फिनिक्स, खण्ड-24 / मृदुला शुक्ला
तपन नें जबेॅ सुनलकै तेॅ गोस्सा सें फड़केॅ लागलै, "गंगा, हमरा सिनी बिहारी के इहाँ यही गति होय छै। बड़का शहर में कोय बाते नै सुनथौं। बड़का-बड़का नेता, पूंजीपति के भ्रष्ट होय के कीमत हमरा सिनी ऐन्होॅ गरीब-गुरबा चुकाय रहलोॅ छियै। तोहें हमरा पूरा पता-ठिकाना देॅ, हम्में जाय छिहौं, आखिर एतना दिन सें लड़की के कोय पता नै छै आरू थानावाला कहै छैµपहिलें घर-परिवार और प्रेमी से पता कीजिए. ई सिनी केॅ की कहियौं।"
गंगा मूड़ी झुकैनें बस सोचिये रहली छेलै कि तखनिये प्रशान्त आवी गेलै। प्रशान्त आरू तपन के सामना पहलोॅ बार होलै, मतरकि दोनों एक-दूसरा के नामोॅ सें परिचित छेलै। प्रशान्तोॅ सें बातचीत में गंगा नें जानलकै कि प्रशान्त आयकल पलाशोॅ के इस्कूलोॅ में नाम लिखाय ली परेशान छै। तपन तेॅ गप्पी छेवे करलै। प्रशान्त सें गप्प करेॅ लागलै तेॅ गम्भीर वातावरण थोड़ोॅ हल्का होलै। तपन के सामाजिक गतिविधि के बारे में जानी केॅ प्रशान्त केॅ भी अच्छा लागलै। दून्हो के बीच धीरें-धीरें आत्मीयता बढ़ले गेलै आरू तपन के सम्पर्क में आवी केॅ अनचोके प्रशान्त भी आपना केॅ गामोॅ के समस्या में ओझरैलोॅ पावेॅ लागलै। कोय भी घटना या बात गामोॅ के लोग प्रशान्तोॅ सें करै लेॅ आवी जाय। प्रशान्त जब तांय बिजनेस करै के स्थिति में नै ऐलोॅ छेलै, एकठो प्रायवेट कॉलेज में इतिहास पढ़ावेॅ लागलै। मतरकि ओकरोॅ धियान तपन के साथें समाज के बुनियादी बातोॅ के ओर ही ज़्यादा जाय रहलोॅ छेलै।
निवेदिता लेली प्रशान्त आरो तपन लगातार प्रयास करी रहलोॅ छेलै कि कन्हौं जानकारी पावेॅ सकेॅ। मतरकि जे कुछ मालूम होय रहलोॅ छेलै, वहो कुछ उत्साहवर्द्धक नै छेलै। घूमी-फिरी केॅ एतन्है बात मालूम होय रहलोॅ छेलै कि 'नई किरण' अखबार वास्तें वैं कुछ सनसनी खेज रिपोर्ट दै वाली छेलै। मालिकें तेॅ आपना केॅ बचाय लेली यै सिनी बातोॅ सें इनकार करी देलेॅ छेलै। एक पत्राकार के ई रँ लापता होय के मतलबे छै कि कोय दवंग व्यक्ति सें टकरावै के ही ई नतीजा हुएॅ पारेॅ। ओकरोॅ पास कुच्छू एन्होॅ छेलै जेकरा वास्तें अपहरण, हत्या कुच्छुओ करी केॅ रस्ता सें हटाय देलोॅ गेलोॅ छै। रोमा केॅ कुच्छू तेॅ पता छै, मतरकि कोय कारण सें चुप छै। अन्दरे-अन्दर गंगा ई सब्भे बुझी रहलोॅ छै, मतरकि गंगा सोचै छै कि सब्भे दुख माय-बाबुजी के नसीबोॅ में छै। निवेदिता लेली वहो बड़ी व्यथित छेली मतरकि ओकरा निवेदिता पर थोड़ोॅ भरोसा अभियो छेलै। पता नै कैन्हें तेॅ ऊ अभियो मानै लेली तैयार नै छेली। माय के लोरैलोॅ आँख देखी केॅ ऊ छटपटाय जाय छेली आरू ऊपर सें पत्थर नाँखि बनली रहै।
ई बेर तपन दिल्ली सें लौटलै तेॅ गंगा के घोॅर ऐलै। ऊ कहेॅ लागलै, "गंगा जानै छौ, निवेदिता आरू एक लड़का केॅ मोटरसाइकिल सें रघुनंदन सहाय के घोॅर तरफ जैतें एक आदमी नें देखनें छेलै। फेनू ऊ कहाँ आलोपित होय गेलै, कोय नै बताय छै। मतरकि ऊ बी0 आई0 पी0 रघुनंदन सहाय छेलै तेॅ ऊ दिन ज़रूर आपनोॅ मिलै वाला सूची में नाम लिखै होतै। मतरकि वहाँ तेॅ नामे नै छै। नै तेॅ कहीं एक्सीडेंटे आकि लावारिश लाशे मिललोॅ छै।" तपन बहुत परेशान छै, ओकरा लागै छै अपहरण के मामला छेकै, मतरकि कुच्छू रस्ता नै मिली रहलोॅ छै।
की करै गंगा, आय के प्रजातंत्रा यहेॅ छेकै। लड़का-लड़की में कोय अन्तर नै छै, आजाद देश में प्रेसो पर कोय बन्धन नै छै, मतरकि निवेदिता के केस में ऊ दोनो के हालत देखी रहलोॅ छै। तपन कहै छै, "भरोसा रक्खोॅ गंगा, निवेदिता मिली जैतौं।" गंगा की आशा रक्खै आरू की निराशा, सब्भे तरफ अन्हारे-अन्हार। फेनुओ हिम्मत राखी केॅ सब्भे के बात सुनै छै।