फिनिक्स, खण्ड-28 / मृदुला शुक्ला
आयकल गंगा के बैंकोॅ में काम बहुत्ते बढ़ी गेलोॅ छै। भागलपुर में आबेॅ शायद रुकन्हौ संभव नै होतै। प्रमोशन हुऐॅ या नै, ओकरोॅ ट्राँसफर दुमका होय के बात होय रहलोॅ छै। यै सें गंगा थोड़ोॅ चिन्तितो रही रहली छेलै।
मतरकि एक टा अच्छा बात ई होलै कि गंगा के बदली दुमका के जग्घा पर देवघर होय गेलै। यै सें गंगा केॅ माय-बाबुजी के सहारा मिली गेलै आरू पलाश केॅ देवघर लानै में कोय दिक्कतो नै होलै। निवेदिता के बारे में जबेॅ कुच्छू पता नै चललै तेॅ सब्भे समझी गेलै कि जीत्तोॅ रहतियै तेॅ ज़रूरे अब ताँय ऊ सम्पर्क करतियै। कँही केकर्हौ इंटरव्यू लै में या कुच्छू रहस्य जानला के कारण ऊ मरी-पड़ी गेलै। आबेॅ परिवार वाला थकी गेलोॅ छेलै। पुलिस सुस्तैलोॅ चालोॅ सें आपनोॅ काम करी रहलोॅ छेलै।
इन्दु आरू रामप्रसाद बाबु यै सें एकदम्में दुखी होय केॅ बस पूजा-पाठ करी केॅ विरक्त रँ रही रहलोॅ छेलै। पलाश आरू गंगा के ऐला सें हुनका सिनी जेना फेनू सें सांसारिक हुएॅ लागलै। जे तकलीफ कलेजा में पत्थर नाँखि जमी गेलोॅ छेलै, वहो बरफ नाँखि पिघलेॅ लागलै। मनुष्य के स्वभाव यहेॅ रँ होय छै, सम्बन्ध के एक ठो पतला सिरा भी बचलोॅ रही जाय छै तेॅ उपयुक्त समय ऐला पर रक्तप्रवाह बढ़ी जाय छै आरू सौंसे जीवन-वृक्ष लहलहाय उठै छै। सब्भे कुच्छू थोड़ोॅ दिनोॅ में अनुशासित ढंग सें चलेॅ लागलै।
आपनोॅ कामोॅ सें गंगा भागलपुर ऐली रहै। पलाश के ट्यूशन के कारण ओकरा देवघर में ही छोड़ी देनें रहै। सोचलेॅ छेलै, एक दिन में काम होय जैतेॅ, मतरकि तीन दिन लगी गेलै। ऊ दिन गंगा बाज़ार लेली निकलली तेॅ घण्टाघर ताँय पहुँचली छेलै। रिक्शा सें उतरी केॅ फल खरीदेॅ लागली। कामोॅ के धुनोॅ में प्रशान्त के स्वास्थ्य गिरलोॅ जाय रहलोॅ देलै, यै लेली गंगो केॅ सोच होय गेलोॅ छेलै। तखनिये भगदड़ मची गेलै। कोय कहलेॅ गेलैµजल्दी घोॅर जा, दंगा छिड़ी गेलोॅ छै। दुकानदार सिनी नें जल्दी-जल्दी सटर गिरावेॅ लागलै। महावीर स्थानोॅ के पंडी जी ताला लगावेॅ लागलै आरू सब्भे पागलोॅ एन्होॅ जन्नें पावै, हुन्ने भागी रहलोॅ छेलै।
