फ़ैसला / पुष्पा सक्सेना
पिछले दो दिनों से अपना कमरा बंद किए पड़ी नीलांजना, अचानक दरवाजा खोल, बाहर आ खड़ी हुई थी-
”बाबूजी, मैंने फ़ैसला कर लिया है, मैं काजल भाभी का साथ दॅूगी। अदालत में उनके पक्ष में गवाही दॅूगी।“
नीलांजना की घोषणा से पूरे घर में सन्नाटा खिंच गया । बड़े भइया की मृत्यु पर मातमपुर्सी करने आए रिश्तेदारों पर विजली-सी गिरी थी। अम्मा कपाल पर हाथ मार विलाप कर उठी । बाबूजी की आँखों से अंगारे बरस रहे थे-
”ये बात मॅुंह से निकालने के पहले तू मर क्यों न गई? सगे भाई की हत्यारिन का साथ देगी! इसी दिन के लिए बड़ा किया था तुझे?“
”न्याय और अन्याय की समझ देने के लिए आपकी आभारी हूँ बाबूजी! कुछ देर ठंडे दिमाग से सोच देखिए, उनकी जगह आपकी बेटी होती तब भी क्या आप ऐसा ही सोचते?“
”बेशर्म कहीं की, बाप के सामने ऐसी बातें करते तेरी जीभ नहीं जलती! दूर हो जा मेरी आँखों के सामने से वर्ना..........“
आवेश में बाबूजी हाँफने लगे थे। रिश्ते के चाचाजी ने उन्हें सम्हाला था। सुमित्रा ताई ने नीलांजना को हाथ से पकड़, जबरन पीछे खींच, बाबूजी के सामने से हटा दिया था।
”देखती नहीं माँ-बाप का क्या हाल है? जवान बेटे की मौत का सदमा लगा है उन्हें।“
”वो बेटा ज़िंदा ही कब था ताई? तुम्हीं तो कहा करती थी, काश सुरेश हमेशा को सो जाता..“ निलांजना की आखें भर आई थीं।
”वो बात ठीक है नीलू, पर माँ-बाप के लिए संतान कैसी भी हो, ममता तो उमड़ेगी ही। ऐसी बातें करके उनका दिल दुखाने से क्या फ़ायदा बेटी?“
”काजल भाभी भी तो किसी की बेटी हैं ताई.........“
”अरे उस अभागिन के माँ-बाप होते तो क्या इस नरक में उसे झोंकते? तू क्या समझती है मुझे उस पर तरस नहीं आ रहा, पर इस वक्त कुछ कहना ठीक नहीं।“
”ठीक क्यों नहीं है ताई? पिछले दो दिनों से भाभी पुलिस कस्टडी में हैं, उनके साथ न जाने क्या हो रहा होगा और हम सब इस साजिश में शामिल हैं।“ निलांजना सचमुच रो पड़ी थी।
”मैं तेरी बात समझती हूँ बिटिया। उस अभागिन के अपने चाचा भी तो उसे हत्यारिन कह, अपना पीछा छुड़ा गए। न जाने क्या-क्या सहना है उसकी किस्मत में। भगवान दुश्मन को भी ऐसी तकदीर न दे।“ ताई ने आँचल से आँसू पोंछ डाले थे।
कुर्सी पर निढाल पड़ी नीलांजना की आँखों से आँसू बह रहे थे। सारी बातें बार-बार याद आ रही थीं.........
