फिनिक्स, खण्ड-26 / मृदुला शुक्ला
राधा बौंसी सें एक महिला मरीज साथें ऐली रहै। डिलेवरी केस छेलै। थोड़ोॅ जटिल होय गेलोॅ रहै आरू घरोॅ में कोय जनानी नै रहै तेॅ ओकरोॅ तकलीफ देखी केॅ साथें चल्ली ऐलै। राधा केॅ बौंसी में मोॅन लागी गेलोॅ छेलै। जखनी वैं कोय माय केॅ नवजात शिशु ओकरा थमाय दै तेॅ जेना ओकरोॅ मातृत्वो तृप्त होय जाय, नै तेॅ विधना नें तेॅ जेना दूनो सक्खी के कपारोॅ में एक्के रँ दुख लिखी देनें छै। शुरू-शुरू में बड्डी उखड़लोॅ रँ मोॅन लागै, परेशानियो रहै, डरो लागै, आबेॅ एकदम्में सें स्थिर मोॅन होय गेलोॅ छै। वाँही छोटोॅ रँ घर बनाय लेलेॅ छै। समाजोॅ में इज्जत छै, गरीब-गुरबां भगवाने मानै छै।
बौंसी के ऊ अस्पताल तेॅ बस नामे के छेलै, पाँच ठो बेड छोड़ी केॅ आरू कोय सुविधा नै, जंग लगलोॅ सब्भे औजार, ज़रूरी जीवन-रक्षक दवैय्यो नै। एक ठो डॉक्टर कहियो कदाल आवी जाय छेलै। एक ठो किरानी बैजनाथ महतो आरू एक ठो सिस्टर राधा-साधनहीन लोगोॅ के दुख-तकलीफ सुनै वाली आरू लोगोॅ के शक्ति भर मदद करै वाली रहै। राधा लुग व्यस्क शिक्षा के सुपरवाइजर जनानियो आवै छेली। पचीस बरस के विधवा छेली। पढ़ली-लिखली आरू दोसरा जग्घोॅ के होला के कारणें बौंसी ऐला पर ऊ सिस्टर राधा के अस्पताल के पासे आवी जाय। अस्पताले के बरण्डा पर पढ़ाय-लिखाय के कामो होय छेलै।
मरीजो साथें भागलपुर ऐला के बादे सें ऊ लगातार गंगा सें मिलै के कोशिश करी रहलोॅ छेली, मतरकि समय नै मिली रहलोॅ छेलै। बौंसी सें चलै वक्ती रेवती वाँही छेली, ओकर्है कही केॅ ऐली छेलै कि बैजनाथ बाबु केॅ बताय देतै कि स्थिति गंभीर देखी केॅ जाय रहली छै। पता नै, वैं कहलकै कि नै, की वहो वहेॅ दिन लौटी गेली।
राधा कहियो-कदाल रेवती सें पूछै छेलै, "की खेती, सरकारें एक तरफ अस्पताल रँ जीवन दै वाला जग्घोॅ में पैसा दै में नतीजा पुराय दै छै, डी0 डी0 टी0 आरू ब्लीचिंग पावडर तक लेली महीनो करै लेली पढ़ै छै। दोसरी तरफ व्यस्क शिक्षा के नामो पर अन्धेर मचाय रहलोॅ छै। सन्तोखी बाबु के भुसखारी घरोॅ में किताब-कॉपी ठुँसलोॅ छै, वैशाली कॉपी तेॅ दुकानी में बिकिये जाय छै। पढ़वैया के ठिकाने नै, खेतोॅ के टूटलोॅ-हारलोॅ मजूरोॅ केॅ पकड़ी-पकड़ी दू अक्षर पढ़ाय केॅ खाना पूर्त्ति होय रहलोॅ छै, की ई अन्याय नै छेकै।" रेवती खाली चुप्पेचाप सुनै, कहियो-कहियो मुस्की केॅ कहै, "दीदी यहाँ तेॅ कहियो-कदाल आठ-दस आदमी पढ़ियो रहलोॅ छौं, परियोजना पदाधिकारियो देखै-सुनै लेली आवी जाय छौं, मतरकि बगल वाला ब्लाकोॅ में तेॅ देखभौं नी तेॅ कारोॅ कौवो नै आरू रजिस्टर पर पचपन आदमी भरलोॅ रहै छै।"
