फिर उड़ने को बेताब: सोने की चिड़िया / सपना मांगलिक
पंद्रह अगस्त २०१६ को भारत को स्वतंत्रा प्राप्ति के उनहत्तर वर्ष हो रहे हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर कितना बदलाव आया स्वतंत्रा प्राप्ति के पूर्व से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के भारत में? एक समय हमारा देश सोने की चिड़िया के नाम से विश्व भर में जाना पहचाना जाता था, उस वक्त हमारी अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था हुआ करती थी मगर अंग्रेजों के शासनकाल में भारत के संसाधन और अर्थव्यवस्था का जमकर दोहन किया गया फलस्वरूप स्वतन्त्रता का सूरज उदित होने तक हमारा देश अपने संसाधन और अर्थव्यवस्था से हाथ धो बैठा। स्वार्थी, क्रूर और चालबाज़ विदेशी बाजों ने सोने की चिड़िया पर ऐसा झपट्टा मारा कि बेचारी संघर्ष करते करते लहुलुहान हो गयी और एक समय ऐसा आया कि निढाल होकर गिर पड़ी। देश खोखले, दीमक के खाए एक काष्ठ की भाँती भुरभुराने और चूर-चूर होने लगा। ज्ञान विज्ञान और संसाधनों से भरा पूरा हमारा देश अपने स्वर्णिम युग से बाहर धकेल दिया गया, सोने की चिड़िया भूख और संसाधनों की कमी से दिन-ब-दिन दुबली होती गयी उसकी स्वर्णिम आभा पर विषाद का साया ग्रहण लगा चुका था और इस तरह एक पूर्ण विकसित और समृद्ध राष्ट्र आर्थिक रूप से वर्ल्ड बैंक पर निर्भर विकासशील राष्ट्र की श्रेणी में आ खड़ा हुआ। उन्नीस सौ सेंतालिस से उन्नीस सौ पिच्यासी तक का समय निराशा और असमंजसता भरा था।
आज़ादी के बाद भारत का झुकाव समाजवादी प्रणाली की ओर रहा। सार्वजनिक उद्योगों तथा केंद्रीय आयोजन को बढ़ावा दिया गया। बीसवीं शताब्दी में भारत से इस समाजवादी सोच का अंत हो गया क्योंकि यह देश को आगे बढाने के बजाय पीछे ले जा रही थी। और इस तरह आर्थिक प्रगति को तीव्र करने और जीवन स्तर में बढोत्तरी करने हेतु भारत में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के मॉडल को अपनाया गया। यही वजह थी कि १९९१ से भारत में बहुत तेज आर्थिक प्रगति हुई, उदारीकरण और आर्थिक सुधार जैसी नीतियां जबसे लागू की जाने लगीं तबसे भारत विश्व की एक आर्थिकमहाशक्ति के रुप में उभरकर आया। जब भारतीय उद्योगों और व्यापार पर सरकार का नियंत्रण था तब आर्थिक सुधार की नीति लागू करने से पूर्व इस नीति का जोरदारी से खंडन भी किया गया परंतु आर्थिक सुधारों के अच्छे परिणाम सामने आने से इन नीतियों को जनता का समर्थन प्राप्त हुआ है। हलाकि मूलभूत ढाँचे में तेज प्रगति न होने से एक बड़ा तबका अब भी नाखुश है और एक बड़ा हिस्सा इन सुधारों से अभी भी लाभान्वित नहीं हुये हैं। 1991 में भारत को भीषण आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा जिसके फलस्वरूप भारत को अपना सोना तक गिरवी रखना पड़ा। उसके बाद नरसिंह राव की सरकार ने वित्तमंत्री मनमोहन सिंह के निर्देशन में आर्थिक सुधारों की लंबी कवायद शुरु की जिसके बाद धीरे धीरे भारत विदेशी पूँजी निवेश का आकर्षण बना और अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी बना।
