फालके पुरस्कार से वंचित धर्मेंद्र और सितारा महिला फिल्मकार / जयप्रकाश चौकसे

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फालके पुरस्कार से वंचित धर्मेंद्र और सितारा महिला फिल्मकार
प्रकाशन तिथि :22 मार्च 2017


धर्मेंद्र ने लंबी पारी खेली है और अपने शिखर के दिनों में छोटे निर्माताओं की फिल्म में अभिनय किया है। धर्मेंद्र अभिनीत फिल्मों से राज्य सरकारों ने मनोरंजन कर के रूप में खूब धन कमाया है और केंद्र सरकार को भरपूर आयकर भी दिया है तथा भाजपा का प्रचार भी किया है। उनकी पत्नी हेमामालिनी राज्यसभा की सदस्य रही हैं। उनके समकालीन और उनसे कमतर अभिनेताओं को ढेरों पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। उन्हें सबसे कम पुरस्कार मिले हैं। उन्होंने फिल्म निर्माण में धन लगाया और 'हरे रामा हरे कृष्ण' परिसर के निकट समुद्र तट पर उनका सनी डबिंग थिएटर दशकों से सक्रिय है। आज भी फिल्म की शूटिंग के बाद के तमाम तकनीकी काम उनके सनी स्टूडियो में होते हैं। सारांश यह कि पंजाब के पिंड फगवाड़ा से आए स्कूल शिक्षक के इस धरती पुत्र ने फिल्मों से कमाया तो आय का एक अंश उद्योग में निवेश भी किया है। उनके समकालीन और उनसे अधिक कमाने वाले अमिताभ बच्चन ने फिल्म उद्योग को छोड़कर अन्य उद्योगों में पूंजी निवेश किया है और रिलायंस की तरह अनेक कंपनियों के ब्ल्यू चिप शेयर उन्होंने खरीदे हैं। जुहू विले पार्ले स्कीम जैसे श्रेष्ठि वर्ग के रहवासी क्षेत्र में उनके तीन भव्य बंगले हैं। अनेक देशों के राज प्रमुखों के साथ उनकी मित्रता है। उन्होंने कोई गुनाह नहीं किया है परंतु अपने उद्योग में ही पूंजी निवेश नहीं किया है। संभवत: फिल्म उद्योग की अर्थव्यवस्था और पूंजी निवेश में उन्हें विश्वास नहीं है। बरगद के वृक्ष की शाखाएं जमीन से घुसकर अपने आपको बल देती है। अमिताभ बच्चन को फिल्म उद्योग वृक्ष से फल मिले हैं परंतु उसी उद्योग को उन्होंने सींचा नहीं है। उनके पुत्र अभिषेक अभिनीत अधिकतर फिल्मों के पूंजी निवेशक को घाटा हुआ है। उनका पूंजी निवेश उन्हें कुशल व्यापारी तो बनाता है परंतु अपने ही उद्योग के विकास से दूरी बनाए रखना कुछ इस तरह है मानो गुरु दक्षिणा भी नहीं देना है परंतु इस तरह से व्यक्तिगत विचार किसी तरह के आलोचना क्षेत्र में नहीं आते। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है। किसी की लाभ केंद्रित विचारधारा की आलोचना नहीं की जा सकती।

