फिनिक्स, खण्ड-15 / मृदुला शुक्ला
गंगा प्रमोशन पावी केॅ मुंगेर गेली रहै। कुच्छू दिन अस्त-व्यस्तता आरू प्रशान्त के यादोॅ सें पीछा छोड़ाय में लागलै। मतरकि गंगा के संकल्पशक्ति बड़ा दृढ़ छेलै। दुख केॅ गंगाजल नाँखि पीवी जैवोॅ ऊ आपनोॅ माय सें ही सिखनें छेलै। जबेॅ गंगा फेनू सें भागलपुर ऐली तेॅ रधियो ओकरा सें महीना में एक बेरी भेंट करै लेली आवी जाय छेली, बैंक के कामो करवाय लेॅ आरू कभी-कदाल रात केॅ रुकियो जाय।
मनटुन सें रिश्ता दरकी गेलोॅ रहै। यै सें रधिया नें आपनोॅ ज़िन्दगी केॅ भाग्य भरोसा छोड़ी केॅ बस आपनोॅ नौकरी पर ध्यान देवोॅ शुरू करी देनें छेलै। गामोॅ के जनानी सिनी केॅ एन्हैं कत्तेॅ नी बीमारी घेरलेॅ रहै छै। थोड़ोॅ आलस, थोड़ोॅ अशिक्षा जनानी जातोॅ केॅ नरक में ठेली देलेॅ छै। रधिया सें जेतना हुएॅ सकै छै, गामोॅ के मौगी केॅ समझाय-बुझाय, डाँटी केॅ सिखाय के कोशिश करै छै। परिवार-नियोजन लेली तेॅ जनानी बातो पुछै में लजाय छै। गरीबी के मार आरू अस्वस्थ माय के कमजोर बच्चाµरधिया केॅ बड़ा दुख होय छै। रधिया नें मने-मन सोची लेनें रहै कि बच्चा पैदा करी-करी कमजोर होय केॅ मरै वाली जनानी केॅ, जेना होतै ऊ बचाय के कोशिश करतै। यै सिनी सें ऊ गामोॅ में सब्भे सें इज्जतो पावी रहलोॅ छेली आरू जबेॅ दोसरा के नवजात शिशु केॅ गोदी में लै तेॅ जेना ओकरोॅ मातृत्व भी तृप्त होय उठै।
गामोॅ के अस्पतालोॅ में कोय डॉक्टर आवै तेॅ टिकबे नै करै। कुच्छू दिन पहिनें एक ठो अधेड़ उमर के डॉक्टर ऐलै तेॅ अस्पतालोॅ में भी कुच्छू चहल-पहल लागेॅ लागलै। मतरकि ओकरोॅ व्यवहार नर्स साथें होन्हे छेलै जेना ओकरोॅ आपनोॅ सम्पत्ति रहै। एक दिन गामोॅ में कोय परव रहै, यै लेली जमादार आरू कम्पाउन्डर आपनोॅ घोॅर चल्लोॅ गेलोॅ छेलै। कोय मरीजो नै छेलै। रधिया अस्पतालोॅ के पिछलका हिस्सा में बनलोॅ आपनोॅ कोठरी लेली उठलै तेॅ डॉक्टर नें आवाज देलकै। रधिया के ऐला पर अस्पताल के मुख्य दरवाजो बन्द करी दै लेली कहलकै। रधिया झरोखा सिनी बन्द करी रहली छेलै कि डॉक्टर नें पीछू सें आवी केॅ हाथ पकड़ी लेलकै। रधियां तेजी सें पलटी केॅ देखलकै, पहिनें तॅधीरें सें बोललै, "डॉक्टर साहब, तोरा आदमी चीन्है लेॅ नै आवै छौं, हमरोॅ हाथ छोड़ी देॅ।" डॉक्टर हँसी केॅ आरू नजदीक आवी गेलै, बस रधिया नें जोर सें धक्का देलकी। डॉक्टर गिरी पड़लै, टेबुल के किनारा सें ठोर कटी गेलै। रधियां दरवाजा सें बाहर जाय केॅ कहलकै, "ई गामोॅ में कोय हमरा पर हाथ नै उठावेॅ सकै छै, ई याद रखियोॅ आरू हिम्मत छौ तेॅ आपनोॅ कटलोॅ ठोरो के कथा सब्भे केॅ बताय दियौ, तबेॅ हमरा सस्पेंड करै के बारे में सोचियोॅ। आबेॅ कल तोरा सें बात करभौं।"