आजादी के बाद से देश लगातार विकास कर रहा है। लोगों के जीवन स्तर में बदलाव तो आया ही है। साथ ही संचार क्रान्ति आने से लोग जागरूक हुए हैं अपने हक़ मांगना और कर्तव्य निभाना सीखे है, ग़लत के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाने लगे हैं। पहले लोगों को बोलने तक की आजादी नहीं थी। मगर भारत सरकार ने सूचना के अधिकार के तहत जनता को हर सूचना को जानने की छूट दे रखी है। आजादी के बाद सबसे बड़ा बदलाव यहाँ के गाँवों में देखने को मिला गाँवों से जमींदारी प्रथा समाप्त हुई, पहले गाँवों में सड़कें नहीं थी लेकिन अब ऐसा कोई गाँव नहीं है, जहाँ तक सड़क नहीं पहुँची हो। सड़कें बनने से सबसे ज़्यादा फायदा यह मिला कि ग्रामीण जनता को रोजगार अवसर प्राप्त हुए, किसानों की फसल की बिक्री आसान हुई.पहले ऊंट और भैंस गाड़ियों में फसल बिक्री के लिए शहर ले जाई जाती थी, जिसके रास्ते में ही सड़ने और गलने का खतरा रहता था और खरीददार और विक्रेता का आपसी संपर्क भी मुश्किल से हो पाता था मगर अब पक्की सड़क ने सूचनाओं को अपना असर दिखाने का आधार मुहैया करा दिया है। पहले गाँवों में खेती सम्बन्धी संसाधन नहीं थे। अब हर किसान के पास पम्पसेट हैं। खेती करने के तरीके सिखाए जा रहे हैं। अब तो यह भी व्यवस्था हो गई है कि फोन करके किसान अपनी समस्या का समाधान कर सकते हैं। खेती के लिए बैंक लोन दे रहे हैं।टेलीवीजन पर कृषि सम्बन्धी चेनल और कार्यक्रम किसानों को बीज और फसल सम्बन्धी सूचनाओं के साथ सरकार से मिलने वाली रियायतों और मुआवजों के बारे में भी किसान को शिक्षित कर रहे हैं। दरअसल सरकार तो अक्सर योजनाएं बनाती रहती है। ज़रूरत इस बात की है कि जो योजनाएं चल रही हैं उसका सही ढंग से क्रियान्वयन हो, क्योंकि जैसे ही योजनाओं पर भ्रष्टाचार का असर पड़ता है और वह अलाभकारी हो जाती हैं। किसानों को उनका फायदा नहीं मिल पाता है। सरकार की ओर से कृषि लोन के साथ ही फसल बीमा की भी व्यवस्था की गई है। यदि किसी कारण से फसल खराब हो जाती है तो बीमे के जरिए उसकी भरपाई होती है। इसके अलावा ओलावृष्टि अथवा अन्य प्राकृतिक आपदा से निबटने के लिए भी सरकार राहत देती रहती है। पहले गाँव में कच्चा मकान हुआ करता था। ज्यादातर लोगों के पास झोपड़ी थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। झोपड़ी वालों को सरकार की आवासीय योजनायें उनको आवास उपलव्ध करवा रही हैं। गाँव में टी. वी., फ्रिज ही नहीं कम्प्यूटर भी आ गए हैं। लोग पहले की अपेक्षा कई गुना बेहतर ज़िन्दगी जी रहे हैं। पहले जहाँ साइकिलें भी नहीं थीं वहीं अब हर घर में मोबाइल और मोटरसाइकिल है। कुछ लोगों के पास कारें एवं दूसरी गाड़ियां भी हैं।