बड़े भइया की शादी के बाद से उनके कामों का दायित्व काजल भाभी को सौंप, अम्मा निश्चिन्त हो गई थीं। पति को नहलाने-धुलाने से लेकर कपड़े पहनाना, खाना खिलाना पत्नी का ही कर्तव्य है, ये बात अम्मा ने उन्हें अच्छी तरह समझा दी थी। अम्मा उन्हें दो बार स्वयंसिद्धा पिक्चर दिखा लाई थीं। बार-बार समझातीं,
”पत्नी के प्यार और त्याग से पति ठीक हो सकता है। अब सुरेश को तुझे ही सम्हालना है बहू।“ भोली-भाली काजल भाभी मॅुंह नीचा किए निःशब्द अम्मा की सीख सुनती रहती थीं।
मातृ-पितृ-विहीन काजल ने चाचा के घर, नौकरानी की तरह काम कर दिन काटे थे। उस पर भी चाची को उसकी दो रोटियाँ भारी थीं। सबके खा-पी चुकने के बाद, बचा-खुचा उसके सामने फंेक दिया जााता था। माँ-पिता एक साथ रेल-दुर्घटना में उसे अनाथ बना, चाचा के सहारे छोड़ चले गए थे। तब वह सातवीं कक्षा में पढ़ती थी। बस वहीं, मेधावी काजल की शिक्षा को विराम लग गया था। चाचा के बच्चों को स्कूल जाता देख, काजल का मन मचल उठता था, पर भगवान ने उसे असीम धैर्य दिया था। अपनी स्थिति उसके सामने स्पष्ट थी। चचेरी बहन की पुस्तकों की झलक देख पाने के लिए काजल को उसकी हज़ार मिन्नतें करनी पड़ती थीं। अगर चाचाी की निगाह किताबों में आँख गड़ाए काजल पर पड़ती तो उसकी शामत आ जाती।
उसी काजल के लिए चाचा ने उपयुक्त घर-वर खोज, मृत भाई के प्रति अपना कर्तव्य पूर्ण कर, जग की वाहवाही पाई थी। सब कुछ जानते-समझते भी, जन्म से मानसिक रूप से विक्षिप्त भइया के साथ उन्होंने काजल को बाँध दिया था।
आँखों में कितने सपने सॅंजोए काजल इस घर में आई थी। चाचा के प्रति वह कितनी कृतज्ञ थी, उनकी कृपा से उसे इतना अच्छा घर-वर मिल सका था। आश्चर्य इसी बात का था कि उस दिन बड़े भइया असामान्य रूप में शान्त रहे। उनको शांत देख, नीलांजना को लगा था शायद अम्मा-बाबूजी के जिन शुभचिन्तकों ने उन्हें समझाया था कि शादी के बाद भइया ठीक हो जाएँगे, वे सचमुच अनुभवी थे।
भइया की शादी का सबसे ज्यादा विरोध नीलांजना ने किया था। एम.ए. फाइनल में पढ़ रही नीलांजना, न्याय-अन्याय का अर्थ अच्छी तरह समझती थी। भइया का अभिशाप पूरे घर पर मॅंडराता था। बड़े भइया की जन्मजात विक्षिप्तता का कलंक झेलती अम्मा अपने आप में सिमट कर रह गई थीं। दादी हर समय बाबूजी को पट्टी पढ़ाती, उन्हें सुनाती रहती थीं,
”पगले को जन्म दिया है, ज़रूर इसके ख़ानदान में कोई पगला रहा होगा। तू ही समझ मनोहर बेटा, हमारे ख़ानदान से न जाने किस जन्म का बदला लिया इसके बाप ने। हमें धोखे में रख, शादी कर दी अपनी लाड़ली की। अब इस पाप का बोझा ढोने को हम रह गए हैं।“
अम्मा बताती हैं, पोता जन्मा है, सुनकर, वही दादी खुशी के मारे अम्मा की बलैयाँ लेते नहीं थकती थीं। भइया को सीने से चिपटाए, दादी अपनी किस्मत सराहती थीं। बचपन में बड़े भइया की अजीबोगरीब हरकतें, उनका असामान्य क्रोध, सबके मनोरंजन का कारण था। अम्मा के शब्दकोश में मानसिक विक्षिप्तता जैसा कोई शब्द ही नहीं था। जैसे-जैसे भइया बड़े होते गए उनकी असामान्यता स्पष्ट होती गई। अगर भइया बुद्धिहीन होते तो भी बात सही जा सकती थी, पर उन्हें गुस्से के ऐसे दौरे पड़ते कि घर-भर काँप जाता। हाथ में आई कोई भी चीज किसी के सिर दे मारना उनके लिए सामान्य बात थी। एक बात और, जब उन्हें ऐसे दौरे पड़ते तो चुन-चुन कर ऐसी अभद्र-अश्लील गालियाँ देते, जिन्हें अच्छेे घरों में सुनना भी पाप माना जाता। जैसे-जैसे वह जवान होते गए, गालियों के साथ अनकी लड़कियों की चाहत भी बढ़ती गई। डाँक्टर का कहना था, इस रोग में सेक्स के प्रति जबरदस्त आकर्षण होता है। शायद उनकी शादी कर देने में, बाबूजी के मन में यह बात भी रही हो।
