फिल्मी नृत्य अपसंस्कृति के प्रचारक ! / जयप्रकाश चौकसे

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फिल्मी नृत्य अपसंस्कृति के प्रचारक!
प्रकाशन तिथि :26 अक्तूबर 2017


एक औसत फिल्म में आधा दर्जन गीत होते हैं और इनके छायांकन के लिए नृत्य निर्देशक होते हैं। एक्शन दृश्यों को स्टंट मास्टर शूट करता है। ये लोग खुद शूट की गई रीलों का संपादन भी करते हैं। कुछ निर्देशक अपना आकल्पन नृत्य निर्देशक और एक्शन निर्देशक को समझाते हैं और उसके अनुरूप ही शूटिंग की जाती है। औसत फिल्मकार सबकुछ विशेषज्ञों के हवाले करके आरामकुर्सी पर पसर जाता है। इस तरह केवल नाटकीय दृश्यों की शूटिंग करके कोई भी व्यक्ति निर्देशक हो सकता है। उसका काम सबसे कम और नाम सबसे अधिक होता है। समर्पित फिल्मकार पूरा नियंत्रण अपने हाथ में रखते हैं परंतु कुछ फिल्मकार ऐसे भी हुए हैं कि सेट पर कैमरामैन उनसे पूछे कि कैमरा कहां रखना है और वे कह देते कि साफ-सुथरी जगह देखकर कैमरा रख दो। फिल्मकार को लेन्स की जानकारी भी होनी चाहिए। वर्तमान में तो सितारा जिसके साथ काम करना चाहे, उसे निर्देशक मान लिया जाता है गोयाकि प्रतिभा की जगह मिलनसारिता को दे दी गई है। कभी-कभी आप मिलनसार डॉक्टर का चुनाव करके संकट में फंस सकते हैं। योग्यता एकमात्र मानदंड होना चाहिए।

अगर हम फिल्म में प्रस्तुत नृत्य गीतों को गौर से देखें तो पाएंगे कि मात्र आधा दर्जन अदाओं को ही दोहराया जा रहा है। लोकेशन अलग हो सकती है परंतु सारे ठुमके दोहराए जाते हैं। अधिकतर सितारों को नृत्य आता ही नहीं है। उनके जिस्म में भी रिदम नहीं होतीं। वरुण धवन नाच लेते हैं परंतु उनके समकालीन मल्होत्रा के लिए यह कठिन काम है। नृत्य नहीं कर पाने वाले व्यक्ति के बारे में कहते हैं कि उसके दोनों पैर बाएं हैं। सामान्य रूप से एक बायां और दूसरा दायां कहलाता है।

नृत्य अदाओं में सहवास से जुड़ी मुद्राओं का समावेश किया गया है। एक अदा का तो नाम ही है 'पेल्विक थ्रस्ट।' भारत में नृत्य शास्त्र अत्यंत प्राचीन है। फिल्मी नृत्य में भरत नाट्यम व कथक इत्यादि से भी कुछ मुद्राएं ली गई हैं परंतु फिल्म में प्रस्तुत नृत्य एकतरह की खिचड़ी होते हैं। उनमें शास्त्रीय नृत्य व लोक नृत्य की मुद्राओं को मिलाकर चूं चूं का मुरब्बा बनाया जाता है। कमल हासन प्रशिक्षित नर्तक हैं और अपनी पहली हिंदी फिल्म 'एक दूजे के लिए' में उन्होंने भरतनाट्यम भी प्रस्तुत किया था।शांताराम ने अपनी नृत्य आधारित फिल्म 'झनक झनक पायल बाजे' में गोपीकृष्ण को लिया था। 'मुगल-ए-आज़म' में नृत्य निर्देशन ख्यात नर्तक बिरजू महाराज ने किया था राज कपूर की 'राम तेरी गंगा मैली' में बिरजू महाराज की नाट्यशाला से उनकी छात्राओं को आमंत्रित किया गया था। ज्ञातव्य है कि गुरुदत्त अल्मोड़ा में उदयशंकर की नाट्यशाला में प्रशिक्षण ले चुके थे। उनकी फिल्मों में नृत्य अत्यंत कल्पनाशीलता से प्रस्तुत किए जाते थे। राज खोसला भी इस क्षेत्र में माहिर थे। विजय आनंद पर राज खोसला और गुरुदत्त का गहरा प्रभाव रहा परंतु उन्होंने अपनी शैली भी विकसित की। 'गाइड' के नृत्य दृश्य अत्यंत प्रभावशाली बन पड़े थे। वहीदा रहमान भरतनाट्यम में प्रवीण थीं। हैदराबाद में उनके द्वारा प्रस्तुत नृत्य से प्रभावित होकर ही गुरुदत्त ने उन्हें अपनी फिल्मों में अभिनय के लिए आमंत्रित किया। 'गाइड' में वहीदा रहमान द्वारा प्रस्तुत सपेरा नृत्य मादक प्रभाव पैदा करता है। एक दौर में जितेंद्र दक्षिण भारत में बनने वाली अधिकतर फिल्मों में नायक रहे और उन्होंने पीटी की एक्सरसाइज को अपनी नृत्य शैली बना लिया।

