फिर, वसंत लौट आया / महेश कुमार केशरी

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"बेटी मेघा, सिन्हा साहब के लिए चाय ले आओl" रंजीत बाबू ने बैठक से ही आवाज़ लगाईl

"मेघा किचन से ही आवाज़ देती हुई बोली, हाँ, पापा बस दो मिनट और रूकिए, अभी लाती हूँl"

ट्रे में चाय उठाये, मेघा, कुछ ही देर में आकर बैठक में दाखिल हुईl मेघा, सांँवली-सी पतली , लंबी देखने में बहुत खूबसूरत -सी लड़की थीlबैठक में घुसते ही सबसे पहले सिन्हा साहब को मेघा ने अभिवादन पूर्वक "नमस्ते चाचाजी" कहकर प्रणाम किया और करीने से चाय की प्याली मेज पर सजाकर वापस नमकीन लाने किचेन में चली गईl

तब, बातों का सिलसिला चल पड़ाl सिन्हा साहब अफ़सोस जताते हुए बोले- "इतनी गाय जैसी सीधी- साधी लड़की के साथ ये लोग ऐसा व्यवहार कर रहे हैंl अरे कम- से कम सास- ससुर को तो बीच में कुछ कहना ही चाहिए थाl"

तभी बीच में रंजीत बाबू ने सिन्हा साहब को टोका - "अरे, छोड़िये भी सिन्हा साहब अगर मेघा ने मना ना किया होता तो मैं मनोज को छोड़ने वाला नहीं थाl मैं अपनी बेटी का मुँह देखकर ही रह गयाl मेघा कह रही थी जब, मनोज ही मेरे साथ नहीं रहना चाहता , तो मैं क्यों जबरदस्ती उनके साथ रहूँ।? और सास - ससुर क्या करेंगे।?जब मेरा दामाद मनोज ही नालायक निकल गयाl हमारे समधि और समधन तो ऐसे सरल हैं कि पूछिए ही मतl आज भी हमारे सम्बंध उतने ही प्रगाढ़ हैं l जितने पहले हुआ करते थेंl बेचारी का भाग्य ही खराब है तो क्या किया जायेl" रंजीत बाबू मेघा के भाग्य को ही खराब बताकर संतोष कर रहे थेंl

" सुबह - सुबह मेघा को बहुत आपाधापी रहती हैl सुबह , सबसे पहले जल्दी उठोl नाश्ता तैयार करो l फिर, ख़ुद तैयार होकर, पापा का नाश्ता टेबल पर तैयार करके लगाओl फिर, ख़ुद नाश्ता करके, अपना टिफिन पैक करोl फिर, बच्चों का टिफिन पैक करोl ये मेघा की पिछले चार - पाँच सालों से एक जैसी दिनचर्या हो गई हैl

चाय और नमकीन देकर वह बाथरूम में गई और जल्दी -जल्दी नहाकर आॅफिस के लिए तैयार हुईl फिर, जल्दी बाजी में जैसे - तैसे नाश्ता किया और अपने पिता रंजीत बाबू से मुख़ातिब हुई -"पापा , टेबल पर नाश्ता गर्म करके ढंँककर रख दिया है ... आप नाश्ता कर लीजिएगा, नहीं तो ठँढा हो जायेगा l पापा चलती हूँ, आॅफिस के लिए लेट हो रही हूँl" मेघा अपने कमरे का दरवाज़ा बंँद करते हुए बोलीl

"ठीक है, बेटा l" रंजीत बाबू बोलेl

"तुमने अपना टिफिन और छाता ले लिया है ना...बाहर बहुत घूप हैl छाता लेकर ही बाहर निकलनाl" रंजीत बाबू अख़बार साइड में रखते हुए बोलेl

"अरे... पापा छाता भूल गई थीl आपने अच्छा किया, मुझे याद दिलायाl" वह टेबल के नीचे से छाता निकालते हुए बोलीl