डॉक्टर धीरें-धीरें उठी केॅ बाहर चल्लोॅ गेलै। एतना तिक्खोॅ मिरची रँ नर्सोॅ सें ओकरोॅ पाला नै पड़लोॅ छेलै। एक नपुंसक क्रोध के अलावा ऊ कुच्छू करै नै पारै छेलै। भीतरे-भीतरे गारी देतें हुएॅ भी केकर्हो सें कुच्छू नै बतावेॅ पारलकै।
अगलका बेर जबेॅ रधिया भागलपुर गंगा के घोॅर ऐली तेॅ देर ताँय सब्भे कथा सुनैलकी। रधिया तेॅ गोस्सा सें भरी रहलोॅ छेली, "सोचौ गंगा, कोय औरत नौकरी करै छै तेॅ आदमी कैन्हें सोची लै छै कि ऊ खराब चरित्रा के होतै आकि ओकरोॅ बीहा-शादी नै होलोॅ छै तेॅ ओकरा मर्द-मानुष के भूख होतै? की उपाय छै ई समाजोॅ में बराबरी के हक लै के, पता नै। हौ दिन जों तुरन्ते ढक्रबा मूड़ी झुकाय केॅ बाहर नै निकली जैतियै, तेॅ हम्में सौंसे गाँवोॅ में ओकरा बेज्जत करी देतियै। बादोॅ में जे भी लिखा-पढ़ी करतियै आकि आपनोॅ पहुँच सें सस्पेन्ड करी देतियै तेॅ देखलोॅ जैतियै।" गंगा गुमसुम सुनी रहली छेेलै। पूछेॅ लागली, "तोरा एतना हिम्मत कहाँ सें आवै छौ रधिया? मतरकि मनटुन भैया वास्तें तोहें एतना कमजोर बनी केॅ कैन्हें रही गेलैं।"
"नै गंगा, हम्में कमजोर नै छेलियै। हमरोॅ प्रेम नें हमरा होनोॅ बनाय देलकै। अभियो तोरोॅ भाय केॅ हम्में भूलेॅ नै पारै छियौं। मतरकि ऊ मनटुन केॅ नै, जे माय-बाप के सामनां हमरोॅ साथ के सम्बन्ध नै बतावेॅ पारलकै, हमरा स्वीकार नै करेॅ पारलकै, ओकरा वास्तें हमरोॅ हृदय में कोय स्थान नै छै। हौं ऊ बच्चा के दोस्त मनटुन, जौंनें हमरोॅ फ्राक अमरूदोॅ सें भरी दै छेलै, हमरोॅ किताब चोराय लै छेलै, जैमें गाना लिखी केॅ धरी दै छेलै, ऊ स्नेह तेॅ झुट्ठा नै छेलै। गंगा ऊ हमरा कसकी उठै छै।"
रधिया के आँखी में मोती एन्होॅ कुच्छू चमकेॅ लागलै। गंगा के भी पुरनका पीर चनकी गेलै। दोनो सखी के भाग्य एक्के स्याही सें विधाता नें लिखी देनें छै। मतरकि अन्तरो छै कि प्रशान्त नें तेॅ मनटुन रँ आपनोॅ मनोॅ के बातो नै बतैनें छेलै, जे गंगा कोय उराहनोॅ दियेॅ पारेॅ।
