फरमाइशी बच्चे, झूठे-सच्चे कितने / जयप्रकाश चौकसे

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फरमाइशी बच्चे, झूठे-सच्चे कितने
प्रकाशन तिथि : 30 नवम्बर 2018


जब अर्जुन अपनी गर्भवती पत्नी सुभद्रा को चक्रव्यूह में प्रवेश का तरीका सुना रहे थे तब गर्भस्थ अभिमन्यु सुन रहे थे परंतु व्यूह से बाहर आने का तरीका सुनते समय अर्जुन की पत्नी गहरी नींद में सो गईं। वर्षों बाद कुरुक्षेत्र में अभिमन्यु के मारे जाने के बाद युद्ध अत्यंत भयावह हो गया। वर्तमान का ऐसा कोई प्रश्न नहीं, जिसका उत्तर महाभारत में नहीं मिलेगा। महाभारत तो घना जंगल है, जितना भीतर जाएंगे उतना नया देखने को मिलेगा। वर्तमान समय में जेनेटिक इंजीनियरिंग संभव हो रही है। गर्भस्थ शिशु के सोच-विचार और व्यवहार में इच्छित परिवर्तन संभव हो रहा है। जैसे आप अपनी फरमाइश के गाने एफएम पर सुन सकते हैं। वैसे ही फरमाइशी बच्चों का जन्म भी संभव है। कितनी भयावह है यह कल्पना कि अनेक लोग हुक्मरान की तरह बच्चों का निर्माण करना चाहेंगे। तब दुनिया में मन की बात करने वाले अधिक होंगे और श्रोता को खोजना होगा। दुनिया में अनगिनत डोनाल्ड ट्रम्प होंगे और हम एक जॉन कैनेडी के लिए तरस जाएंगे। एक राजनीतिक दल रेजिमेंटेशन करना चाहता है कि सब एक सा सोचे, एक से कपड़े पहने, गोयाकि विविधता खारिज कर दी जाएगी। इस तरह विश्व का रोबोकरण किया जा सकता है। संसद में पक्ष और विपक्ष सामान सोचेंगे तो संसद की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। चुनाव का मौसम ही नहीं रहेगा। सट्टा खेलना कितना कठिन हो जाएगा। मनुष्य नाम से नहीं नंबर से पुकारे जाएंगे। जैसे जेल में होता है कि कैदी नंबर 303 हाजिर हो। क्या हम अमीर खुसरो, कबीर और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जैसे व्यक्ति मैन्युफैक्चर कर पाएंगे? यह शायद कठिन होगा और कौन कवि पुत्र की कामना करना चाहेगा। जब हुक्मरान को बनाना संभव होगा। उस समय यह मजबूरी नहीं होगी कि कानून के जानकार को देश का सारा हिसाब-किताब सौंप दिया जाए। जीवन के अनिश्चित होने के कारण वह रुचिकर है। हम सब आधे-अधूरे हैं और परफेक्शन की तलाश ही इसे जीने योग्य बनाती है। परफेक्ट व्यक्ति बहुत उबाऊ हो सकता है। शब्द कोष हमें उस शब्द का अर्थ बताते हैं जो हम नहीं जानते। इसी तरह टेलीफोन डायरी भी होती है परंतु जो मजा कथा, कविता या उपन्यास पढ़ने में आता है वह अन्यत्र नहीं मिल सकता। कंप्यूटर पर किताब पढ़ने में आनंद नहीं मिलता। कागज का स्पर्श ही रोमांचकारी है। वाचनालय में किताब की गंध को भी हम महसूस करते हैं। प्राय: पिता-पुत्र में तकरार होने पर पुत्र यह कहते पाए गए हैं कि क्या उनसे पूछकर उन्हें जन्म दिया गया है। इस तरह का वार्तालाप समाप्त हो जाएगा। दरअसल जेनेटिक इंजीनियरिंग भाषा में भी परिवर्तन प्रस्तुत करेगा, यहां तक कि अपशब्द भी बदल जाएंगे। वे उस टेक्नोक्रेट को दिए जाएंगे, जिसने बनाने में सहायता की है। स्वर्ग-नर्क आकल्पन भी ध्वस्त हो जाएगा। प्रयोगशाला ही स्वर्ग नर्क बन जाएगी। विज्ञान फंतासी का जिक्र होते ही 'बाय सेंटेनियल मैन' की याद ताजा हो जाती है। जिस वैज्ञानिक ने रोबो बनाया है, उसकी पुत्री को ही रोबो से प्रेम हो जाता है और वे अपने विवाह की अर्जी अदालत तथा चर्च में लगाते हैं। इस अजीबोगरीब केस पर लंबी बहस चलती है और जिस दिन फैसला आता है वह दिन रोबो के जीवन का आखिरी दिन है। वह उस मशीन की मृत्यु की तिथि है। दवाओं पर भी लिखा होता है कि वे कब तक ली जा सकती हैं। गोयाकि उनकी एक्सपायरी डेट होती है। यह बात अलग है कि कुछ विचार व मनुष्य अपनी एक्सपायरी डेट के बाद भी बाजार में बने रहते हैं। शराब और चावल जितने पुराने होते हैं उतने विरल और महंगे हो जाते हैं। फैशन का चक्र भी निरंतर घूमता रहता है। आप आज के फैशन के वस्त्र खरीद कर उन्हें सहेज कर रख दें और फैशन बदलते ही उन्हें पहने तो सबसे अलग दिखेंगे। जेनेटिक इंजीनियरिंग के सुलभ होने पर चीनी लोग अपनी चपटी नाक से मुक्त हो जाएंगे। अमेरिका में रंगभेद समाप्त हो जाएगा। विवाह नामक संस्था भी ध्वस्त हो जाएगी। विवाह कराने वाले पंडित और मौलवी बेरोजगार हो जाएंगे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह भी लिखा जाएगा कि यह व्यक्ति ऊबने के कारण मरा है। 'डेथ बॉय बोरडम'। विज्ञान के चमत्कारों पर बात से याद आती है कुमार अंबुज की नई कविता-'आबादी से रेल गुजरती है। रेगिस्तान पार करने के लिए लोग जीवन में से गुजरते हैं/ प्रेम विहीन आयु पार करने के लिए/ आखिर एक दिन प्रेम के बिना भी लोग जिंदा रहने लगते हैं/ बल्कि खुश रहकर/ नाचते-गाते जिंदा रहने लगते हैं/ पीछे छूट गई बारीक मटमैली रेत में/ मरीचिका जैसे भी कुछ नहीं चमकता/ प्रेम की कोई प्रागैतिहासिक तस्वीर टंगी रहती है दीवार पर/ तस्वीर पर गिरती है बारिश, धूल और शीत गिरता है/ रात और दिन गिरते हैं/ उसे ढंक लेता है कुहासा/ उसकी ओट में मकड़िया, छिपकलियां रहने लगती हैं/ फिर चिकित्सक कहता है इन दिनों आंसुओं का सूखना आम बात है/ इसके लिए कोई डॉक्टर दवा भी नहीं लिखता। एक दिन सब जान ही लेते हैं/ प्रेम के बिना कोई मर नहीं जाता..'