सरकार द्वारा जारी किये गए किसान क्रेडिट कार्ड का सबसे अधिक फायदा यह हुआ कि किसान साहूकारों के जाल से बच गए। पहले पैसे के अभाव में हम समय से खाद-बीज नहीं खरीद पाते थे, कई बार उधारी पर खाद-बीज लेना पड़ता था। लेकिन किसान क्रेडिट कार्ड बनने के बाद यह समस्या खत्म हो गई है। अब किसान अपनी पसंद की उच्च गुणवत्ता युक्त खाद और बीज लाते हैं। पहले पैसे के अभाव में आलू पर दवा का छिड़काव नहीं हो पाता था सरकार ने ऋण माफी योजना भी लागू कर रखी है जिसमे पाँच हजार रुपये तक का बैंक का बकाया जिन पर भी था, वह माफ हो गया। सबसे अधिक फायदा बालिकाओं को ही मिला है। पहले पढ़ने के लिए सिर्फ लड़के ही स्कूल जाते थे। गाँव में ऐसा कोई परिवार नहीं है जिस घर की लड़कियां स्कूल न जाती हो। मगर बिजली के क्षेत्र में अभी भी गाँव बहुत पीछे हैं क्योंकि गाँवों को पर्याप्त बिजली उपलव्ध नहीं होती। कभी दिन में बिजली होती है तो कभी रात में। ऐसे में सिंचाई के समय काफी परेशानी होती है। लेकिन इस दुर्व्यवस्था के लिए काफी हद तक ग्रामीण ही दोषी हैं। ग्रामीण लोग बिजली का बिल चुकाने के बजाय लंगर डालकर चोरी की बिजली से काम चलाते हैं। जिससे विद्युत् व्यवस्था बिगडती है और सरकार को भी घाटा होता है। मनरेगा जैसी योजनाओं से मजदूरी निर्धारित हो गई है। पहले खेत में काम करने वाले मजदूरों की मजदूरी निर्धारित नहीं थी। अब यह समस्या खत्म हो गई है।
चिकित्सा क्षेत्र में भी प्रारम्भ में जिला चिकित्सालय में महत्त्वपूर्ण सुविधाएं नहीं थी। लेकिन अब जिला चिकित्सालय में सुविधाओं का विस्तार हुआ है। गाँव में स्वास्थ्यकर्मी नियुक्त कर दिए गए हैं, गर्भवती महिलों की देखभाल के लिए और प्रसूति सम्बन्धी सहायता के लिए एम्बुलेंस सुबिधा और आशा की नियुक्ति होने से लोगों को झोलाछाप चिकित्सकों से मुक्ति मिल गई है। सबसे ज़्यादा फायदा महिलाओं को मिला है। कुछ समय तक यह व्यवस्था थी कि गाँव की पंचायत में ग्राम प्रधान का चुनाव होता था। मगर अब महिलाएं भी पंचायत प्रतिनिधि बन गई हैं। ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर भी महिलाएं विराजमान है।
मगर आज भी हमारे देश की प्रगति उम्मीद की अपेक्षा बहुत कम है और वजह है भ्रष्टाचार। अंग्रेजों ने भारत के राजा महाराजाओं को भ्रष्ट करके भारत को गुलाम बनाया। उसके बाद उन्होने योजनाबद्ध तरीके से भारत में भ्रष्टाचार को बढावा दिया और भ्रष्टाचार को गुलाम बनाये रखने के प्रभावी हथियार की तरह इस्तेमाल किया। डॉ लोहिया ने एक बार अपने भाषण में कहा था "सिंहासन और व्यापार के बीच संबंध भारत में जितना दूषित, भ्रष्ट और बेईमान हो गया है उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ" भारत में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि आईपील में खिलाड़ियों की स्पॉट फिक्सिंग, नौकरियों में अच्छी पोस्ट पाने की लालसा में कई लोग रिश्वत देने से भी नहीं चूकते हैं। आज भारत का हर तबका इस बीमारी से ग्रस्त है। आज भारत में ऐसे कई व्यक्ति मौजूद हैं जो भ्रष्टाचारी है। आज पूरी दुनिया में भारत भ्रष्टाचार के मामले में 94वें स्थान पर है। भ्रष्टाचार के कई रंग-रूप है जैसे रिश्वत, काला-बाजारी, जान-बूझकर दाम बढ़ाना, पैसा लेकर काम करना, सस्ता सामान लाकर महंगा बेचना इत्यादि। यहाँ तक कि स्विस बैंक के डाइरेक्टर का कहना है कि -"भारतीय गरीब हैं मगर भारत देश कभी गरीब नहीं रहा" भारत का लगभग 280 लाख करोड़ रुपये स्विस बैंक में जमा है। ये रकम इतनी है कि भारत का आने वाले 30 सालों का बजट बिना टैक्स के बनाया जा सकता है।