फिरंगी राज / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
लगभग दू सौ वर्ष पैन्हैॅ के बात छेकै। मिर्जापुर गाँवौॅ कैॅ पछियैं चार कोस पर चानन नदी छै। तखनी जौं बरसा हुअैॅ तैॅ अखार, सौैॅन, भादौॅ तांय भरी नद्दी छप-छप पानी बहै छेलै। आदमी रौॅ पार होवौॅ मुश्किल होय जाय छेलै। ओना कैॅ सालौॅ भर चानन पानी से अधैली रहै छेलै। एक कोसोैॅ से बेशिये फैललौॅ पाटौॅ में चानन बैशाखौॅ के लप-लप करतें लू में भी तीन-चार पातरौैॅ धारों में बहतें रहै छेलै। यही ठियाँ एकदम्मेैॅ सटलौॅ जेठौर पहाड़ छै ठीक बौंसी कैॅ मंदार पहाड़ौॅ कैॅ तीराकोनी। पूरब-दक्खिन कोना पर मंदार आरो पछिये-उत्तर कोना पर जेठौरनाथ। बारह कोस के दूरी पर दूनौॅ। मधु-कैटभ राक्षसौॅ कैॅ मारी कैॅ भगवान विष्णु मंदारौॅ पर बिराजै छेलै तैॅ जेठौरौॅ में भगवान भोलेनाथ। याहीं जेठौरौॅ में चानन नदी कैॅ पच्छिम किनारा पर महाभारत युद्ध के महारथी कर्ण के ई किंछा पर कि पृथ्वी के सबसें पवित्रा जग्घा पर हमरौॅ चिता सजैलौॅ जाय तैॅ भगवान कृष्ण नें याहीं कर्ण कैॅ चिता देनें रहैैॅ।
ठीक यहाँ से दस कोस पछियें चौतरा गाँव छेलै। तहिया आरो आय्यौॅ चौतरा गाँमों कैॅ चारों बगल सौ सें जादा गाँमौॅ जेनां भरकौॅ, बाजा, बंधुडीह, बरोथा, मंझगांय, कुमारपुर, गोरगामा सभ्भैॅ के जमीन पटवन के इंतजाम नै होला के कारण उपजा नै होय छेलै आरो ऐकरा सभ्भें चारीप्पौॅ कहै छेलै। चरीप्पौॅ मानें माल-मवेशी के चरै लायक जमीन। यहाँ करौॅ फसल वर्षा पर आधारित छेलै। यहाँ पर किसान बड़ी दुखौॅ सें जिनगी काटै छेलै। यै पर जमींदारौॅ के अत्याचार। मालगुजारी नै दियै पारै छेलै किसानें।
ऐन्हैॅ हजारों-हजार खेतीहर किसानों में एक छेलै बिठनी रौत। जेठौॅ के महिना छेलै। पछिया बॉव के तॉव देहौॅ के चमड़ी झुलसाबै वाला छेलै। दूपहर के सूरुज सीधा माथा पर होयकैॅ सरंगौॅ से आगिन बरसाय रेल्हौॅ छेलै। हुनकौॅ जवान बेटा केवल रौत अतनां देेर होलौॅ पर बहियारौॅ से हौॅर जोती कैॅ ने ऐलौैॅ छेलै। संयोगौॅ सें जेठौॅ में वर्षा होलौॅ छेलै। सभ्भैॅ किसान धानौॅ के बिचड़ौॅ तैयार करै लैॅ खेत-बारी जोती रेल्हौॅ छेलै।
गाँमौॅ कैॅ ठीक चौमुखी पर गाछौॅ कैॅ छाँह देखी कैॅ जमीन्दारौॅ के सिपाही बैठलौॅ छेलै। सब किसानौॅ कैॅ जमींदारौॅ के फरमान सुनाबै लेली। केवल रौत कन्हा पर हौॅर आरो आगू-आगू बैलौॅ कैॅ हाँकनैॅ चल्लौॅ आबी रेल्हौॅ छेलै।
सिपाही तेजा सिंह नें केवल कैॅ रोकलकै-"की रे केवला। हम्में आय टेबिये कैॅ बैठलौॅ छियै। संयोगौॅ सें होलौॅ ई वर्षा में सभ्भैॅ कैॅ दुआरी-दुआरी टौवाय लैॅ नै पड़ैैॅ यही लैॅ बैठलौॅ छियै कि सभ्भैॅ सें भेंट होय जैतैॅ। सभ्भैॅ कन मालगुजारी बाकिये छै। केना कैॅ काम चलतै जमीन्दारौॅ के." जमींदारौॅ सें कम एैंठलौॅ बोली नै छेलै सिपाही तेजा सिंह के.