गंगा तेॅ ई सुनिये केॅ हतप्रभ रही गेली कि रधिया लुग फेनू मनटुन भैया प्रेम के भिक्षा मांगै लेली बौंसी चल्लोॅ ऐलै। ऊ अनचोके मनटुन के कम उमिर वाली लाल साड़ी लिपटैली कनियैनी के बारे में सोचेॅ लागली। ओकरा बहुत दिन बाद फेनू सें विकास जीजा आरू रूपा दी याद आवी गेलै। बीहा करै वक्ती जबेॅ सौंसें गाँव रधिया पर व्यंग्य-वाण बरसाय रहलोॅ छेलै आरो जों मनटुन भैया नें थोड़ोॅ टा भी हिम्मत करी केॅ रधिया के मान-सम्मान रखी लेतियै, तेॅ रधिया खुशी सें आपनोॅ जिनगी मनटुन के नाम पर कुँवारोॅ बिताय देतियै। मतरकि आबेॅ तेॅ रधिया मनटुन के कायरता सें एकदम्में वितृष्णा सें भरी गेली छै, हिम्मत केना होलै मूँ देखाय के. रधिया नें मनटुन केॅ दुत्कारी देलकै, "केकर्हौ साथें तेॅ सच्चा बनी केॅ रहोॅ मनटुन बाबु। हम्में तोरोॅ जात-बिरादरी, पैसा-रुपय्या, पढ़ाय-लिखाय कथू में बराबरी के नै रहियौं, हमरोॅ प्रेम में भी तोरा रोकै के ताकत नै रहै। मतरकि जेकरा पाँच आदमी के सामना में बिहाय केॅ आनलेॅ छौ, ओकरोॅ तेॅ लाज रक्खौ। जदि फेनू यहाँ ऐभौ तेॅ हम्में तोरोॅ सोसरारी में खबर भेजी देभौं।"
बस मनटुन सिटपिटैलोॅ रँ वहाँ सें बाहर निकली गेलै। एकरोॅ बाद सें ऊ रधिया के किस्सा बनाय केॅ सुनाय छै कि "ऊ नौकरी की करती, खाली मरदोॅ सिनी केॅ यार बनावै छै। कोय तेॅ माथा पर छेवो नै करै नी।"
है सिनी गाथा रधिया सें सुनी केॅ गंगा के मोॅन फेनू खराब लागेॅ लागलै। सौंसे रात सोचतें रहलै, की होय छै प्रेम, जे ज़िन्दगी केॅ बदली दै छै, आरू चाहियो केॅ एकरा सें बचेॅ नै पारै छै। केन्होॅ मजबूरी के नाम छेकै प्रेमµई एतना दुर्लभ कैन्हें होय छैµकी ई बस आकर्षण मात्रा छेकै आकि एक गंभीर शाश्वत सम्बंधो। " यही सब सोचत्है-सोचत्हैं गंगा केॅ नींद आवी गेलै।
दोसरोॅ दिन बेंकोॅ में निवेदिता के चिट्ठी मिललै। ऊ पत्राकारिता पढ़ाय करी केॅ वाँही काम करी रहलोॅ छेली। इन्दु आरू रामप्रसाद बाबु देवघरे में घोॅर बनाय केॅ रही रहलोॅ छेलै। भोले बाबा के पूजे-भजन में हुनका सिनी केॅ रस मिली रहलोॅ छेलै। दू-दू ठो कुमारी बेटी के माय-बाप के जे सन्ताप होय छै, ओकरा हुनी स्वीकार करियो केॅ बस भुलाय के कोशिश करी रहलोॅ छेलै। गंगा नें कैएक बार चाहलकै कि माय-बाबुजी ओकर्है पास रहेॅ। मतरकि हुनका सिनी कुछुवे दिन में बैठलोॅ-बैठलोॅ ओकताय जाय छैलै। नवल के कनियांय जुग-जमाना अनुसार थोड़ोॅ असहनशील स्वभाव के छेली, यै लेली नवलो के साथें नै रहै छेली।