राधा आपनोॅ अस्पतालोॅ के दुर्दशा सें भन्नैली रहै, यै लेली अक्सरे टोन मारै छेली, "हम्में तेॅ तपन बाबु केॅ कहवै, जनता के पैसा की हलवा-पूरी खाय लेली छै।" राधा आपनोॅ कुरसी छाया तरफ करी केॅ बैठली छेलै, रेवतियो झोला धरी केॅ नजदीक बैठी गेली, "हमरोॅ तेॅ यहेॅ रोजी-रोटी छेकै, गरीब बेसहारा के एक नौकरी मिली गेलोॅ छै बड़का बात। मतरकि तोरोॅ शिकायत करला सें कुच्छू नै होतै। बड़का सें बड़का आदमी कानोॅ में तेल डाली केॅ सुतलोॅ छै तेॅ कोय बात ज़रूरे होतै।"
राधा केॅ मसखरी सूझी गेलै, "सुनै छिहौं कि तोह्रोॅ विभागें किरासन तेलो खूब पीवी रहलोॅ छौं।" रेवतीं मूड़ी झुकाय लेलकी, "हों गाँव में लालटेन आरू किरासन तेल के नामोॅ पर ढेरे पैसा आवै छै। आबेॅ आगू की कहियौं, छोड़ोॅ यहो कथा।" तखनी तेॅ राधां चुप्पी लगाय गेली, मतरकि जबेॅ राधा के ढेरे कोशिश के बादो बच्चा केॅ नै बचावेॅ पारलकी तेॅ राधा केॅ बड्डी दुख होलै। यदि बौंसी में सुविधा रहतियै, आय ऊ जनम लै सें पहिनें नै मरी जैतियै। रोगी के शरीर मेें खून नै छेलै, बच्चा हृस्ट-पुष्ट छेलै, मतरकि समय पर आपरेशन नै करला सें बच्चा पेट्हैं में दम तोड़ी देलकै।
राधा जबेॅ गंगा सें भेंट करै लेली गेली तेॅ ओकरोॅ आँख भरी-भरी आवै। ओकरोॅ झमान मोॅन देखी केॅ गंगा कहलकै, "तोहें कैन्हें दुखी होय छोॅ राधा, तोहें माय केॅ तेॅ बचाय लेल्हौ नी, नै तेॅ ओकरोॅ की हालत होतियै?"
"हौं गंगा, माय केॅ तेॅ बचाय लेलियै, मतरकि भविष्य केॅ तेॅ मारी देलियै नी। की व्यवस्था छै आय, जेकरोॅ पास पैसा छै, ओकर्है पास ज़िन्दगी छै। जानै छौ, ऊ लड़की पहली बेर माय बनी रहली छेलै। ओकरा पता चललै तेॅ एकदम्में सें फक्क पड़ी गेलै। कानै के तेॅ ओकरा ताकते नै छेलै। ओकरोॅ आदमी खेतोॅ में मजूरी करै छै, ऊ वाँही कानी रहलोॅ छेलै। हमरा पर बड्डी विश्वास छेलै। दुख मनावै के अधिकारो तेॅ गरीबो केॅ नै होय छै, काम नै करतै तेॅ खैतै की?" भारी मनोॅ सें राधा बताय रहली छेलै।
ऊ दिन साँझ केॅ तपन आरू प्रशान्तो बैठलोॅ छेलै। गंगो बैंकोॅ सें तुरन्ते ऐली छेलै। गंगे फेनू रसोय में जाय केॅ चाय बनाय केॅ आनलकी तेॅ राधा के सुजलोॅ मूँ देखी केॅ तपन पूछेॅ लागलै कि बात की होलै? गंगा नें राधा के दुखी होय के कारण बताय देलकै। प्रशान्त नें भी राधा केॅ समझैलकै, "तोरोॅ तेॅ प्रोफेशने एन्होॅ छौं, जै में मरबोॅ-जीवोॅ लागलें रहै छै, मरीजोॅ सेें सहानुभूति अच्छा बात छेकै, मतरकि आपनोॅ मोॅन एतना खराब करभौ तेॅ केना होतौं।"
"नै प्रशान्त बाबु, हमरोॅ मोॅन खाली यही लेली दुखी नै छै। हम्में तेॅ सरकारोॅ के ई अनटेटलोॅ, एन्होॅ चालोॅ पर दुखी छी। आय किसना बहु के बच्चा खाली यै लेली मरी गेलै कि बौंसी में आपरेशन के कोय व्यवस्था नै छै आरू दोसरोॅ-दोसरोॅ रस्ता सें सरकारें पानी रँ रूपय्या बहाय रहलोॅ छै। लोगें बिना मेहनत के हलवा-पूड़ी खाय रहलोॅ छै।"
"हों वहो होय छै, मतरकि सरकार के टेंट सें पैसा बाहरे कहाँ होय छै?"
