का।
कुछ इस तरह की बातें भी सुनी जा रही हैं कि मनुष्य और रोबो के मिश्रण से कालजयी प्राणी रचा जाए। अगर यह संभव भी हो गया तो उस अजीब से प्राणी के सुख-दुख कैसे होंगे? क्या हमें साहित्य व कला बोध होगा? क्या वह अफसानों का आनंद ले पाएगा? दरअसल, कालातीत होना एक निहायत ही उबाऊ और थकाने वाला जीवन हो सकता है। जन्म-मृत्यु के चक्र में असीमित आनंद और अवसाद है। बिना रात के किसी दिन की हम कल्पना नहीं कर सकते। अत: कोई धन्नासेठ प्रेशराइज़्ड ऑक्सीजन के कमरे में ताउम्र रह सकता है, परंतु मृत्यु को टालने के लए जीवन को एक कमरे में समेटने का अर्थ है कि आप जीवित ही उस कमरेनुमा ताबूत में दफन हो गए।