फिल्म उद्योग के आंकड़े और आकलन / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 01 अक्तूबर 2012
फिल्म उद्योग में बॉक्स ऑफिस के आंकड़े और व्यावसायिक अनुमानों का प्रकाशन करने वाली लगभग आधा दर्जन साप्ताहिक पत्रिकाएं वर्षों से प्रकाशित हो रही हैं। इस तरह के प्रकाशन का प्रारंभ 'केटी रिपोर्ट' नामक एक पत्रिका से देश की आजादी के समय हुआ था। उन दिनों मुंबई में लेमिंग्टन रोड पर नाज सिनेमा से लगी इमारत में वितरकों के दफ्तर थे और पास ही के कॉफी हाउस से 'केटी' का प्रकाशन होता था। आदर्शजी ने 'ट्रेड गाइड' का प्रकाशन प्रारंभ किया और उनके सगे भाई रामराज नाहटा उनके सहयोगी थे, जिन्होंने बाद में अपनी स्वतंत्र पत्रिका 'फिल्म इंफॉर्मेशन' प्रारंभ की और ये दोनों प्रकाशन आज भी बदस्तूर चल रहे हैं। कोई तीन दशक पहले 'बॉक्स ऑफिस' नामक पत्रिका का प्रकाशन हुआ और वह शीघ्र ही बंद हो गई। विगत तीन वर्षों से 'बॉक्स ऑफिस इंडिया' प्रकाशित हो रही है, जिसकी साज-सज्जा और मुद्रांकन हॉलीवुड की 'वैरायटी' के लगभग नजदीक है।
इन पत्रिकाओं में केवल बॉक्स ऑफिस के आंकड़े और निर्माणाधीन फिल्मों की जानकारियां प्रकाशित होती रही हैं। सिनेमा के कला पक्ष के विषय में इनमें कोई लेख प्रकाशित नहीं होते। कुछ वर्ष पूर्व तक इन पत्रिकाओं में प्रकाशित आंकड़ों के आधार पर पूरे देश के वितरक व प्रदर्शक निर्भर करते रहे हैं, परंतु अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रस्तुत आंकड़ों पर यकीन किया जाने लगा है और इन्हीं पत्रिकाओं के संपादक चैनल के लिए एक शो आयोजित करते हैं, जिसमें टीआरपी की खातिर उन्हें सितारों को आमंत्रित करना पड़ता है और इसी कारण वे अपने आकलन में निष्पक्ष और निर्मम नहीं हो पाते।
इनमें से एक पत्रिका का संपादन आठवें दशक में कुछ समय तक मैंने किया है। मुंबई के विभिन्न उपनगरों में पत्रिका के प्रतिनिधि दर्शकों के साथ पहले शो में फिल्म देखकर दर्शकों की प्रतिक्रिया संपादक के पास भेजते हैं तथा फोन पर कुछ दूरदराज के शहरों से भी आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं। शुक्रवार की रात बारह बजे ये मुद्रण के लिए भेजी जाती है तथा शनिवार की दोपहर तक फिल्मवालों के घरों तक पहुंचाई जाती है और सोमवार तक ये देश के सभी वितरकों और प्रदर्शकों तक जा पहुंचती है। ये पत्रिकाएं खुले बाजार में नहीं बेची जातीं, परंतु कुछ समय से आयकर विभाग इन्हें खरीदने लगा है। दरअसल आय के सारे आंकड़े ग्रॉस कलेक्शन हैं और असली आय उसका पचास फीसदी ही होती है।
आजकल सभी क्षेत्रों में भ्रामक आंकड़ों को जाहिर करना लोकप्रिय हो गया है। अब तो विशेषज्ञों ने अनमने होकर यह स्वीकार करना प्रारंभ कर दिया है कि तमाम घोटालों के प्रचारित आंकड़े महज संभावना पर आधारित हैं। अगर घपलों के प्रचारित सारे आंकड़ों का जोड़ प्रस्तुत हो, तो आसमान में तारों की संख्या का अनुमान लगाया जा सकता है। ये तथ्य भ्रष्टाचार का बचाव नहीं है और न ही चोरी को न्यायसंगत बताने की चेष्टा है। एक स्वयंभू महान व्यक्ति ने जितने काले धन के विदेशी बैंकों में होने की बात की है, उतना धन तो धार्मिक ठियों पर भी श्रद्धालु जमा नहीं कर पाते।
बहरहाल, 'बॉक्स ऑफिस इंडिया' का एक विशेषांक अत्यंत परिश्रम से प्रस्तुत किया गया है और उसमें उद्योग संबंधित विश्वसनीय सामग्री के साथ कला पक्ष की बात भी की गई है। मसलन, आशुतोष गोवारीकर ने उन सात फिल्मों की बात की है, जिनमें पात्रों के हाथों को महत्व दिया गया है। 'मदर इंडिया' में गांधीवादी मां अपने डकैत बेटे को गोली मारती है, जिसके हाथ में मां का वो कंगन है, जो वर्षों पहले महाजन के यहां गिरवी रखा गया था। 'पथेर पांचाली' में दुर्गा फटी हुई रजाई के छेद में हाथ डालकर अपने भाई अप्पू को उठाती है।
एक ही दृश्य में परिवार की गरीबी और मोहब्बत प्रस्तुत की गई है। 'दीवार' में नायक के हाथ पर लिखा है- मेरा बाप चोर है। 'साहब बीवी और गुलाम' में जमींदार के भवन की खुदाई में एक नरकंकाल निकलता है, जिसके हाथ में सोने का कंगन है। मनोज कुमार की 'उपकार' में खेत के बंटवारे के बाद नायक के हाथ में मिट्टी है। वी. शातांराम की 'दो आंखें बारह हाथ' में तो पूरी फिल्म में ही कैदियों के हाथ उनकी मजबूरी और दर्द को प्रस्तुत करते हैं। हरहाल, बॉक्स ऑफिस इंडिया का यह अंक प्रशंसनीय है।