और, मेघा बस लेने के लिए बस स्टाॅप पर आकर खड़ी हो गईl

"तुम मुझे बेवकूफ समझते हो... क्या मनोज...?" मेघा को जब मनोज की दूसरी शादी के बारे में पता चला था तो, जैसे वह चीख पड़ी थीl

"ऐसा, मैंने कब कहाl" मनोज संयत स्वर में बोलाl

"ऐसा नहीं है तो फिर, कैसा है।? एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतींl ये तो तुम्हें पता ही है, ठीक, वैसे ही मेरे रहते तुम रोज़ी के साथ नहीं रह सकतेl" मेघा समझौता करने के लिए तैयार नहीं थीl

"तुम और रोज़ी दोनों मेरे साथ रहेंगेl मैं तुम्हें अपने घर से भगा थोड़े ही रहा हूँl" मनोज सफ़ाई देता हुआ बोलाl

"मैं, आज की लड़की हूँ और स्वाभिमानी भी हूँl मैं अपनी सौत के साथ ज़िन्दगी नहीं बिता सकतीl तुम्हें मेरे और रोज़ी के बीच में से किसी एक को चुनना होगाl" मेघा अपने आदर्शों से तिल मात्र भी समझौता नहीं करना चाहती थीl

मनोज भी सपाट स्वर में बोला - "तुम्हें जो अच्छा लगता है करो, लेकिन, रोज़ी मेरे साथ ही रहेगीl"

"तो मैं, किस हैसियत से तुम्हारे घर में रहूँ, एक बीबी की हैसियत से या एक रखैल की हैसियत सेl" मेघा बोली

"तुम, ऐसा क्यों कह रही हो...?सारे समाज के सामने, हमारी शादी हुई है, फिर, तुम मेरी रखैल कैसे हो गई.।? तुम्हें पहले की तरह ही मान- सम्मान इस घर में मिलेगाl" मनोज सफ़ाई देता हुआ बोलाl

"मान सम्मान की बात तुम ना ही करो तो ज़्यादा अच्छा हैl पूरी - पूरी रात तुम उस राँड़ रोज़ी के कमरे में बिताते हो और उसका बिस्तर गर्म करते होl मेरे कमरे में झाँकने तक नहीं आते और मान- सम्मान की बात करते होl कल मैं पूरी रात बिस्तर पर सिरदर्द और बुखार से तड़पती रही , लेकिन, तुम मुझे देखने तक नहीं आयेl क्या यही मान- सम्मान तुम मुझे दे रहे हो... ?... पति - पत्नी का रिश्ता केवल सुख का नहीं होता, बल्कि दु:ख का भी होता है और समाज।!। किस समाज की तुम बात करते हो ? तुम अगर, समाज की ज़रा भी परवाह करते तो ऐसी गँदी हरकत कभी ना करतेl छि: ...!! ...एक बीबी के रहते तुमने दूसरी शादी कर लीl तुमने कभी ये भी ना सोचा की हमारे बच्चे क्या सोचेंगे ? उनके संस्कारो पर क्या असर होगा। ? वह तुम्हारे बारे में क्या सोचेंगे...?"


मेघा आज फैसले के मूड़ में थीl वह मनोज से यही चाहती थी कि वो, आज, मेघा या रोज़ी में से किसी एक को चुनें l ताकि, मेघा को अपनी ज़िन्दगी की राह चुनने में आसानी होl

मेघा ने इस दुनियाँ में बहुत कष्ट सहा थाl बचपन में माँ गुजर गई l पिता ने किसी तरह पाल पोसकर उसे बड़ा कियाlबचपन मांँ के बिना बिताl

"मैंने कोई ऐसा काम नहीं किया है, जिससे मुझे समाज के सामने शर्मिंदा होना पडे़l बड़े-बड़े राजा - महाराजाओं और मुगल बादशाहों की हजार- पटरानियाँँ हुआ करती थींl उन्होंने कभी इसका विरोध नहीं किया , लेकिन, पता नहीं तुम्हें क्यों ऐतराज है ? मेरी और रोज़ी के साथ रहने सेl" मनोज ने अपने कुतर्क और कुंँठा को ढकने के लिए अपना तर्क दियाl