उदयशंकर ने 1946 में नृत्य आधारित 'कल्पना' फिल्म का निर्माण किया था। 'कल्पना' की कथा का केंद्र एक अखिल भारतीय नृत्य स्पर्धा को रखा गया था ताकि सारी शैलियों में नृत्य प्रस्तुत किया जा सके। हिंदुस्तानी फिल्मों में भारतीय शैली की खिचड़ी के साथ विदेशी शैली की झलक भी प्रस्तुत की जाती है। कोसाक नृत्य शैली का भी समावेश किया जाता है। राज सिप्पी की अमिताभ बच्चन अभिनीत 'सत्ते पे सत्ता' में कोसाक शैली का नृत्य है। हमारी फिल्मों में बॉल रूम नृत्य और वाल्ट्ज शैली का भी इस्तेमाल किया गया है। इस तरह आमिर खान की 'लगान' में भी बॉल रूम नृत्य में ड्रामा का समावेश किया गया है। विजय आनंद ने 'ज्वेल थीफ' में वैजयंतीमाला पर एक लंबा नृत्य एक ही शॉट में लिया गया, जो विलक्षण प्रयोग था। गीत के बोल थे, 'ओठों में ऐसी बात मैं दबा के चली आई।'

फिल्म उद्योग में नृत्य निर्देशकों की एक परम्परा रही है, जिसके पुरोधा थे हीरालाल जिनके शागिर्द लंबे समय तक छाए रहे। हीरालाल के स्कूल की फरहा खान ने नृत्य निर्देशन करते हुए फिल्में भी निर्देशित की। ऋषि कपूर और जयप्रदा अभिनीत 'सरगम' के नृत्य बीएल राज ने रचे थे और 'डफली वाले डफली बजा' अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। नृत्य निर्देशकों के अपने डांस हॉल होते हैं, जहां वे सितारों के साथ रिहर्सल करते हैं। समूह नृत्य में प्रशिक्षित लोगों को ही लिया जाता है। नृत्य में प्रवीण दक्षिण भारत की नायिकाएं शिखर सितारा रही हैं जैसे वैजयंतीमाला, पद्‌िमनी, रागिनी, जयाप्रदा, श्रीदेवी आदि। राज कपूर ने अपनी फिल्म 'जिस देश में गंगा बहती है' की नायिका का चरित्र-चित्रण ऐसा किया है कि वह अपनी सारी भावनाएं नृत्य द्वारा ही अभिव्यक्त करती है। एक दृश्य में वह नायक के चले जाने पर तांडव से प्रेरित नृत्य प्रस्तुत करती है, जिसके अंतिम भाग में नायक के लौट आने पर वह आनंद तांडव प्रस्तुत करती है।

फिल्मी नृत्य के प्रभाव में शादियों में फिल्म नृत्य का अनुसरण किया जाता है और श्रेष्ठि वर्ग फिल्म नृत्य निर्देशक को घर बुलाकर अपनी बहू-बेटियों को रिहर्सल कराते हैं। संगीत की रात फिल्म नृत्य ही किए जाते हैं। इस तरह एक अपसंस्कृति पनप रही है। सबसे खराब बात यह है कि बच्चों से भी फिल्मी नृत्य कराया जाता है। टेलीविजन पर डान्स शो में नृत्य कम और सर्कस के करतब ज्यादा देखने में आते हैं।