फल किसने और क्यों प्रतिबंधित किया? / जयप्रकाश चौकसे

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फल किसने और क्योंप्रतिबंधित किया?
प्रकाशन तिथि : 16 मार्च 2021


फिल्म ‘सांड की आंख’ के लिए प्रसिद्ध, अलंकृता श्रीवास्तव ने इंटरनेट मंच के लिए एक कार्यक्रम रचा है, जो अब विवादास्पद बना दिया गया है। पुरुष प्रधान समाज में महिला दोयम दर्जे की नागरिक है। अलंकृता ने यह विचार अभिव्यक्त किया है कि एक प्राचीन कथा में कहा गया है कि ‘महिला ने प्रतिबंधित फल खाया और और दंडित हुई।’ अलंकृता ने जिज्ञासा अभिव्यक्त की है कि प्रतिबंध किसने और क्यों लगाया? अभिव्यक्ति के साथ ही प्रतिबंध लगाया गया? अभिव्यक्ति स्वतंत्रता है और प्रतिबंध एक व्यक्ति का हुक्म सब पर लागू करना होता है। शिशु का तो जन्म ही अम्लिकल जंजीर संग होता है, जिसे काटते ही वह श्वास लेने लगता है, जिसका अर्थ है कि श्वास लेना स्वतंत्रता की पहली अभिव्यक्ति है। शरीर विज्ञान ने वेंटिलेटर का आविष्कार करके ढहती हुई मानवीय स्वतंत्रता को सहारा दिया है। उनकी यह जिद है कि जीने नहीं देंगे और विज्ञान मरने नहीं देगा। शायर की चिंता है कि ‘मर कर भी चैन नहीं मिलता तो कहां जाएंगे।’ नकारात्मक शक्तियों को कविता रोकती है। प्रतिबंध एक शस्त्र है और निरंकुश हाथों में जाते ही इसकी धार पैनी हो जाती है। एक-दूसरे से सटकर जड़े गए पत्थरों के बीच नन्हीं सी कोंपल उग जाती है। कोंपल कविता है, स्वतंत्रता है, सृजन है। किताबों और फिल्मों पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद अदालत में गए अधिकांश प्रतिबंध खारिज किए गए हैं। जेम्स जॉयस के उपन्यास यूलिसिस के विषय में जस्टिस वूल्जे ने कहा कि रचना का समग्र प्रभाव महत्वपूर्ण है। रचना के एक अंश को पूरी रचना से अलग हटाकर देखना गलत है।

रोम स्थित चर्च समय-समय पर एक सूची जारी करता है कि इन रचनाओं को पढ़ने का निर्णय व्यक्ति स्वयं के विवेक से करे। अत: प्रतिबंध नहीं जारी करते हुए मात्र सलाह दी जाती है। रुश्दी की ‘सैटेनिक वर्सेज’ भी मात्र सलाह की तरह रची गई थी, परंतु वह कहीं-कहीं प्रतिबंधित कर दी गई थी। गौरतलब है कि प्रतिबंधित रचनाएं काला-बाजार में खूब बिकती है। कुछ प्रकाशक योजनाबद्ध ढंग से रचना प्रतिबंधित करवाते हैं ताकि काला बाजार से धन कमा सकें। ये कार्य छोटी-बड़ी सभी संस्थाएं करती हैं। कहीं-कहीं मानव शरीर को पिंजड़ा और आत्मा को पिंजड़े मैं कैद कबूतर कहा गया, परंतु आत्मा अर्थात विचार प्रक्रिया शरीर के रोम-रोम से अभिव्यक्त होती है। कान और नाक के भीतर रोएं प्रतिबंधित नहीं हैं, वरन ये छलनी हैं। स्वीडन में अश्लील प्रकाशन पर कोई प्रतिबंध नहीं है। वहां के नागरिक जानते हैं कि पोर्नो उद्योग से अर्जित आय को वहां की सत्ता, जनहित के लिए खर्च करती है। अजंता और खजुराहो की रचना प्रतिबंध मुक्त संस्कृति ने की है। पत्थरों पर काव्य रचना हुई है। गुणों से सजी अलंकृता सरल और सीधे सांड की आंख पर निशाना साधती हैं।

अपनी ताजा रचना में उन्होंने कॉरपोरेट संसार के दांव-पेंच को उजागर किया है। यह लाभ कमाने वाली संस्थाएं सारी फसलें हड़पना चाहती हैं, धरती की अंतड़ियों में डाके डाल चुकी है, मौसम को अपने इशारे पर चलाना चाहती हैं। एक उद्योगपति के निवास स्थान पर सीमित क्षेत्र में रेन मशीन लगी है और उसके चाहने पर बरसात होती है और वह पकौड़े खाता है। साधनहीन वर्ग का तेल निकल चुका है और उसके ऑर्गेनिक पकौड़े खाना चाहता है। व्यवस्था के कांटे-छुरी और चम्मच उसकी मेज पर सजे हुए हैं। महिलाओं के व्यक्तिगत और नौकरी से संबंधित मामलों में संतुलन का प्रयास है। किसी गुजरे हुए दौर में ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म का नाम था, ‘ग्यारह हजार लड़कियां’ आज संख्या करोड़ों तक पहुंच गई और जंजीरों की लंबाई भी सुविधाजनक स्तर तक पहुंचा दी गई है। वर्तमान में एक महिला के खिलाफ अपनी पूरी सेना उतार दी गई है। कोई नहीं जानता कि मतदान का ऊंट किस करवट बैठेगा। क्या ऊंट की पीठ ऊंची ही होती है। चढ़ाव और ढलान उसके हिस्से हैं।