गंगा थोड़ोॅ देर ठकमकाय केॅ खाड़ी रही गेलै। मोहल्ला के रिक्शावाला कहेॅ लागलै, "दीदी जल्दी घोॅर चलोॅ।" गंगा तेॅ घोॅर आवी गेली, फूफू के छोटकी पुतोहूओ आपनोॅ बेटा लेली चिन्ता करी रहली छेलै। ऊ मैच खेलै लेली बाहर गेलोॅ छेलै। गंगा के हालत खराब छेलै, दंगा नाथनगर तरफ सें शुरू होलोॅ छेलै आरू प्रशान्त आपनोॅ कामोॅ सें नाथेनगर तरफ निकललोॅ छेलै। केन्होॅ केॅ प्रशान्त आरू ऊ बच्चा घोॅर लौटी ऐलै तेॅ जानोॅ मेॅ जान ऐलै। गंगा के ध्यान आबेॅ रही-रही पलाशे पर चल्लोॅ जाय छेलै। दंगा भड़की गेला सें कफर््यू सौंसे शहर में लगी गेलोॅ छेलै। केन्होॅ केॅ कोय पहुँचावै के उपाय नै छेलै। माय-बाबुजी यहाँकरोॅ खबर सुनी केॅ घबरैतेॅ होतै।
तपन आरू प्रशान्त जेकरोॅ कामे हिन्दू-मुसलमान दोनों सें पड़ै छेलै, चिन्ता में कुच्छू नै बोलेॅ पारी रहलोॅ छेलै। समूचा शहर सुनसान नाँखि लगी रहलोॅ छेलै। बीचोॅ-बीचोॅ में कभियो 'या अली' आरू कभियो 'जय बजरंग बली' सुनाय दै रहलोॅ छेलै। कॉलेज सिनी अचानके बन्द होय गेला सें माय-बापोॅ के हालत खराब। अफवाह के चिड़िया चारो तरफ उड़ी रहलोॅ छेलै। विवेक, बुद्धि, ज्ञान जेना सब्भे हेराय गेलोॅ रहेॅ। कफर््यू के दिन केन्होॅ भयानक लागै छैµगंगा पहिले बेर देखी रहली छेलै। खिड़की सें झाँकै तेॅ चारो तरफ मनहूस सन्नाटा आरू खाली फौजी बूट के आवाज। गरीब-गुरबा के अलगे मरन। बच्चा के हारी-बीमारी लै केॅ लोग आपनोॅ जान के चिन्ता छोड़ी केॅ कभी-कदाल सड़कोॅ पर निकली जाय; फेनू केन्होॅ केॅ सहायता लै केॅ दवाय सिनी के जोगाड़ करै।
एक दिन कफर््यू में चार घण्टा के ढील होलै तेॅ गंगा रघु साथें गाड़ी सें चौक ताँय साग-सब्जी खरीदै लेली निकली गेली। प्रशान्त केॅ थोड़ोॅ बोखार होय गेलोॅ छेलै, यै लेली गंगां नै जावेॅ देलकै। प्रशान्त निकलतियै तेॅ आपनोॅ मजदूर के हाल-समाचार पूछै लेली ज़रूरे दूर ताँय चल्लोॅ जैतियै, यै लेली गंगां ओकरा रोकी देलकै। सब्जी लै केॅ ऐली तेॅ आपनोॅ गाड़ी लुग एक ठो बच्ची केॅ डरलोॅ रँ खाड़ोॅ देखलकै। ऊ ओकरा सें पूछेॅ लागली तेॅ बच्ची कानेॅ लागली। दूर-दूर तांय कोय ओकरोॅ आदमी नै दिखाय दै रहलोॅ छेलै। कफर््यू छूट के समैयो खतम होय वाला छेलै। गंगा सोचलकी, शायद देहात के लड़की भागलपुर ऐलै आरू माय-बापो ंॅ सें भगदड़ में बिछुड़ी गेली छै। ऊ गंगा के अँचरा पकड़ी केॅ डरली रँ खाड़ी होय गेलै तेॅ गंगा नें ओकरा गाड़ी पर बैठाय केॅ घोॅर लेनें ऐलै। थोड़ोॅ देर बाद खाना खिलाय केॅ पुछलकै तेॅ बात वहीं सच्चे छेलै। ऊ लड़की, दंगा जोन दिन