"अपनी नाकामियों और घृणित कारगुज़ारियों को छिपाने के लिए कम- से -कम ऐसे कुतर्क तो मत ही गढ़ो मनोजl तुम्हारे तर्क के हिसाब से अगर मैं चलूँ तो पुराने मातृसत्तात्मक समाज में स्त्रियाँ बहु विवाह करतीं थीं , तो क्या ... मैं भी दस शादियाँ कर लूँ ? नहीं ऐसा आधुनिक समय में नहीं हो सकताl जब मैं ऐसा नहीं कर सकती तो तुम पुराने समय के राजे- महाराजाओं और मुगल बादशाहों का उदाहरण क्यों दे रहे हो ? आज के समय में हमारा संँविधान हमें पहली पत्नी के मर जाने या पत्नी के दुराचारि होने पर ही या तलाक के बाद ही दूसरी शादी की इजाज़त देता है और जब तक तलाक ना हो जाये तब तक दूसरी शादी अवैध मानी जाती हैl"

"तो... क्या तुम मुझसे तलाक लोगी।?"

मनोज खिड़की को घूरते हुए बोलाl

"हाँ, बिना तलाक के हम दोनों अपनी आनेवाली ज़िन्दगी का फ़ैसला नहीं कर सकतेl बेहतर होगा हमारा तलाक हो जाये , ताकि तुम भी रोज़ी के साथ अपनी मर्जी से अपनी ज़िन्दगी गुज़ार सकोl" मेघा निर्णयात्मक लहजे में बोलीl

मेघा ने घड़ी पर नज़र डाली उसकी नौ बजे वाली आज की बस छूट गई थीl उसे अक्सर लेट हो जाता हैl वह भी करे तो आख़िर क्या करे।? बच्चों का टिफिन तैयार करेl उनको स्कूल भेजेl दफ़्तर संँभालेl याकि घर संँभालेl एक अकेली जान आख़िर क्या- क्या करे...?...आज से पहले वह कभी इतनी लेट नहीं हुईl आज ज़रूर बाॅस से डांँट पड़ेगीl

किसी तरह बस में सवार हुई और किनारे की सीट पकड़कर बैठ गईl बस में भी आना -जाना उसे बहुत ही उबाऊ लगता हैl पापा अक्सर कहते हैं, बेटा कोई छोटी कार ही ले लोl मेरा रिटायरमेंट का पैसा तो पड़ा हुआ है हीl समय से घर आओगी और दफ़्तर भी समय से चली जाओगीl आजकल जुग - ज़माना बहुत ही खराब हो गया हैl रात को छोड़ो आजकल दिन - दहाड़े हत्या और बलात्कार हो रहें हैंl तुम जब बाहर निकलती हो तो मेरा जी बहुत घबराता हैl कल मैंने अख़बार में पढ़ा था कि दिल्ली में एक बुज़ुर्ग महिला के साथ रेप हो गया हैl

लेकिन, मेघा बहुत ही स्वाभिमानी हैl ये उसके पिता भी बखूबी जानते हैंl वो, अपने कमाये हुए पैसों से सबकुछ खरीदती हैl घर भी अब उसके पैसों से ही चलता हैl किसी प्राइवेट कार का लोन फाइनांश वाली कंपनी में काम करती हैl

वो छेड़छाड़ से भी डरती हैl अकेली औरत सबको "मुफ्त" का माल लगती है l कोई हाथ छूने का बहाना ढूंँढ़ता है l कोई कमर या कूल्हे...! एक दिन बस में किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया थाl खड़े रहने का सहारा ढूँढते हुएl वह सब समझती हैl ये और बात है कि कभी किसी से कुछ कहा नहींl मिस्टर देशमुख उस दिन फाइल लेने के बहाने उसका हाथ पकड़ना चाहते थेl उसने तब देशमुख को डपट दिया था 9 - "आपको शर्म नहीं आती देशमुख जी, आप बाल-बच्चों वाले आदमी हैंl आपकी पत्नी को जब ये सब पता चलेगा तब उसको कैसा लगेगा ? मैं आपकी बेटी की उम्र की हूँl मुझे घिन आती है, आपके जैसे लोगों सेl" और वह फाइल फेंककर चली गई थीl फिर, उस दिन के बाद वह आज तक देशमुख के केबिन में कभी नहीं गईl जब कोई फाइल देनी होती तो, पियून के हाथों भिजवाती हैl देशमुख सर के केबिन मेंl देशमुख और उसके जैसे लोग मेघा को फूटी आंँखों नहीं सुहातेl

