फिनिक्स, खण्ड-20 / मृदुला शुक्ला

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिछौना पर पड़ली-पड़ली बहुत्ते रात होय गेलै। गंगा के आँखी में नींद नै छेलै। तखनिये कोय दरवाजा पर भड़-भड़ करी केॅ आवाज करेॅ लागलै। घड़ी देखलकी तेॅ एक बजी रहलोॅ छेलै। गंगा आवी केॅ बस एक कप चाय पीनें छेलै। ऊ सौंसें देह समेटी केॅ साँस रोकने दुर्गा माय केॅ सुमिरेॅ लागली। लगी रहलोॅ छेलै कि चार पाँच आदमी दरवाजा पर बक-बक करी रहलोॅ छै, दारू पीवी केॅ ऐलोॅ छै आकि ओकरोॅ नाटक करी हरलोॅ छै। "खोल दरवाजा, देखियौ तोरोॅ घरोॅ में के घुसलोॅ छौ, केकरा हिम्मत पर तोहें हमरा कानून सिखाय लेली चल्ली छैं।" यहेॅ सिनी ऊ सिनी अंट-संट बोली रहलोॅ छेलै।

गंगा खाली पत्थर नाँखि पड़ली पंखा निहारत्हैं रहली। आधोॅ पौने घण्टा बक-बक करी केॅ सब्भे चल्लोॅ गेलै। गंगो मुड़कुनिया देल्हैं सूती गेली। छोॅ बजे भोर में आँख खुललै तेॅ पपोटो भारी होय रहलोॅ छेलै आरू लागै जेना आँख में मिरचाय चल्लोॅ गेलोॅ रहै। केन्होॅ केॅ तैयार होय केॅ बैंक लेली निकलली तेॅ सौंसे रस्ता डरत्हैं रहली कि आय फेनू वहेॅ दिन वाला बदमाश नै मिली जाय आरू पूछेॅ नै लागै कि घोॅर कबेॅ खाली करभौ? नया जग्घोॅ में केकरा कहै आरू कोय आदमी केन्होॅ छै, से भी ऊ कहाँ जानै छै। लोगो ओकरा चलतें कैन्हें पचड़ा में पड़तै। रिक्सा सें उतरी केॅ सड़क पार करै लेली जाय रहली छेलै कि पीछू सें 'नमस्कार गंगा' के आवाज ऐलै। ऊ एतना डरली छेलै कि नमस्कारो वाला आवाजो सें काँपी गेली। पीछू गिरी पड़तियै, तपन नें तबेॅ तांय सम्हारी लेलकै, "की बात छेकै, तबीयत तेॅ..." हाथ पकड़ला के साथें बोललै, "बाप रे, तोरा तेॅ तेज बोखार छौं।" गंगा नें कहलकै, "हौं माथोॅ दुखाय छेलै तेॅ दवाय लेली यहाँ पर उतरी गेलियै, बैंक जाय रहलोॅ छियै।" तपन नें कहलकै, "चलोॅ रिक्शा पर बैठोॅ, तोरा समीर बाबु केॅ दिखाय दिहौं, बैंक की जावेॅ परभौ।"

गंगा के हिम्मत नें जेना जवाब दै देलकै। वैंनें भी हथियार डाली देलकै आरू रिक्शा पर बैठी गेली।

