फिर वही दो दल / कांग्रेस-तब और अब / सहजानन्द सरस्वती
Gadya Kosh से
15 अगस्त , 1947 के पूर्व दो दल थे-एक शासकों का , दूसरा आजादी के दीवानों का। आज भी वही दो दल हैं , वही दो दल होने चाहिए और दोनों का प्राणपन से वैसा ही संघर्ष चाहिए। हमारा-वामपंथियों का कांग्रेस के साथ हजार मतभेद होते हुए भी उसके साथ हम सभी एक होकर शासकों से लड़ते थे। आज भी हम सभी वामपंथियों को , आपसी भेद के बावजूद भी , मिलकर बेखटके शासकों से लड़ना है , लीडरों से निपटना है। हम सभी चौराहे पर खड़े हैं जहाँ राहें पृथक होती हैं। हमें मिलकर अपनी राह चुन लेनी है। जो इसमें चूकेगा वही किसान-मजदूर राज्य का शत्रु है। शासक हमें आपस में लड़ाकर एके बाद दीगरे सबों को कुचल देंगे , याद रहे। इसलिए उनसे सजग रहें और आपस में हर्गिज न फूटें। हममें हरेक को यही निश्चय करना है। मैंने तो कर भी लिया है। बाकियों से भी क्या यही आशा करूँ ?