फिल्मकार जॉन वू और देवकीनंदन खत्री / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 17 फरवरी 2020
हांगकांग के फिल्मकार जॉन वू की फिल्में सफल हुईं, इसलिए हॉलीवुड ने उन्हें निमंत्रित किया। जॉन वू ने हॉलीवुड में ‘टारगेट्स’ नामक फिल्म बनाई, परंतु उन्हें अपार सफलता मिली ‘फेस ऑफ’ नामक फिल्म से जिसमें सुपर सितारे जॉन ट्रेवोल्टा और निकोलस केज ने अभिनय किया। जॉन ट्रेवोल्टा फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन नामक संस्थान के जासूस हैं और केज एक अपराधी है। केज सारे अपराध जॉन ट्रेवोल्टा की शक्ल लगाकर करता है। अपराध फिल्मों में प्लास्टिक सर्जरी द्वारा चेहरा बदलना दिखाया जाता है। तापसी पन्नू अभिनीत शिवम नायर की फिल्म ‘नाम शबाना’ का खलनायक भी जर्मन डॉक्टर की सहायता से अपना चेहरा कई बार बदलता है। बाबू देवकीनंदन खत्री के अय्यार यह काम बार-बार करते थे। खत्री के जासूस लखलखा सुंघाकर मनुष्य को बेहोश भी कर देते थे। यह दावा भी किया जा सकता है कि लखलखा क्लोरोफॉर्म का जनक है।
अमेरिका हमेशा ही प्रतिभाशाली लोगों को अपने देश में आमंत्रित करके उन्हें शोध करने के अवसर प्रदान करता है। दुनियाभर के वैज्ञानिक अमेरिका की प्रयोगशालाओं में काम करते हैं। अमेरिका की रुचि केवल अपने व्यापार-व्यवसाय को बढ़ाना है। उन्हें किसी महान आदर्श से कुछ लेना-देना नहीं है। यूरोप में सफल फिल्मकार को हॉलीवुड तुरंत आमंत्रित करता है। अमेरिका की अंतरिक्ष प्रयोगशाला में काम करने वाले अधिकांश लोग भारत में जन्मे और अमेरिका में बसे हुए लोग हैं। जर्मन वैज्ञानिक भी वहां काम कर रहे हैं। डॉलर गुरुत्वाकर्षण की तरह काम करता है। संभवत: हॉलीवुड अमेरिका की एकमात्र मौलिक संस्था है। अमेरिका ने चार्ली चैपलिन को भी अमेरिका त्यागकर अपने जन्मस्थान इंग्लैंड जाने से रोकने के प्रयास किए थे। चार्ली चैपलिन पर कम्युनिस्ट विचारधारा का होने का आरोप लगाया गया था। अधिकांश सृजनधर्मी लोग वामपंथी होते हैं। राइटिस्ट विचारधारा केवल प्रचारकों की जमात खड़ी करती है। चार्ली चैपलिन का अमेरिका से लंदन आना अल्फ्रेड हिचकॉक की फिल्म की तरह रोमांचक रहा।
हमशक्ल लोगों से अलग है प्लास्टिक सर्जरी द्वारा चेहरा बदलना। इसी की शाखा सौंदर्य क्षेत्र में बड़ा धन कूट रही है। इंजेक्शन द्वारा होठों को मादक बनाया जाता है, परंतु इस शल्यक्रिया के बाद महीनों तक चुंबन लेना वर्जित किया जाता है। मनुष्य का पैशन शल्य चिकित्सक का काम बिगाड़ सकता है। अमेरिका में प्रीफ्रंटल लोबोक्टोमी नामक शल्य चिकित्सा प्रतिबंधित है। एक व्यक्ति को हमेशा बहुत अधिक चिंता होती है। अकारण ही डर के मारे उसका शरीर पसीने से तर हो जाता है। वह पढ़ा-लिखा चार्टर्ड अकाउंटेंट था। प्रीफ्रंटल लोबोक्टोमी के बाद चिंता और भय से मुक्त हो गया, परंतु अपना काम भूल गया। अतः उसे चौकीदार की नौकरी करनी पड़ी। उसके भाई ने सर्जन पर मुकदमा कायम किया कि डॉक्टर ने प्रभु की रचना में हेराफेरी की है। जज ने डॉक्टर को निर्दोष करार दिया। उस मनुष्य ने स्वेच्छा से शल्य चिकित्सा कराई थी। डॉक्टर ने उसे पीले चावल भेजकर निमंत्रित नहीं किया था।
गौरतलब है कि बुद्धिमान व्यक्ति को ही चिंता होती है और कभी-कभी वह डर के हव्वे से पीड़ित होता है। विचारहीन व्यक्ति हमेशा खुश बना रह सकता है। चिंता तर्कसम्मान वैज्ञानिक विचार शैली का ही हिस्सा है। बड़बोला होना मूर्ख व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार माना जाता है। एक शब्द बोलने में पांच कैलोरी ऊर्जा का इस्तेमाल होता है। सप्ताह में एक दिन मौन व्रत धारण करने से ऊर्जा का संचार हो सकता है। इसी तरह नेता भी सप्ताह में कम से कम एक दिन मौन व्रत रखें तो मानवता का कल्याण हो सकता है। वायु मंडल के प्रदूषित होने का कारण भी आवश्यकता से अधिक बोले हुए शब्द हैं।
रॉबर्ट स्लार की किताब ‘मूवी मेड अमेरिका’ मैं यह धारण अभिव्यक्ति की है कि सिने विधा ने अमेरिका की अवाम की विचार शैली में कुछ परिवर्तन किया है। आलोचकों ने फिल्मों में अर्थ की परतें खोज निकाली हैं। दर्शक के सामाजिक व्यवहार पर भी फिल्मों का प्रभाव पड़ा है। अमेरिका के शहरों के चरित्र में भी परिवर्तन हुआ है। हिंदुस्तान में शहरों की दीवारों पर लगे फिल्म पोस्टर युवा के चेहरे पर मुहांसों की तरह आए लगते हैं। दक्षिण भारत में सितारों के प्रचार के लिए कट आउट बहुमंजिला इमारतों की तरह ऊंचे होते हैं। हवाई जहाज की खिड़की से चेन्नई देखने पर सबसे पहले यह कटआउट ही नजर आते हैं।
अमेरिका यह तय करता है कि कौन सा देश विकसित है और किस देश में विकास प्रक्रिया जारी है या पूरी तरह ठप पड़ी है। अमेरिका के व्यापार समझौतों के मानदंड इस पर निर्भर करते हैं कि देश की आर्थिक दशा कैसी है। हाल में अमेरिका ने भारत को विकसित देश मान लिया है। अतः व्यापार समझौतों में हमारे साथ रियायत नहीं होगी। कुछ सुविधाजनक समझौते होंगे, ताकि दोनों देशों के हुक्मरान अपनी वट कायम रख सकें। अमेरिका मेंे इकोनॉमिक हिटमैन नामक गुप्त संस्थान भी है, जहां से प्रशिक्षित होकर लोग अन्य देशों की आर्थिक नीतियों को प्रभावित करते हैं। इकोनॉमिक हिटमैन नामक किताब भी प्रकाशित हो चुकी है। बहरहाल हुक्मरानों की विदेश यात्राएं नौटंकी की तरह मनोरंजक होती हैं।