फर्क / पद्मजा शर्मा

Gadya Kosh से
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संगीत कक्ष में वाद्य यंत्र उदास पड़े हैं। लग रहा है जैसे सदियों से उन्हेें किसी ने छुआ नहीं है। उन्हें किन्हीं ऐसे हाथों की प्रतीक्षा है जो उन्हें संभालेंगे, बजाएँगे। आज वहाँ से किसी मधुर गीत की कोई धुन नहीं आ रही है। बल्कि खामोशी की उदास आवाज छा रही है। धीरे-धीरे भीतर उतर रही है। आज वह अनुपस्थित है। उदयन ने इसी सत्र से स्कूल में संगीत अध्यापक के पद पर ज्वाइन किया है। वह पूरे स्टाफ में सब से हटकर है। इन्टरवल में स्टाफ रूम में न बैठकर वह संगीत कक्ष में चला जाता है। वहाँ से लगभग पूरे समय किसी न किसी वाद्य यंत्र के बजने या उसके गाने का मधुर स्वर स्कूल की हवाओं में तैरता रहता है।

एक बार मैंने उसे खाना ऑफर किया था। उसने मुस्कराकर टाल दिया-'भूख नहीं है।'

ऐसे ही कई जुमले, कई एक्स्क्यूज 'नो थैंक्स' 'दोपहर में खाने की आदत नहीं है' , 'मैं खा चुका हूँ' उसके होठों पर तैयार रहते थे। पैरेग्राफ का जवाब वाक्य में और वाक्य का जवाब शब्द में देता है। उसके गले की तारीफ करो तब भी।

वह कम बोलता है पर उसकी आँखें बहुत बोलती हैं। वह जितना दूर जा रहा है उतना ही मेरे करीब आ रहा है। उसकी उपस्थिति मुझे आश्वस्त करती है। इसलिए आज मैं अस्थिर हूँ। बेचैन हूँ। कक्षाओं में ठीक से पढ़ा नहीं सकी, बच्चों को।

मैंने पिछले दिनों गुलाबों के खेत देखने वाली पिकनिक कैन्सिल कर दी थी। उसके यह बताने पर कि इस बरस बरसात की कमी के कारण गुलाब खिले कम, मुरझाए ज़्यादा हैं।

पर आज मैंने तय कर लिया है कि हम बच्चों को पिकनिक पर ले जाएंगे और गुलाबों के खेत ही ले जाएंगे। हो सकता है हमारे जाने से मुरझाए फूल खिल उठें।

किसी के होने या न होने से किसी पर कितना $फर्क पड़ सकता है, यह मैं आज जान पा रही हूँ, जब वह नहीं है।