फिल्म 'शेफ' और स्वाद की कहानियां / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :25 फरवरी 2016
सैफ अली खान को हटाकर अक्षय कुमार को 'शेफ' नामक फिल्म में अनुबंधित किया गया है, जो संभवत: 2014 में अमेरिका में बनी इसी नाम की सफल फिल्म का भारतीय संस्करण है। दशकों पूर्व ऋषिकेश मुखर्जी ने राजेश खन्ना अभिनीत 'बावर्ची' बनाई थी, जिसमें एक बड़े संयुक्त परिवार के विभिन्न सदस्यों के बीच अनेक गलतफहमियां होती हैं और आपसी संबंध की दरारें बढ़ती जाती हैं। उनका बावर्ची अपनी सूझबूझ से परिवार के सदस्यों की गलतफहमियां दूर करता है। दरअसल, संयुक्त परिवार में गलतफहमियों के अवसर बहुत होते हैं, क्योंकि हर सदस्य की पसंद और नापसंद अलग-अलग होती है और यही मनुष्य स्वभाव की विशेषता भी है कि अलग-अलग रुचियों और विचारों के लोग साथ-साथ रह सकते हैं। अापसी समझदारी और अन्य व्यक्ति की पसंद के प्रति थोड़ा-सा आदर रिश्तों की रक्षा कर सकता है। अन्य की पसंद के प्रति दिखावटी आदर भी रिश्तों को बचा सकता है। अगर एक झूठ से रिश्ता बच सकता है तो झूठ का सहारा लेना चाहिए।
एक पुरातन किस्सा है कि एक सदाचारी तपस्वी को मरणोपरांत जब नर्क भेजा जा रहा था तो उसके पूछने पर बताया गया कि एक बार कुछ गांव वाले आपकी कुटिया के पीछे छिपे और डाकुओं ने आकर उनके बारे में पूछा तो सत्य के प्रति अपने आग्रह के कारण आपने बता दिया और डाकुअों ने गांव वालों को मार दिया। सारांश यह है कि अगर झूठ सबके लिए कल्याणकारी है तो उसे बोलना चाहिए। संयुक्त परिवार में इस तरह झूठ परिवार को तोड़ने वाले सच से बेहतर है। दरअसल, भोजन पकाना कला है और एपिक चैनल पर भोजन आधारित कार्यक्रम आता है, जिसे देखकर ही लार टपकने लगती है। जैसे राजे रजवाड़ों अौर नवाबों के यहां स्वादिष्ट भोजन बनाने वालों की खूब कद्र होती थी, वैसे ही पांच सितारा होटल के प्रमुख शेफ अर्थात बावर्ची का वेतन लाखों रुपए होता है और भारत में मुट्ठीभर संस्थाएं हैं, जो पाक विधा पढ़ाती हैं। माताएं अपनी बेटियों को स्वादिष्ट भोजन पकाना सिखाती हैं और समझाइश का मंत्र यह है कि पुरुष के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर जाता है। लखनऊ में एक परिवार है, जो सात पीढ़ियों से अपनी पाक विधा के कारण प्रसिद्ध है। उनके गलौटी और काकोरी कबाब अत्यंत प्रसिद्ध है।
पश्चिम में भोजन पर विशेषज्ञ टिप्पणी लिखते हैं। अमेरिकन फिल्म 'शेफ' में एक आलोचक की टिप्पणी से क्षुब्ध होकर शेफ नौकरी छोड़ देता है और चलते-फिरते 'भोजनालय' अर्थात वह ट्रक जो जगह-जगह खाना बेचता है, में काम शुरू करता है और इसी यात्रा में उसे उससे खफा पत्नी भी मिल जाती है और उसकी पाक कला के चरचे होने लगते हैं। यह पाक-कला के बहाने परिवार के जुड़ने की मानवीय कथा है। दिल्ली में एक पराठा गली है, जहां विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट पकवान बेचे जाते हैं। हर शहर में खाने-पीने के कुछ ठिए लोकप्रिय हो जाते हैं। मुंबई के पांच सितारा होटल 'ताज' के पीछे संकरी गली में कमाल के कबाब बनते हैं अौर जानकार लोग वहां से कबाब खरीदकर अपने भव्य होटल में ले जाते हैं। 'ताज' में भी बड़ा स्वादिष्ट भोजन बनता है और जानकार व्यक्ति वहां जरूर जाते हैं। इंदौर के रानीपुरा से लगी एक संकरी गली में किसी जमाने में खुर्शीद होटल में सात परतों वाली 'फरमाइश' नामक स्वादिष्ट रोटी बनती थी। बुरहानपुर में प्रकाश टॉकीज के पास एक खाना पकाने वाले का नाम ही लज़ीज (स्वादिष्ट) पड़ गया था और कुछ वर्षों बाद लज़ीज साहब अपना असली नाम ही भूल गए थे। हर शहर में स्वादिष्ट भोजन की किंवदंतियां बन गई हैं।
अंग्रेजी लेखक पीडी वुडहाउस के कुछ अफसानों में खानदानी रईस प्रसिद्ध 'शेफ' की चोरी भी करते हैं और अधिक वेतन देकर ललचाने के खेल पर वुडहाउस ने कमाल की हास्य रचनाएं रची हैं। वुडहाउस की किताबें उम्र के हर दौर में पाठक को गुदगुदाती हैं। अनेक लोगों के लिए वुडहाउस पढ़ना नैराश्य से बचने की दवा मानी जाती है।
इसका नियमित सेवन वैसा ही है जैसे कहावत है कि एक सेवफल प्रतिदिन खाने पर आप बीमारियों से बच जाते हैं। अनेक पकवानों के साथ शहर के नाम जुड़ जाते हैं जैसे हैदराबादी बिरयानी, लखनवी कबाब, मालवा के बाफले, मुंबई की पावभाजी, आगरा का पेठा, बुरहानपुर का दराबा इत्यादि। हर शहर में खाने कीकुछ ऐसी चीजें होती हैं कि कम पैसे में भी पेट भर जाता है और हजारों का खाना खाकर भी भूख नहीं मिटती।