बड़े बेटे की असमर्थता और विक्षिप्तता का ज़हर अम्मा जीवन-भर पीती रही थीं। ऐसे बेटे के साथ, कोख से और बच्चों को जन्म देने वाली अम्मा की हिम्मत पर नीलांजना को आश्चर्य होता है। अगर वह भी भइया जैसी ही होती तो? उस समय भी इस कल्पना से नीलांजना को कॅंपकॅंपी-सी आ गई। आठ बच्चों में से बस भइया और नीलांजना ही जीवित बचे थे। विधाता के इस क्रूर मजाक को अम्मा कभी नही भूल पातीं, काश उनका एक भी बेटा जीवित बच पाता जो दादी का सपना पूरा करता। दादी की बड़ी साध थी, उनकी अर्थी को उनका पोता कंधा दे। उन्हें विश्वास था उसके कंधे चढ़ वह सीधे स्वर्ग जाएँगी, पर उनकी मृत्यु के समय भी स्वर्ग जाती दादी को, बड़े भइया ने चुन-चुन कर कोसा था। पता नहीं दादी उन शब्दों पर सवार कहाँ पहुँची होंगी!
बचपन से भइया का चीखना-चिल्लाना सुनती नीलांजना बड़ी हुई थी। मुहल्ले-पड़ोस के लोगों के लिए भइया का अनर्गल प्रलाप मनोरंजन का साधन था। जिन एकाध दिनों घर में शांति रहती, पड़ोसी बालिका नीलांजना से कोंच-कोंच कर पूछते,
”क्या बात है नीलू, आज तुम्हारे घर में बड़ा सन्नाटा है? क्या सब लोग कहीं बाहर गए हैं?“
”नहीं तो, अम्मा खाना बना रही हैं और भइया सो रहे हैं।“ प्रायः दौरों के बाद भइया दो-एक दिन गहरी नींद सोया करते थे।
”अच्छा-अच्छा, शायद उन्हें डाँक्टर ने सोने की सुई दी होगी?“
”सुई क्यों देंगे, भइया तो अपने आप सोए हैं।“ भोली नीलांजना उनके अधरों की व्यंग्य-भरी मुस्कान का अर्थ नहीं समझ पाती थी।
”काश वह हमेशा के लिए सो जाए, इस नन्हीं जान को तो मुक्ति मिलती। उसका कलंक इसे भी खा जाएगा।“ मुहल्ले की सुमित्रा ताई बचपन से नीलांजना को बहुत प्यार करती थीं, पर भइया के लिए कही वैसी बातों पर नीलांजना मचल जाती,
”ऊॅंहूँ, तुम बहुत खराब हो ताई, भइया सोते रहेंगे तो हम किससे बात करेंगे?“ कभी-कभी भइया पर जब दौरे नहीं पड़ते, वे नीलांजना के साथ सचमुच ठीक बात करते थे।
”अरे मैं कोई उसकी दुश्मन थोड़ी हूँ बेटी, मैं तो तेरे भले की सोचती थी............“
ताई की उस बात का अर्थ अब नीलांजना अच्छी तरह समझती है। भइया के कारण, पूरे परिवार ने अपने को घर की चहारदीवारी के अन्दर कैद कर लिया था। ऐसे बेटे को लेकर किसी रिश्तेदारी में जाना भी संभव नहीं था। भइया के कारण नीलांजना ने भी कम अपमान नहीं झेला था। साथ की सहेलियाँ जब भी उससे पराजित होतीं तो ‘पगले की बहन पगली’ कहकर उससे अपनी पराजय का पूरा मूल्य चुका लेतीं। आँखों से आँसू ढलकाती नीलांजना भी अम्मा की गोदी में सिर छिपा उन्हें उलाहना दे डालती,
”तुम बहुत गन्दी हो अम्मा, इत्ता गन्दा भइया क्यों लाई? सबके भाई कित्ते अच्छे हैं। मेरा भाई गंदा है, वो पागल हैं.....“
”छिः बेटी, भाई को ऐसे नहीं कहा जाता। भगवान से प्रार्थना कर, तेरा भाई ठीक हो जाए, फिर वह तुझे खूब प्यार करेगा नीलू।“
अम्मा की उन बातों पर नीलांजना को कितना विश्वास था! भगवान से उसने कितनी विनती की कि वो उसके भइया को ठीक कर दें। उसके भइया को कोई पागल न कहे। पर भगवान ने उसकी कहाँ सुनी थी!