पहिनें बेर भड़कलोॅ छेलै, वहेॅ दिन पता नै केना आपनोॅ माय-बाप सें छूटी केॅ दोसरोॅ रस्ता दिश चल्ली ऐलै। गल्ली के परछत्ती सें ऊ लूटपाट करतें आरू आदमी केॅ पागल बनतें देखतें रहली, आय गंगा केॅ देखी केॅ ओकरोॅ पास आवी गेली छेलै। सात-आठ बरस के लड़की होतै। रेहाना नाम बतैलकी तेॅ गंगा साथें प्रशान्तो चिन्तित होय गेलै। आपनोॅ नाम आरू अब्बा के नाम के अलावा ऊ कुच्छू नै बतावेॅ पारै छेलै। खाली बतावै कि ऊ बस सें ऐली छेलै। बच्ची मुसलमान छेलै, यै लेली बात आरू गम्भीर होय गेलोॅ छेलै। लड़की केॅ कहाँ छोड़लोॅ जैतियै, ऊ कहीं बाहर जाय के नामे सें कानेॅ लागै छेलै। प्रशान्त सोचलकै जरी टा समय मिली जैतियै तेॅ आपनोॅ कारीगर सुलेमान कन ओकरा रखवाय देतियै। मतरकि यहो सहज नै छेलै। रेहाना जबेॅ-तबेॅ कानेॅ लागै। एक ठो कपड़ा के झोरा ओकरोॅ हाथोॅ में छेलै, जैमें चूड़ा-मूढ़ी खाय के थोड़ोॅ चीज छेलै। शायद वही खाय केॅ ऊ पाँच दिन तांय रही गेलोॅ छेली। यै बीचोॅ में स्थिति एक बेर शहर के आरू तनावपूर्ण होय गेलोॅ छेली, यै लेली कफर््यू सख्त करी देलोॅ गेलै। उड़तें-उड़तें खबर सुनलकै कि दंगा में सुलेमानो के कांही पता नै छै। ऊ गरीब कारीगर नें की लेलेॅ छेलै। भरलोॅ पेट वाला के शौक होय छै दंगा-फसाद। ओकर्है धर्म, मन्दिर, मस्जिद बुझाय छै, गरीबोॅ केॅ तेॅ दाना-दाना में भगवान देखाय छै। मतरकि मरै छै वही, जेकरोॅ माथा पर छत नै छै। रिक्शावाला आरू मजदूर कमाय लेली निकलै छै आरू नै मालूम कि हिन्दू के गोली सें की मुसलमान के हथियार सें आकि पुलिस के गोली सें मारलोॅ जाय छै।
ऊ दिन प्रशान्त बहुत्ते उद्विग्न होय गेलै। ओकरोॅ तेॅ व्यवसाय ही छेलै धागा केॅ बुनना आरू बुनवाना। नाथनगर के हरिजन बस्ती जराय देलोॅ गेलै तेॅ लोगाय सें आबादिये खतम करी देलोॅ गेलै। सुनी-सुनी केॅ करेजा छलनी होय जाय रहलोॅ छेलै। ऊ में रेहाना केॅ केना सही ठिकाना पर पहुँचैलोॅ जाय कि आपनो पर आँच नै आवै।
स्थिति थोड़ोॅ सामान्य होय रहलोॅ छेलै। कैएक जग्घा सें कफर््यू हटाय्यो देलोॅ गेलोॅ छेलै। राधा के माय एक दिन कानली-बाजली ऐलै कि राधा दवाय लेली एक दोकानोॅ पर छेली, तखनी वहाँ दंगा नै फैललोॅ छेलै कि देखत्हैं-देखत्हैं दंगाई पहुँची गेलै आरू दोकानी में आग लगाय देलकै। वहाँ सें तेॅ ऊ निकली गेली, मतरकि तहियो झरक लागी गेलोॅ रहै, जैसें ऊ बेहोश होय गेली छेलै। तबेॅ ताँय कोय भला आदमी नें चिन्ही केॅ अस्पताल पहुँचाय देलकै। वहाँ सें भागलपुर आवै के तेॅ उपाय्ये नै छेलै, यै लेली घाव सुखी नै रहलोॅ छेलै आबेॅ ताँय, आबेॅ राधा केॅ लै केॅ ऐली छै आरू अस्पतालोॅ में भरती करी देनें छै।
