फितरत कैलेंडर का पृष्ठ नहीं होती / जयप्रकाश चौकसे

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फितरत कैलेंडर का पृष्ठ नहीं होती

प्रकाशन तिथि : 01 जनवरी 2011

मनोरंजन उद्योग नए वर्ष में भी विगत वर्ष की तरह सिताराजडि़त फिल्मों की बॉक्स ऑफिस पर सफलता का आकलन करेगा। उद्योग का पनपना नई प्रतिभा पर टिका होना चाहिए। हबीब फैजल, सुभाष कपूर, अभिषेक शर्मा, रजत कपूर, विधि कासलीवाल इत्यादि युवा फिल्मकार क्या कर रहे हैं, यह जानना ज्यादा रुचिकर होगा। यह भी देख सकते हैं कि आदित्य चोपड़ा की यूथ विंग द्वारा अर्जुन कपूर के साथ क्या बनाया जा रहा है या 'बैंड बाजा बारात' के नायक की दूसरी फिल्म कौन सी है या अनुराग कश्यप की प्रयोगशाला में प्रयोग के नाम पर क्या किया जा रहा है। यह भी जानना चाहिए कि 'काइट्स' के बाद अनुराग बसु रणबीर कपूर के साथ 'बर्फी' नामक फिल्म बनाने जा रहे हैं। बसु और कपूर का साथ काम करना अच्छे नतीजे दे सकता है। अनुराग बसु की कंगना राणावत अभिनीत 'गैंगस्टर' एक अद्भुत प्रेम कहानी थी लेकिन कई लोग इसके टाइटल के कारण ही फिल्म देखने नहीं गए।

किसी जमाने में महेश भट्ट स्कूल से रोचक कहानियों पर नए कलाकारों की मनोरंजक फिल्में प्रदर्शित होती थीं, परंतु विगत पांच वर्षों से उनकी गाड़ी पटरी से उतर गईहै। जब फिल्मकार अपनी विगत सफलताओं को दोहराने की कोशिश करता है और पार्ट टू बनाने का उपक्रम करता है, तब यह मानना चाहिए कि वह नया नहीं सोच पा रहा है। इस स्थिति के लिए भी कईतरह की विचार प्रक्रिया जवाबदार है।

मसलन करण जौहर की जिद है कि वह अपने पिता की असफल फिल्म 'अग्निपथ' का सफल संस्करण बनाएं। मुकुल आनंद ने हॉलीवुड की 'स्कारफेस' का भारतीयकरण किया था और नया करने के जुनून में अमिताभ बच्चन ने अपनी आवाज बदली थी, जबकि उनकी मूल आवाज की सितारा पहचान है। 'अग्निपथ' के बाद अग्निपथनुमा अंदाज और अभिनय उनके व्यक्तित्व में धंस गया। नए संस्करण में ऋतिक रोशन यह भूमिका करने जा रहे हैं। गौरतलब यह है कि विविध कारणों से दोहराव की प्रवृत्ति जोरों पर है, क्योंकि नया रचने में अक्षम हैं।

तमाम फिल्मकार इस बात पर हैरत में हैं कि 'वी आर फैमिली' जैसी असफल फिल्म दक्षिण अफ्रीका में सफल रही। हर असफल फिल्म दुनिया के किसी न किसी कोने में सफलता का भ्रम रचती है। 'माय नेम इज खान' के वितरक फॉक्स ने अपनी व्यापकता के कारण इसे अनेक ऐसे गांवों में भी लगाया, जहां भारतीय फिल्में प्रदर्शित नहीं होतीं। अब इस उबाऊ फिल्म को मुनाफे की फिल्म बताया जा रहा है। जॉन एफ कैनेडी के धनाढ्य पिता ने कहा था कि मेरा बेटा चुनाव नहीं जीता तो मैं उसके लिए एक देश खरीद लूंगा। हमारे निर्माता भी दुनिया के किसी अज्ञात कोने में अपनी उबाऊ फिल्म की सफलता का सगर्वबयान कर रहे हैं। शायद यह लापतागंज में जुबली मना रही है। सीधी-सरल बात यह है कि दिल को छूने वाली बात भाषा, सरहद इत्यादि की मोहताज नहीं होती। फिल्मकारों ने वह सरल बात कहनी ही बंद कर दी है। जिनकी अपनी संवेदनाएं भोथरी हो चुकी हैं, वो कैसे दिल को छूने वाली फिल्म बना सकते हैं। कैलेंडर में पन्ने बदलने की तरह आसान नहीं होता विचार प्रक्रिया को बदलना या मनोवृत्तियों में परिवर्तन लाना। फिल्म उद्योग सिताराकेंद्रित ही रहेगा।