फिल्मों और टेलीविजन में श्रीराम एवं सीता / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
फिल्मों और टेलीविजन में श्रीराम एवं सीता
प्रकाशन तिथि : 02 अगस्त 2020


आम जनता के पूंजी निवेश से फिल्म निर्माण संस्था ‘न्यू थिएटर्स’ की रचना हुई थी। प्रारंभिक पांच फिल्मों को दर्शकों ने पसंद नहीं किया। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर संस्था के परामर्शदाता थे। उनकी रचना ‘नटीर पूजा’ से प्रेरित फिल्म गुरुदेव के निर्देशन में बनी और वे एक तरह से फिल्म के निर्देशक ही थे। इस फिल्म की असफलता के कारण आर्थिक संकट गहरा गया। गुरुदेव के परामर्श पर शिशिर भादुड़ी के मंचित सफल नाटक ‘सीता’ से प्रेरित फिल्म बनाई गई। उस समय पृथ्वीराज कपूर एंडरसन थिएटर कंपनी के नाटकों में अभिनय करते थे। सीता में पृथ्वीराज कपूर ने राम की भूमिका और दुर्गा खोटे ने सीता की भूमिका अभिनीत की थी। फिल्म की सफलता ने कंपनी को जीवनदान दिया और कंपनी साहित्य प्रेरित फिल्में बनाने में सफल हुई जैसे- देवदास, श्रीकांत, विप्रदास इत्यादि। भादुड़ी के नाटक सीता का प्रदर्शन विदेशों में भी किया गया था।

मुंबई में शोभना समर्थ अभिनीत ‘राम राज्य’ अत्यंत सफल रही। इस प्रचारित बात का साक्ष्य नहीं है कि महात्मा गांधी ने भी ‘राम राज्य’ देखी थी। शोभना समर्थ की पुत्रियाें नूतन और तनुजा ने फिल्मों में अभिनय किया। नूतन की ‘बंदिनी’ को उनकी ‘मदर इंडिया’ माना जा सकता है। वर्तमान की लोकप्रिय कलाकार काजोल, तनुजा की ही पुत्री हैं। मुंबई में फिल्म निर्माण के प्रारंभिक दौर में मायथोलॉजी प्रेरित फिल्में बनीं। हमारी सामाजिक फिल्मों के पात्रों की विचार शैली हमेशा मायथोलॉजिकल ही बनी रही। रामायण और महाभारत पर तो अनगिनत किताबें लिखी गई हैं। एक लेखक ने यह बात भी लिखी है कि सर्वज्ञ राम जानते थे कि सीता का अपहरण होने वाला है। इसलिए छाया सीता रची गई और असली सीता तो सारे समय श्रीराम के साथ परछाई की तरह रही। रावण की पराजय के पश्चात सीता ने अग्नि परीक्षा दी। इस अग्नि परीक्षा में छाया सीता भस्म हुई और असली सीता सबको दिखाई देने लगी। उस समय श्रीराम ने सीता को उनके योगदान के लिए धन्यवाद दिया और आशीर्वाद दिया कि द्वापर युग में छाया सीता द्रौपदी के रूप में जन्म लेगी और श्रीकृष्ण उनकी रक्षा करेंगे। इस तरह सीता सतयुग से द्वापर युग पहुंची। वर्तमान समय में राम और सीता हमारे बीच अपने आदर्श के रूप में मौजूद हैं, परंतु हमारी संकीर्णता हमें उन्हें चीन्ह लेने में सफल नहीं होने देती। हमारा टुच्चापन कालखंड को ही बौना बना दे रहा है। दिव्याकार को बौनों ने अपनी संख्या के दम पर गुलीवर की तरह रस्सी से जकड़ दिया है। संदर्भ ‘गुलीवर की यात्राएं’।

टेलीविजन पर प्रस्तुत मायथोलॉजी बाबा आदम के जमाने के उपकरणों से उन घटिया लोगों ने रची है, जिन्हें न ग्रंथों का ज्ञान है और न ही अपनी विद्या का। अनाड़ियों के हाथों कारूं का खजाना लग गया है। यह दुखद है कि आधुनिकतम उपकरणों और साधनों की विपुलता के इस कालखंड में महाकाव्य प्रेरित फिल्में नहीं बन रही हैं। पहला अभाव फिल्मकार का है। अभिनय के लिए कलाकार को खोजना अत्यधिक कठिन है, क्योंकि लोकप्रिय छवियों ने उन्हें जंजीरों से जकड़ रखा है। स्वदेशी की नारेबाजी के कारण कलाकार जर्मनी से आंत्रित नहीं किए जा सकते। क्या हमें स्टीवन स्पिलबर्ग या उनके समान फिल्मकार को आमंत्रित करना होगा? इन आशाओं का कोई आधार नहीं है। महाभारत के शांति पाठ के एक श्लोक का आशय यह है कि सब जगह रचे गए अंधकार के कारण कुछ दिखाई नहीं देता। विचार प्रणाली सुन्न पड़ी है, मानो किसी ने स्टैच्यू कह दिया या सभी का पैर भूलन कांदा पर पड़ गया है।

आदिकाल के पहले चरण में मनुष्य प्रकृति से भयभीत रहा। उसने प्रकृति के कार्यकलाप का तर्कसम्मत अध्ययन प्रारंभ किया। धीरे-धीरे भय कम होता गया। प्रकृति को पढ़ने के प्रयास में हवन और यज्ञ किए गए। अपने अहंकार को स्वाहा किया जाना आवश्यक हो गया। हवन, आत्मा में ताप का उजास उत्पन्न करता है। कुरीतियों के खिलाफ जन्मे आर्य समाज में भी प्रतिदिन हवन किया जाता है।