नेताओं और उद्योगपतियों की साठ गाँठ से एक के बाद एक नए नए घोटालों की खबरें मिल रही हैं जिनमे प्रमुख हैं -बोफोर्स घोटाला, यूरिया घोटाला, चारा घोटाला, शेयर बाज़ार घोटाला, सत्यम घोटाला, स्टैंप पेपर घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, अनाज घोटाला, कोयला खदान आवंटन घोटाला।
देश के मेहनती एवं कर्मठ प्रधानमन्त्री मोदी ने सोने की चिड़िया को पुन: आसमान की बुलंदियों से भी ज़्यादा ऊँची उड़ान भरवाने का बीड़ा उठाया है, उन्होंने सबके साथ विकास का स्वप्न देखा है जिसे पूरा करने के लिए वह जी जान से जुटे हैं और कहीं हद तक सफल भी साबित हो रहे हैं। सर्व शिक्षा अभियान, बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान के तहत लिंग अनुपात में 20 प्रतिशत कि कटौती हुई है और भ्रूण हत्या रोकने में भी कामयाबी मिली है, नमामि गंगे अभियान पाप नाशिनी गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने का प्रयत्न है, स्वच्छ भारत सुन्दर भारत अभियान लागू करने के बाद अब देश का व्यक्ति सार्वजनिक स्थानों पर कचरा फैंकने से पहले एक बार सोचता ज़रूर है, jam योजना, आदर्श ग्राम योजना और प्रधानमन्त्री की जनधन योजना इत्यादि कुछ ऐसी योजनायें हैं जिनके अंतर्गत भारत के हर नागरिक को बैंकिंग सुबिधा, आधार कार्ड और मोबाइल जैसी ज़रूरी सुबिधा मुहैया कराना है। जिनसे देश का हर एक व्यक्ति प्रशासन के संपर्क में रह सके और मूलभूत सुबिधाओं से वंचित न हो जाए. देश की प्रथम स्वाभिमानी योजना मेक इन इंडिया के तहत युवाओं और महिलाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर भारत को नौकरी मांगने वाला नहीं अपितु नौकरी देने में समर्थ देश बनाना है। मोड़ी ने १८००० गाँवों को अपने शासनकाल में बिजली देने का लक्ष्य रखा है जो शीघ्र ही पूरा होता दिख भी रहा है। प्रधानमंत्री विद्यालक्ष्मी कार्यक्रम के माध्यम से सभी शिक्षा ऋणों और छात्रवृत्तियों के प्रशासन और निगरानी के लिए एक पूर्ण रूप से आईटी आधारित वित्तीय सहायता प्राधिकरण की स्थापना की गई. अध्यापन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए पंडित मदन मोहन मालवीय शिक्षक प्रशिक्षण मिशन शुरू किया गया। भारतीय छात्रों को अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर देने के लिए ग्लोबल इनीशिएटिव ऑफ एकेडमिक नेटवर्क की शुरुआत हुई.संक्षेप में मोदी और केंद्र सरकार ने टीम इंडिया की भावना से ओत- प्रोत होकर जो विकास कार्य करने की ठानी है उसमे वह काफी हद तक सफल भी हुए हैं और शीघ्र ही हमारा देश जो कभी सोने की चिड़िया बनकर अपनी उड़ान से लोगों को अचरज में डाल देता था, फिर से उड़ान भरेगा और इस बार यह सोने की चिड़िया ऐसी उड़ेगी जो कि अमेरिका, जापान और चीन जैसे बाजों को भी पीछे छोड़ देगी।