जैसे-जैसे नीलांजना बड़ी होती गई, भाई की विक्षिप्तता उसे विचलित करती गई। बचपन में भाई जब चीखता-चिल्लाता, वह कौतुक से उस दृश्य को देखती। कभी-कभी बाबूजी मोटा डंडा उठा उनकी पिटाई भी कर देते, उस समय उसका बाल-हृदय भाई के लिए करूणा से रो उठता। एक बार उसने बाबूजी के हाथ में अपने दाँत भी गड़ा दिए थे। बदले में बाबूजी का करारा थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा था।
समझदार होती नीलांजना के सामने स्थिति स्पष्ट होती गई थी। उसका परिवार औरों से अलग क्यों है? असामान्य भाई के लिए उसके मन में करूणा के साथ आक्रोश भी उभरता था। भइया के सामान्य रहने का अर्थ गाली-गलौज बन्द रहना होता था। किसी के प्रति उनके मन में प्यार या ममता जैसे भाव नहीं थे। युवा होती नीलांजना को भाई एक खतरनाक जीव-सा लगने लगा था। वह प्रायः उसके सामने पड़ने से कतराती।
एक दिन सुमित्रा ताई ने अम्मा से कहा था, ”बहू, नीलू को सुरेश के पास अकेले मत छोड़ना। तू तो सब समझती है। सुरेश में कोई समझदारी तो है नहीं....................“
उस दिन से अम्मा भी नीलांजना के प्रति विशेष रूप से सतर्क रहने लगी थीं। स्वयं नीलांजना कितना डर गई थी!
एक बात के लिए नीलांजना अम्मा-बाबूजी और दादी को कभी क्षमा नहीं कर सकती, उन्होंने भइया को मंेटल हाँस्पिटल में सबके लाख समझाने के बावजूद भर्ती क्यों नहीं कराया। शहर के डाँक्टर की दवा से उन्हें नींद भले ही आ जाती, पर उनकी विक्षिप्तता में कोई अन्तर नहीं आता। डाँक्टर का कहना था, भइया के मस्तिष्क की बनावट में जन्मजात जो कमी है, उसकी क्षति-पूर्ति संभव नहीं।
नीलांजना बाबूजी से बार-बार भइया को किसी मेंटल हाँस्पिटल में भर्ती कराने की विनय करती एपर अस्पताल मे भेजने के नाम पर ही अम्मा अन्न-जल त्याग, रोना शुरू कर देतीं। स्वयं बाबूजी की भी यही दलील थी कि लड़के को पागलखाने में भर्ती कराने से परिवार का सम्मान मिट्टी में मिल जाएगा। लोग क्या कहेंगे, मुख्तार साहब का बेटा पागलखाने में है। लड़की की शादी मुश्किल हो जाएगी। पता नहीं बाबूजी ये कैसे सोच पाते थे कि भइया के घर में रहने से नीलांजना की शादी आसान हो जाती। व्यंग्य की एक मुस्कान नीलांजना के ओठों पर तैर आई थी।
घर के असामान्य वातावरण, भइया के चीखते-चिल्लाने का आक्रोश नीलिमा के काँलेज की डिबेटों में उतर आता। विरोधी पक्ष की बात इस तरह काटती कि उनसे कोई जवाब ही न बन पाता।
ऊपर से बेहद सामान्य और शान्त दिखने वाली नीलांजना के अन्तर में अन्धड़-सा चलता रहता। बाबूजी जहाँ भी उसकी शादी के लिए जाते भइया का नाम वहाँ पहले पहुँच जाता। नीलांजना हमेशा सोचती, अम्मा के उन छह बच्चों की जगह भैया क्यों न चले गए! काश वह चले जाएँ......‘कभी-कभी नीलांजना बेवजह लोगों से उलझ पड़ती। सामान्य कही गई बातों में छिपे अर्थ पढ़ने की कोशिश करती। सबसे ज्यादा गुस्सा उसे भइया पर आता, स्वयं असामान्य होते हुए भी वह तो सामान्य जीवन जी रहे थे और सामान्य नीलांजना, असामान्य जीवन जीने को विवश थी। अनजाने ही नीलांजना अपने आप में कई काम्प्लेक्स डेवलप कर बैठी थी।’