बैठलोॅ-बैठलोॅ प्रशान्तो सोचत्हैं रहै छेलै कि सौंसे शहर केना बदली गेलोॅ छै। विश्वास आरू रिश्ता केन्होॅ दरकी गेलोॅ छै। सिल्क-उद्योग तेॅ एकदम्में चरमराय गेलोॅ छै। प्रशान्त के सपना जेना खूनमाखून होय केॅ रही गेलै। मजदूर सिनी बम्बय, सूरत भागी रहलोॅ छै, सेठ सिनी नें आपनोॅ दोकान दोसर शहर में लगाय लेॅ सोची रहलोॅ छै। की होतै ई शहरोॅ के. एन्हे तेॅ मंथर, सुस्त बनी केॅ पिछड़लोॅ जाय रहलोॅ छै सौंसे अंगक्षेत्रा आरू रहलोॅ कसर दंगा नें निकाली देनें छै।
घरोॅ में राधा केॅ देखी केॅ गंगा फूटी-फूटी कानेॅ लागली, तपनो के आँखी में लोर आवी गेलै। तपन नें दोनो धर्म के बुद्धिजीवी आरू शांत लोगोॅ के एक शांति-समिति बनैलेॅ छै। मोहल्ला में युवा सिनी रात केॅ पहरा दै केॅ असामाजिक तत्व केॅ रोकै के काम करी रहलोॅ छै। मतरकि साधारण लोग के मनोॅ में तेॅ एक-दोसरो सें डोॅर बैठी गेलोॅ छेलै। राधा ठीक होय केॅ ऐली तेॅ गंगा नें देखलकै कि ओकरोॅ हाथोॅ के जखम अभियो पुरलोॅ नै छै। यै लेली ऊ ओकरा नै जावेॅ दैलेॅ चाहै छेली। मतरकि राधा नै मानी रहलोॅ छेली।
यही बीचोॅ में प्रशान्त नें आवी केॅ कहलकै कि नगर-शांति-समिति सें ऊ बात करी लेनें छै, रेहाना केॅ हुनिये सिनी जग्घोॅ खोजी केॅ पहुँचाय देतै। रेहाना केॅ दू ठो कपड़ा आरू बिस्कुट सिनी दै, केॅ माथोॅ झारी केॅ गंगा नें नया फ्राक पिन्हाय देलकी। पन्द्रह दिन सें घरोॅ में रहला सें ओकर्हौ सें मोह होय गेलोॅ छेलै आरू यहो सोची कि पता नै एकरोॅ माय-बाप जीत्तोॅ छै कि...ओकरोॅ आँख भरी गेलै। मतरकि एक ठो चिन्तो खतम होय रहलोॅ छेलै कि ओकरोॅ मजहब के समझदार आदमी के साथें ऊ ठीक्के रहती।
राधा आरू रेहाना के गेला के बाद प्रशान्त एकदममें दुखी होय केॅ बोलेॅ लागलै, "की सोचलेॅ छेलियै आरू की होय रहलोॅ छै, हर सपना के एन्होॅ कैन्हें होय छै। राधाहौ सब्भे दिन दोसरे वास्तें जीवन समर्पित करी रहली छै, मतरकि खाली कष्ट पावी रहली छै। सबके अधिकारोॅ लेली लड़ै वाली आय मानवता के अधिकारोॅ सें वंचित छै। जली गेला सें केहुनी थोड़ोॅ टेढ़ोॅ रँ होय गेलोॅ छै, घाव सुखलोॅ नै छै, संक्रमण के डोॅर अलगे छै, मतरकि स्वाभिमान सें आभियो जीयै के इच्छा छै।"