सिपाही के बोली सुनी कैॅ आगिनैॅ तैॅ लागी गेलै केवलौॅ कैॅ। एक तैॅ धूपौॅ सें आबी रेल्हौॅ छेलै दोसरें तेज सिंह कैॅ आगिन भरलौॅ बोली। भागी रेल्हौॅ बैलौॅ कैॅ घुरैतें हुवें केवल बोेललै-"हमरा की कहै छौॅ। बाबू कैॅ कहियौॅ"। "हम्में तोरा बापौॅ कैॅ कहाँ-कहाँ खोजबौ रे। तोरा कहि देलियौैॅ। बापौॅ सें कहि दिहैं। पाँच-सात सालौॅ सें बेशी होय गेलैैॅ। मालगुजारी दैकैॅ नामें नै लैॅ छै। तनियो टा लाजे-शरम नै लागै छै।" सिपाही कहतें हुवें उठी कैॅ खाड़ौॅ होय गेलै।
केवल रौतौॅ के यादवी खून खौली उठलौॅ छेलै-"जवान संभारिये कैॅ बोलौॅ तेज कक्का।" "उलटे चोर कोतवालौॅ कैॅ डाँटैॅ। हमरा धौंस देखाय छैं रे। बापें करैॅ कुटौनौॅ-पिसौनौॅ बेटा रौॅ नांव दुरगादास।" तेजा सिंह कैॅ बिगड़लौॅ जवान बिगड़लैॅ जाय रेल्हौॅ छेलै।
"हम्में कुछु कहलियौं। हम्में बाल-बच्चा ऐकरा बारें में की जानै छियै। तोंय बाबू सें कहियौॅ। यै पर तोरा माथा पर गरमी चढ़ी गेलों। उमिर भेलौं। संभरी कैॅ बोलौॅ। तोंय हमरौॅ औकात की उटकै छौॅ।" केवले आभियो तांय अपना कैॅ संभारनें छेलै। लेकिन गरमी चढ़ै के नाम सुनी कैॅ तेजा सिंह आपा से बाहर होय गेलै। केवलौॅ के आगू में मोंछ एैंठनें लाठी तानी कैॅ खाड़ौॅ होय गेलै। कोय भी रैयतौॅ कैॅ बातौॅ-बातौॅ में दू-चार लाठी मारी बैठना ओकरौॅ आदत छेलै। जमींदारौॅ सें अपना कैॅ कम नै समझै छेलै तेजा सिंह ने।
हिन्ने केवलें देखलकै कि आबैॅ बेरथ रो हम्में बेज्जत होय जैबौॅ। ढ़ेरी सीनी लोग छेलै। साँप-छुछुंदर रो गति छेलै केवल कैॅ आगू में। दूध खैलौॅ पैल्हौॅ-पैल्हौॅ जवानी से भरलौॅ देह। आव देखलकै नै ताँव। हौॅर कान्हा पर सें फैंकी देलकै आरो जहु बलें नै तहु बलें तेजा सिंह कैॅ उठाय कैॅ जमीन पर पटकी देलकै। तेजा सिंह नीचूं छेलै आरो केवल उपर। मौका बढ़िया छेलै। केवल तेजा कैॅ छाती पर चढ़ी कैॅ बैठी गेलै। आरो जी भर मारी कैॅ हौॅर कान्हा पर लेलकै आरौॅ बैलौॅ कैॅ हाँकनें घौॅर दिशां चली देलकै।
सिपाही तेजा सिंह चोटारलौॅ साँपों नाकी फुफकारनें उठलै। देह-हाथ झाड़ी कैॅ बाघौॅ नांकी गुर्रलै-"बेटा, महंगा पड़तौैॅ ई मार। जौं हम्में एक बापौॅ के बेटा होलियौ तैॅ सूद समेत ऐकरौॅ बदला लेबौॅ। गाँमौॅ सें उजाड़ी नै देलियौ तैॅ हम्में अस्सल माय रौॅ जनमलौॅ नै।"
अतना बड़ौॅ झगड़ा होय गेलै। सभ्भैॅ देखतें रही गेलै, कोय कुछु नै बोललै। के पड़ैॅ दोसरा के झगड़ा में। जेकरा पड़तै वैं जानौॅ। कत्तैॅ अपनस्वार्थी होय गेलौॅ छै हमरौॅ ई गाँव।
