फिल्मी असफलता का लेखा-जोखा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 30 जुलाई 2013
कथा फिल्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर सभी अखबारों और टेलीविजन पर सामग्री प्रस्तुत की गई है। कुछ किताबों का प्रकाशन भी हुआ, परंतु अवसर के अनुरूप फिल्म उद्योग ने कोई भव्य कार्यक्रम नहीं किया। प्रकाशित सामग्री का केंद्र ग्लैमर रहा और तकनीशियन तथा चरित्र भूमिकाएं करने वाले कलाकार उपेक्षित रहे। दरअसल, विगत सदी में एक भी वर्ष ऐसा नहीं था, जब 20' से अधिक फिल्में सफल रही हों, इस तथ्य के बावजूद यह सदा-सुहागन उद्योग नए पूंजी निवेशकों के कारण फलता-फूलता रहा। बॉक्स ऑफिस से संचालित इस उद्योग में 'कागज के फूल' और 'मेरा नाम जोकर' जैसी असफल फिल्मों की चर्चा होती है, परंतु सभी असफल फिल्मों का आकलन संभव भी नहीं है।
आजादी के पहले 'शाहजहां' नामक फिल्म का कोई शो पूरा ही नहीं हो पाया। प्रदर्शन के प्रारंभ होते ही मुंबई में दंगे हो गए। बाबूराव पटेल की फिल्म पत्रिका 'फिल्म इंडिया' की बहुत धाक थी, परंतु दूसरों की फिल्मों में दोष गिनाने वाले बाबूराव पटेल की बनाई बहुप्रचारित 'द्रौपदी' असफल रही और उनकी साख को धक्का पहुंचा। आजादी के पश्चात पहला फिल्मी हादसा सोहराब मोदी की रंगीन 'झांसी की रानी' रही। उनकी कंपनी मिनर्वा मूवीटोन की साख ही इतिहास आधारित सफल फिल्में थीं। फिल्म में उन्होंने मुख्य भूमिका अपनी पत्नी मेहताब को दी और मात खाई। राज कपूर ने 'आग', 'बरसात', 'आवारा' और 'श्री 420' जैसी सफल फिल्मों के बाद देवदासनुमा 'आह' बनाई, जिसे शंकर-जयकिशन का माधुर्य भी नहीं बचा पाया। बिमल रॉय जैसे संवेदनशील फिल्मकार ने जाने क्यों दिलीप कुमार अभिनीत 'यहूदी' का निर्देशन स्वीकार किया। इसके निर्माता सावकवाचा थे।
फिल्मों में मसाले के आदिगुरु शशधर मुखर्जी ने कई सुपरहिट फिल्में बनाई हैं, परंतु उनकी बहुप्रचारित दिलीप कुमार, वैजयंती माला अभिनीत 'लीडर' बहुत बड़ा हादसा सिद्ध हुई। इस फिल्म में दिवाली के बाद दशहरे का उत्सव दिखाया गया था। 'मेरे मेहबूब' की रिकॉर्ड तोड़ सफलता के बाद फिल्मकार एच.एस. रवैल ने दिलीप कुमार, संजीव कुमार, बलराज साहनी एवं अनेक सितारों की 'संघर्ष' का निर्माण किया, जो ठग प्रथा पर लिखे गए बंगाली उपन्यास से प्रेरित थी। इस हादसे से उबरने में रवैल साहब को दस वर्ष लगे। इसी दशक में मोहन कुमार ने जुबली कुमार राजेन्द्र के साथ 'अमन' बनाई, जिसके प्रारंभ में बर्टें्रड रसेल का भाषण है, यह फिल्म असफल रही। सलीम-जावेद, अमिताभ बच्चन की टीम ने 'दीवार', 'जंजीर', 'शोले', 'डॉन' जैसी सफलताओं के बाद 'ईमान-धरम' अत्यंत असफल फिल्म दी। सलीम साहब ने स्वीकार किया कि उन्होंने दो व्यावसायिक झूठी गवाही देने वालों की कहानी लिखी, जिसमें मध्यांतर में वे सुधर जाते है। मध्यांतर के बाद रबर खिंच गया, इसलिए फिल्म नहीं चली।
रमेश सिप्पी की 'सीता और गीता' तथा 'शोले' के बाद बनी 'शान' तथा 'सागर' असफल रहीं। मनमोहन देसाई ने शम्मी कपूर अभिनीत 'ब्लफ मास्टर' के बाद अनेक वर्ष का वनवास काटा और फिर 'रोटी', 'धर्मवीर', 'अमर अकबर एंथोनी', 'सुहाग' तथा 'कुली' जैसी सफलताओं के बाद अमिताभ बच्चन अभिनीत 'गंगा जमना सरस्वती' और 'तूफान' जैसे हादसे रचे। उनके प्रतिद्वंद्वी प्रकाश मेहरा ने भी 'जंजीर', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'शराबी' जैसी सफल फिल्मों के बाद अमिताभ अभिनीत 'जादूगर' नामक हादसा रचा। सुभाष घई ने भी 'त्रिदेव' नामक हादसा रचा, परंतु ऋतिक, करीना अभिनीत 'यादें' की दुर्घटना के बाद आज तक वे संभल नहीं पाए।
जे.पी. दत्ता ने सफल 'गुलामी' के बाद बहुसितारा 'बंटवारा', 'क्षत्रिय', 'यतीम' आदि असफल फिल्में दी। उनकी 'बॉर्डर' सुपरहिट रही, परंतु 'रिफ्यूजी', 'एलओसी' में ो दर्जन सितारे थे और 'उमराव जान अदा' के भव्य हादसों के बाद आज तक वे फिल्म नहीं बना पाए। आशुतोष गोवारिकर ने 'लगान', 'स्वदेश' और 'जोधा-अकबर' के बाद असफल 'वॉट्स योर राशि', 'खेलेंगे हम जी जान से' इतनी असफल बनाई कि अभी तक नई फिल्म शुरू नहीं कर पाए। इसी तरह संजय लीला भंसाली ने 'गुजारिश' नामक हादसा रचा कि यह ऋतिक का ही दम है कि वे जमे हुए हैं। सूरज बडज़ात्या की तीन सफल फिल्मों के बाद 'मैं प्रेम की दीवानी हूं' असफल रही। अधिकांश भव्य असफलताओं का कारण फिल्मकार का अहंकार या आत्म-तुष्टि का भाव है। सृजन के लिए एक भूख की आवश्यकता होती है। सेना भी विजय की भूख के कारण ही युद्ध जीत लेती है।