फिनिक्स, खण्ड-21 / मृदुला शुक्ला

Gadya Kosh से
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दस-पन्द्रह दिन बाद एक दिन एन्हे केॅ रस्ता में एक लड़का तपन के स्कूटर सें जानी केॅ टकराय गेलै, जैं सें तपन स्कूटर सें गिरी गेलै आरू तपन साथें थोड़ोॅ बक-झक होय गेलै। दोसरोॅ दिन ऊ लड़का के लापता होय के खबर थाना में लिखाय केॅ ओकरोॅ बापें तपन पर शक जाहिर करी देलकै। छेदी बाबु नें आपनोॅ रिश्तेदार थानावाला के मदद सें तपन केॅ पकड़वाय देलकै। ई झुट्ठा केस छेलै, मतरकि तपन पुलिसिया हुकूमत के सामनां कुच्छू नै करेॅ पारी रहलोॅ छेलै। अगर ओकरा जल्दी नै छोड़ैलोॅ जैतियै तेॅ नौकरियो सें सस्पेन्ड होय के संभावना बनी रहलोॅ छेलै। तपन के माय अक्सर बीमार रहै छेली। घरोॅ में दू ठो छोटोॅ पढ़ै वाला भाय छेलै। सीमा के दुल्हा केॅ मालूम होलै तेॅ ऊ दौड़-धूप करी रहलोॅ छेलै, मतरकि जहाँ जानी केॅ केस बनाय लेलोॅ गेलोॅ छेलै, वहाँ कोय बातो करै लेली तैयार नै छेलै। सीमा के दुल्हा सीमा पर गोस्सा करी रहलोॅ छेलै, जेकरोॅ सखी के कारण आय एतना कांड होय रहलोॅ छेलै।

गंगा नें जेन्हैं ई सब सुनलकै, आपनोॅ प्रति बहुत्ते लाज आरो गुस्सा आवी रहलोॅ छेलै। ओकरा लगी रहलोॅ छेलै कि तपन केॅ छोड़ाना बहुत ज़रूरी छै आरू ई ओकरोॅ जिम्मेवारी छेकै। अन्त में ओकरा प्रशान्त याद ऐलै, जेकरोॅ एक आई0 पी0 एस0 दोस्त सें ऊ मिली चुकली छेलै। गंगा नें डायरेक्टरी से ंप्रशान्त के फूफू घरोॅ में फोन करलकी आरू प्रशान्त के नम्बर मांगलकै। थोड़ोॅ झिझक होय रहलोॅ छेलै कि ओकरा ई बीचोॅ में प्रशान्त के बारे में कुच्छू मालूम नै छेलै, तहियो प्रेम के कोॅन विश्वास के जड़ोॅ के बलोॅ पर ऊ फूफू सें बात करलकी। फूफुये सें ओकरा मालूम होलै कि ई बीचोॅ में बहुत्ते कुच्छू घटी गेलै आरू प्रशान्त नें नौकरी सें इस्तिफा दै देनें छै।

जबेॅ गंगा प्रशान्त के घर पर फोन लगैलकी तेॅ बड़ी हड़बड़ैली छेलै। नौकरें फोन उठैलकै तेॅ कहलकी कि कहियौ प्रशान्तोॅ केॅ बैंकोॅ में फोन करै लेॅ आरो कहियौ कि हम्में गंगा बोली रहलोॅ छियै आरू आबेॅ हम्में फेनू भागलपुर आवी गेलोॅ छी। "प्रशान्त नें जबेॅ गंगा के फोन के बात सुनलकै तेॅ हतप्रभ रही गेलै। फोन लगैला पर गंगो कै एक बरस बाद प्रशान्त के आवाज सुनी केॅ जेना नद्दी के धारा में एक पत्ता नाँखि बहेॅ लागली, बस केन्होॅ केॅ कहलकी," एक बहुत ज़रूरी काम सें फोन करलेॅ छियों। तोहें एक दोस्त सें परिचय करैनें छेलौ। आयकल वहेॅ यहाँ एस0 पी0 छौं कुणाल वर्मा। हमरोॅ एक शुभचिन्तक मित्रा छैµतपन, ओकरा झुट्ठा केस में फँसाय देलेॅ छै..." अटकी-अटकी केॅ गंगा नें बतैलकै संक्षेप में खिस्सा।