हिन्नैॅ जबैॅ केवल रौत घौॅर पहुँचलै तैॅ घरौॅ कैॅ दुआरी पर बाहर आबी के खाड़ौॅ देखलकै सौसे घरौॅ केैॅ। माय, बाबू तैॅ छेवै करलै कनियानयो डरौॅ सें भरलौॅ डबडबैलौॅ आँखी खाड़ी छेलै। दस सालौॅ के बेटा बिहारी दौड़ी कैॅ हौॅर नीचूं धरतैं केवलौॅ से लिपटी गेलै। बापें बैलौॅ कैॅ गुहाली में जोरी देलकै। वैं समझी गैलै ई गामोैॅ के करतूत। वहुँ समझै छेलै कि धौॅर नै पहुँचबै आरो ई बात कानो-कान उड़लौ घोर पहुँची जैते। मदद की करतौं यै गाँमें, उलप्पा उड़ाय में लोटन कबूतर।
बाबू बोललै-"सिपाही सें कथी लैॅ मार करी लेल्हें बेटा।"
"तोरा कोय कुवचन कहैॅ, हमरा बरदाश्त नै होथों।" बहुतैॅ छोटौॅ जवाब दैकैॅ केवल चुप होय गेलै। बाप बोललै-"बेटा, ओकरा से पारैॅ पारभैं"। "जैॅ होतै, देखलौॅ जैतैॅ। हमरा पैन्हैं खाबै दैॅ।" केवल ई बोली कैॅ घरौॅ के भीतर घूसी गेलै।
साँझौॅ होलै। भियानौॅ बीतलै। सौसे घौॅर दुख आरो अनहोनी होय के डरौॅ सें भंक लागै। कोय नै कोय समाचार कनफुस्सा झूठ-साँच सुनाय कैॅ आगिन में घीयैॅ दैकैॅ काम करें। आग बुझावै वाला कोय नै, आगिन लगाय वाला सेथरौॅ। सौसे चौतरा में लंका-कांड के पाठ होय रेल्हौॅ छेलै। ई चरचा छोड़ी कैॅ गाँव वाला कैॅ कोय दोसरौॅ कामैॅ नै छेलै।
... आरो हिन्नें जमीदारें सिपाही कैॅ ई कहि कैॅ समझैलकै-देखें तेजा सिंह! यै मामला में मोछौॅ रौॅ लड़ाय ठानी कैॅ लड़ी जाना, मारपीट, खून खराबा करना हमरा हक में नै छै। सौसे गाँवौॅ में दस-बीस घौॅर दोसरौॅ जात होतै, खाली गुआरैॅ छै भरलौॅ वै गामौॅ में। जौं ई हुरमुठ जात मिली कैॅ उमताय जाय तैॅ बिना फिरंगी पलटन मंगैलैॅ कोय उपाय नै। हम्मैॅ ई नै चाहै छिये (राजनीति से कुटनीति हमेशा बड़ो होय छै।) बात बढ़ी कैॅ उपर फिरंगी वायसराय तक नै पहुँची जाय, यै वास्तें अनुकूल समय के बाट जोहना बुद्धिमान आदमी के काम छेकै। तुरत कुछु करना बुड़बकी होय जैतैॅ। "
"हुजुर के जेन्हौॅ इच्छा। मतुर एक बात ...?" बीचें में सिपाही तेजा सिंह कैॅ जुबान लड़खड़ैलैॅ। "हों, हों, बोल तेजा सिंह। यै एवज में तोरा बोलै के पूरैॅ छूट छै।" जमीदार नें अपनां वही अंदाज में कहलकै।
"यहैॅ हुजुर कि हमरौॅ एक्कौॅ करम बांकी नै बचलै। हम्में केवला हरामजादा के करलौॅ बेइज्जती आरो मार भुलवा नै भूलैॅ सकैैॅ छियै।" सिपाही नें हिम्म्त करी कैॅ कहलकै।
जमींदारौॅ कैॅ मँुहौॅ पर कुटिल मुस्कान तैरी गेलै। गोस्सा में नथूना फड़की गेलै। चहलकदमी करतें हुअैं जमीन्दार बोललै-"ओकरौ, उ$ सारौॅ केवला कैॅ हौ हालत करबै कि ओकरौॅ खानदानें याद करतै। गाँव वाला तांय ऐकरा सें सबक सीखतै। ई सब तोरेह हाथें आरो तोरा सामना में होतै। तोंय निश्चिंत होय कैॅ अखनी जा। हमरा असकल्लौॅ छोड़ी दैॅ।"