गंगा के मोॅन माय-बाबुजी आरू पलाश तीनो लेली बेचैन छेलै। एक आदमी नें आवी के हाल समाचार तेॅ बताय देनें छेलै, मतरकि पलाश छोटोॅ बच्चा छै, ओकरा तेॅ माय-बाबुजी लुग आवै लेॅ मोॅन करतेॅ होतै। प्रशान्तो पलाश केॅ हिन्नें सें नै देखेॅ पारलेॅ छेलै। यै लेली जबेॅ सब्भे गाड़ी सिनी सामान्य रूपोॅ सें चलेॅ लागलै तेॅ प्रशान्त आरू गंगा साथें देवघर गेलै। रामप्रसाद बाबु आरू इन्दु के जानोॅ में जान ऐलै, नै तेॅ भागलपुर के खबर सुनी-सुनी केॅ मनोॅ में खाली खराबे विचार आवै छेलै।
गंगा नें कहलकै, "बाबुजी, एक ठो करिया अन्धड़ ऐलोॅ छेलै, आबेॅ चल्लोॅ गेलै, बहुत्ते कुच्छू उजाड़ी केॅ गेलै। जे लै गेलै, ऊ कम तेॅ नै छै, मतरकि जे बची गेलै, ओकरा संवारना छै।" यहेॅ कही केॅ ऊ प्रशान्त केॅ देखेॅ लागलै जे आपनोॅ प्रेस आरू लूम केॅ फेनू सें चलाय के बारे में सोचेॅ लागलोॅ छेलै।
पलाश सब्भे कुछ नै बूझतें होलेॅ भी परिस्थिति के भयानकता समझी केॅ गंगा के देह सें डरी केॅ सटी गेलै, "मौसी आबेॅ तोहें कहीं नै जैइयो" जहिया सें बीहा करी केॅ गंगा ऐली छेलै, गंगा नें पलाश केॅ आपना केॅ मौसी कहै लेॅ सिखाय देलेॅ छेली। कैन्हें कि कावेरी के फोटो देखाय केॅ बताय देनें छेलै, "वहेॅ तोरोॅ माय छेकौं, जे तोरा हमरा दै केॅ गेली छौं। यै लेली आवेॅ तोहें हमरे बेटा छेकौ।"
गंगा नें पलाश केॅ कलेजा सें लगाय केॅ कहलकै, "तोरा तेॅ बहादुर बेटा बनना छौं नी? पुलिस अफसर बनभौ, तेॅ एतना डरला सें केना होत्हौं।"
गंगा देवघर लौटी केॅ ऐलै तेॅ जेना एक ठो बुरा सपना देखी केॅ उठली रहेॅ। बहिनी के जीवन के त्रासदी के बाद दंगा में ज़िन्दगी केन्होॅ सस्तोॅ होय जाय छै आरू आदमी केना वहशी होय जाय छै, ई सब्भे जानी केॅ ऊ दहली गेलोॅ छेली। यै लेली थोड़ोॅ उदासो रहै।
प्रशान्त केॅ नया सिरा सें फेनू सब्भे काम करना छेलै, यै लेली एकदम्में व्यस्त होय गेलोॅ छेलै। मजदूरोॅ के दुक्खोॅ पर मरहम आरू आपनोॅ मशीन मरम्मतµसब्भे काम एक्के साथें करना छेलै। बढ़िया सिनी कारीगर, जे जग्घोॅ छोड़ी केॅ भागी गेलोॅ छै, के अभाव में कामो रुकी-रुकी जाय छै। यही बीचोॅ में गंगा आरू पलाश के चिन्ता। समाज