कंँडक्टर ने आकर टोका - "टिकिट...टिकिट ...टिकट...लीजिएl"

मेघा की तँद्रा टूटीl उसने टिकिट लिया और रेजगारी पैसा अपने पर्स से निकालकर कंँडक्टर की ओर बढ़ायाl

किसी को शायद उतरना था l कोई परिवार वाला आदमी थाl बस कुछ देर तक यूँ ही खड़ी रहीl पहले लगेज उतारा गयाl बस काफ़ी देर वहाँ खड़ी रहीl

सामने ढेर सारी सुहागिन औरतें वट वृक्ष की पूजा कर रहीं हैंl लाल- नारंगी साड़ियों में वह सब कितनी सुंदर लग रहीं हैंl आपस में बोलती - बतियातींं हँसी - ठहाके लगातींl माँग में केसरिया सिंदूर नाक से लेकर, माँग तक भरा हुआ हैl कितनी हँसी ख़ुशी से जीवण भरा हुआ है इनकाl इस पृथ्वी पर सुख और दु:ख एक ही साथ पलते हैंl अलग - अलग लोग एक ही समय में उसको जीते हैंl

मेधा का गला रुँध आया हैl एक टीस उसके अंदर पैदा होने लगी हैl उसके अंदर एक घाव है जो रह-रहकर टीसता है... ऐसे मौके उसको बैचैनी से भर देते हैंl

उसके जीवन में अब तक दु:ख ही दु:ख भरे थें, लेकिन, उसके जीवन में इधर दो महीने से एक सुख का पौधा अंँकुराने लगा है l निशांत से उसकी मुलाकात इसी बस में हुई थीl दफ़्तर से लौटते वक्तl वह उसके बगल में ही किसी बीमा कंपनी में काम करता हैl अभी नया - नया ही आया है, इस शहर मेंl एकदम नये उम्र का लड़का है, निशांत l आॅफिस से लौटते वक़्त उससे चार - बजे इसी बस में रोज़ - रोज़ मुलाकातें होने लगी थींl

मुलाकातों का ये सिलसिला जब लंबा चला तो एक दिन मोबाइल पर बातचीत भी होने लगीl

"हायl" मोबाइल पर पहला मैसेज निशांत ने ही किया थाl

"हैलो... अबतक सोये नहीं...?" मेघा ने लिखाl

"नहीं, नींद नहीं आ रही हैl"कुछ सोच रहा हूँँl

"क्या सोच रहे हो...?" मेघा बोलीl

"नहीं , जाने दो तुम बुरा मान जाओगीl" निशांत बोलाl

"अच्छा, ठीक है, नहीं मानूँगीl अब, बोलो भी...!" मेघा ने मनुहार कियाl

"बहुत दिनों से मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँl"

निशांत बोलाl

"बोलो, क्या बोलना चाहते हो...??" मेघा बोलीl

"कैसे कहूँ, मुझसे कहा नहीं जा रहा है।?" निशांत बोलाl

"अब, कह भी दोl कोई बात कह देने से मन का बोझ हल्का हो जाता हैl" मेघा बोलीl

निशांत ने किसी तरह हिम्मत की और अपना मैसेज पूरा किया - "आई. लव। यू. ... मेघा...l" लेकिन, ऐसा लिखते ही उसका दिल बल्लियों उछलने लगाl

उधर, से मेघना का कोई जबाब नहीं मिलाl

निशांत परेशान हो गयाl वह मेघा के मैसेज का बहुत देर तक इंतज़ार करता रहा कि उसका कोई जबाब मिलेl इस चक्कर में उसे सारी रात नींद नहीं आईl वो, रह- रहकर सारी रात मोबाइल चेक करता रहाl

एक दिन बस से लौटते वक़्त निशांत मेघा से बोला- "मुझे साँवला रंग बहुत पसंद हैl"

"क्यों ...?"उसने निशांत से ऐसे ही पूछ लिया थाl

"क्योंकि, मुझे बादल बहुत पसंँद हैl जोकि, काले होते हैंl घटाएँ भी बहुत पसंँद हैंl क्योंकि, वह स्याह होती है और मेघा यानी वर्षो भी मुझे बहुत अच्छी लगती हैl ये तीनों, स्याह होते - होते काले हो जाते हैंl वर्षो के कारण ही इस धरती पर जीवन है, हरियाली हैl इसलिए मुझे साँवला रंग बहुत पसंद हैl"

निशांत द्वी-अर्थी भाषा में बोल रहा थाl जिसे मेघा ने ताड़ लिया थाl

"और, क्या पसंद है तुम्हें...?" मेघा बस का फ़र्श आँखों से छिलते हुई बोलीl

"तुम्हारी आँखों का स्याहपन और कत्थई रंगl" निशांत, मेघा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोला थाl

मेघना अपना हाथ धीरे से निशांत के हाथ से छुड़ाते हुए बोली थी- "इन कत्थई रंग के खूबसूरत आँखों और रंगों के रूमानियत में मत बहो निशांत l रंग आदमी को हमेशा धोखा दे जाते हैं और आदमी भी समय के साथ रंग बदलने लगता हैl"

मेघा थोड़ा रूककर बोली-"और , बादल और घटाएँ धरती के दु:ख को ही देखकर रोते हैंl धरती की छुपी हुई आँखें आसमान हैंl धरती का दु:ख जब आसमान से नहीं देखा जाता तो वह बादल और घटाओं की आड़ लेकर रोता हैl" और सचमुच मेघा की आंँखें भींगने लगी थींl वह अपनी आँखे पोंछते हुए बोली - "तुम्हें मालूम है, मैं तलाकशुदा हूँ.. और मेरे दो बच्चे भी हैंl"

"हाँ जानता हूँl"

"फिर भी तुम मुझसे शादी करोगे...?" मेघा उसी अंदाज़ में बोलीl

"हाँँ, फिर भी तुमसे ही शादी करुँगाl तुम मुझे बहुत अच्छी लगती होl और... और... मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ... आइ लव यू... मेघाl"

"और तुम्हारे घर वालों को कोई ऐतराज नहीं है...?" मेघा बोलीl

"मैं बचपन से अनाथ हूँl एक बूढ़ी चाची हैंl उन्होंने ही मुझे पाल- पोसकर बड़ा किया हैl उनको मैंने बताया थाl उनको कोई ऐतराज नहीं है..." निशांत बोलाl

"आई. लव। यू. जैसा सस्ता और हल्का शब्द प्रेम के लिए मत यूज करो निशांत, प्लीजl"

और तब, मेघा ने टालने की गरज से कहा था - "मैं सोचकर बताऊँगीl अपने पापा से पूछकरl"

"मुझे, इसका बेसब्री से इंतज़ार रहेगाl" निशांत बस से उतरते हुए बोला थाl

अभी और तीस मिनट लगेंगे आॅफिस पहुँचने मेंl उसने एक बार फिर, घड़ी पर नज़र डालीl अभी तो साढ़े दस ही बजे हैंl अभी आधा घंटा और लगेगा आॅफिस पहुँचने मेंl

और अचानक से उसकी नज़र बस के साइड मिरर पर पड़ गईl साँवला-सा चेहराl चेहरे पर उदासी पुती हुई थीl सांँवलापन एकाएक उसके पूरे बदन में एक ज़हर की तरह फैल गया और उसका पूरा बदन गुस्से से सुलगने लगा - "राइज एँड लवली, क्रीम किस लिए चाहिए तुम्हें...? गोरा होने के लिए... हुँह...!जब भगवान ने तुम्हें साँवला बना दिया है, तो तुम रोज़ी की तरह कभी गोरी नहीं हो सकतीl तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं करती... ?" मनोज , मेघा की एक छोटी-सी डिमांड पर गुस्से से बिफरते हुए बोला थाl