कान्हा पर लाठी लेनें अकड़लौॅ चल्लौॅ गेलै सिपाही तेजा सिंह। ओकरा जमींदारौॅ कैॅ देलौॅ बचन पर पूरा विश्वास छेलै।
धीरें-धीरें चार-पाँच महिना बीती गेलै। अगहन आबी गेलै। विठनी रौतें ई सोचलकै कि जमींदार भलौॅ आरो नेक आदमी छै। गरीब प्रजा समझी कैॅ माफ करी देलकै। लेकिन जबैॅ धान तैयार होयकैॅ खमारी पर ऐलै तैॅ जमींदारी फरमान लैकैॅ सिपाही दम दाखिल। आभरी विशेष बात ई छेलै कि सिपाही साथें मुंशी फटीकचंद भी छेलै। मुंशी आबै के मतलबैॅ छेलै आफत। मुंशी के ऐबौॅ मानें छहाछत यमराज के आबी जाना। रैयतोैॅ बीचौॅ में मुंशी के एबौॅ दुख, शोक आरो बिना कारण नाश होबौॅ समझलौॅ जाय छेलै। जे रैयतौॅ के द्वारी पर मुंशी आबी जाय तैॅ ओकरा गेला बादौॅ में वें आपनौॅ द्वार गंगाजल सें धोय लै छेलै।
मुंशी फटीकचंदैॅ द्वारी पर राखलौॅ खटिया पर बैठतें हुअें कहलकै-"बिठनी भाय, टुटलौॅ खटिया छै तैॅ कोय बात नै, कम से कम एक ठो मजबूत रस्सी के अराँच तैॅ देलैॅ जाबैॅ पारै छौैॅ।"
विठनी रौतौॅ के उमर साठ पार होय रेल्हौॅ छेलै। फिरंगी राज में भर पेट खाना आम लोगौॅ कैॅ नसीब नै होय छेलै। मालगुजारी आरो जमींदारौॅ के फरमैस पूरा करतें ही रैयत पैमाल होय जाय छेलै। एक तैॅ जमीन उपजाउ$ नै, दोसरें खेती वरसा पर आधारित छेलै। पटवन के कोय इंतजाम नै। खेती की होतियै खाक हौॅर-बैल रखबौॅ भारी पड़ै छेलै। माड़-भातौॅ पर किसान मजूरौॅ कैॅ आफत छेलै। रोजे खीर-पूड़ी पर हाथ फेरे वाला जमींदारौॅ के आदमी कैॅ की बूझैतियै। ओकरा तैॅ हरा-हरा सूझना, भगवानैं लिखलैॅ छेलै। मुंशी के पझड़ी कैॅ बोलबौॅ बिठनी तैॅ सही लेलकै केवल रौतौॅ के वरदाश्त नै होलैॅ-"कामों के बात करौॅ मुंशी जी. हमरा सीनी के करम जरलौॅ छै। कथी लैॅ माथौॅ खपाबै छौॅ तोय। काम करौॅ आरौॅ जा।"
भिन्नैतैॅ हुअैॅ मुंशी बोललै-"हम्में की बोलबौैॅ हो। बोलै के मौका दै छैं तैॅ बोलै लैॅ लागै छै। सात-आठ सालौॅ सें मालगुजारी बाकी छौैॅ। ई लैॅ जमींदारौॅ के नीलामी नोटिश। चालीस रोजौॅ के समय देलौॅ गेलौॅ छौ ॅ। यै बीचौॅ में टाका चुकता करी दहीं। नै तैॅ जमीन नीलाम करी देलौॅ जैतौॅ।"
"कत्तैॅ मालगुजारी छै?" रोगियैलौॅ आवाज छेलै बिठनी के. "चौदह आना प्रति बीघा मालगुजारी के दरौॅ सें दस बीघा खेतौॅ रौॅ आठ सालौॅ में सत्तासी टाका आठ आना होय छै। तकादा में ऐलौॅ छियौ। लान पैसा।" मुंशी कहि कैॅ विचित्रौॅ नांकी मुँह करलकै।
