फिनिक्स, खण्ड-18 / मृदुला शुक्ला
सीमा आय बैंक नै ऐली छेलै। ऊ माय बनै वाली छै, यै लेली मोॅन-मिजाज खराब होला पर छुट्टी लै लेॅ पड़लै। सीमो कत्तेॅ सही रहलोॅ छै। सोसरारी में रही केॅ नौकरी करै छै, जेकरोॅ मतलब नौ बजे तांय घरोॅ के खाना, आपनोॅ तैयारी करना आरू कोय दिन बैंकोॅ में देरी होय गेला सें अपराध बोध सें भरली घोॅर लौटना। परिवारोॅ केॅ लागै छै कि घूमी-फिरी केॅ आवी रहलोॅ छै। जमालपुर में नौकरी मिलै सें पहिनें सीमा के पति प्राइवेट कॉलेज में पढ़ाय छेलै वित्तरहित शिक्षा नीति के शिकार। फेनू अहम आरू हीन, दूनो भाव सें पीड़ित। तखनी सीमा सें ही खरचा चलै छेलै, तहियो ओकरा पति के तकलीफ के चिन्ता रहै छेलै। साल भर सें नौकरी मिललोॅ छै तेॅ पति सें दूरी आरू परिवारोॅ में आपनोॅ मन केॅ मारना, सब्भे तेॅ ओकरे भागोॅ में छै। सीमा समझदार छै, यै लेली तलवारोॅ के धार पर चलै लेली जानै छै। घोॅर आरू नौकरी तेॅ सम्हारी लेलेॅ छै मतरकि ओकरोॅ आपनोॅ अस्तित्व, आपनोॅ होय के अर्थ तेॅ भुलैये गेलोॅ छै। बड़का घोॅर आरू बड़का शहर में की होय छै, नै मालूम, मतरकि निम्न मध्यवर्गीय परिवार के नारी के भाग्य में तेॅ विधाता नें तिल-तिल अपन्हैं सें टुटै लेली जनम देनें छै। हिन्नें पहाड़, हुन्नें खाई. असकल्ली रहोॅ या दुकल्ली, जीवन में कुच्छू परिवर्तन नै होय छै, यहेॅ सब मनोॅ केॅ समझाय केॅ गंगा थोड़ोॅ चिन्तामुक्त होली।