अगर कभी किसी लड़के ने नीलांजना की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया, नीलांजना ने उसे झिड़क दिया। दोस्तों में सिर्फ उषा ही उसके निकट आ सकी थी। अपने मन की बात उषा से कह, नीलांजना हल्की हो जाती थी। बी.ए. के बाद नीलांजना ने एम.ए. में दाखिला ले लिया और उषा उसी शहर में नौकरी कर रही थी। उषा के पिता के स्वर्गवास के बाद उसके बड़े भाई ने घर को सम्हाला था। अब उषा भाई के हाथ मजबूत करने को दृढ़-प्रतिज्ञ थी। अपनी शादी की बात उसने भुला दी थी।
”जब तक बिना दहेज कोई शादी का प्रस्ताव नहीं आता, मैं विवाह नहीं करूँगी। भइया ने इस लायक बनाया यही क्या कम है नीलू, अब उन पर और बोझ डालना ठीक नहीं है न?“ कितनी बार नीलांजना सोचती, काश उसके भइया भी उषा के भाई जैसे होते!
दृढ़ निश्चय के साथ आँसू पोंछ, नीलांजना उठ खड़ी हुई थी। इस समय उषा की उसे सख्त जरूरत महसूस हो रही थी।
दरवाजा खोलते ही, उड़े-उड़े चेहरे, अस्त-व्यस्त वेशभूषा के साथ खड़ी नीलांजना को देख, उषा चैंक उठी थी-
”अरे नीलू...... क्या हुआ, तबियत तो ठीक है?“
”सब बताती हूँ, पहले अन्दर तो आने दो।“
नीलांजना को अन्दर आने की राह दे, उषा ने दरवाजा बन्द कर दिया था।
”एक कप चाय मिलेगी उषा?“
”अभी लाई...........“
नीलांजना को चाय थमाती उषा की सवाल पूछती निगाहें उसके मुख पर जमी हुई थीं। एक घूँट चाय गले से नीचे उतार नीलांजना ने उषा को जवाब दिया था,
”भइया नहीं रहे उषा!“
”क्या ......कब........कैसे?“
”बता पाना उतना आसान नहीं, तुझे मेरी मदद करनी होगी उषा।“
”तू बता तो सही, क्या हुआ नीलू?“
”काजल भाभी को पुलिस ले गई है।“
”क्या..........आ..........“
”हाँ उषा, भइया के बलात्कार से बचने के लिए उसने बाबूजी के डंडे से उनके सिर पर वार किया और भइया...........“
”हे भगवान, ये क्या किया भाभी ने!“
”वही, जो उन्हें बहुत पहले करना चाहिए था।“
”ये तू क्या कह रही है नीलू, होश में तो है?“
”पूरे होश में तो अब आई हूँ। पिछले दो दिनों से जो भी संशय थे, सब छंट गए हैए उषा। काजल भाभी को मुक्ति मिलनी ही चाहिए।“
”तेरे भाई की उन्होंने हत्या की है और तू.........?“
”हाँ उषा, उन्होंने हत्या नहीं की, अपनी असहनीय यातना का अन्त किया है। बलात्कार के विरूद्ध रक्षा का अधिकार स्त्री को है न?“
”छिः नीलू,एतू ये कैसी भाषा बोल रही है! पति अपनी पत्नी के साथ बलात्कार.....छिः छिः!“ उषा का मुँह विकृत हो उठा था।
