फिल्मकार इम्तियाज की मंजिल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :20 अप्रैल 2016
फिल्मकार इम्तियाज अली ने अभय देओल अभिनीत फिल्म के साथ अपना कॅरिअर प्रारंभ किया था। इस तरह उन्हें अवसर देनेे वाले पहले निर्माता सनी देओल थे, जिनके लिए उन्होंने फिर काम नहीं किया, जबकि सनी को सलाह दी गई थी कि वे अपने पुत्र की प्रवेश फिल्म इम्तियाज अली से बनवाएं, लेकिन यह फिल्म वे स्वयं ही निर्देशित कर रहे हैं। अपनी पहली फिल्म का एक और रूप इम्तियाज अली ने करीना कपूर अभिनीत 'जब वी मेट' के नाम से बनाया। फिर रणबीर कपूर के साथ 'रॉकस्टार' बनाई। ताजा खबर यह है कि उनकी अगली फिल्म के नायक और निर्माता शाहरुख खान हैं। अभय देओल की अनाम पायदान से प्रारंभ कर अब वे सुपरसितारा शाहरुख खान के साथ फिल्म बना रहे हैं। उनके प्रिय गीतकार इरशाद कामिल हैं, जिनकी प्रतिभा के भरपूर दोहन के लिए उन्हें साहिर लुधियानवी-अमृता प्रीतम प्रेम-कथा बनानी चाहिए थी और नीतू कपूर के माध्यम से उन तक साहिर की जीवनी भेजने का प्रयास किया गया था।
फिल्मकारों को भेजी गई किताबें संभवत: उन तक पहुंचती नहीं या पहुंचती है तो वे पढ़ने के लिए समय नहीं निकाल पाते। इरशाद कामिल की बेचैनी व बेकरारी समझी जा सकती है कि वे निहायत ही गैर शायराना दौर में फिल्मों से जुड़े और अब उनके पास एक ही रास्ता है कि वे गीतोंभरी पटकथा लिखकर फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखें। उन्हें आगाह भी किया जा सकता है कि इस राह पर चलने वाले अपार प्रतिभाशाली शैलेंद्र को हमने खोया है। संदर्भ फणीश्वरनाथ रेणु की लिखी 'तीसरी कसम' का है। पंजाब के छात्र असंतोष के जलते दौर में जन्मे हैं इरशाद कामिल और आज पंजाब के युवा ड्रग्स की चपेट में आ गए हैं। यह सरकार और समाजशास्त्र के लिए अनुसंधान का विषय है कि लस्सी पीकर हीर गाने वाले युवा नशे की गिरफ्त में कैसे फंसे। इकतालीस प्रतिशत युवा जनसंख्या वाला देश कैसे प्रतिक्रियावादी ताकतों को मत देता है- यह पहेली कौन सुलझाएगा? प्रेम कथा के प्रति रुझान रखने वाले इम्तियाज अली अब पचास वर्षीय शाहरुख खान के साथ फिल्म बना रहे हैं और यकीनन वे उम्र की खाई वाली 'चीनी कम' की तरह तो कुछ नहीं रच रहे हैं। इस राह के जानकार आर. बाल्की है।
पचास वर्षीय शाहरुख खान के साथ इम्तियाज अली जैसे संवेदनाओं वाले फिल्मकार को एमएफ हुसैन की तरह किसी चित्रकार के जीवन पर फिल्म रचने का विचार करना चाहिए, क्योंकि फिल्म की फ्रेम पेंटिंग्स की तरह फिल्माई जा सकती हैं। किसी पेंटर के द्वारा नारी शरीर की कविता पर रची गई पेंटिंग को संस्कृति के स्वयंभू रक्षक विवादास्पद बना दें तो मामला अदालत तक जाकर विवादास्पद बन सकता है और यह एक फिल्म के लिए अच्छा मसाला हो सकता है। यह तो दौर ही स्वयंभू-रक्षक भक्षकों का है। इस तरह फिल्म तात्कालिक हो सकती है और ज्वलंत होने के कारण विवादास्पद हो सकती है। एमएफ हुसैन का गुजरात स्थित स्टूडियो जलाया गया था। किताबें और पेंटिग्स जलाना कई लोगों का शगल रहा है और क्यों न हो जब शासक सम्राट नीरो की तरह रोम के जलने के दौरान अपने आंसू एक पात्र में एकत्रित कर रहा है। आज तो ऐसे अांसुओं का जाम भी पिया जा सकता है। 'थ्री चियर्स फॉर नीरो' जो समय-समय पर अलग-अलग नामों से अवतरित होता है।
शाहरुख खान को अवसर दिया था अजीज मिर्जा ने और जिन्होंने उन्हें आम आदमी की छवि में प्रस्तुत किया था। 'राजू बन गया जेंटलमैन' उनका सिनेमाई मैनीफेस्टो था, जिसकी अन्यतम अभिव्यक्ति उन्होंने अपने 'नुक्कड़' नामक सीरियल में की थी। उस दौर में कुंदन शाह उनके साथ थे। कुंदन शाह ने 'जाने भी दो यारो' नामक कल्ट फिल्म का निर्माण किया था, जिसमें अजीज मिर्जा उनके साथी और सहयोगी थे। यह पुणे फिल्म संस्थान से निकले हमकदम हमराहियों की कृति थी। यह टीम सृजन ऊर्जा से भरी हुई थी। क्रिकेट के मुहावरे में यह फिरकी गेंदबाजों का दौर था और एक्शन प्रधान फिल्मों को तेज गेंदबाजी की तरह माना जा सकता है। यह टीम कहां और कैसे बिखर गई? इसके एक सदस्य केतन मेहता भी थे। 'माया मेमसाहब' से केतन मेहता और उनकी पत्नी दीपा साही अलग रास्ते पर चले गए। भवनी भवई, मिर्च मसाला एक शंखनाद था परंतु अारती तक वे पहुंचे नहीं। शास्त्र सीखते समय साथी रहे जाने कब कैसे बखर जाते हैं? सफलता में बांटने की ताकत होती है, संघर्ष बांधे रखता है। आज अण्णा की टीम कितनी बिखर गई है। उस गंवई गांव वाले को गांधी की तरह पूजा जाना ही उसको डुबो गया। यह चिंताजनक है कि हमारे यहां जयप्रकाश नारायण से अण्णा तक सारे आंदोलन बिखर गए। आज नाना पाटेकर आशा की किरण हैं और ग्रामीण क्षेत्र में विलक्षण काम कर रहे हैं। उनकी टीम अविभाजित रहे यही प्रार्थना है।