फिल्मकार अजय बहल की पटकथा / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
फिल्मकार अजय बहल की पटकथा
प्रकाशन तिथि : 14 अप्रैल 2020


फिल्मकार अजय बहल ने सिने विधा का अध्ययन स्वयं किया। वे न तो किसी संस्था गए न ही किसी फिल्मकार के सहायक रहे। उन्होंने ‘रेलवे आंटी’ नामक प्रकाशित कथा की प्रेरणा से ‘बीए पास’ नामक फिल्म बनाई। फिल्म की महत्वपूर्ण भूमिका शिल्पा शुक्ला ने अभिनीत की। शिल्पा शुक्ला ने शाहरुख अभिनीत ‘चक दे इंडिया’ में भी अभिनय किया। अजय बहल और शिल्पा अच्छे मित्र रहे जैसे ‘कागज के फूल’ में गुरु दत्त और वहीदा रहमान प्रस्तुत किए गए। ‘कागज के फूल’ में सफल सितारा वहीदा रहमान एक गांव में बच्चों को पढ़ाती हैं। शिल्पा शुक्ला को भी बच्चों को पढ़ाना पसंद है। खाकसार ने शिल्पा शुक्ला से फोन पर बात की है। उसकी आवाज में उस तरह की शांति का एहसास हुआ, जिसमें सैकड़ों तूफान जज्ब हों।

अजय बहल की दूसरी फिल्म ‘सेक्शन 375’ भी सराही गई। ज्ञातव्य है कि ‘मी टू’ आंदोलन में कुछ बेकसूर लोग भी बदनाम हो गए। कुछ लोगों ने अदालत में अपनी बेगुनाही साबित की। अजय बहल हमेशा लोकप्रिय उजालों में छिपे श्याम पक्ष को देखते और फिल्म में प्रस्तुत करते हैैं। अमेरिका में नोए सिनेमा बनता रहा है। ये फिल्में भी उजाले में अंधकार और अंधकार में उजाले की खोज की तरह रहीं। फिल्म ‘द पोस्टमैन रिंग्स टुवाइस’ नोए सिनेमा में मील का पत्थर मानी जाती है। दरअसल नोए सिनेमा मानव अवचेतन के अंधकार पक्ष का सिनेमा है? यह मनुष्य मन के अवचेतन में कुंडली मारकर बैठे सर्प को प्रस्तुत करने वाला सिनेमा है। यह सामान्य उजाले और अंधकार से अलग बात है। बहरहाल, अजय बहल का सिनेमा भी नोए सिनेमा ही है। अजय बहल ने एक भूतपूर्व राजा को उसकी नर्स द्वारा ही धीमा जहर देने के विषय पर पटकथा लिखी, परंतुु फिल्म नहीं बनाई। सभी फिल्मकार कुछ कथाओं को कभी बना नहीं पाते।

आजकल अजय बहल एक फिल्म लिख रहे हैैं, जिसमें सारी महत्वपूर्ण घटनाएं एक सिनेमाघर में घटित होती हैं। रहस्य की कुंजी फिल्म की प्रोजेक्शन मशीन में छिपी है। प्राय: फिल्मकार अपने माध्यम पर ही फिल्म बनाना चाहते हैं। गुरु दत्त की ‘कागज के फूल’ और राज कपूर की ‘मेरा नाम जोकर’ ऐसी ही फिल्में थीं। दोनों ही फिल्में खूब सराही गईं, परंतु अपनी लागत भी नहीं निकाल पाईं।

उम्रदराज सितारे भुला दिए जाते हैं। अपने यौवनकाल में लाइम लाइट में रहे कलाकार अपने बुढ़ापे में नजरअंदाज किए जाने से दु:खी बने रहते हैं। ऐसे कलाकार पुराने अखबार की तरह घर के किसी कोने में पड़े रहते हैं या रद्दी में बेच दिए जाते हैं। ज्ञातव्य है कि गुरु दत्त की ‘कागज के फूल’ का नायक फिल्मकार उम्रदराज होने पर जूनियर कलाकार की भूमिका करके आधी रोटी कमा पाता है। बहरहाल, अजय बहल की पटकथा में एक पात्र ऐसे ही कलाकारों को आश्वासन देता है कि वह उन्हें गुमनामी के अंधकार से बाहर निकालेगा। अजय बहल की पटकथा में एक पात्र शिवेंद्रसिंह डूंगरपुर से साम्य रखता है। वह भी फिल्म जगत की धरोहर को खोजकर और सहेजकर रखता है। क्या कोई व्यक्ति उस कैमरे को खोज सकता है, जिसका इस्तेमाल दादा फाल्के ने भारत की पहली कथा फिल्म बनाने के लिए किया था? अजय बहल की इस रोचक पटकथा का नायक बचपन से ही फिल्मकार बनना चाहता था, परंतु अपने माता-पिता के दबाव के कारण वह आईपीएस अफसर बना और कत्ल शृंखला के गुनाहगार को पकड़ने का काम उसे सौंपा गया। यह अपराध ही उसे अपने बचपन में देखे सपने से जोड़ देता है। मनुष्य शरीर में पेट में स्थित अंतड़ियां बड़ी घुमावदार हैं और जीवन की आंकीबांकी राहें भी उसी के समान हैं।

अजय बहल की यह महत्वकांक्षी फिल्म है जिसे वे अपने प्रिय माध्यम सिनेमा की आदरांजलि की तरह रचना चाहेंगे। आजकल अजय बहल पटकथा में रन्दा मारकर उसे चमका रहे हैं। फिल्म का एक पात्र अनुभवी हवलदार का है। हवलदार को अनुभवहीन अफसरों से चिढ़ है। इस पात्र के माध्यम से फिल्म में कुछ मनोरंजक दृश्य रचे जा सकते हैं। बाद मुद्दत के अजय बहल ने अपने जन्मना आलस्य की केंचुल उतार फेंकी है।