फासिस्ट सिनेमा की महारानी लेनी / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :29 दिसम्बर 2014
 लेनी रीफेन्सथाल सन् 2002 में एक सौ एक वर्ष की आयु में मरीं आैर पूरी बीसवीं सदी में वे एक विवादास्पद व्यक्तित्व रहीं। कुछ आलोचक उन्हें वृतचित्र कला की महारानी मानते हैं आैर अधिकांश का ख्याल है कि उनकी सारी कथा फिल्में आैर वृतचित्र मात्र नाजी विचार का प्रचार था तथा नृशंस हिटलर को उन्होंने गरिमामय ढंग से प्रस्तुत किया था। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि उनके वृतचित्र वृतचित्र नहीं माने जा सकते क्योंकि पूरा ध्वनि-पट्ट उन्होंने घटना के बाद स्टूडियो में रिकॉर्ड किया है जबकि इस विधा में घटना स्थल पर रिकॉर्ड किया ध्वनि-पट्ट ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए था। मसलन 1936 के बर्लिन ओलिंपिक पर प्रस्तुत उनका वृतचित्र दो खंडों में है आैर हर खंड सौ मिनिट का है। स्टूडियो में धावक की सांसों आैर हांफने इत्यादि को उन्होंने स्टूडियो में रिकॉर्ड किया है। उनके सारे वृतचित्रों के साउंड ट्रैक इंजीनियर्ड हैं, अत: ये विशुद्ध वृतचित्र कला नहीं है। उनकी सारी फिल्मों को फासिस्ट प्रोपेगन्डा माना जाता है। सन् 1932 से 1945 तक फासिस्ट प्रोपेगन्डा अपने अनेक रूपों में सामने आया है आैर हिटलर एकमात्र शासक थे जिनका प्रचार मंत्री गोएबल्स का यह कथन कि 'एक झूठ को सौ बार बोलो तो वह सच हो जाता है' कालखंड में लोकप्रिय रहा है आैर इस पर बहुत अमल भी किया गया है।
प्रोपेगन्डा का दूसरा रूप कम्युनिस्ट प्रोपेगन्डा के रूप सामने आया परंतु प्रोपेगन्डा में प्राय: मजदूर आैर किसान की इच्छा आैर पसीना भी देखा जा सकता है जो लेनी के काम की तरह झूठ नहीं है। फासिस्ट प्रोपेगन्डा में केवल तानाशाह का असर उसको मानने वालों पर कैसा विलक्षण पड़ता है, यही दिखाया जाता है। लेनी के वृतचित्रों में हिटलर के भाषण के समय श्रोताआें की मुद्राआें के क्लोज-अप होते थे कि वे कैसे मंत्रमुग्ध होकर उसे सुन रहे हैं। इस कला को वशीकरण या मॉस हिप्नोसिस की तरह प्रस्तुत किया जाता था। हिटलर का अपने कलाकारों को निर्देश था कि जो लोग आर्यन प्रभुत्व को नहीं मानते, उन 'बीमारों' का इलाज करना आप लोगों का काम है। उस दौर में आर्य सर्वश्रेष्ठ है कि नारा नहीं लगाने पर कोड़ा पड़ता था। कम्युनिस्ट प्रोपेगन्डा में इस तरह का बल प्रयाेग नहीं था।
लेनी के पिता सख्त अनुशासन पसंद करने वाले व्यक्ति थे आैर उनसे छुपकर उनकी माता अमेली ने उन्हें एक नृत्य स्कूल में दाखिल किया आैर उनके पहले प्रदर्शन की प्रशंसा पिता तक पहुंची तो उन्होंने अपनी पत्नी को दंडित किया। बहरहाल लेनी अत्यंत सुंदर महिला थीं आैर कई लोगों का कहना है कि हिटलर उनकी कला नहीं वरन् सौंदर्य से अभिभूत था। हर तानाशाह ने इश्क भी किया है, यह कितना