”बलात्कार का मतलब जानती है न उषा? विवाह की प्रथम रात्रि काजल भाभी की दहशत-भरी चीखें सुनाई दी थीं। घर के सारे प्राणी जगते हुए भी सोने का बहाना किए पड़े रहे। मैंने उठने की कोशिश की तो अम्मा ने जबरन रोक दिया था, ऊपर से डाँट लगाई थी, ‘नए ब्याहलों के कमरे में तेरा क्या काम! खबरदार जो वहाँ गई।’“
”चाचाी ने हॅंसते हुए कहा था, ‘अरे भोली लड़की है, पहले-पहले ऐसा ही होता है बेटी, तू सो जा।’“
”तभी काजल भाभी हाँफती दौड़ी आई थीं, साँस घोंकनी-सी चल रही थी, साड़ी का आँचल पीछे घिसटता आ रहा था-
‘मुझे बचा लीजिए, मैं वहाँ नहीं जाऊॅंगी.... अम्मा जी, मुझे बचा लीजिए।’“
”भाभी के पीछे दहाड़ते आए भइया ने उन्हें दबोच लिया था। उनकी पकड़ में पंख कटी गौरैया-सी भाभी छटपटा रही थीं। मैंने भाभी को बचाना चाहा तो अम्मा न हाथ पकड़ खींच लिया था।“
”सुबह भाभी के पूरे शरीर में पड़ी खरोचें, टूटी चूड़ियों से बने जख्म-तब मैंने वैसा ही समझा था उषा, पर उसके बाद वे जख्म कभी नहीं भरे थे। हाँ भाभी ने उन्हें अपनी नियति मान स्वीकार कर लिया था। वैसे भी वह जा भी कहाँ सकती थी! डनके लिए तो सारे दरवाजे बन्द थे।“
”भइया की शादी क्यों की गई एनीलू?“ उषा सिहर उठी थी।
”अम्मा-बाबूजी को उनके कुछ शुभचिन्तकों ने सलाह जो दी थी कि भइया शादी के बाद ठीक हो सकते है। उन्होंने तो अनगिनत उदाहरण भी दे डाले थे। तू तो जानती है उषा, जिस देश में लड़कियाँ तीस-चालीस रूपयों में बेची जा सकती हैं वहाँ एक एक्सपेरिमेंट के लिए एक जीवन बलि चढ़ गया।“
”अफ़सोस यही है कि इस त्रासदी की साज़िश में मैं भी सहभागी हूँ। अपना विरोधी स्वर ऊॅंचा क्यों न उठा सकी! काश भाभी की शादी एक मजदूर से हो जाती तो वह कितनी सुखी होतीं!“
”उनके चाचा तेरे भइया की दिमागी हालत जानते थे एनीलू?“
”बहुत अच्छी तरह। उन्होंने अनाथ भाई की बेटी के लिए घर और वर दोनों दे दिए। धन्य हैं ऐसे चाचा। ऐसे ही धर्मात्मा लड़की को कोठे पर न भेज, शादी का लाइसेंस दिला, उस पर बलात्कार की खुली छूट देते हैं।“
”धिक्कार है ऐसे चाचा पर! मुझे मिल जाए तो जान से मार डालूँ, नीच-कमीना!“ उषा उत्तेजित हो उठी थी।
”कभी तो ऐसा लगता है उषा ये सारी दुनिया बलात्कारियों से भरी पड़ी है। शराफ़त के मुखौटे लगाए, ये समाज में खुले घूमते हैं, जहाँ मौका मिला नहीं कि मुखौटा उतार फेंकते हैं। तू ही सोच, अम्मा को आठ बच्चों की माँ बनाने में क्या बाबूजी ने उनकी खुशी-नाखुशी देखी होगी? न जाने कितनी बार उन्हें जबरन वो सब कुछ झेलना पड़ा होगा। एक अम्मा ही क्यों, घर-घर की यही कहानी है। औरत दिन-भर घर की चक्की में पिस चूर-चूर हो जाए, पर पति की इच्छा के आगे उसे समर्पण करना ही पड़ता है। इच्छा-विरूद्ध जबरदस्ती क्या बलात्कार नहीं हैए उषा?“नीलांजना की आँखें जल उठी थीं।
”सच नीलू, तेरी बातों से तो यही लगता है, कभी अपने घरवाले भी बलात्कार की साज़िश में शामिल होते हैं।“