"क्या, यही कारण है कि तुम रोज़ी से शादी करना चाहते होl मेरा रंग खराब है इसलिए ?" मेघा बोलीl

"कारण चाहे जो भी रहा हो, लेकिन मैं रोज़ी से शादी करुँगा और हर हाल में करूँगाl अब हर चीज का कारण बताना मैं तुम्हें ज़रूरी नहीं समझताl" मनोज, पलंग से उठकर खिड़की के पास चला गया और नीचे बाॅलकाॅनी में देखने लगाl

और उस दिन के बाद वो, वापस कभी मनोज के पास नहीं गईl अपने दोनों बच्चों, आदि और अवंतिका के साथ वह अपने पिता के घर पर ही रह रही थीl

और, इस बीच उसने, अपने पिता से निशांत के बारे में बताया थाl कि वह उससे शादी करना चाहता हैl रंजीत बाबू अपनी बेटी के समझदारी के कायल थें l एक ग़लती उनसे अपनी ज़िन्दगी में मनोज जैसे दामाद को पाकर हुई थीl वो, अपनी ग़लती का पश्चाताप भी करना चाहते थेंl

उस दिन आफिस गई और वापस आ गईl

इस तरह साल भर बीत गयाl पतझड़ के बाद फिर, से वसंत आयाl पेंड़ पर नये पत्ते आयेl बाग़ गुलज़ार हो गयाl

और, मेघा ने निशांत को अपने घर बुलाया और अपने पिता जी से मिलवायाl रंजीत बाबू, निशांत के प्रगतिशील सोच से बहुत प्रभावित हुएl अगले दिन निशांत को खाने पर बुलाया l सिन्हा साहब भी मेघा और निशांत की जोड़ी को देखकर बहुत ख़ुश हुए और दोनों को ख़ूब आशीर्वाद दियाl

आज, मेघा आईने के सामने खडी़ होकर ख़ुद को निहारने लगीll गुलाबी, सूट में वह किसी परी से कम नहीं लग रही थीl आँखों में काजल, दोनों हाथों में लाला - लाल चूड़ियाँ, शाखा- पोला, पांँव में आलता नयी सैंडलl उसने गालों पर राइज एँड ग्लो क्रीम लगाना चाहा, लेकिन, कुछ सोचकर वह रूक गईl निशांत ने तो मुझे ऐसे ही पसंद किया था और वह अपनी नई, खरीदी स्कूटी पर सवार होकर निशांत से मिलने होटल पहुंँच गईl

निशांत, आज बड़ी बेसब्री से होटल सन- साईन में मेघा का इंतज़ार कर रहा थाl उसने एक टेबल मेघा और अपने लिए पहले से ही बुक कर रखा थाl काले - कोट- पैंट में निशांत भी ख़ूब फब रहा थाl आते ही उसने मेघा को बुके देकर उसका स्वागत कियाl फिर, पूछा- "क्या फ़ैसला किया तुमने...?"

मेघा बुके लेते हुए बोली - "वही, जो पहले थाl सोचकर बताऊँगीl"और हो- हो करके हँसने लगीl

आज बहुत दिनों के बाद निशांत ने मेघा के चेहरे पर हँसी देखी थीl वो, भी बिना मुस्कुराये नहीं रह सकाl

फिर, वह निशांत से बोली - "मेरे बच्चों को तुम अपना नाम दोगे , आई मीन तुम उन्हें अपनाओगे नाl उनकी जिम्मवारी लोगे।?"

"हाँ, तुम्हारे साथ - साथ मैं तुम्हारे बच्चों को भी अपनाऊँगा और तुम्हारी जिम्मेवारी भी उठाऊँगाl" निशांत मेघा के हाथ को अपने हाथ में लेते हुए बोलाl

और, दोनों खिलखिलाकर हँस पड़ेl