अजीब लगता है। बहरहाल लेनी ने अनेक मूक फिल्मों में नायिका के रूप में ख्याति प्राप्त की। जर्मन अवाम उसका दीवाना था। बाद में उसने अपनी फिल्मों के निर्देशक से फिल्म विद्या का ज्ञान प्राप्त किया। उनकी 'माउंटेन' नामक फिल्म ने उनके लिए जर्मन लोगों के बीच जुनून पैदा किया। हिटलर ने उन्हें 1934 में न्यूटमबर्ग में होने वाली उनकी रैली तथा विराट आम सभा के फिल्मांकन के लिए निमंत्रित किया आैर लेनी ने हिटलर को इस ढंग से प्रस्तुत किया मानो वह कोई अवतार हो। हिटलर के सिर के ठीक पीछे सूर्य आने को लेनी ने कुछ इस ढंग से फिल्माया मानो उसके व्यक्तित्व से ही किरणें फूट रही हैं आैर अवाम मंत्रमुग्ध हो गया मानो उसने किसी अवतार के आने के महान क्षण को स्वयं देखा हो। इस वृत चित्र का नाम था 'ट्रायम्फ ऑफ विल' आैर इसने ही हिटलर किवदंती को सशक्त किया।
इसके प्रभाव से प्रसन्न हिटलर ने लेनी को बर्लिन में 1936 में होने वाले ओलिंपिक का अधिकृत फिल्मकार घोषित किया। वह हिटलर के इतने निकट थी कि उसके मुंह से निकले शब्द को आज्ञा माना जाता था। उसने तीस कैमरों आैर 120 तकनीशियनों की सेवा लेकर 'ओलम्पियाड' शूट की आैर दो लाख फीट से अधिक रॉ-स्टॉक का प्रयोग किया जबकि संपादित फिल्में महज 200 मिनिट की बनी। निर्यात का व्यंग्य देखिए कि जिस न्यूरमबर्ग हिटलर रैली के फिल्मांकन के दम पर उन्हें किसी भी मंत्री से अधिक महत्वपूर्ण माना गया आैर जर्मनी में वे सबसे अधिक शक्तिशाली महिला मानी गई, उसी न्यूरमबर्ग में दूसरे विश्वयुद्ध के पश्चात लेनी को कटघरे में खड़े रहकर अपने कार्यों की सफाई देनी पड़ी। ज्ञातव्य है न्यूरमबर्ग ट्रायल पर बाद में महत्वपूर्ण कथा फिल्म भी बनी है। लेनी ने हिटलर आैर गोएबल्स से यह ीखा था कि तथ्यों को तोड़-मरोड़कर कैसे प्रभावोत्पादक ढंग से प्रस्तुत किया जा सकता है। उसने उसी कला के आधार पर कुछ ऐसे कागज प्रस्तुत किए मानो गोएबल्स उससे नफरत करता था आैर उस 'आेलम्पियाड' बनाने के लिए ओलंपिक कमेटी ने अनुबंधित किया था तथा हिटलर से उन्होंने इसके लिए कुछ धन नहीं लिया था तथा सारे तीस कैमरे उसके अपने थे। उसने यह दिखाने की चेष्टा की कि वह शिखर सितारा थी आैर उसका दीवाना था पूरा जर्मनी, अत: हिटलर ने उसकी सितारा हैसियत आैर अभूतपूर्व सौंदर्य का उपयोग जबरन अपने प्रचार के लिए किया। सच तो यह है कि हिटलर के दौर में कोड़ा उसके हाथ में था परंतु उसने न्यूरमबर्ग के ट्रायल में यह साबित किया कि उसकी पीठ थी आैर कोड़ा हिटलर का हाथ था।
आजकल जैसे टेलीविजन की न्यूज मात्र थियेटर बन गई है, वैसे ही फासिस्ट युग का सिनेमा प्रचार थियेटर से अधिक कुछ नहीं था। लेनी को न्यूरमबर्ग की अदालत ने प्रमाण के अभाव में बरी किया। यह संभव है कि जिस सौंदर्य आैर सितारा हैसियत से हिटलर मंत्रमुग्ध था, उसी सौंदर्य से जज भी प्रभावित थे।