प्लूटोक्रेट / ख़लील जिब्रान / सुकेश साहनी

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अनुवाद :सुकेश साहनी

मैंने भ्रमण के दौरान एक द्वीप पर आदमी के चेहरे और लोहे के खुरों वाला भीमकाय प्राणी देखा, जो लगातार धरती को खाने और समुद्र को पीने में लगा हुआ था। मैं बड़ी देर तक उसे देखता, फिर नज़दीक जाकर पूछा, ‘‘क्या तुम्हारे लिए इतना काफी नहीं है? क्या तुम्हारी भूख प्यास कभी शान्त नहीं होती?’’

उसने जवाब दिया,‘‘ मेरी भूख-प्यास तो शान्त है। मैं इस खाने पीने से भी ऊब चुका हूँ, पर डरता हूँ कि कहीं कल मेरे खाने के लिए धरती और पीने के लिए समुद्र नहीं बचा तो क्या होगा?’’

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