”सामूहिक बलात्कार में असहनीय शारीरिक-मानसिक कष्ट होता है, पर जब पूरा परिवार ही अपनी साज़िश के तहत किसी लड़की पर बलात्कार की परमीशन दे दे, तब उस पीड़ा को क्या नाम देगी एउषा? काजल भाभी के साथ वही हुआ है।“
”उस दिन की बात बताएगी नीलू, जब काजल भाभी ने वो साहसी निर्णय लिया था?“
”पता नहीं भाभी का यह सोचा-समझा निर्णय था या सब कुछ अचानक घट गया। सच तो ये है, कई बार मेरे दिल में भी भइया को ख़त्म करने की बात आई थी, पर उस ख्याल को हमेशा जबरन परे कर दिया। शायद भाभी के मन में भी दुविधा रहती होगी।“
”उस दिन भइया को खाना खिलाने गई भाभी को भइया ने अपनी फौलादी बाँहों में जकड़ उनके शरीर को बुरी तरह दाँतों से काटना शुरू कर दिया था। भाभी का प्रतिरोध उनकी शक्ति के सामने ठहर नहीं सकता था। शायद पिछले दो-तीन दिनों से भइया के आक्रमणों से घबराकर, भाभी रात में बाहर से उनका कमरा बन्द कर, स्वयं बरामदे में सो जाती थीं। उस दिन शायद भइया उनसे पूरा बदला ले रहे थे। रातों में भइया की गालियों की बौछार सब सुनते थे-“
”‘कहाँ भाग गई स्साल्ली इधर आ। खोल मेरा कमरा।’“
”काजल भाभी के शरीर की चाहत में, वह जो कुछ कहते, बता पाना कठिन है एउषा। अम्मा ने भाभी को उनके कमरे में सोने को जब विवश करना चाहा तो मैं झल्ला पड़ी थी-“
”‘अम्मा, तुम लाख चाहो, भइया को भाभी ठीक नहीं कर सकतीं। पिक्चरों में दिखाई कहानियाँ हमेशा सच नहीं होती, समझी!’ अच्छा हो हम लोग उन्हें अकेला छोड़ दें। वह भइया की भलाई के लिए भी तो उन्हें अपने से अलग रख सकती हैं न?“
”हाँ, उस दिन काजल भाभी की दहशत-भरी चीखों पर जब तक सारा घर पहुँचा, खून से लथपथ भइया अंतिम साँसें ले रहे थे और बदहवास काजल भाभी ने दौड़ कर अपने को कमरे में बन्द कर लिया था। कुछ दिन पहले सुमित्रा ताई ने ठीक कहा था,
‘सुरेश के पास बहू को अकेले नहीं भेजना, किसी के साथ भेजो या सुरेश के हाथ बाँध कर रखो, वर्ना कुछ भी हो सकता है। मुझे तो उसकी दिमागी हालत ठीक नहीं लगती नीलू की माँ।’“
”अम्मा को ताई की वो बात कितनी बुरी लगी थी, पर सच तो ये था कि भइया की दिन-ब-दिन खराब होती दिमागी हालत उन्होंने भाँप ली थी। हम लोग उन्हें झेलने के अभ्यस्त हो चुके थे शायद इसीलिए फ़र्क पता नहीं लगता था। सच कहूँ उषा, पिंजड़े में बन्द खॅूख्वार जानवर के सामने भाभी को हम सब परोसते रहे- इस उम्मीद में कि शायद भइया ठीक हो जाएँगे।“ नीलांजना का स्वर कडुआ आया था।
”काजल भाभी को पुलिस में किसने दिया है नीलू?“
”सब कुछ इतना अचानक घटा कि किसी को होश ही नहीं था। पड़ोस के रामलाल जी ने फ़ोन करके पुलिस बुला ली थी। उत्तेजित बाबूजी ने काजल भाभी के खिलाफ़ रिपोर्ट लिखा दी। कोख-जाए के लिए अम्मा-बाबूजी विकल थे। जिसकी ज़िंदगी मौत से बदतर थी, जिसके मरने की मन-ही-मन सब कामना करते थे। मौत के बाद वह कितना प्रिय हो उठा था, बता नहीं सकती........।“