के काम, नगर-शांति-समिति, अंगिका संस्कृति-विकास-मंच आरू ढेरे सिनी स्वयंसेवी संस्था के काम गछी लेनें छेलै, जै सें आपनोॅ खाय-पीयै के कोय ठिकाने नै रहलै। गंगा के मनोॅ में उलझन बनलोॅ रहै। एक तरफ नौकरी के जे उद्येश्य छेलै, आपना केॅ पहचानना आकि आपनोॅ जीवन के अर्थ खोजना, वै में यहो मिली गेलोॅ छेलै। पलाश केॅ गढ़ै में ऊ आपनोॅ सब्भे इच्छा पूरा करी रहली छेलै। इन्दु आरू रामप्रसाद बाबु के इच्छा छेलै कि गंगा के आपनो एक टा बेटा हुएॅ। मतरकि गंगा केॅ लागलै कि जों पलाश केॅ बेटा बनाना छै तेॅ होकरे प्यार बाँटै लेली दोसरा केॅ ई दुनियाँ में नै लानवै। राधो नें एक दिन बातोॅ में टोकी देलकै, "तोरा की आपना पर विश्वास नै छौ, जे तोहें माय बनै में डरी रहली छौ।" गंगा कहलकै, "नै राधा, बचपन में हरगौरी काका केॅ आपनोॅ बच्चा के प्रति जे मोह देखलियै, ऊ भूलेॅ नै पारौं हुनी बाबुजी के हृदय केॅ ठेस पहुँचाय में भी नै चुकलै। जेकरा भगवान मानै छेलै, ओकर्है सें बात बनावेॅ लागलै, कैन्हें तेॅ हुनकोॅ बेटा केॅ सरदी दू दिन सें होय गेलोॅ छेलै। नवल भैया निवेदिता केॅ खोजै लेली टिकट कटाय केॅ नै गेलै, कैन्हें कि हुनकोॅ बेटा सीढ़ी पर सें गिरी गेलोॅ छेलै, जबेॅ कि सब्भे कुच्छू ठीक्के छेलै। आपनोॅ सन्तान के मोह में लोगें दोसरा के सन्तानोॅ के प्रति अन्याय करिये दै छै। आय ढेरे बच्चा प्यार लेली तड़पी रहलोॅ छै, ओकरोॅ माय बनै लेली कोय तैयार नै होय छै। आरू पलाश हमरा वास्तें तेॅ एन्हौ बड़ी अनमोल छै। हम्में आपनोॅ बिछुड़लोॅ प्यार प्रशान्त केॅ यही पलाश के कारणें पैनें छी, यै लेली मातृविहीन पलाश हेनोॅ बच्चे हमरोॅ बच्चा होतै।" राधा एकदम्में चुप होय गेली। कहीं उल्टी केॅ गंगा नें ओकर्हौ सें जीवन आरू घोॅर बसाय के बात पूछी देतियै तबेॅ?
गंगा केॅ आबेॅ नौकरी करवो कठिन बुझाय रहलोॅ छेलै। मतरकि माय-बाबुजी के थोड़ोॅ खुश-खुश रहतें देखी केॅ ऊ देवघर नै छोड़ेॅ पारी रहली छेलै। यही बीचोॅ में नवल के जे बिहार सरकार में शिक्षक होय गेलोॅ छेलै, बदली देवघरे होय गेलै आरू नवलो आपनोॅ बाल-बच्चा साथें माय-बाबुजी के पास चल्लोॅ ऐलै।
एक दिन अचानके गंगा नें नौकरी छोड़ै के फैसला करी लेलकी आरू पलाश साथें भागलपुर आवी गेली। आबेॅ प्रशान्त के काम संभारै में ही गंगा के ज़्यादा समय बीती जाय छेलै।