प्रशान्त नें बीच में कुच्छू नै पुछलकै। बस नाम, केस कथी के बनैलेॅ छै आरू केकरा की कहना छै, पूछी केॅ बोललै, "हम्में चार बजे ताँय फेनू फोन करभौं।" मतरकि एक घण्टा पहिनें प्रशान्त नें फोन करलकै, "तोरोॅ काम होय गेल्हों। ।" गंगा के मोॅन होलै जोर-जोर सें कानी दै के. मतरकि बैंक में ऊ भावना पर काबू राखलेॅ रहली। काँपलोॅ आवाजोॅ में कहलकी, "तोरा की धन्यवाद भी दै लेॅ पड़तौं?" प्रशान्त नें स्थिर आवाज में जवाब देलकै, "जों एतना दूर सोची रहलोॅ छौ, तेॅ दिएॅ पारै छौ।" गंगा विचलित हुएॅ लागली, "अच्छा फेनू फोन करभौं" कही केॅ गंगा नें फोन राखी देलकै।

तपन छुटी केॅ ऐलै तेॅ दिन भर भुखलोॅ-पियासलोॅ पहिनें माय के पास पहुँचलै। साँझ होतें-होतें गंगो के घोॅर ऐलै। गंगा नें कहलकै, "तपन आबेॅ तोहें हमरोॅ समस्या में बेसी नै ओझरैयोॅ, एन्होॅ तेॅ ई किराया के घोॅर छेकैµआय नै कल छोड़नें छै" कहतें-कहतें गंगा के आँखी में लोर आवी गेलै। तपन हँसेॅ लागलै, "हमरोॅ रँ आदमी साथें है सिनी होत्हैं रहै छै। हों, नौकरी करला पर थोड़ोॅ दिक्कत होय जाय छै। तहियो सोचै छियै, जबेॅ अन्दर जान्हैं छेलै तेॅ हौ दिन ओकरा बढ़ियाँ सें मारी केॅ हाथ-गोड़ तोड़िये देतियै तेॅ अच्छा होतियै। अच्छा छोड़ोॅ, आबेॅ तेॅ आवी गेलां। हों, एस0 पी0 वर्मा तोरा केना चीन्है छौं?"

गंगा एकदम्में चुप भै गेली। ओकरोॅ आँखी तरोॅ में ऊ साँझकोॅ दृश्य आवी गेलै, जबेॅ प्रशान्त साथें होटल में बड्डी जिद्द करला पर गेली छेली आरू प्रशान्त नें कुणाल सें परिचय करैनें छेलै। केन्होॅ छेलै ऊ दिनो? समय के एक टुकड़ा आभियो गंगा के लोरैलोॅ अँचरा सें बँधलोॅ छै। आकि ओकर्है पूँजी समझी केॅ जिनगी के करजा चुकाय रहली छै। ई बीच में नद्दी के कत्तेॅ पानी बही गेलै, कत्तेॅ तरह के लोगोॅ सें सम्पर्क बनलै। माय-बाबुजी नें भी, आपनोॅ जात-बेरादरी के लोगो नें भी कभी दबलोॅ-छिपलोॅ, कभी खुली केॅ ओकरोॅ बीहा के बात चलैलकैµकुच्छू तेॅ जमाना भी बदली रहलोॅ छेलै आरू कुच्छू यै लेली कि ऊ कमाय वाली लड़की छेली, वहो की साधारण परिवारोॅ के. कत्तेॅ जग्घोॅ अच्छा घोॅर-वोॅर देखी केॅ माय-बाबुजी के मन पुलकित होय जाय, मतरकि गंगा के मोॅन कैन्हें तेॅ एकदम्में उचाट होय गेलै, जेना खौललोॅ दूधोॅ में जामिन पड़ी गेलोॅ रहै, तेन्हें मोॅन फाटी गेलोॅ छेलै। बचपना के देखलोॅ अभाव, कक्का-काकी के बाबुजी साथें दुराव, राधा साथें गामोॅ के लोगोॅ के दुर्व्यवहार आरू मनटुन के कायरता आकि राधा-रूपा के संक्षिप्त दाम्पत्य जीवनµई सब्भे नें मिली केॅ गंगा केॅ असमय बूढ़ी बनाय देनें छेलै, जैमें ओकरोॅ अरमान, आस सब्भे पथराय गेलोॅ छेलै। कुच्छू दिन प्रशान्त के साथ सम्पर्क नें जीवन केॅ सहज बनैलकै भी तेॅ ओकरोॅ दूर होला सें एक अप्रत्याशित मोड़ोॅ पर ओकरोॅ जीवन आवी गेलै। यै लेली ऊ आय तपन केॅ कुच्छूू नै बताय केॅ गंभीरे बनली रही गेलै। तपन नें भी बात बदली देलकै।

