फिल्मों में औद्योगिक घरानों के मॉडल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :11 अगस्त 2015
सूरज बड़जात्या ने 5 अगस्त 1960 को प्रदर्शित 'मुगले आजम' के सेट पर शीश महल जैसा कक्ष सलमान अभिनीत ,'प्रेम रतन धन पायो' के लिए लगाया और उसका छायांकन जारी है। जब के. आसिफ ने अभिनव शीश महल का सेट लगाया था तब उसकी इतनी प्रशंसा थी कि बिमलराय, गुरुदत्त मेहबूब खान और राज कपूर उसे देखने गए और उसकी प्रशंसा की। उन दिनों जुल्फिकार अली भुट्टो रोज शूटिंग पर आते थे और शीश महल देखने के बहाने मधुबाला पर आंखें टिकाए रखते थे। यही भुट्टो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने और उन्हें पाकिस्तान में ही फांसी पर चढ़ाया गया। इस घटना के एक माह बाद ही आईएस जौहर ने इस पर नाटक लिखकर मंचन किया।
बहरहाल, उस शीश महल की दीवारें और छत कांच के टुकड़ों से बनी थीं और कैमरा लगाने पर उसकी परछाई भी फ्रेम में आ जाती थी। कैमरामैन आरडी माथुर ने अभिनव तरीके से शूट भी किया। उस दौर में एक हॉलीवुड विशेषज्ञ भी भारत आया था और उसका खयाल था कि इसकी शूटिंग नहीं हो सकती। इस सेट पर फिल्माए गीत, 'प्यार किया तो डरना क्या' को मात्र देखकर ही कथा का आधार द्वंद्व स्पष्ट हो जाता है। एक बांदी एक बादशाह को चुनौती दे रही है और इसमें एक पंक्ति, 'चारों तरफ है उसका नज़ारा' के फिल्मांकन में आप छत और दीवारों के अनगिनत कांच में मधुबाला की छवि देखते हैं। धन्य हो कैमरामैन आरडी माथुर, जिन्होंने इसे शूट किया। अफसोस है कि भारत में कैमरामैन को कभी सितारों की तरह आदर नहीं दिया गया। गुरुदत्त के वीके मूर्ति, राज कपूर के राधू करमरकर व मेहबूब खान के फली मिस्त्री को कभी अपने काम के अनुरूप प्रशंसा नहीं मिली। बहरहाल, सूरज की फिल्म में सामंतवादी राजकुमार और उसी के शक्ल के आम आदमी की कहानी है। इस तरह के समान चेहरे वाले दो लोगों की कथाएं सिनेमा और साहित्य में बहुत हैं। चार्ल्स डिकेन्स का 'ए टेल ऑफ टू सिटीज,' लोककथा, 'प्रिंस एंड पॉपर,' इत्यादि। दक्षिण भारत में एलवी प्रसाद ने 'राज और रंक' बनाई थी। सूरज के दादा ताराचंद बड़जात्या ने दक्षिण भारत के फिल्म वितरण विभाग में बरसों काम किया और अपनी कंपनी राजश्री का श्रीगणेश भी दक्षिण भारत में बनी हिंदी फिल्मों के वितरण से किया। निर्माण में अशोक कुमार-मीना कुमारी अभिनीत 'आरती' से आए। बड़जात्या परिवार का दक्षिण भारत के फिल्म उद्योग से गहरा और पुराना रिश्ता है।
यह हैरतअंगेज है कि सलमान और शाहरुख अभिनीत दो फिल्मों का कथा आधार समान है परंतु पटकथा व प्रस्तुतीकरण अलग है। आदित्य चोपड़ा की 'फैन' में अधेड़ उम्र का सुपर सितारा है और उसी का हमशक्ल उसका प्रशंसक भी है। सूरज बड़जात्या और आदित्य चोपड़ा अलग-अलग स्कूल के फिल्मकार है। उनमें समानता यह है कि आदित्य चोपड़ा ने 'हम आपके हैं कौन' की सफलता से प्रेरित अपनी पहली फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' बनाई। सूरज बड़जात्या पारिवारिक विषय में प्रेम-कथा गूंथते हैं। उनका दृष्टिकोण पारंपरिक हैं और आदित्य चोपड़ा आधुनिक परंतु दोनों का उद्देश्य लोकप्रिय फिल्में बनाना है। सूरज बड़जात्या स्वयं संयुक्त परिवार की संतान हैं और उनके फिल्म परिवार का उनके अवचेतन में मॉडल बिड़ला परिवार है, जिन्होंने अनेक शहरों में उद्योग खोलने के साथ बिड़ला मंदिरों की भी रचना की है। आदित्य चोपड़ा के अवचेतन का मॉडल अंबानी परिवार है। हाल ही में जावेद अख्तर की सुपुत्री जोया अख्तर की फिल्म 'दिल धड़कने दो' के परिवार का मॉडल वह नवधनाढ्य वर्ग है, जिसका उदय भारत में आर्थिक उदारवाद के बाद हुआ है। तीनों ही औद्योगिक घरानों में धन की लालसा समान है परंतु उन्होंने अपने परिवारों की एक लोकप्रिय छवि गढ़ी है, िजसमें असलियत नहीं है। आम आदमी भी अनजाने ही स्वयं की छवि गढ़ता है। मसलन फला जांबाज है, फलां कंजूस है, फलां दिलफेंक अलमस्त है, इत्यादि। सबसे भयावह बात यह है कि आप अपने नितांत निजी क्षणों में भी अपनी छवि से मुक्त नहीं हो पाते इसलिए 'स्वयं को जानना' या आत्मन: विदी कठिन हो जाता है। हर व्यक्ति सबसे अधिक झूठ स्वयं से बोलता है। कोई 600 वर्ष पूर्व कबीर का लिखा 'घूंघट के पट खोल तोहे पिया मिलेंगे' में जिन घूंघटों की बात है, उसमें यह छवि, धन और जन्म का अहंकार इत्यादि शामिल है।