फरक / शोभना 'श्याम'

Gadya Kosh से
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अभी कुछ ही दिन हुए एक प्रसिद्ध समाज-सेवी और एक जुझारू पत्रकार के अथक प्रयत्नों से आखिरकार उन पंद्रह मज़लूम महिलाओं को उस बदनाम चकले से आज़ाद कराकर नारी-निकेतन में लाया गया था। बड़े-बड़े अख़बारों, टेलीविज़न, सोशल-मीडिया सब जगह इस सनसनीखेज़ अभियान की कवरेज़ थी।

शुरू-शुरू में बाढ़ की तरह उफनता पत्रकारों का मज़मा अब छँट चुका था। बस बहुत हुआ, अब इन महिलाओं को सामान्य ज़िंदगी में भी लाना था, सो नारी-निकेतन के दरवाज़े आगंतुकों के लिए, विशेषतः पत्रकारों के लिए बंद कर दिए गए थे।

वह दूर-दराज़ से आया पत्रकार जाने कैसे अंदर पहुँच गया। उसने एक कोने में चुपचाप अलग-थलग बैठी उस लड़की से पूछा, "कैसा लग रहा है उस नर्क से निकल कर? बहुत फ़र्क आ गया होगा अब तो ज़िन्दगी में?"

"हाँ ... फरक तो बहुतै है, अब्बी... पैसा नई मिलता।"