फिल्म उद्योग के प्रथम सितारे अशोक कुमार ने उन्हें प्रथम अवसर देने वाली कंपनी बॉम्बे टॉकीज के आर्थिक संकट के दौर में उसे बचाने के भरपूर प्रयास किए थे। पृथ्वीराज कपूर ने अभिनय से अर्जित धन रंगमंच पर लगाया और अपने बलबूते पर 17 वर्ष तक भारत के विभिन्न शहरो ं में जाकर नाटक मंचित किए! वे नाटक समाप्त होने पर झोेली फैलाए दर्शकों से धन लेते थे, जो सामाजिक व शैक्षणिक संस्थाओं को भेजा जाता था। पृथ्वी थिएटर की अपनी आय केवल दर्शक द्वारा खरीदे प्रवेश-पत्र से होती थी। पृथ्वी थिएटर के सदस्य रेलगाड़ी में तृतीय श्रेणी में यात्रा करते थे और सभी सदस्य साथ बैठक समान भोजन करते थे। आज की तरह सितारे के लिए भोजन पांच सितारा होटल से नहीं बुलवाया जाता था। पृथ्वी थिएटर का कार्य मंत्र था, 'कला देश की सेवा में'। कोई आश्चर्य नहीं कि कपूर परिवार के हर सदस्य ने फिल्मों से कमाकर फिल्मों या रंगमंच के लिए ही पैसा लगाया। शशि कपूर और उनकी पत्नी जेनिफर केंडल कपूर ने भी जुहू में पृथ्वी थिएटर की स्थापना की, जिसमें बिके हुए टिकट का बीस प्रतिशत ही किराया लिया जाता है, जिसके कारण नाटक मंचित करने वाली किसी भी संस्था को कभी घाटा नहीं होता। उस परिसर के कैंटीन में स्वादिष्ट भोजन लागत पर ही बेचा जाता है और संघर्ष करने वाले कलाकार प्राय: वहां आकर ही भोजन करते हैं।

सर्वकालिक महान अभिनेता मोतीलाल ने भी अपनी सारी पूंजी लगाकार 'छोटी छोटी बातें' नामक सौदेश्य मनोरंजन रचा था, जिसमें उन्हें बहुत घाटा हुआ। दुर्गा खोटे, शोभना समर्थ और लीला चिटणिस ने भी फिल्म निर्माण में धन लगाया। आज प्रियंका चोपड़ा और अनुष्का शर्मा फिल्म निर्माण में सक्रिय है। अनुष्का शर्मा की 'एनएच टेन' सार्थक सफल फिल्म थी और अब 'फिल्लौरी' प्रदर्शित होने जा रही है। ज्ञातव्य है कि अभूतपूर्व सुंदरी एवं विदुषी महिला सितारा वनमाला ने 'श्यामची आई' फिल्म का निर्माण किया था, जिसे शिखर राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ था। वे ग्वालियर राजघराने के मंत्री की सुपुत्री थीं। भगवान दादा तो फिल्म में पूंजी निवेश के कारण ही अपने जीवन के अंतिम वर्षों में झोपड़पट्‌टी में रहे।'मुगल-ए-आजम' के फिल्मकार के. आसिफ ने कभी कार नहीं खरीदी, सारा जीवन टैक्सी व लोकल ट्रेन में सफर किया। सारांश यह कि प्राय: मनुष्य अपने उद्योग को ही पौधों की तरह सींचता है। यह दु:ख की बात है कि नेता अपने निर्वाचिन क्षेत्र में भी स्वयं धन लगाकर कोई उद्योग खड़ा नहीं करते। उनके आदेश पर राजधानी से निकले हुए रुपए का मात्र चार आना ही विकास में लग पाता है, शेष राशि प्रशासन व भ्रष्टाचार की नालियों में बह जाता है। नेता अभिनेता की तरह अपने कार्यक्षेत्र को समृद्ध क्यों नहीं करता? संभवत: अधिकतर नेता राजनीति में हुई दुर्घटनाओं से जन्मे है। पार्षद अपनी गली में एक प्याऊ तक का निर्माण नहीं कराता। यह एकतरफा लूट केवल राजनीति में ही हो रही है। चोरी करने वाले उद्योगपति भी अपने उद्योग में धन लगाते हैं। धीरूभाई अंबानी अमीर घराने में नहीं जन्मे थे। उन्होंने शेयर मार्केट से साम्राज्य खड़ा कर लिया। बचत जीवन व अर्थशास्त्र की आधारभूत पूंजी है परंतु अपने उद्योग को सींचना, विकसित करना भी उनका काम रहा है। राजनेता मात्र ही यह कार्य नहीं करते। अगर हर नेता अपने निर्वाचन क्षेत्र में लघु उद्योग स्वयं के धन से करे तो एक स्वस्थ वोट बैंक का निर्माण भी हो सकता है। धर्म आधारित व जाति आधारित वोट बैंक का जमाना लद गया है। अब सार्थक कार्य से ही स्वस्थ वोट बैंक बन सकता है। यदि गोरक्षक होने का दंभ रखने वाले स्वयं के खर्च से दस गाएं भी पालें तो देश में पुन: दूध की नदियां बह सकती हैं।