हौ दिन साथौॅ में सिपाही तेजा सिंह नै कोय दोसरौॅ सिपाही लैकैॅ मुंशी ऐलौॅ छलै। जमींदारौॅ के पेशलौॅ भूत। पैसा दैकैॅ सामरथ छेलै नै। सें दोनू बापूतें चूपैॅ रहना बेहतर समझलकै। मुकमुकी लागी गेलौॅ छलै दोनूं बाप-बेटा कैॅ। मंुशी तैॅ जानथैं छेलै कि लगान देबौॅ बिठनी रौतौॅ के वशौॅ के बात नै छै। मुंशी बकाया लगान आरो साथें तमादी के कागज थमैलकै आरो वहाँ से हवेली दिस चली देलकै।
चार सालौॅ सें सौसे चरीप्पौॅ में धानौॅ के रोपा नै होलौॅ छेलै। लाख जतन करैैॅ किसानें मतुर धानों कैॅ मरना छेलै। फसलौॅ कैॅ बचाबै के कोय इंतजाम नै छेलै अंग्रेज़ी राजौॅ में। भगवान भरोसे खेती के ई हाल छेलै कि किसानौॅ कोठी में जहौॅ राखलौॅ अन्न रहै छेलै वहौॅ बीया बूनी दै खेतों में। बीया नै बूनतियै तैॅ बिचड़ौॅ बिनू रोपौॅ केनां होतियै। आरो भगवानौॅ के खेल निराला हुअैॅ। कभियो शुरू में वरसा हुअैॅ तैॅ रोपा समै में एक्कौॅ बून सरंग नै टपकै आरो कभियो ऐन्हौॅ हुअैॅ कि अंतिम पानी लैॅ लहलह करतैं धान सूक्खी कैॅ मरी जाय। कभियो धान जौं होवौॅ करै तैॅ चार-पाँच मनौॅ के बीघा सें बेशी नै।
बिठनी कैॅ दू बीघा खेत गैढ़ा में छेलै। ओकरा में केन्हौॅ कैॅ सात-आठ मन धान होय जाय छेलै। वहैॅ काटी कैॅ खमारी पर राखलै छेलै सभ्भैॅ जीबें। चौैॅर कातिके में खतम होय गेलौॅ छेलै। महिना भर सें घरों में भातौॅ के दर्शन नै होलौॅ छेलै। दियारा सें लानलौॅ जंडा रौॅ भूंजा आरो सत्तू खैतें बड़ौॅ-छोटौॅ सभ्भैॅ हहरी गेलौॅ रहैॅ। आय राती सें धनडंगनी करी कैॅ धान उसना करै कैॅ विचार छेलै।
धान भप्पा-उसना करी कैॅ उखली या ढेकी में धानौॅ कैॅ कूटी कैॅ चौैॅर बनाय में भी तीन-चार रोज लागतिहै तबैॅ काहीं माड़-भातौॅ के दर्शन होतियै। मतुर आय जमीन्दारौॅ के लगान वसूली रौॅ फरमान की ऐलै सौसे घरौॅ पर बज्जड़ गिरी गेलै। दोपहर सें साँझ, साँझ सें रात होय गेलै। चूल्हा नै जललै। बच्चा कानी-कानी कैॅ सूती गेलै। बड़का के भूख हरन होय गेलौॅ रहै। कोय केकरौॅ सें नै बोलै। आखिर केवलें ने मुंह खोललकै-"हम्में ई कहै छिहौैॅ बाबू। ई रङ़ग हदसला सें सौसे घौॅर मरिये न जैबैॅ। जे होतै, चालीस रोजौॅ के बादे ने होतै। अखिनिये सें मरबौॅ कैन्हैॅ शुरू करी देलिये हम्में सीनी। जेकरा एक्कौॅ कट्ठा जमीन नै छै उ$ केना कैॅ जियै छै। हम्में जवान छियै, हम्में कमाय कैॅ खिलैभौं सभ्भे कें। जाबैॅ दहु जमीनौॅ कैॅ। भल्लें ई आफत चल्लौॅ जैते। कौन सुख मिललोह अब तांय खेतौॅ सें। कमाय कोड़ी कैॅ लानौॅ आरो सभ्भे जमींदारौॅ के दै दहौॅ।" केवलें जोरौॅ सें मतुर बड्डी पियार सें कनियाय कैॅ हाँक देलकै-"कहाँ गेलोह बिहरिया माय। खूब बढ़िया से जंडौॅ के भूंजा भूंजौॅ तैॅ। तन्टा करुवो के तेल लगाय कैॅ दिहौॅ। बारी सें कच्चा मिरचाय तोड़ी के लै लानिहौैॅ। सब बच्चा कैॅ जगाय कैॅ खिलाबौॅ। भोरें धान डंगैबै। चलतै माड़-भात।"
केवलौॅ के अतना बोलतैं घौॅर झनझनाय उठलै। बिहारी आबी कैॅ चूल्हा ठिया बैठी गेलै-"सब चीज लान माय। हम्में आंच लगाय दियौ।" आरो चूड़ी खनखनाय उठलै।
बिठनी रौत घरौॅ में सबसें बड़ौॅ छेलै। यै लेली आकरो दायित्व भी बड़ौॅ छेलै। बेटा कैॅ चिन्ता से भरलौॅ आवाज में कहलकै-" कोनौॅ उपाय सोचें केवला।
लगान दैकैॅ जमीन बचाव। बापौॅ-दादा के खतियौनी जमीन खतम होय जैतौॅ। "
सच कैॅ समझी-बूझी कैॅ जुबान पर लानलकै केवलें-"सच कैॅ समझौॅ बाबू, सत्तासी टाका आठ आना के सवाल छै। पांच सें सात आना मौॅन घानौॅ रौॅ दौॅर छै। दू सौ मौॅन धान होला पर लगान के टाका पूरा होय छै। सबटा जमीन बचाय में कोय बापूत जिन्दा नै बचभौॅ। नै रधिया कैॅ नौ मन घी होतै, नै रधिया नाचतै। बाबू चिन्ता छोड़ौॅ। खा-पियौॅ। भगवान भरोसें नाव चलेैॅ दहौॅ।" विठनी रौतें चूप रहना ही उचित समझलकै। जवान बेटा कमर कस्सैॅ लैॅ जबैॅ तैयार नै तबैॅ वें की करतिहैॅ।
केन्हौॅ के राती खाय-पीवी के सौसे परिवार सूतलै। नींद सें कोय बड़ौॅ मरहम संसारौॅ में नै होय छै। बड़ौॅ सें बड़ौॅ दुख-पीड़ा कैॅ भी हरी लै छै नींदैॅ। भोरें नींद टूटलै बिठनी के. कानौॅ में धान डंगाय के आवाज गेलै। समझी गेलै कि केवलां धान डंगैतैॅ होतै। विठनी के अंग-अंग में दरद छेलै। देह-हाथ टूटै रहैॅ। लागै कोय लाठी सें डंगैलैॅ रहैॅ। यहू हालौॅ में उ$ उठलै आरो देह-हाथ झाड़ी कैॅ खमारी पर ऐलै। केवलें देखतैं कहलकै-"तोंय जा सुतौॅ बाबू। हम्में डंगाय लेबै। रातभर कुहरलौॅ छौॅ तोंय।"
आँखी में लोर आबी गेलै विठनी रौतैॅ कैॅ। मनौॅ में कहलकै-"ऐकरा कहै छै बेटा। जनम सोगारथ होय गेलौॅ।" फेरु खुली कैॅ बोललै-"आय भरी तहूँ जीरैबैॅ ने करतिहें बेटा।"
"केना जीरैतिहै बाबू। राती भातौॅ लैॅ कानी-कानी कैॅ बच्चा सब सुतलै। छोटकां तैॅ खैबैॅ नै करलकै। बेशी नै दू-तीन मौॅन धान तैयार करबै। ऐकरै उसना-पौरी करी कैॅ चौैॅर जल्दी बनाय देबै। बच्चा रौॅ कानबौॅ-ठुनकबौॅ नै सहलौॅ जाय छै बाबू।"
केवलौॅ के बातौॅ में एक ऐन्हौॅ सच छेलै कि दोनौॅ जना चूप होय गेलै। विठनियो सुतलै नै। बैलौॅ के सानी-पानी दियैॅ लागलै।