फिल्म उद्योग के प्रेम प्रकरण और कैरम बोर्ड / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 09 जनवरी 2014
जॉन अब्राहम ने न्यूयॉर्क में अपनी प्रेमिका प्रिया से विवाह कर लिया। जॉन अब्राहम ने शादी विदेश में की क्योंकि वे भारत में मीडिया सर्कस से बचना चाहते थे। इलेक्?ट्रॉनिक मीडिया का तो यह हाल है कि सितारों के पालतू भी उन्हें दिख जाएं तो उस तरह का अफसाना बना सकते हैं, मानो सलमान खान और शाहरुख खान के पालतू कुत्ते बैंड स्टैंड पर टकरा गए और इन कुत्तों की सेवा के लिए नियुक्त सेवक भी एक-दूसरे से भिड़ गए। कुत्तों के एक दूसरे पर भौंकने के कारण वहां हजारों की भीड़ जमा हो गई। तमाशबीन सब जगह मौके की तलाश में ऐसे मुस्तैद होते हैं जैसे आखेट पर निकले भूखे शिकारी।
बहरहाल जॉन प्रिया विवाह की खबरों की स्याही सूखी भी नहीं थी कि जॉन की दस वर्ष तक रही प्रेमिका बिपाशा बसु और हरमन बावेजा के शीघ्र ही विवाहित होने की खबरें आ गईं। खबर है कि दोनों परिवारों का मिलन हो चुका है। ज्ञातव्य है कि हरमन बावेजा के पिता हैरी बावेजा नियमित निर्माता थे। परंंतु पुत्र को सितारा बनाने के लिए निर्मित महंगी फिल्म ने पानी नहीं मांगा और मनमोहन शेट्टी की हरमन अभिनीत 'विक्टरी' भी घोर असफल रही तथा बोनी कपूर द्वारा बनाई गई हरमन बावेजा तथा जेनेलिया डीसूजा अभिनीत फिल्म अनेक वर्ष पूर्व बन चुकी है परंतु उसके प्रदर्शनका जुगाड़ बोनी कपूर जैसा समर्थ निर्माता अभी तक नहीं कर पाया।
ज्ञातव्य है कि जब हरमन उभर रहा था तब प्रियंका चोपड़ा से उसका प्रेम चल रहा था परंतु प्रेम के बैरी बॉक्स ऑफिस ने खेल बिगाड़ दिया। फिल्म उद्योग के प्रेम प्रकरणों पर फिल्मों के परिणाम का प्रभाव पड़ता है। प्रियंका चोपड़ा कुछ समय तक शाहिद कपूर की अंतरंग मित्र रही हैं, यह उस दौर की बात है जब शाहिद कपूर और करीना कपूर का अलगाव हुआ था। उन दोनों की आखरी फिल्म का नाम था 'जब वी मेट'। शाहिद कपूर की असफल फिल्मों ने प्रियंका को उनसे दूर कर दिया। उन दिनों प्रियंका शाहरुख खान की मनपसंद सितारा थीं। इतनी मनपसंद कि गौरी की त्यौरियां चढ़ गई थीं और हर समझदार पति जो अपने बच्चों को प्यार करता है इन चढ़ी हुई त्यौरियों का अर्थ समझता है और दिल मसोसकर अपनी सद्गृहस्थ भूमिका में लौट आता है। यों तो चढ़ी हुई त्यौरियां चेहरे पर आंख के ऊपर का भाग है परंतु यह खतरे की घंटी की तरह भी काम करती हैं।
करीना कपूर शाहिद के साथ अलगाव के बाद कुछ दुखी थीं। चतुर सैफ ने उनके दर्द को समझा और कुछ इस तरह स्वयं को प्रस्तुत किया मानो वह डेमसेल इन डिस्ट्रेस अर्थात दुख में डूबी नारियों का एकमात्र सहारा हैं। बहरहाल यह प्रेम प्रसंग शादी में बदल गया। बेगम करीना खुश हैं और नवाब का यह हाल है मानो गुलफ़ाम को मिल गई सब्ज परी। प्रेम की तीव्र लहर पात्रों को अपने मूल स्थान से दूर ले जाती है। गुजरे दौर के सुपर सितारे जितेंद्र हेमा के दीवाने थे, परंतु पूर्व प्रेमिका शोभा के लौह पाश में ही लौट आए क्योंकि वहां पंजाब दे पुत्तर को दक्षिण ने दामाद रूप में स्वीकार किया।
सितारों की प्रेम कथा की तरह ही आम आदमी के जीवन में भी जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही प्रेम शुरू हो जाता है। बचपन की मित्र के साथ एक मौन प्रेमकथा चलती है, जिसमें औरों से नजर बचाकर किसी तरह अपने मनपसंद से नजर मिलाई जाती है। कभी छत पर बाल सुखाने के बहाने यार को दीदार दिया जाता है परंतु इनमें से अधिकांश प्रेम कथाओं को विकास का अवसर ही नहीं मिलता और प्रेमिका के सजातीय वर की बारात को प्रेमी अश्रुपूरित नेत्रों से भोजन परोसता है। क्ररांझणाञ्ज में इस तरह की प्रेम कथा को बड़ी गहरी समझ के साथ प्रस्तुत किया गया था। हर आम आदमी के जीवन में एक अदद असफल अनअभिव्यक्त प्रेम प्रसंग होता है और जब भी आसमान में घटाएं घिरती हैं, यह बचपन में टूटकर जुडऩे वाली हड्डी की तरह कसकता जरूर है। अपनी नाक सुपड़ते बच्चे को गोद में खिलाते समय भी वह अनअभिव्यक्त प्रेम कसक देता है। यह अनअभिव्यक्त असफल प्रेम कहानियां ही हैं जिनके कारण सैड सॉन्ग पूरी जिंदगी याद रहते हैं।
फिल्म उद्योग एक कैरम बोर्ड की तरह है और सारे कलाकार इसकी गोटियों की तरह हैं। कैरम बोर्ड की रीप से टकराकर स्ट्राइकर वापसी में किसी गोट से अनायास टकरा जाता है और कभी-कभी वह गोट कैरम बोर्ड के पॉकेट में चली भी जाती है। इस तह रिवाइंड में आया स्ट्राइकर किसी बिपाशा को किसी हरमन के पॉकेट में भेज देता है।