फिनिक्स, खण्ड-9 / मृदुला शुक्ला
"गंगा दी ई ठो सलवार-समीज तोरा पर बहुत अच्छा लागै छौ, यहेॅ पिन्ही केॅ आय बैंक जो नी।" निवेदिता नें मनुहार करी केॅ बहिनी केॅ कहलकी।
"नै निवो, बैंक लेॅ तेॅ साड़ीये ठीक छै। वहाँ थोड़ोॅ जिम्मेवार रं लागै लेॅ पड़ै छै।" यहेॅ कही केॅ गंगा नें गुलाबी रंगोॅ के साड़ी पिन्ही लेलकी। आय वैंनें माथा पर छोटोॅ रं के मैचिंग बिन्दीयो लगाय लेनें छेली। फेनू लजाय केॅ मेटाय रहली छेलै कि निवेदिता नें हाथ पकड़ी लेलकै। इन्दु नें बिन्दी आरू चूड़ी पिन्हैलेॅ कै बार टोकनें छेलै, मतरकि गंगा ओन्हे रहै छेलै। आय ओकरा खुद्दे आपनोॅ सूनोॅ हाथ अच्छा नै लागी रहलोॅ छेलै। मतरकि चूड़ी नै पिन्ही केॅ निवेदिता के बाला हाथोॅ में घुसाय लेलकी। इन्दु केॅ गंगा के सजवोॅ देखी केॅ बड्डी खुशी भेलै, मतरकि टोकलकी नै।
गंगा सब्भे बहिन में लम्बी छेली। रूपो लम्बी छेली, मतरकि सब दिन दबली-ढकली आरू दुबली-पतली छेली। गंभीरता नें ओकरोॅ उम्र पर परत डाली देनें छेलै। गंगा एक स्वस्थ आरू आत्मविश्वास सें भरली लड़की छेली। निवेदिता के रंग खूब गोरोॅ छेलै, आरू गंगा के रंग ओकरा सें कम, मतरकि नाक-नक्श में तेज धार छै आरू जरी-सा पिन्हला-ओढ़ला पर आकर्षण बहुत बढ़ी जाय छै। लम्बा-लम्बा ओंगली, केसो खूब घना आरू लम्बा छै, जेकरा बस ढीला-ढीला चोटी में बान्ही दै छै। रूप के आकर्षण नें लोगोॅ केॅ आपनोॅ ओर देखै लेली बाध्य करिये दै छै। आपनोॅ प्रति लापरवाही साथें काम के प्रति जे तत्परता छै ओकर्हौ सें लोग आकर्षित होय छै।
एक दिन बैंक में पता चललै कि सरकार नें बन्द स्कूल-कॉलेज केॅ खोलवाय वास्तें नोटिस निकाली देनें छै। शहर के स्थिति आरू तनावपूर्ण होय रहलोॅ छेलै। प्रेस पर पाबंदी के बाद सें विद्रोह आरू मुखर होय गेलोॅ छेलै, यैं सबसें स्कूल-कॉलेज के छात्रा-छात्राहौ के भाग्य अनिर्णय के स्थिति में आवी गेलोॅ छेलै। निवेदिता के परीक्षो टली रहलोॅ छेलै। अखबारोॅ में कॉलेज खुलै के खबर पढ़ी केॅ वैं सोचलकी कि आबेॅ इन्दु आरू निवेदिता केॅ जाय लेॅ पड़तै आरू गंगा फेनू अकेली होय जैती।
थोड़ोॅ उदास होय केॅ आखिर निवेदिता आरू माय केॅ गंगा नें भेजी देलकी। निवेदिता के परीक्षा नै हुएॅ पारलै। एक तरफ पुलिसे पुलिस, दोसरा तरफ विद्यार्थी के हुजूम, बीचोॅ में परीक्षार्थी। जनसमर्थन के सैलाब उमड़ी रहलोॅ छेलै। मतरकि शासनो कठोर होलोॅ जाय रहलोॅ छेलै। यै सें कॉलेज-स्कूल के खुली जैवोॅ अजीब छेलै।