फिनिक्स, खण्ड-22 / मृदुला शुक्ला
प्रशान्त के ऐला सें गंगा के जीवन में सब्भे कुच्छू अनिश्चित रँ लागेॅ लागलै। अन्दर में एक उथल-पुथल। दिन जेना एकदम्में उमस सें भरलोॅ रहेॅ। कुच्छू महसूस नै होय रहलोॅ छेलै गंगा केॅ स्पष्ट नाँखि। अन्तर में कैएक तरह के भावना उमड़ै छेलै, मतरकि बाहर निकलै के जेना कोय रस्ते नै रहै। अपमान, क्षोभ, दुख, बीतलोॅ समय के ढेरे दंश अगर छेलै तेॅ साथें मिलै के खुशी आरू भविष्य के अनचिन्हलोॅ आशा के आनन्दो छेलै। बीतलोॅ घटना-चक्र आकि अतीत के परछाई सिलोटोॅ पर लिखलोॅ अक्षर तेॅ नहिये नी छेकै, जे मिटाय देला सें मिटी जैतै। फेनू भी प्रशान्त के ई रँ अस्त-व्यस्त आरू टुटलोॅ ज़िन्दगी के कल्पना गंगा नें नै करलेॅ छेली। फूफू सें भी गंगा के बात हुएॅ तेॅ हुनियो प्रशान्त केॅ लैकेॅ बहुत्ते दुखी मिलै।
भागलपुरोॅ में प्रशान्त के घोॅर बड़का टा छेवे करलै, मतरकि किरायादार के किरपा सें जेन्होॅ-तेन्होॅ स्थिति में छेलै। फूफुये आवी केॅ घोॅर ठीक-ठाक कराय लेली बेटा साथें रही रहली छेलै। सब्भे कुच्छू होतें-होतें नया साल आवी गेलै। प्रशान्त केॅ पलाश के बिना अच्छा नै लागी रहलोॅ छेलै। फेनू भी सब्भे कुच्छू केना संभव होतै, यहेॅ नै समझै पारै छेलै। मतरकि दिसम्बर में मनोॅ केॅ दृढ़ करी पलाश केॅ आनी फूफू केॅ पकड़ाय देलकै। दू महीना बाद ओकरोॅ स्कूलोॅ में नामो लिखाना छेलै। पलाश ओकरोॅ जिम्मेवारी छेकै, दीदी आखिर कबेॅ ताँय ओकरोॅ फर्ज पूरा करतै आरू आपन्हो बैठलोॅ निष्क्रिय जीवन सें प्रशान्त बाहर निकलै लेॅ भी चाहै छेलै। मतरकि पलाश वास्तें ई परिवर्तन केॅ अपनाना सहज नै होय रहलोॅ छेलै। दीदी के घरोॅ केॅ जनम सें देखनें छेलै। यहाँ सब्भे कुच्छू बदली गेलोॅ छेलै, यै लेली एकदम्में चुप रहै या कानै। फूफू आखिर छेली तेॅ बूढ़ी, सम्हारै में परेशान होय जाय।
गंगा नें आपनोॅ मकानो बदली लेनें छेलै। यै सब्भे में ऊ महीना भर सें ओझरैली छेली। राधा बौंसी सें ऐली तेॅ गंगा केॅ एतना दिनोॅ के परेशानी सें मुरझैली देखलकै। ऊ ओकरा बौंसी मेला लै जाय लेली जिद करेॅ लागली। एना तेॅ गंगा केॅ मेला के प्रति आकर्षण नै छेलै, मतरकि मन्दार पहाड़ आरू ओकर्हौ में छोटोॅ-छोटोॅ गुफा-खोहµओकरा रहस्य सें हमेशा विस्मित करै छै। धरमोॅ के मिलन जेना वहाँ होय छै आरू प्रकृति जेना एकरोॅ शृंगार करनें छै, ऊ सिनी सें ऊ मुग्ध होय जाय छै। यै लेली राधा के कहला पर ऊ हामी भरी देलकी। अगला दिन जैतियै कि एक दिन पहिनें फूफू पलाश केॅ लै केॅ गंगा सें भेंट करै लेली ऐेली। राधा आरू गंगा मिली केॅ बात-चीत करलकी। फूफू नें जबेॅ सुनलकै कि गंगा बौंसी मेला जाय रहली छै तेॅ कहलकै, "हम्में सोची केॅ ऐलोॅ छेलियै कि कल दिन केॅ हमरा जमीन रजिस्ट्री कामोॅ सें बाहर जाना छै, यै लेली एकरा थोड़ोॅ देर लेली छोड़ी देतिहौं।" फूफू नें पलाश केॅ देखाय केॅ कहलकै। फूफुओ जानै छेली कि राधा दू-तीन दिन सें यहीं छै। गंगा नें कहलकै कि फूफू तोहें पलाश केॅ छोड़ी केॅ जावेॅ पारै छोॅ, हमरा सिनी साथें यहो बौंसी चल्लोॅ जैतै। फूफू थोड़ा संकोचेॅ लगली, कैन्हें कि पलाश केकर्हौ सें ज़्यादा घुलै-मिलै नै छेलै।
मतरकि राधा के गप के सामनें फूफू केॅ समैय्यो के पता नै चललै आरू दोसरोॅ दिन बिहाने गंगा, राधा आरू पलाश बौंसी वाला राधा के घोॅर चल्लोॅ गेलै। हौ दिन तेॅ साँझ होला के कारण नै लौटलै, मतरकि दोसरे दिन बारी बजतें-बजतें गंगा आरू पलाश लौटी ऐलै। पलाश गामोॅ के मेला आरू राधा-गंगा के प्यार में बंधी केॅ खुश होय गेलै। बड़का झूला पर झूललै, गामोॅ के बच्चा साथें कुइयां-तालाब देखलकै आरू मस्त रहलै। जबेॅ पलाश ऐलै तेॅ बड्डी खुश होय केॅ सब्भे बात बतावेॅ लागलै। फूफुओ केॅ खुशी आरू आश्चर्य होलै कि पलाश आबेॅ यहाँकरोॅ जीवन केॅ अपनावेॅ पारै छै।