पाँच-सात दिन बाद गंगा केॅ लागलै कि काम होय गेला के बादो प्रशान्त केॅ एक्को बेर फोन करी देना चाहियोॅ। नै तेॅ की सोचतै कि केन्होॅ स्वार्थी होय गेली छै। ऊ दिन तेॅ ऊ प्रशान्त के बारे में कुच्छू पुछवे नै करलकै। आँखी में लोर भरी आवै छेलै आरू गल्लोॅ बैठलोॅ जाय छेलै। आखिर हिम्मत करी केॅ फोन करलकी, तबेॅ ऊ जानेॅ पारलकी कि प्रशान्तो आपनोॅ अतीत के बिखरलोॅ पन्ना समेटै में लागलोॅ छै। पाँच बरस के पलाश साथें कावेरी के साथें जे संक्षिप्त दाम्पत्य जीवन जीनें छेलै, ओकरे यादोॅ के कीलोॅ में ठोकलोॅ प्रशान्त बंद रस्ता के आगू खड़ा छै।

ऊ दिना संक्षेप में बहुत्ते कुच्छू कही आरू सुनी लेलकै गंगा नें। फूफुओ सें सब्भे बात विस्तारोॅ सें सुनलकी। प्रशान्तो के फोन महीना भर बाद बैंकोॅ में ऐलै, "सोचै छियै, बिजनेस ही करना छै तेॅ भागलपुरे में कैन्हें नी? तखनी तेॅ कावेरी के इच्छा के मान राखै के बात छेलै। आबेॅ बाबुजी साथें आपनोॅ माटी के तरफ जाय के मोॅन होय छै। यहाँकरोॅ काम आरू घोॅर-दुआर ममेरोॅ भाय संभारी रहलोॅ छै, वही देखी लेतै।"

गंगा चुप रहलै तेॅ फेनू पुछलकै, "की कहै छौ, तोरोॅ की विचार?"

गंगा बहरी नाँखि चुप्पे रहली। ऊ की कहै? जखनी बदली होलै आरू प्रशान्त गेलोॅ रहै तेॅ की कही केॅ गेलोॅ रहै आकि यहो पूछलेॅ छेलै कि हम्में आपनोॅ जिनगी के डोर दोसरा साथें जोड़ी रहलोॅ छियै, तोरोॅ अनुमति छौं की नै? मतरकि प्रशान्त खातिर तेॅ सब्भे माफ रहै जेना। महीना लगत्हैं प्रशान्त लौटी ऐलै आरू एक दिन गंगा सें भेंट करै लेली बैंको आवी गेलै। गंगो नें पुछलकै, "पलाश कहाँ छौं।"

उदास गंभीर प्रशान्त ने जवाब देलकै, "दीदी के पासोॅ में छै, आभी केना लानतियै।" गंगा छत हिन्नें देखेॅ लागली।