”बेचारी काजल भाभी .... उनका क्या होगा?“
”उन्हीं की मदद हमें करनी है उषा। मैं भरी अदालत में भाभी के ऊपर हुए अत्याचारों को बताऊॅंगी। वे निर्दोष हैं। दोषी हम लोग हैं जिन्होंने उन्हें इस स्थिति तक पहुँचाय है।“
”एक बार फिर सोच ले, तेरे इस फैसले का अम्मा-बाबूजी पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। अच्छा हो उन्हें ही समझा, शायद गुस्सा ठंडा होने पर वे भाभी को माफ़ कर दें।“
”उन्हें समझा पाना असम्भव है एउषा! बेटे की मौत से वे बदले की आग में जल रहे हैं; पर मैं काजल भाभी को इस आग में नहीं जलने दॅूगी, ये मेरा पक्का फैसला है, भावुकता नहीं।“
”अगर अदालत ने उन्हें छोड़ भी दिया तो वे कहाँ जाएँगी नीलू?“
”दुनिया बहुत बड़ी है उषा, किसी महिला संस्था में कहीं-न-कहीं उन्हें शरण जरूर मिलेगी।“
”पर उनके माथे पर हत्या का कलंक लग गया है, समाज उन्हें जीने नहीं देगा।“
”लंदन में यही भारतीय स्त्री अत्याचारी पति को जलाकर मुक्ति पा सकती है, अपना नया जीवन जीने को स्वतंत्र है, फिर यहाँ वैसा क्यों संभव नहीं है उषा, इसीलिए न कि हम लड़कियों को बचपन से पति की क्रीत दासी का रोल निभाने की ट्रेनिंग दी जाती रही है? लड़कियों की इस भूमिका में बदलाव लाना है उषा। मैं उन्हें अपने पास रखॅूगी, उसके लिए किसी का भी विरोध सह सकती हूँ मैं, पर भाभी के प्रति प्रायश्चित तो करना ही है। वह अपने पाँवों पर खड़ी हो जाएँ यही मेरा उद्देश्य है। तू मेरा साथ देगी न उषा?“
”मैं तुझसे कब अलग रही हूँ नीलू, बता क्या करना होगा?“ उत्तेजित नीलांजना को मुग्ध दृष्टि से ताकती उषा के स्वर में दृढ़ निश्चय था।
”सबसे पहले हमें एक वकील करना है, भाभी को तुरन्त ज़मानत पर छुड़ाना जरूरी है। एक बात और, अभी मेरे पास भाभी को रखने की कोई जगह नहीं है, उन्हें अपने घर रख सकेगी उषा? मुझे काँलेज में जाँब मिल रहा है, वहीं क्वार्टर भी मिल जाएगा, तब तुझे परेशान नहीं करूँगी।“
”इसमें परेशानी की कोई बात नहीं नीलू, पर तेरी नौकरी पर काजल भाभी की वजह से कोई आँच न आ जाए?“ उषा शंकित थी।
”नहीं, उसके लिए मैं पूरी तरह से निश्चिन्त हूँ। काँलेज की प्राचार्या मेरे जीवन के इस कड़वे सत्य से अच्छी तरह परिचित हैं। सच कहूँ तो उन्होंने हमेशा मुझे हिम्मत दी है, वर्ना मैं अपनी कुंठाओं में जकड़, शायद कुछ न कर पाती। उन्होंने मेरी कुंठाएँ दूर कर, मुझे आत्मविश्वास दिया हैं।“
”तब क्यों न हम उन्हीं के पास चलें, वही किसी अच्छे वकील की व्यवस्था कर देंगी। उनका अनुभव हमारे लिए जरूरी है नीलू।“
”हाँ, यही ठीक रहेगा। वैसे भी अपने इस फैसले के बाद वापस घर तो लौट नहीं सकती। मेरे रहने की भी उन्हें ही व्यवस्था करनी होगी।“
मुँह पर आई उत्साह की चमक के साथ नीलांजना प्राचार्या के घर जाने को उठ खड़ी हुई थी।