फिल्मों के अजीबो-गरीब नाम / जयप्रकाश चौकसे

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फिल्मों के अजीबो-गरीब नाम
प्रकाशन तिथि : 25 मई 2018


सलमान खान की बहन अर्पिता के पति आयुष की निर्माणाधीन फिल्म का नाम है लव रात्रि। अखबारों, विज्ञापनों और फिल्मों के नाम में अंग्रेजी, हिन्दी व उर्दू की खिचड़ी होती है जिसे 'हिन्दुस्तानी' कहते हैं। लोकप्रियता के दबाव में ऐसा किया जाता है। आज शुद्धता के लिए आग्रह नहीं किया जा सकता। हर किस्म की मिलावट ही आज का चलन है। 'गॉड तुसी ग्रेट हो', 'ओ मॉय गॉड', 'झनकार बीट्स', 'दिल मांगे मोर', 'चक दे इंडिया' इत्यादि खिचड़ी नामों वाली फिल्में बहुत सी बनी हैं। कथा फिल्मों के प्रारंभिक दौर में भी विभिन्न भाषाएं बोलने वाले लोग फिल्म उद्योग से जुड़े तो सारा कामकाज अंग्रेजी में होने लगा और कुछ लोगों ने रोमन का प्रयोग भी किया जिसका अर्थ है हिन्दुस्तानी को अंग्रेजी लिपि में लिखा जाए। दूसरा प्रभाव यह भी रहा कि फिल्म विधा की सारी किताबें अंग्रेजी भाषा में अनुवादित हैं। रूस और पोलैंड में लिखी किताबों के अनुवाद भी अंग्रेजी में हुए हैं। आज फिल्मी गीतों में पंजाबी शब्दों का बाहुल्य है क्योंकि अवाम की रोजमर्रा की भाषा में भी पंजाबी शब्द शुमार रहे हैं। आज हमारी फिल्मों का व्यवसाय पंजाब के बराबर ही कनाडा में होता है क्योंकि वहां पंजाबी भाषी लोगों की संख्या बहुत अधिक है। लंदन के साउथहॉल इलाके में तो सड़क पर मंजरियां बिछी हुई होती हैं। खटिया को मंजरी कहा जाता है। कभी कभी फिल्मों के नाम अजीबो-गरीब भी हुए हैं जैसे 'शिन शिनाकी बूबला बू'।

फिल्मों के नाम कुछ इस तरह भी रहे हैं - 'मेरा नाम जोकर', 'जॉनी मेरा नाम', 'माय नेम इज खान'। 'कृष्ण' को 'कृष' कहकर बनाया गया। आजकल राकेश रोशन ऐसी पटकथा बना रहे हैं जिस पर आधारित होगी 'कृष 4'। भव्य सैट्स की कीमत को दो फिल्मों में बांटना किफायत के तहत किया जा रहा है। यही खेल 'बाहुबली' में खेला गया था। बहरहाल राजकुमार हीरानी ने मुन्नाभाई शृंखला की तीसरी कड़ी का नाम रखा था 'मुन्नाआई चला अमेरिका'। करण जौहर के विचार तो नदी के किनारे जाल बिछाए बैठे होते हैं। उन्होंने दिमागी कमतरी कहें या जरूरत से अधिक सीधे व्यक्ति को नायक बनाकर 'माय नेम इज खान' बनाई जिसमें बाढ़ के संकट में फंसे हुए अनेक लोगों की जान उनका नायक बचाता है और अमेरिकन प्रेसीडेन्ट उसे धन्यवाद देते हैं। सच तो यह है कि अमेरिका के पास संकट से बचाने का एक सक्षम विभाग है। वे तो दूसरे देश में घुसकर आतंकी होने के शक मात्र पर वहां घुसकर उसे मार देते हैं, जैसे पाकिस्तान में उन्होंने लादेन के साथ किया। इसके पूर्व अफ्रीका में फंसे अपने देशवासियों को भी वे बचाकर ले आए थे।

ज्ञातव्य है कि टारजन नामक काल्पनिक पात्र पर अनेक फिल्में रची गई हैं। बोनी के पिता सुरेन्दर कपूर की पहली धन कमाने वाली फिल्म का नाम था 'टारजन कम्स टू देल्ही'। टारजन की कथा ऐसे व्यक्ति की है जो जंगल में पला है। उस फिल्म में नायिका से वह कहता है 'यू जेन, मी टारजन'। क्रिया को हटाकर भी अंग्रेजी बोली जाती है। दरअसल भारत में अशुद्ध अंग्रेजी, दोषपूर्ण हिन्दी और टूटी-फूटी उर्दू बोली जाती है। शास्त्रीय शुद्धता के प्रति हमारा कोई आग्रह नहीं है। आज एक बाबा की संस्था गाय के दूध से बना घी बेचती है। धर्म का व्यापार में ऐसा गजब का इस्तेमाल हुआ है कि दशकों से स्थापित उद्योग घराने हिल गए हैं। मार्केटिंग कला तथा विज्ञान में यह क्रांतिकारी काम हुआ है।

हमारे समाज और सिनेमा में दूल्हा दुल्हन के कक्ष में दूध का गिलास रखा होता है और केवल वर के लिए दूध पीना आवश्यक है, वधु के लिए नहीं। दरअसल दूध शक्तिवर्धक नहीं है, वह नींद में गाफिल कर सकता है। आधे घंटे के अंतराल में दो-तीन कप दूध पीते ही नींद आ जाती है। इसी तरह शराब नैराश्य देती है। अगर देवदास ने शराब के बदले दूध पिया होता तो उसे पारो के द्वार पर मरने में इतना समय नहीं लगता। यहां दूध का विरोध नहीं किया जा रहा है, केवल प्रभाव का आकल्पन है।