बैंक जाय के बदला में डॉक्टर सें देखाय केॅ घोॅर लौटली तेॅ तपन दवाय आरो पानी टेबुल पर राखी केॅ बैंक चल्लोॅ गेलै। बैंक में छुट्टी के दरखास्त दै केॅ सीमा केॅ गंगा के हाल बताय देलकै। गंगा बिछौना पर पड़ली एकदम्में बोखार सेें तड़पी रहली छेलै। साँझ होतें-होतें सीमो बैंकोॅ सें आवी गेली। तपन तबेॅ बाहर जाय केॅ खाय लेली कुच्छू खरीदी केॅ आनलकै। गंगा के बोखार थोड़ोॅ कम होलै तेॅ सीमा केॅ पकड़ी केॅ कानेॅ लागली। सीमा नें समझैलकै, "आसिन महीना के दूसरोॅ दिन में तेॅ मोॅन मिजाज खराब होय्ये जाय छै, यै लेली घबड़ावोॅ नै, हम्में तोरा लुग छिहौं नी।" मतरकि जबेॅ गंगा नें कल वाला दिन आरू रात के खिस्सा सुनैलकै तेॅ सीमा अवाक रही गेली। ऊ आपनोॅ घरो तेॅ गंगा केॅ नै लै जावेॅ पारै छै, एतना अधिकारो औरत केॅ कहाँ छै कि ऊ आपनोॅ मनोॅ सें कोय दोस्त केॅ ठहराय लै। गंगो नें परिवार वाला घर के छाया में आपनोॅ घोॅर देखी केॅ निश्चिंत अनुभव करनें छेलै। मतरकि शरीफ के बस्ती में एक असकल्ली लड़की केॅ केना-केना तंग करी रहलोॅ छै, सीमा पहिलोॅ दाफी जानलकी। सीमा नें फेनू सब्भे बात तपन केॅ बतैलकै। तमतमैलोॅ तपन एकदम्में गोस्सा सें बाहर होय गेलै। जाय केॅ छेदी बाबु केॅ धिराबेॅ लागलै, "अगर आज सें तनियो टा होशियारी दिखैलौ तेॅ जानी लेॅ कि हम्मूं बदमाशे छीµतोरोॅ ई घरोॅ में रहवौ मुश्किल करी देभौं। एक सें एक गुण्डा हमरोॅ दोस्त छै। हम्में एखनियै थाना में भी लिखाय दै छिहौ कि घोॅर हड़पै लेली तोहें जनानी जातोॅ केॅ तंग करी रहलोॅ छौ।"

एत्तेॅ सिनी बात सुनी केॅ तेॅ सब्भे चुप्पे होय गेलै आरू बहिरो रँ बनी केॅ घोॅर घुसी गेलै। तपन केॅ एतना करतें देखी केॅ सीमा नें पूछी लेलकै, "आय आफिस नै जैभौ की?" तपन नें हँसी देलकै खाली। "भाभी ई रँ मकान हड़पना, आरू असमाजिक तत्वोॅ के ठिकाना बनाय लेना भागलपुरोॅ में बड़ा आसान काम होय गेलोॅ छै। बंग परिषद नें एकरोॅ शिकायत करनें छै। जे बंगाली सिनी कलकत्ता में रहै छै, ओकरोॅ बेटा-पोता केॅ आपनोॅ सम्पत्ति लेवोॅ मुश्किल होय गेलोॅ छै। बड़का-बड़का घोॅर हेने आदमी के अड्डा बनलोॅ छै। नै मकान बेचै दै छै, नै किरायादार राखै लेॅ दै छै। कत्तेॅ के तेॅ आर्थिक स्थितियो खराब होय गेलोॅ छै, मतरकि डरें नै आवै छै।"

सीमा आरू गंगा केॅ अजगुत लागलै कि केना कानून-नियम के रहतें कोय केकर्हौ सम्पत्ति हड़पी लै छै। सीमा कहलकै, "ई तेॅ अन्याय छेकै कि हम्में आपनोॅ चीज, जेकरोॅ टैक्सो भरी रहलोॅ छी, ओकर्है सें बेदखल होय जाँव।"

भाभी यहाँ सब चलै छै। कानून नें तेॅ तोरा हक दिलाय देत्हौं, मतरकि रहभौ केना? इहै देखौ नी, गंगा किराया दै रहली छै, मकान-मालिक केॅ कोय परेशानी नै छै, मतरकि केतना तरह सें छेदी बाबु धमकाय रहलोॅ छै। खैर गंगा तोहें मकान मिलला पर एकरा छोड़ी दियौ, आखिर परेशानी कथी लेॅ लेभौ। "

सोसरारी में कही केॅ रात केॅ सीमा रुकी गेली। भोरे ऊ आपनोॅ घोॅर गेली।

तपन आवै तेॅ थोड़ोॅ गंगो के मोॅन लगी जाय छेलै। मस्त आरू हिम्मती लड़का छेलै। ओकरोॅ साथें बातोॅ के खजानो छेलै, ओढ़लोॅ रँ कोय गंभीरता नै, बनावटी मान-सम्मान वाला बात नै। ऐत्हैं दुनिया-जहान के चरचा आरू मस्त एन्होॅ की बैठै लेली नै कुच्छू तेॅ बाल्टिये उलटाय केॅ बैठी जाय, जै सें कभी-कभी गंगा केॅ हँसी आवी जाय छेलै।