तबेॅ ताँय गंगा कहलकै, "राधा केॅ दुख यहेॅ लेली छै कि वही बौंसी में व्यस्क शिक्षा परियोजना में सरकार नें बिना लाभ आरू लक्ष्य के पैसा बहाय रहलोॅ छै, कागजोॅ पर बेंच-कुर्सी-दरी आरू ब्लैक बोर्ड बनवाय रहलोॅ छै। आरू वाँहीं ठा बच्चा जनम वाला टीको नै लगेॅ पारै छै।"
"ऊ पैसो तेॅ जनता वास्तें नहिंये खरच होय रहलोॅ छै, बस कुछुए आदमी माल उड़ाय रहलोॅ छै नी?" गंगा नें सवाल करी देलकै। प्रशान्त उत्तेजित होय केॅ बोलेॅ लागलै, "गंगा, ई व्यवस्था के सब्भे कुच्छू बदलै लेॅ पड़तै। आपनोॅ करम के दोष दै के आदत छोड़ै लेॅ पड़तै लोगोॅ केॅ।"
तपन बोलेॅ लागलै, "हम्में कल्हे एक ठो शिकायत पत्रा भेजी दै छियै दैनिक अखबारोॅ में। शिक्षा के प्रचार हुएॅ, ई तेॅ ज़रूरी छै, मतरकि ई नौटंकी बंद होना चाहियोॅ। सरकार के खजाना मेें गरीब जनता के पैसा छै।"
"तपन जे हम्में करेॅ सकै छियै, पहिनें वही तरफ सोचना छै। आय राधा दुखी छै कि बौंसी के अस्पतालोॅ में जच्चा-बच्चा के इलाज के पूरा सुविधा नै छै, तेॅ कि आरू गामोॅ में ई सुविधा छै। हमरा सिनी के तेॅ हिन्नें ध्याने नै छेलै। हम्में पहिनें आपनोॅ गामोॅ सें ई सुविधा शुरू करवैबै। हमरोॅ ब्लॉक में जे अस्पताल छै, ओकर्हो स्थिति यहेॅ छै। बौंसी में तेॅ कम-सें-कम राधा रँ नर्सो छै।"
तपन बहस करेॅ लागलै, "प्रशान्त बाबु, ई सब साथें एक बड़का समस्या बेरोजगारियो जुड़लोॅ छै। कम-सें-कम रोजगार तेॅ कुच्छू केॅ मिली गेलोॅ छै। ओयकल तेॅ सब्भे पढ़लोॅ-लिखलोॅ एन्हैं भटकी रहलोॅ छै। व्यस्क शिक्षा खराब तेॅ छै, पर ई योजना नें लोगोॅ केॅ नौकरी के आस देंनें छै।"
"मतरकि तपन, नौकरी के मतलब भ्रष्टाचार तेॅ नहिंये नी होय छै। शिक्षा के साथें ओकरोॅ उद्येश्यो पूरा होना चाहियोॅ की नै? ब्लैक बोर्ड बनाय में, किरासन तेल के खरीद में जे लीपा-पोती करी केॅ कमाय छै, ओकरा बेरोजगारी सें की मतलबµई तेॅ बन्द होना चाहियोॅ।"
दोनों आपनोॅ समस्या में उलझलोॅ बड्डी देर तांय समाधान लेली बात करतें रहलोॅ छेलै। गंगा नें प्रशान्त केॅ ज्यादे चिंतित देखी केॅ कहलकै, "तोहें तेॅ सब्भे कुच्छू करी रहलोॅ छौ, की फोॅल बुझाय छौं, खाली दुश्मनोॅ के संख्या बढ़ी रहलोॅ छौं।"
तपन नें बीचे में कहलकै, "हम्में आकि तोहें असकल्ले ई काम करौं, एकरा सें ज़्यादा ज़रूरी छै कि हम्में ऊ मानसिकता पैदा करै के कोशिश करौं, जै में अन्याय के विरोध में आवाज उठेॅ सकेॅ। आपनोॅ सिल्क केॅ जिलावै के कामो कम बड़ोॅ नै छै, वहेॅ हमरोॅ उद्येश्य बनी गेलोॅ छै। बेरोजगारी नें लोगोॅ केॅ कुंठित करी देनें छै आरू घुसखोरी नें ओकरा सें आदमी बनै के अधिकारो।"
गंगा नें उठतें-उठतें कहलकै, "तोरा सिनी राधा के मोॅन हल्का करै लेली चाहै छौ कि ओकरा नेता बनै के ट्रेनिंग दै रहलोॅ छौ।"
प्रशान्त आरू तपन हँसी देलकै आरू राधो उठी केॅ गंगा साथें रसोय में चल्ली गेलै।