फिल्मकार विधु विनोद चोपड़ा की वापसी / जयप्रकाश चौकसे

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फिल्मकार विधु विनोद चोपड़ा की वापसी
प्रकाशन तिथि :21 मार्च 2018


फिल्मकार विधु विनोद चोपड़ा कश्मीर से विस्थापित हुए ब्राह्मणों की व्यथा-कथा पर फिल्म बनाने जा रहे हैं। वे इस कदर व्यवस्थित फिल्मकार हैं कि सुबह कितने शॉट्स लेने हैं, नाश्ते के बाद कितने शॉट्स लेने हैं और दोपहर के भोजन से पैक-अप तक कितने शॉट्स लेने हैं इसका विवरण भी विस्तार से लिख लेते हैं। गुस्सा उनकी नाक पर ठहरा होता है, क्योंकि वे किसी भी यूनिट सदस्य की सुस्ती को बर्दाश्त नहीं करते। काम के प्रति संपूर्ण समर्पण की आशा वे हर यूनिट सदस्य से रखते हैं। वे तकनीशियन की तरह ही कलाकारों को भी नियंत्रित रखते हैं। लोकप्रिय सितारे भी उनके कोप से नहीं बच पाते। वे जुनूनी हैं और फिल्म निर्माण उनके लिए अध्यात्म को साधने की तरह है। उनके भाई वीर चोपड़ा अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ हैं और उन्होंने एक किताब में यह विवरण प्रस्तुत किया है कि हम हर सांसद पर कितना खर्च करते हैं और वह कितना कम काम करता है। वीर चोपड़ा के यूरोप में कई होटल हैं।

जब विधु विनोद चोपड़ा नेशनल फिल्म फाइनेंस कॉर्पोरेशन की वित्तीय सहायता से '1942 ए लव स्टोरी' बना रहे थे और आधी फिल्म ही उस धन से बन पाई थी, तब वीर चोपड़ा अपने भाई की सहायता के लिए आए। उन्होंने न केवल पूंजी निवेश किया वरन फिल्म के कलापक्ष में भी सहायता की। ज्ञातव्य है कि फिल्मकार रामानंद सागर के पिता ने दो विवाह किए थे और दूसरी पत्नी से विधु विनोद चोपड़ा और वीर चोपड़ा का जन्म हुआ। उन्होंने अपने एक भाई के सुपुत्र को भी नायक के रूप में अवसर दिया था। उस फिल्म का नाम 'करीब' था, जिसमें राहत इंदौरी ने गीत लिखे थे। ज्ञातव्य है कि एक दौर में राहुल देव बर्मन के पास काम नहीं था और उसी दौर में विधु विनोद चोपड़ा ने उन्हें '1942 ए लव स्टोरी' के संगीत का भार सौंपा। फिल्म का संगीत अत्यंत लोकप्रिय हुआ परंतु इसके पूर्व ही राहुल देव बर्मन का निधन हो गया। इस तरह यह उनका 'स्वान सांग' था जिसका अर्थ होता है कि मृत्यु पूर्व रची सर्वश्रेष्ठ रचना। इस फिल्म का लोकप्रिय गीत था 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, जैसे मंदिर में हो एक जलता दिया'। जावेद अख्तर बतौर गीतकार इसी फिल्म से जमे जबकि जेपी दत्ता की बॉर्डर में भी उन्होंने कमाल के गीत लिखे थे।

ज्ञातव्य है कि विधु विनोद चोपड़ा 'मिशन कश्मीर' नामक फिल्म भी बना चुके हैं। वे कश्मीर ऐसे ही लौटते हैं जैसे इंदिरा गांधी बार-बार कश्मीर जाती थीं। कश्मीर से विस्थापित ब्रह्माणों के बारे में यह बात अजीब है कि उनके लिए कोई शरणार्थी कैम्प कभी नहीं बना, जिसका तात्पर्य है कि सभी के पास भारत में ठिकाने थे। उनके विस्थापन में और बांग्लादेश से भारत आए हजारों बेघर विस्थापितों में गहरा अंतर है। इसी तरह स्वतंत्रता के समय देश के बंटवारे में विस्थापित लोगों की त्रासदी सबसे अधिक भयावह रही।

पुणे फिल्म संस्थान में अध्ययन करते समय विधु विनोद चोपड़ा ने एक लघु फिल्म 'मंकी एन्ड माउंटेन' बनाई थी, जिसे उस श्रेणी में ऑस्कर मिला था। विधु विनोद चोपड़ा की पहली पत्नी सलूजा संपादन विधा की छात्रा थीं और तलाक के बाद भी वे उनकी फिल्मों का संपादन करती रहीं। उनकी मौजूदा पत्नी अनुपमा ने भी किताबें लिखी हैं। वे राज कपूर की 'प्रेमरोग' की कहानी लिखने वाली महिला की सुपुत्री हैं। विधु विनोद चोपड़ा का लोगों से मतभेद होता है परंतु वे इसकी गांठ नहीं बनाते और न ही किसी दुराग्रह को पालते-पोसते हैं। मतभेद होने पर गुस्सा भी जाहिर करते हैं परंतु मित्रता का हाथ बढ़ाने में चोपड़ा साहब देर नहीं करते। दरअसल विधु विनोद चोपड़ा सागर में उठती उत्तुंग लहर की तरह हैं परंतु उनका भाईचारा एक मिसाल है। सतह पर लहरों की चंचलता और समुद्र गर्भ की स्थिरता दोनों के मेल की तरह हैं इन भाइयों के संबंध। यह सचमुच अजीब बात है कि कश्मीर की कवयित्री हब्बा खातून का बायोपिक अभी तक नहीं बना है। मुगल बादशाहों के सामने हब्बा खातून ने कभी सिर नहीं झुकाया। फिल्मकार मेहबूब खान की तीव्र इच्छा थी हब्बा खातून पर फिल्म बनाने की परंतु पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन की खबर सुनते ही उन्हें दिल का दौर पड़ा और मृत्यु हो गई। उस समय वे हब्बा खातून के जीवन के तथ्यों का अध्ययन कर रहे थे।

'1942 ए लव स्टोरी' का क्लाइमैक्स एक भव्य सेट पर फिल्माया जाना था। चोपड़ा साहब ने अपने आदर्श विजय आनंद से सलाह मशविरा किया था। दरअसल, भारतीय फिल्मकारों में विलक्षण प्रतिभा के धनी विजय आनंद अनदेखे से रहे हैं। राज कपूर ने भी 'मेरा नाम जोकर' में रशियन सर्कस के आगमन के दृश्य को शूट करने वाले एक यूनिट का काम विजय आनंद को सौंपा था। विजय आनंद ने मुंबई विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एमए किया था। दिल्ली में यूथ फेस्टिवल में उनके नाटक 'रिहर्सल' को तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने सराहा था। चेतन आनंद की 'नीचा नगर' के प्रदर्शन को भी नेहरू ही संभव कर पाए थे जैसा कि उमा आनंद की किताब 'पोएटिक्स ऑफ सिनेमा' में लिखा है। बहरहाल विधु विनोद चोपड़ा की वापसी का स्वागत है। आज प्रतिभाशाली फिल्मकारों का अभाव है।