फरहान अख्तर : सितारा मुख्यधारा में / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 26 जून 2013
फरहान अख्तर राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म 'भाग मिल्खा भाग' के प्रदर्शन पूर्व प्रचार के लिए भाग-दौड़ कर रहे हैं, क्योंकि इस फिल्म की सफलता उन्हें मुख्यधारा का सितारा बना देगी। अभी तक उन्होंने मुख्यधारा की फिल्म में अभिनय नहीं किया है। अभिषेक कपूर की 'रॉक ऑन' सफल फिल्म थी, परंतु वह केवल इतना ही स्थापित कर पाई कि निर्देशक फरहान अभिनेता भी हैं। उनकी बहन जोया अख्तर की फिल्म 'ये जिंदगी न मिलेगी दोबारा' ने अच्छा-खासा व्यवसाय किया, परंतु वह तीन सितारा फिल्म थी। सितारा बनने की उनकी योजना का दूसरा चरण इस मायने में थी कि ऋतिक रोशन और अभय देओल के साथ की गई इस फिल्म में बड़ी बहन जोया ने तमाम तालियां पडऩे वाले दृश्य और संवाद फरहान को दिए और ऋतिक तथा अभय चरित्र भूमिकाओं में धकेल दिए गए, परंतु ऋतिक रोशन जैसे भव्य सितारे को ही जब चरित्र भूमिका के हाशिये में जाने का अफसोस नहीं था, तो दूसरों को चिंता करने की जरूरत नहीं है।
अब फरहान अख्तर यह समझ चुके थे कि सितारा मुख्यधारा के लिए उन्हें कसरत से सुता हुआ सिक्स पैक वाला जिस्म बनाना चाहिए, क्योंकि सुगठित जिस्म सितारा दुनिया में प्रवेश-पत्र बन चुका था और मुंबई में संघर्षरत सारे नवयुवक स्टूडियो के पहले जिम जाने लगे थे तथा यह कमोबेश स्थापित हो चुका था कि अभिनय छोड़कर अन्य सभी चीजों का प्रशिक्षण सितारा बनने के लिए आवश्यक हो गया है। विचार के इस मोड़ पर 'रंग दे बसंती' के लिए प्रसिद्ध और 'दिल्ली-6' से चोटिल राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने धावक मिल्खा सिंह के जीवन से प्रेरित फिल्म में नायक बनने के लिए फरहान अख्तर के सामने प्रस्ताव रखा।
फरहान अख्तर भी इसी तरह के अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने अपने आपको पूरी तरह से झोंक दिया। प्रशिक्षित मार्गदर्शक के साथ जिम में घंटों मेहनत की। आजकल सुगठित शरीर बनाने का एक व्यवस्थित उद्योग सक्रिय है। जिम में किस तरह की कसरत के बाद अमेरिका से आयात किया गया कौन-सा प्रोटीन कितना लिया जाए, कब कितने मिनरल की गोलियां खाई जाएं। आज जिस्म बनाने के इस कारखाने का सदस्य बनने के लिए कम से कम लाख रुपया महीने के खर्च की आवश्यकता है। जिम में प्रतिघंटे के हिसाब से पैसे देने पड़ते हैं। तमाम बड़े सितारों ने अपने घर में ही जिम लगा लिया है, ताकि किसी भी वक्त कसरत की जा सके।
बहरहाल, अब फरहान अख्तर 'भाग मिल्खा भाग' फिल्म में अपनी अभिनय प्रतिभा और धावक के मंजे हुए जिस्म के साथ प्रस्तुत होने जा रहे हैं और फिल्म के प्रोमो देखकर लगता है कि बारह जुलाई को प्रदर्शित होने वाली यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर भारी सफलता अर्जित कर सकती है। मेहरा एक समर्पित फिल्मकार हैं और फरहान अख्तर जैसे सृजनशील व्यक्ति का साथ मिलने पर वे उसी तरह की सफलता अर्जित करना चाहते हैं, जैसी आमिर खान के साथ उन्होंने 'रंग दे बसंती' में अर्जित की थी। मिल्खा के जीवन में देशप्रेम की भावना भी है, अत: यह 'जमीन' 'रंग दे बसंती' वाली ही है। साथ ही प्रतिभाशाली प्रसून जोशी भी हैं, जिन्होंने इस फिल्म की पटकथा, संवाद और गीत लिखे हैं।
जावेद अख्तर प्रचार-तंत्र के उपयोग के नुस्खों को बखूबी जानते हैं और फरहान अख्तर को यह शिक्षा घुट्टी में ही मिली है, परंतु सार यह है कि फरहान अख्तर प्रतिभाशाली हैं और सफलता की मछली की आंख को अर्जुन की तरह ही एकाग्रता से साध सकते हैं। मिल्खा सिंह गरीब परिवार से आए थे और अपनी मेहनत तथा प्रतिभा से उन्होंने नाम और दाम कमाया तथा वह जमीन तैयार की, जिसकी सहायता से उनके पुत्र ने गोल्फ की दुनिया में सितारा पद प्राप्त किया और आज यह परिवार धनाढ्य है। यह सफलता की कथा जावेद और फरहान के जीवन से इस मायने में मिलती है कि जावेद अख्तर ने भी घोर संघर्ष करके सलीम खान के साथ जोड़ी बनाकर सफलता अर्जित की और फरहान अख्तर तथा जोया अख्तर के लिए जमीन तैयार की कि वे छलांग लगाकर सफलता के आकाश को छू सकें। मिल्खा और अ्तर परिवारों की यह समानता भी गौरतलब ही है।
दरअसल, सफलता अर्जित करने का भी आजकल एक व्यवसाय है, जहां आपको प्रशिक्षित किया जा सकता है। यह दौर ही ऐसा है कि तमाम क्षेत्रों में सफलता के लिए आवश्यक प्रशिक्षण उपलब्ध है। इन बातों का यह अर्थ नहीं कि प्रतिभा नगण्य है। प्रतिभा आवश्यक है, परंतु बाजार में उस एक रुपए के माल को दस रुपए में कैसे बेचना है यह कला भी विकसित हुई है। आजकल भारत के हर क्षेत्र में क्षेत्रीयता की भावना प्रबल है। धर्मेंद्र के पंजाब में मिल्खा सिंह के कारण फरहान अख्तर की फिल्म भारी सफलता अर्जित कर सकती है। जब प्राकृतिक आपदा के हादसे तक में क्षेत्रीयता काम कर रही है तो फिल्मों में क्यों न करे?